“अरे बाबा ! आप किधर जा रहे है ?,” जोर से चींखते हुए बच्चे ने बाबा को खींच लिया.
बाबा खुद को सम्हाल नहीं पाए. जमीन पर गिर गए. बोले ,” बेटा ! आखिर इस अंधे को गिरा दिया.”
“नहीं बाबा, ऐसा मत बोलिए ,”बच्चे ने बाबा को हाथ पकड़ कर उठाया ,” मगर , आप उधर क्या लेने जा रहे थे ?”
“मुझे मेरे बेटे ने बताया था, उधर खुदा का घर है. आप उधर इबादत करने चले जाइए .”
“बाबा ! आप को दिखाई नहीं देता है. उधर खुदा का घर नहीं, गहरी खाई है…
ContinueAdded by Omprakash Kshatriya on July 11, 2015 at 6:00pm — 18 Comments
" पिताजी , मुझे प्रोन्नत कर आप ही के दफ़्तर में स्थानांतरित कर दिया गया है ।निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ , बेटे या बॉस की भूमिका में किसे चुनूँ ? "
" 'अफकोर्स !' बॉस की ।रहा तुम्हारे अधीन काम करना , तो बेटा.. , पिता भले ही संतान को ऊँगली पकड़कर चलना सिखाये परंतु , उसे पिता होने का वास्तविक अहसास तभी होता है , जब संतान के कदम , आगे हों और हाथ लाठी बन पीछे ।
.
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by shashi bansal goyal on July 11, 2015 at 5:00pm — 10 Comments
प्यार करना न अब तुम सिखाना मुझे
पास फिर से बुला मत जलाना मुझे
जिन्दगी बेवफाई करे भी तो क्या
मौत को रूठने से मनाना मुझे।
चार कन्धे चढ़े वो चले जा रहे।
कुछ नहीं पास उनके दिखाना मुझे।
वो नहीं है किया प्यार जिससे कभी
याद उसकी न यारो दिलाना मुझे
मैं मनाता नही कोई उत्सव मगर
दीप दिल से जले तो बताना मुझे
हर तरफ जो अँधेरा जमीं पे अभी
जान दे भी उसे है मिटाना मुझे
रात भर अश्क गम में बहे क्यों सनम
दोस्त को…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on July 11, 2015 at 10:30am — 4 Comments
Added by kanta roy on July 11, 2015 at 9:00am — 4 Comments
1222 1222 1222 122
क़रीब आ ज़िन्दगी, तुझको समझना चाहता हूँ
मैं ज़र्रा हूँ , तेरी बाहों में फिरना चाहता हूँ
समेटा खूब , खुद को, पर बिखरता ही गया मैं
ग़ुबारों की तरह अब मैं बिखरना चाहता हूँ
जमा हर दर्द मेरा एक पत्थर हो गया है
ज़रा सी आँच दे , अब मैं पिघलना चाहता हूँ
तेरी आँखों मे देखी थी कभी तस्वीर खुद की
जमाना हो गया , मै फिर सँवरना चाहता हूँ
लगा के बातियाँ उम्मीद की ,दिल के दिये…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 11, 2015 at 9:00am — 12 Comments
"चलो पापा, आज मैँ आप को शाम की सैर करवा लाती हूँ।" नन्ही तनु की बात सुनकर कई दिन से बिस्तर पर पड़े बीमार राज के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।
दूर अस्त होते सूर्य की बिखरती लालिमा और शांत सुहानी शाम के साथ, बेटी के चेहरे पर बड़ो जैसा विश्वास राज को बहुत भला लग रहा था। अनायास तनु उसे लगभग खींचते हुये एक जगह ले गयी और अपनी प्यारी आवाज में बोली। "पापा पापा देखो, यही पर छोड़ गयी थी ना मुझको एक 'ऐंजल'! 'ममा' ने बताया है मुझे।"
और अचानक ही अतीत को याद कर राज की आँखे भीग गयी। "क्या हुआ पापा?"…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 11, 2015 at 7:30am — 7 Comments
माँ पढ़ लेती है
अपनी मोतियाबिंदी आखों
और मोटे फ्रेम के चश्मे से
