आदरणीय योगराज प्रभाकर जी के ज्येष्ठ सुपुत्र श्री ऋषि प्रभाकर जी के मंगल विवाह में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ | 25 सितम्बर की शाम को लेडीज संगीत के आयोजन में शामिल होना तय था | हमारी ट्रेन दिल्ली से राजपुरा तक थी वहाँ से हमने बस पटियाला तक की ली फिर पंजाबी यूनिवर्सिटी बस स्टैंड पर हमें प्यारे से रोबिन और मनु जी लेने आ गए | इस बीच में लगातार प्रभाकर सर, आ. गणेश जी बागी से…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 11:30am — 33 Comments
मंथर गति से
थमा नहि पल कोई सुहाना
बीत सदा जाता है।
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।
सींचा एक एक पौधा तब
वन उपवन लहराते।
अनजाने से सन्नाटे ये
चुपके चुपके आते।
बड़ा तिलस्मी मरूथल
पग पग
जीत सदा जाता है
अल सुबहा के स्वपन सजीले
दिन भर धूम मचाते।
ऊषा के स्वर्णिम चंचल रँग
साँझ ढले थक जाते।
श्याम निशा के रँग
से जीवन
भीत सदा जाता है
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता…
Added by seemahari sharma on September 30, 2014 at 2:00am — 16 Comments
पाँव में खुद के बिवाई हो गयी.
आदमी तेरी दुहाई हो गयी.
वायु पानी भी नहीं हैं शुद्ध अब,
सांस लेने में बुराई हो गयी.
बारिशों का दौर सूखा जा रहा.
मौसमों की लो रुषायी हो गयी.
आपदाएं रोज़ होतीं हर कहीं,
रुष्ट अब जैसे खुदाई हो गयी.
काट डाले पेड़ सब मासूम से,
जंगलों की तो सफाई हो गयी.
काटती है पैर खुद अपने भला,
देखिये आरी कसाई हो गयी.
पेड़ दिखते थे जहाँ पर गाँव…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 1:00am — 18 Comments
चार माह की
तपती धरा पर
जैसे ही बारिश की बूँदे बरसी
बो दिये , नन्हे-नन्हे अंकुरों को
कई कतारों में
सभी ने मिलकर
नन्हें -नन्हे से हाथो को
ऊँचा उठाकर
दूर कर दी , मिट्टी की चादर
धीरे से झाँक ने लगे
इस सुंदर सी दुनिया को
दो से चार और फिर छै:
धीरे-धीरे पत्तियां बढ़ने लगी
ढांकने लगी
अपनी ही छाँव से,
नाजुक जड़ों को
धूप में भी बनाये रखी
अपने-अपने हिस्से की नमी
अपनी एकता की…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on September 29, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
लो अब मैं सुधर गया
उनके दिल से उतर गया
याद न आया उनको मैं भी
मेरी कुरबत भी न भा पाई
उनकी सुधियों से गुजर गया
इक पतझड़ सा बिखर गया
मलूल हुआ आनन्द
सोचकर कि वो
इजहारे-वक्त पर मुकर गया
उसूल देखो यार मेरे
साए में…
Added by anand murthy on September 29, 2014 at 7:30pm — 4 Comments
(1)
रे दुराचारी
देख ना आयी शर्म
अबला नारी
(2)
बन सबला
कर नाश दुष्टों का
नारी अबला
(3)
नन्ही सी जान
खिलखिला देती थी
आज बेजान
(4)
मन को भाया
घने धूप में पंथी
वृक्ष की छाया
(5)
सांस की जान
काट रहे नादान
होते बेजान
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Pawan Kumar on September 29, 2014 at 1:00pm — 12 Comments
१.
क्या माली का हो गया, बाग़ों से अनुबंध ?
चित्र छपा है फूल का, शीशी में है गंध |
२.
चूल्हे न्यारे हो गये, आँगन में दीवार
बूढ़ी माँ ने मौन धर, बाँट लिए त्यौहार |
३.
