प्रेम ...
अनुपम आभास की
अदृश्य शक्ति का
चिर जीवित
अहसास है
प्रेम
मौन बंधनों से
उन्मुक्त उन्माद की
अनबुझ प्यास है
प्रेम
संवादहीन शब्दों की
अव्यक्त अभिव्यक्ति
का असीमित
उल्लास है
प्रेम
निःशब्द शब्दों को
भावों की लहरों पर
मुखरित करने का
आधार है
प्रेम
अपूर्णता को
पूर्णता में परिवर्तित कर
अंतस को
मधु शृंगार से सृजित कर…
Added by Sushil Sarna on July 4, 2017 at 9:22pm — 10 Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 4, 2017 at 11:30am — 21 Comments
Added by Samar kabeer on July 4, 2017 at 12:07am — 39 Comments
तुम्हारे हृदय में ...
ये
समय ठहरा था
या कोई स्मृति
वाचाल बन
मेरी शेष श्वासों के साथ
चन्दन वन की गंघ सी
मुझे
कुछ पल और
जीवित रखने का
उपक्रम कर रही थी
ये
समय का कौन सा पहर था
मैं पूर्णतयः अनभिज्ञ था
अपनी क्लांत दृष्टि से
धुंधली होती छवियों में
स्वयं को समाहित कर
अपने अंत को
कुछ पल और
जीवित रखने का
असफ़ल
प्रयास कर रहा था
शायद किसी के
इंतज़ार में
तुम…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 3, 2017 at 6:00pm — 8 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 3, 2017 at 10:39am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 3, 2017 at 10:12am — 12 Comments
१.
अर्थहीन प्रश्नों के
चकरदार अर्थ
अर्थहीन न तो क्या होंगे
घेर लेते हैं मुझको
छेड़ी हुई मधुमक्खियों की तरह
अब मुंद जाने दो आँखें
बन्द कर दो किवाड़
-----
२.
कोमल पत्तों पर अटकी
प्रांजल बूँदें ...
अपनी ही गढ़ी हुई
वेदना का विस्तार
शायद ... तुम ...
मन के गहरे में कुछ
पल्लवित होना चाहता है
-----
३.
कभी ऐसा भी तो होता…
ContinueAdded by vijay nikore on July 3, 2017 at 8:29am — 14 Comments
Added by Mohammed Arif on July 2, 2017 at 11:00pm — 10 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 2, 2017 at 11:00pm — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on July 2, 2017 at 4:15pm — 8 Comments
Added by Hariom Shrivastava on July 2, 2017 at 12:30am — 5 Comments
घर के बाहर ही जब उसने अपने चचेरे भाई रग्घू को देखा तो उसका माथा ठनका| आज यह घर क्यों आया था, जरूर कुछ गड़बड़ होगी, वर्ना पिताजी को गुजरे इतने साल हो गए, कभी हाल पूछने भी नहीं आया था| उसकी मुस्कराहट को नजरअंदाज करते हुए वह भागती हुई घर में घुसी|
"माँ, माँ, कहाँ है तू", सामने माँ नजर नहीं आयी तो वह बेचैन हो गयी| जल्दी से उसने पिछले कमरे में प्रवेश किया तो माँ को खाट पर बैठे पाया|
"तू यहाँ बैठी है और जवाब भी नहीं दे रही है, मैं तो घबरा गयी थी| आज रग्घू क्यों आया था घर, तूने तो नहीं…
Added by विनय कुमार on July 2, 2017 at 12:30am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 1, 2017 at 9:29pm — 12 Comments
‘कहो बिरजू कैसे आये ? वह भी सवेरे-सवेरे’
बिरजू रैदास हमारे यहाँ हलवाही का कार्य करते थे. खेती के नए उपकरण आ जाने और उम बढ़ जाने से उन्होंने अब यह कार्य छोड़ दिया था.
‘मलकिन, बिटिया की शादी तय कर दी है. अब आप से कुछ मदद होइ जाय ?’
‘अच्छा तो दिविया इतनी बड़ी हो गयी , जरूर-जरूर हमारी भी तो बेटी ही है’ –मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया.
‘जुग-जुग जियो मलकिन. बिटिया तरक्की करे‘ -वह आशीर्वाद देकर चला…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2017 at 12:00pm — 8 Comments
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