रामायण की चौपाइयां
हिंदी अखबार की
मुख्य मुख्य ख़बरें
यहाँ तक कि,
मोबाइल में
अंग्रेज़ी में लिखे नाम भी
पढ़ लेती हैं
कि यह छोटके का फ़ोन है
कि यह बड़के का फ़ोन है
कि बिटिया ने फ़ोन किया है
भले ही बड़ी बड़ी किताबें न पढ़ पाती हों
पर आज भी पढ़ लेती हैं
हमारा चेहरा
हमारा मन
हमारा दुःख
हमारी तकलीफ…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on July 10, 2015 at 11:29am — 4 Comments
एक
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मेरा नाम बिट्टो है,
कल मेरे गाँव का मेला है
सब खुश हैं
मेरी सहेली चुनिया
कह रही थी वह अब की
कान के बुँदे और कंगन लेगी
गुड्डू कह रहा था
वह इस बार बाबू से कह के
मेले में नुमाइश देखेगा
मेरा छुटका भाई
बैट बाल लेगा
अम्मा अपना टूटा तवा बदलेंगी
बाबू कुछ नहीं लेंगे
और मै भी कुछ नहीं लूंगी
क्यों कि हमें मालूम है
उनके पास बहुत ज़्यादा पैसे नही हैं
मै सिर्फ चुपचाप मेला देख के आ जाऊँगी…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on July 10, 2015 at 11:00am — 3 Comments
शंभू सिंह्जी पत्नी के देहांत के बाद, बेटे ब्रिगेडियर बाबू सिंह के साथ रहने लगे थे! ब्रिगेडियर साहब के बंगले पर रात को पार्टी चल रही थी!
आउट हाउस में शंभू सिंह जी रात के खाने का इंतज़ार कर रहे थे! पार्टी के कारण किसी को शंभू सिंह को खाना देने की याद ही नहीं रही !
शंभू सिंह जी की, लेटे लेटे , कब आंख लग गयी ,पता ही नहीं चला!
सुबह ब्रिगेडियर साहब का अर्दली चाय लेकर आया तो शंभू सिंह जी पूछ बैठे,"रात को किस बात की पार्टी थी"!
"जन्म दिन की"!
शंभू सिंह जी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 10, 2015 at 10:30am — 13 Comments
झरना फूटा
संगीत फ़ैल गया
हुआ बावरा
यात्रा अनंत
लक्ष्य का पता नहीं
चलाचल रे
नदी की धारा
रोके नही रूकती
हारीं चट्टानें
मानव मन
उड़ने को आतुर
पंख फैलाये
कोलाहल में
गहराया एकांत
भागी उदासी
.
यह मेरी अप्रकाशित और मौलिक रचना है
डॉ.बृजेश कुमार त्रिपाठी
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on July 10, 2015 at 8:30am — 4 Comments
अचानक उसकी नज़र सड़क पर धीमी बत्तियों में खड़ी एक लड़की पर पड़ी | हाड़ कंपा देने वाली ढंड में भी , जब वो सूट पहने अपने कार में ब्लोअर चला के बैठा था , लड़की अत्यंत अल्प वस्त्रों में खड़ी थी | फिर समझ में आ गया उसे , ये कॉलगर्ल होगी |
उसने कार उसके पास रोकी , लड़की की आँखों में चमक आ गयी | आगे का दरवाज़ा खोलकर उसने अंदर आने को बोला और उसके बैठते ही बोला " देखो , मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा , मुझे अपना ग्राहक मत समझना | इस तरह खड़ी थी , क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लगती "|
लड़की ने एक बार उसकी ओर देखा और…
Added by विनय कुमार on July 9, 2015 at 8:53pm — 10 Comments
शाम
स्वागतम
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स्वागत तेरा शाम सदा
श्याम सी सदा शाम हो ,
श्वेत श्याम उन यादों की
हर पल सुनहरी शाम हो
चाहत
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दूर होते हम तभी ,
भोर की जब बांग हो .