मुल्ला जी देते रहे, पाँचों वक़्त अजान
उस मौला को भा गई, बच्चे की मुस्कान |
४.
एक तमाशा फिर हुआ, इन दंगों के बाद
जिनने फूंकी बस्तियाँ, बाँट रहें इमदाद |
५.
शीशाघर की मीन सा, यारों अपना हाल
दीवारों में क़ैद है, सुख के ओछे ताल…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 29, 2014 at 8:30am — 14 Comments
कौन दे उल्लास मन को ? फिर वसन स्वर्णिम, किरन को ?
हो गये जो स्वप्न ओझल फिर दरस उनके नयन को ?
कोपलों पर पहरुये अंगार धधके धर रहे हैं
साधना कापालिकी उन्माद के स्वर कर रहे हैं
त्राहि मांगें अश्रु किससे, वेदना किसको दिखायें
कौन दे स्पर्श शीतल अग्निवाही इस पवन को ?
कोटि दुःशासन निरंतर देह मथते, मान हरते
द्रौपदी का आर्त क्रंदन अनसुना श्रीकृष्ण करते
नेह के पीयूष से अभिषेक कर फिर कौन दे अब
भाल को सौभाग्य कुमकुम, आलता चंचल चरन को…
Added by Sulabh Agnihotri on September 28, 2014 at 5:20pm — 16 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 28, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
कपूर साहब कंस्ट्रक्शन कम्पनी के मालिक हैं । उनके संरक्षण में चलने वाली साहित्यिक संस्था सरकारी विभाग के सर्वोच्च अधिकारी वर्मा जी को उनकी लिखी किताब के लिए आज सम्मानित कर रही है । कपूर साहब ने शॉल, स्मृति-चिन्ह और स्वर्ण-पत्र देकर वर्माजी को सम्मानित किया ।
कार्यक्रम समापन के पश्चात कपूर साहब ने वर्मा जी को बधाई देते हुए धीरे से कहा, "सर, जरा उस 200 करोड़ वाले टेंडर को देख…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 28, 2014 at 10:00am — 35 Comments
Added by seemahari sharma on September 28, 2014 at 1:30am — 21 Comments
एक विचार---
तुम महामंत्र पावन सुधा सी,मैं गरल का महानिंदय प्याला
मरते प्राणों की संजीवनी तुम, रूप पल-पल तुम्हारा निराला ॥ [१]
माँ तेरे दिब्य दर्शन में मैने, चाँद तारों का दर्शन किया है,|
तेरे नयनों के काजल ने जग में,रात का रूप धारण किया है ||[२]
मैने हर रूप की चाँदनी में, तेरी करुणा की रातें गिनी है|
मैने हर राग की रागिनी को,शक्ति के गीत गाते सुनी है||[३]
------------k. उमा
Added by uma katiyar on September 27, 2014 at 2:29pm — 2 Comments
खेतों के दरके सीने पर बादल बनकर आ रामा
होठों के तपते मरुथल पर छागल बनकर आ रामा
बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा
भक्ति युगों से दीवानी है राधा मीरा के जैसी
मन से मन मिल जाये अपना पागल बनकर आ रामा
दीप बुझे हैं आशाओं के रात घनेरी है गम की
प्राची से उजली किरनों का आँचल बनकर आ रामा
छप्पन भोगों के लालच में क्यूं पत्थर बन बैठा है
भूखों की रीती थाली में…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 27, 2014 at 12:30pm — 9 Comments
तेरे बिन अपना हाल ....सखी री तुझे क्या बतलाऊं
गुल बिन ज्यों गुलदस्ता है
भूले को ज्यों इक रस्ता है
कॉपी बिन ज्यों इक बस्ता है
और दाल बिना ज्यों खस्ता है
वसंत...बिना इक साल ......सखी री तुझे क्या बतलाऊं
माँ बिन .. जैसे लोरी है
भ्रात बिना वो डोरी ..सखी
चोर बिना ..ज्यों चोरी है
पनघट है बिन गोरी..सखी
राधा बिन ज्यों गोपाल.......सखी री तुझे क्या बतलाऊं
ज्यों अंगना है बिन नोनी के
