गुनगुनाने दो पीर को...
गुनगुनाने ..दो पीर को
प्यासे अधर अधीर को
नयनों के .इस नीर को
मधुर स्मृति समीर को
हाँ , गुनगुनाने दो पीर को ….
रांझे की …उस हीर को
भूखे ..इक ..फकीर को
मरते .हुए …जमीर को
प्यासे नदी के .तीर को
हाँ , गुनगुनाने दो पीर को ….
घायल नारी के चीर को
पंछी के बिखरे नीड़ को
शलभ की ..तकदीर को
घुट घुट मरती भीड़ को
हाँ , गुनगुनाने दो…
Added by Sushil Sarna on August 25, 2014 at 7:00pm — 7 Comments
गागा लगा लगा /लल /गागा लगा लगा
तालीम-ओ-तरबीयत ने यूँ ख़ुद्दार कर दिया,
चलने से राह-ए-कुफ़्र पे इनकार कर दिया.
.
मै ज़ीस्त के सफर में गलत मोड़ जब मुड़ा,
मेरी ख़ुदी ने मुझको ख़बरदार कर दिया.
.
इज़हार-ए-इश्क़ में वो नज़ाकत नहीं रही, …
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on August 25, 2014 at 6:00pm — 33 Comments
अजीब बात है ये प्यार की , भूले वो सारा संसार |
सारा यौवन बर्बाद करे , मिल गया बेवफा जो यार |
शादी बंधन अपवित्र करे , रिश्ते को गड्ढे में डाल |
जिंदगी ही डूबे नर्क में , आगे का अब कौन हवाल |
माता पिता जब करे शादी , जा कर ही देखे घर बार |
जान पानी छान कर पीते , तब कहीं करते ऐतबार |
शादी पावन है जीवन में , इसी से चलता संसार |
राह चले शादी हो जाती , दूसरे दिन पड़ता दरार |
गोद में जब बालक आये , आशिक हो जाता फरार |
मुँह…
Added by Shyam Narain Verma on August 25, 2014 at 5:00pm — 8 Comments
माँ सोनी के कमरे से खूब रोने चीखने की आवाजें आ रही थी, १४ साल की राधा भयभीत हो रसोई में दुबकी रही, जब तक पिता के बाहर जाने की आहट ना सुनी ! बाहर बने मंदिर से पिता हरी की दुर्गा स्तुति की ओजस्वी आवाज गूंजने लगी! भक्तों की "हरी महाराज की जय" के नारे से सोनी की सिसकियाँ दब गयी! पिता के बाहर जाते ही माँ से जा लिपट बोली "माँ क्यों सहती हो?" सोनी घर के मंदिर में बिराजमान सीता की मूर्ति देख मुस्करा दी! अपने घाव पर मलहम लगाते हुए बोली, "मेरा पति और तेरा पिता…
ContinueAdded by savitamishra on August 25, 2014 at 2:00pm — 20 Comments
किससे क्या है शिकवा
किसको क्या शाबाशी।
नहीं कम हुए बढ़ते
दुष्कर्मों को पढ़ते
बेटे को माँ बापों पर
अहसाँ को गढ़ते
नेता तल्ख़ सवालों पर
बस हँसते-बचते
देख रहे गरीब-अमीर
की खाई बढ़ते
कितनी मन्नत माँगे
घूमें काबा काशी।
फिर जाग्रति का
बिगुल बजेगा जाने कौन
फिर उन्नति का
सूर्य उगेगा जाने कौन
आएगी कब घटा
घनेरी बरसेगा सुख,
फिर संस्कृति की
हवा बहेगी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 24, 2014 at 7:00pm — 3 Comments
वो मेरा कुछ नहीं लगता
और मैं कोई महान व्यक्ति भी नहीं
फिर भी बार बार वो
मेरे पैर पकड़ रहा था
पता है क्यों ?
मैंने सिर्फ दो रोटी दी उसे
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बहुत दुश्मन है उसके
गलती ?
बहुत अच्छा आदमी है वो
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सिसकियाँ मत लो ग़म-गीं हवाओ
चुप हो जाओ
पता है क्यों?
वो आ रहीं है
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लोग कहते है उनकी आँखों में
प्यार का समंदर है
फिर भी मैं क्यों ?