पास लाती चाहत हमे
नित मिलन की शाम हो
.
जिंदगी
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जिंदगी तू सुबह भी है
जिंदगी तू शाम भी है
बोझिल कभी तू दर्द से
देती कभी आराम भी है
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हसरत
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हाथ थामे चलते रहें
हसरत मेरी…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 9, 2015 at 4:30pm — 2 Comments
चेप्टर-२ - विविध दोहे
बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय
ढोंगी या संसार में, मिला न अपना कोय
वर्तमान की प्रीत में, बस धोखा ही होय
न्यून वस्त्र में आ गयी, वर्तमान की नार
लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार
औछे करमन से भला, कैसे सदगति होय
जैसी संगत साथ हो, वैसी ही मति होय
पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय
टूट के डारि से भला,…
Added by Sushil Sarna on July 9, 2015 at 3:30pm — 13 Comments
Added by Pari M Shlok on July 9, 2015 at 3:05pm — 17 Comments
(१)
विधान लोनी का जन्म 26 जनवरी 1950 को बनारस के जिला अस्पताल में हुआ था। उसके पिता निधान लोनी विश्वनाथ मंदिर के पास चाय बेचा करते थे। लोग कहते हैं कि विधान लोनी में उस लोदी वंश का डीएनए है जिसने उत्तर भारत और पंजाब के आसपास के इलाकों में सन 1451 से 1526 तक राज किया था। जब बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगलवंश की स्थापना की तब इब्राहिम लोदी का एक वंशज बनारस भाग आया और मुगलों को धोखा देने के लिए लोदी से लोनी बनकर हिन्दुओं के बीच हिन्दुओं की तरह रहने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 9, 2015 at 11:18am — 9 Comments
मनुज रूप मैं पा गया,
हुआ स्वप्न साकार
कोमल किरणे भोर की,
बिखराती जब नेह है,
दिखती उल्लासित धरा
आन्दंदित हर देह है.
सचमुच एक सराय सा
लगा मुझे संसार
प्यार भरे व्यवहार से
मिलती देखी जीत है,
बना एक अनजान जब,
मेरे मन का मीत है
सच्ची निष्ठा ने किया,
हरदम बेडा पार
लोभ मोह माया कपट,
सारे लगते काल हैं,
सत्य यहाँ है मौत ही,
बाकी सब…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 9:07am — 14 Comments
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
हों जुल्म बेहिसाब तो लोहा उठाइये
ख़तरे में गर हो आब तो लोहा उठाइये
जिसको चुना है दिन की हिफ़ाजत के हेतु वो
खा जाए आफ़ताब तो लोहा उठाइये
भूखा मरे किसान मगर देश के प्रधान
खाते मिलें कबाब तो लोहा उठाइये
पूँजी के टायरों के तले आ के आपके
कुचले गए हों ख़्वाब तो लोहा उठाइये
फूलों से गढ़ सकेंगे न कुछ भी जहाँ में आप
गढ़ना हो कुछ जनाब तो लोहा…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 8, 2015 at 11:00pm — 23 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on July 8, 2015 at 10:44pm — 11 Comments
"अपने मज़हब पर मरने का हौसला है कि नहीं?"
"है, लेकिन मेरे अपने धर्म पर, तुम्हारे नहीं|"
"हमारा धर्म तो एक ही है..."
"तुम्हारे पास वहशत फ़ैलाने का हौसला है, मेरे पास न डरने का हौसला, तो फिर हमारे धर्म अलग हुए न?"
यह सुन तीसरा बोला:
"मेरे पास हर धर्म की लाशें सम्भालने का हौसला है|"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 8, 2015 at 10:30pm — 4 Comments
122 122 122 122
तुम्हारी समझ से वो सौगात होगी ,मगर मेरी नजरों में खैरात होगी
मुझे चाहिए मेहनतों के निवाले, जिये रहमतों पर तेरी जात होगी.
न जाने कहाँ अब मुलाकात होगी ,जहाँ आमने सामने बात होगी
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Added by rajesh kumari on July 8, 2015 at 9:14pm — 15 Comments
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