ब्रिटेन है..... बिन टोनी…
ContinueAdded by anand murthy on September 27, 2014 at 12:00pm — 2 Comments
फूल हमेशा बगिया में ही, प्यारे लगते।
नीले अंबर में ज्यों चाँद-सितारे लगते।
बिन फूलों के फुलवारी है एक बाँझ सी,
भरी गोद में माँ के राजदुलारे लगते।
हर आँगन में हरा-भरा यदि गुलशन होता,
महके-महके, गलियाँ औ’ चौबारे लगते।
दिन बिखराता रंग, रैन ले आती खुशबू,
ओस कणों के संग सुखद भिनसारे लगते।
फूल, तितलियाँ, भँवरे, झूले, नन्हें बालक,
मन-भावन ये सारे, नूर-नज़ारे लगते।
मिल बैठें, बतियाएँ…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on September 27, 2014 at 10:51am — 22 Comments
ये गाथा मजदूर की, जिसके नाना रूप।
पत्थर तोड़े हाथ से, बारिश हो या धूप।।
कड़ी धूप में पिस रही, रोटी की ले आस।
पानी की दो घूँट से, बुझा रही है प्यास।।
सर पर ईंटें पीठ पर, लादे अपना लाल।
मानवता कुछ ढूँढती, लेकर कई सवाल।।
वे भी जन इस देश के, करते हैं निर्माण।
पर खुद जीने के लिये, झोंके अपने प्राण।।
उनको हो सबकी तरह, जीने का अधिकार।
उनके कर्मठ हाथ हैं, विकास का आधार
-मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:04am — 10 Comments
1212-1122-1212-22
तमाम उम्र जो ज़ेब-ए-पलक रहा होगा
नज़र से गिर के भी कितना चमक रहा होगा
सफ़र अँधेरों का है, फिर भी इक दिलासा है
कोई चराग़ मेरी राह तक रहा होगा
लिखा है शेर मेरा दरमियानी सफ़हे पर
तेरी किताब का तो दिल धड़क रहा होगा
गुलाबी ख़ुशबुओं की बूँदें बादलों की नहीं
वो छत से गीला दुपट्टा लटक रहा होगा
परिंदे शाम को लौटे तो मुझको याद आया
हमारा साथ भी कुछ शाम तक रहा…
ContinueAdded by Zubair Ali 'Tabish' on September 27, 2014 at 12:00am — 7 Comments
रेखागणित क्या है ?
मै नहीं जानता
रैखिक ज्ञान का पारावार है
मान लेता हूँ
मेरे लिए रेखा मात्र रेखा है
सरल या विरल
सरल यानि मिलन से दूर
मिलन के लिए सरलता नहीं
तरलता चाहिए
अकड़ नहीं विनम्रता चाहिए
इसीलिये सरल रेखा
मुड़ कर ही मिल पाती है
वह भी स्वयं से
उसका पोर-पोर ही है मिलन बिंदु
जिसका चरम रूप है वृत्त
वृत्त क्या ? महज एक शून्य
शून्य अर्थात शून्य
स्वयं से मिलन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 26, 2014 at 2:57pm — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 26, 2014 at 1:00pm — 19 Comments
2122 2122 2122
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जिंदगी का नाम चलना, चल मुसाफिर
जैसे नदिया चल रही अविरल मुसाफिर /1
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दे न पायें शूल पथ के अश्रु तुझको
जब है चलना, मुस्कुराकर चल मुसाफिर /2
**
फिक्र मत कर खोज लेंगे पाँव खुद ही
हर कठिन होते सफर का हल मुसाफिर /3
**
मानता हूँ आचरण हो यूँ सरल पर
राह में मुश्किल खड़ी तो, छल मुसाफिर /4
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रात का आँचल जो फैला है गगन तक
इस तमस में दीप बनकर जल मुसाफिर /5
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है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2014 at 12:30pm — 12 Comments
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