प्यासा…
Added by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 6:00pm — 14 Comments
द्वेष,बुराई,दुष्टता ,ना ही हो अनाचार
भेदभाव नफरत मिटे ,करो सभी से प्यार ||
आजादी के बाद भी, ख़त्म हुई ना जंग
गुंडागर्दी है बढ़ी ,दानव फिरें दबंग ||
काम ,मोह, मद, लालसा,फैला भ्रष्टाचार
मानव दानव है बना ,करता अत्याचार ||
देश प्रेम की भावना, होगी तब साकार
दूर हटे जब दीनता ,सपने लें आकार ||
बिजली पानी झोंपड़ी ,इसकी है दरकार
पेट भरे हर एक का, तभी सफल सरकार…
Added by Sarita Bhatia on August 24, 2014 at 1:29pm — 10 Comments
खुद का भी अहसास लिखो!
एक मुकम्मल प्यास लिखो!!
उससे इतनी दूरी क्यों !
उसको खुद के पास लिखो !!
खाली गर बैठे हो तुम!
खुद का ही इतिहास लिखो !!
गलती उसकी बतलाना !
खुद का भी उपहास लिखो!!
हे ईश्वर ऊब गया हूँ!
मेरा भी अवकाश लिखो!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 1:11am — 28 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 23, 2014 at 10:16pm — 21 Comments
मिला कंधा नहीं हमको पड़ी है लाश ठेले में
खिलाया क्यों ज़हर तुमने मिला कर हम को केले में
चली आ तू बहाने से मिलेगें आज हम दोनो
न आई तो समझ लेना फसा देगें झमेले में
न आती थी हमें नीदें कहें जब तक न गुडनाइट
किये हम रात भर बाते दिया जो फोन मेले में
पहन कर लाल जोड़ा तुम चली हो साथ क्याे उनके
करे हम ये दुआ रब से रहे तू तो तबेले में
सजाई मॉंग क्यों अपनी तड़पता छोड़…
Added by Akhand Gahmari on August 23, 2014 at 8:17pm — 22 Comments
सोचता रहता हूँ
उदासियो में घिरकर
प्रतिक्षण-प्रतिपल
आबाद होंगे कब जीवन -मरुस्थल ?
काल की क्रूरता ने
मेरे प्रयासों को
आशा-उजासो को
जीवन-विकल्पों को
कर डाला धूमिल
कर्म हुआ निष्काम
कार्य भी निष्फल
आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?
सूने शून्य जीवन में
नियति के बंधन से
करुणा से क्रंदन से
पूरे जो न हो पायें
स्वप्न हुए चंचल
पंगु प्रेरणा के पग
शान्त और…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 23, 2014 at 7:27pm — 20 Comments
2122/ 2122/ 212
घर से बाहर तो निकल कर देखिये
ज़िन्दगी के साथ चल कर देखिये
आपको अंधा न कर दे वो चमक
शम्स को थोड़ा सँभल कर देखिये
आजमाया है मुझे ही अब तलक
इक दफा खुद को बदल कर देखिये
चार सू बस आप ही होंगे जनाब
शम्अ की मानिन्द जल कर देखिये
आसमाँ के है मुकाबिल हस्ती क्या
देखना हो तो उछल कर देखिये
तर्क़े ताल्लुक तो बहुत आसान है
कालिबे निस्बत में ढल कर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on August 23, 2014 at 7:00pm — 17 Comments
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जुल्फ है कारे मोती झरते
रतनारे मृगनयनी नैन
हंस नैन हैं गोरिया मेरे
'मोती ' पी पाते हैं चैन
आँखें बंद किये झरने मैं
पपीहा को बस 'स्वाति' चैन
लोल कपोल गाल ग्रीवा से
कँवल फिसलता नाभि मेह
पूरनमासी चाँद चांदनी
जुगनू मै ताकूँ दिन रैन
धूप सुनहरी इन्द्रधनुष तू
धरती नभ चहुँ दिशि में फ़ैल
मोह रही मायावी बन रति
कामदेव जिह्वा ना बैन
डोल रही मन 'मोरनी'…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2014 at 6:14pm — 16 Comments
ताप प्रचण्ड
उफनाई नदियाँ
तपता भादों |
पथिक भूला
अंतर्मन व्यथित
तिमिर घना |
पथ ना सूझे
पिए नित गरल
कंठ भुजंग |
अल्हड़ नदी
मदमस्त लहरें
नईया डोले |
भजन राम
बसे छवि मन में
नित निहारू |
मनमोहिनी
चंदा सा मुख देख
खुशी मन में |
मीना पाठक
