For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

September 2013 Blog Posts (279)

माँ! शब्द दो!

जन्मा-अजन्मा के भेद से परे

एक सत्य- माँ!

 

तुम ही तो हो

जिसने गढ़ी

ये देह, भाव, विचार,

शब्द!

 

रूप-अरूप-कुरूप में

झूलती देह

गल ही जाएगी

 

भाव, विचार

थिर ही जायेंगे

 

अभिव्यक्ति को तरसते

स्वप्न-चित्र

तिरोहित हो जायेंगे

 

फिर भी चाहना के

उथले-छिछले जल में

डूबते-उतराते

बहक ही जाते हैं  

उस राह पर

जिसके दोनों तरफ हैं…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 9:00pm — 26 Comments

गजल

ठीक जगह पर देख भाल के बैठा हूँ।

मैं अपनी कुर्सी संभाल के बैठा हूँ।

तीसमारखाँ बहुत बना फिरता था वो ,

मैं उसकी पगड़ी उछाल के बैठा हूँ।

दुष्मन से बदला लेने की खातिर मैं

आस्तीन में साँप पाल के बैठा हूँ।

संसद की गरिमा से क्या लेना-देना ,

संसद में जूता निकाल के बैठा हूँ।

कौन समस्यायें जनता की रोज सुने ,

अपने कान में रूर्इ डाल के बैठा हूँ।

ऐरा गैरा नत्थू खैरा मत समझो ,

सारी दुनिया मैं खंगाल के बैठा हूँ।

मौलिक अप्राकिषत एवं…

Continue

Added by Ram Awadh VIshwakarma on September 25, 2013 at 8:41pm — 12 Comments

ग़ज़ल .... मयकशी मयकशी नहीं लगती !

ग़ज़ल

....

मयकशी मयकशी नहीं लगती !

रौशनी रौशनी नहीं लगती !!

.....

अब इबादत में दिल नहीं लगता !

बन्दगी बन्दगी नहीं लगती !!

......

हर तरफ भीड़ और मैं तनहा!

बेबसी बेबसी नहीं लगती !!

...

दिल में रखते हैं वोह तो दिल कितने !

आशिकी आशिकी नहीं लगती !!

...

गुफ़्तगू आप से करें कैसे !

आपको तो  कमी नहीं लगती

....

हैं खफा वोह अगर खफा हम है !

दोसती दोसती नहीं लगती !!

....

चाँद तारों के साथ चलता हूँ !…

Continue

Added by राज लाली बटाला on September 25, 2013 at 8:30pm — 26 Comments

आह्वान

ये क्या हो रहा है

ये क्यों हो रहा है

नकली चीज़ें बिक रही हैं

नकली लोग पूजे जा रहे हैं...

नकली सवाल खड़े हो रहे हैं

नकली जवाब तलाशे जा रहे हैं

नकली समस्याएं जगह पा रही हैं

नकली आन्दोलन हो रहे हैं

अरे कोई तो आओ...

आओ आगे बढ़कर 

मेरे यार को समझाओ

उसे आवाज़ देकर बुलाओ...

वो मायूस है

इस क्रूर समय में

वो गमज़दा है निर्मम संसार में...

कोई नही आता भाई..

तो मेरी आवाज़ ही सुन लो 

लौट आओ

यहाँ दुःख बाटने की परंपरा…

Continue

Added by anwar suhail on September 25, 2013 at 7:30pm — 7 Comments

निगाहें फेर लो .........

निगाहें फेर लो , कि पल भर सुकून मेरे तडपते दिल को मिले !

तेरी नजरों की तपिस मुझसे सही नही जाती !

 

मेरी  बेवफाई को हो रहा है शोर जमाने में , की तू भी मुझे बेवफा कहे !

बात सच है मगर लबों पर तेरे  नहीं आती ! 

 

होकर बेसुध सोये थे कभी तेरे बांहों के घेरो में, अब ना तु बांहे फैला !

ये सच है की गुजरी घडी कभी लौटकर नही आती ! 

 

सुना है कि गमजदा है तु बीते पलो की ख्वाईस में, कि अब उनको भुला दे !