मौलिक /अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on August 23, 2014 at 1:45pm — 25 Comments
2122 1221 2212
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नीर पनघट से भरना, बहाना गया
चाहतों का वो दिलकश जमाना गया
***
दूरियाँ तो पटी यार तकनीक से
पर अदाओं से उसका लुभाना गया
***
पेड़ आँगन से जब दूर होते गये
सावनों का वो मौसम सुहाना गया
***
आ गये क्यों लटों को बिखेरे हुए
आँसुओं का हमारे ठिकाना गया
***
नाम उससे हमारा गली गाँव में
साथ जिसके हमारा जमाना गया
***
गंद शहरी जो गिरने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 10:00am — 25 Comments
ज़िन्दाबाद--ज़िन्दाबाद।
राष्ट्रभाषा-मातृभाषा हिन्दी ज़िन्दाबाद।।
ज़िन्दाबाद- जि़न्दाबाद।
हिन्द की है शान हिन्दी
हिन्द की है आन हिन्दी
हिन्द का अरमान हिन्दी
हिन्द की पहचान हिन्दी
इसपे न उँगली उठे रहे सदा आबाद।
ज़िन्दाबाद-ज़िन्दाबाद।
वक़्त जन आधार का है
हिन्दी पर विचार का है
काम ये सरकार का है
जीत का न हार का है
हिन्दी से ही आएगा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 23, 2014 at 8:22am — 9 Comments
आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।
क्या दिया हमने इसे, ये सोचने की बात है।
कितने शहीदों की शहादत बोलता इतिहास है।
कितने वीरों की वरासत तौलता इतिहास है।
देश की खातिर जाँबाज़ों ने किये फैसले,
सुन के दिल दहलता है, वो खौलता इतिहास है।
देश है सर्वोपरि, न कोई जात पाँत है।
आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।
आज़ादी से पाई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
सर उठा के जीने की, कुछ करने की प्रतिबद्धता।
सामर्थ्य कर…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 22, 2014 at 9:00pm — 7 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
राह पर्वत पर बनाना इतना आसाँ है नहीं
दीप आंधी में जलाना इतना आसाँ है नहीं
सरहदों पे जान देते आज माँ के लाडले
गीत आजादी के गाना इतना आसाँ है नहीं
दोस्ती का हाथ लेकर फिर खड़े अहबाब हैं
जो दफ़न उसको जगाना इतना आसाँ है नहीं
बस्तियां चाहें जला लें आप कितनी भी यहाँ
है हकीकत घर बनाना इतना आसाँ है नहीं
हाथ हाथों से मिलाये हर किसी ने बज्म में
दिल से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 22, 2014 at 1:30pm — 24 Comments
लोकतंत्र कब तलक यूँ जनता को भरमाएगा।
स्वतंत्रता का जश्न अब न और देखा जाएगा।
भ्रष्टाचार दुष्कर्मों से घिरा हुआ है देश देखलो,
इतिहास कल का नारी के नाम लिखा जाएगा।
क्रांति का बिगुल ही अब नव-चेतना जगाएगा।
आ गया है फिर समय जुट एक होना ही पड़ेगा।
दुष्ट नरखांदकों से फिर दो चार होना ही पड़ेगा।
गणतंत्र और स्वतंत्रता की शान की खातिर हमें,
बाँध के सिर पे कफ़न घर से निकलना ही पड़ेगा।
सिर कुचलना होगा साँप जब भी फन…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 21, 2014 at 9:00pm — 6 Comments
चले आओ कभी आगोश में,
सब छोड़ के जालिम!
ये रातें कट रही तन्हा,
कि तेरी याद आती है।
बताऊँ फिर तुझे कैसे,
दिल-ए-नादाँ की बातें!
मैं खुद में हो गया आधा,
कि तेरी याद आती है।
कभी रहती थी पलकों पे,
हुस्न-ए-नूर बनकर तुम!
वही बनके तूँ फिर आजा,
कि तेरी याद आती है।
समय बदला, फिजा बदली,
अभी ये दिल नही बदला!
समय के साथ तूँ बदली,
कि तेरी याद आती है।
सोचता हूँ समेटूँगा,
तेरी यादों…
Added by Pawan Kumar on August 21, 2014 at 3:30pm — 20 Comments
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