मुझे तो पल भर के लिए भी याद तेरी…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 25, 2013 at 6:30pm — 4 Comments

माँ [कुण्डलियाँ]

माँ के आंचल में मिले ,ममता की ही छाँव 

शुभाशीष पाओ मधुर, नित्य दबाकर पाँव 

नित्य दबाकर पाँव , आशीर्वाद तुम लेना

माँ से बड़ा न स्वर्ग ,उसे दुख कभी न देना 

मिट जाते दुख-दर्द , पास में माँ के जा के

ममता के ही फूल ,मिलें आंचल में माँ के 

............मौलिक व अप्रकाशित ...........

Added by Sarita Bhatia on September 25, 2013 at 5:30pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जिंदगी तू ही बता जुस्तजू क्या है(ग़ज़ल ) 'राज'

2 1 2 2      2 1 2 2       2 1 2 2    2

"रमल मुसम्मन महजूफ"

.

जिंदगी तू ही बता दे जुस्तजू क्या है

इक निवाले के सिवा अब आर्ज़ू क्या है

 

ख़ास जोरोजर समझते हैं जहाँ …

Continue

Added by rajesh kumari on September 25, 2013 at 2:30pm — 37 Comments

मैं क्या हूँ

मैं क्या हूँ

बहुत सोचा

पर सुलझी न गुत्थी

 

शब्द से पूछा तो वह बोला,

‘मैं ध्वनि हूँ अदृश्य

रूप लेता हूँ

जब उकेरा जाता है

धरातल पर’

 

पेड़ से पूछा तो बोला

‘मैं हूँ बीज का विस्तार’

‘और बीज क्या है?’

‘वह है मेरा छोटा अंश’

 

अजब रहस्य

विस्तार का अंश

अंश का विस्तार

खुलती नहीं रहस्य की पर्तें

एक सतत क्रम-

सूक्ष्म के विस्तार

विस्तार के सूक्ष्म होने…

Continue

Added by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 11:00am — 42 Comments

कुंडलिया छंद

देते है आशीष वे, सर पर रखते हाथ

मन में श्रद्धा भाव हो, तभी श्राद्ध यथार्थ |

तभी श्राद्ध यथार्थ, सभी है उनकी माया

समझों वे है साथ, मिले उनकी ही छाया

मिले सभी संस्कार संज्ञान में जो लेते

माने हम उपकार,  पूर्वज ख़ुशी ही देते |

 …

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 25, 2013 at 10:30am — 17 Comments

सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ -रविकर

कुण्डलियाँ


सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ |
अब क्या आशा राम से, हो रहे स्खलित विज्ञ |


हो रहे स्खलित विज्ञ, बने खरदूषण साले |
घालमेल का खेल, बुराई कुल अपना ले |


नित आगे की होड़, रखेंगे बढ़ा ताजिया |
सिया सती की लाज, बचा ले पकड़ हाँसिया ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 25, 2013 at 8:58am — 12 Comments

गीत - मूढ़ तू क्या कर सकेगा, अनुभवी जग को पराजित!

मूढ़ तू क्या कर सकेगा, अनुभवी जग को पराजित!

है सदा जिसको अगोचर, प्राण की संवेदना भी,

क्यों करे तू उस जगत से प्रेम-पूरित याचना ही,

तू करेगा यत्न सारे भावना का पक्ष लेकर,

किन्तु तेरे भाग्य में होगी सदा आलोचना…

Continue

Added by अजय कुमार सिंह on September 25, 2013 at 2:00am — 15 Comments

नेता स्वार्थ के अपने (कुंड़ली)

नेता स्वार्थ के अपने, बदल रहे संविधान ।

करने दो जो चाहते, डालो न व्यवधान ।।

डालो न व्यवधान, है अभी उनकी बारी ।

लक्ष्य पर रखो ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।

बगुला बाट जोहे, बैठे नदी तट रेता ।

शिकारी बन बैठो, शिकार हो ऐसे नेता ।।

.............................................

मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on September 24, 2013 at 10:49pm — 11 Comments

सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद-रविकर

कुण्डलियाँ छंद


टोपी बुर्के कीमती, सियासती उन्माद |
सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद |


पढ़ते मियाँ मिलाद, तिजारत हो वोटों की |
ढूँढे टोटीदार, जरुरत कुछ लोटों की |


रविकर ऐसा देख, पार्टियां वो ही कोपी |
अब तक उल्लू सीध, करे पहना जो टोपी |

अप्रकाशित/मौलिक

Added by रविकर on September 24, 2013 at 9:37pm — 6 Comments

मिस्टेक न हो जाए

इससे पहले कभी 

कहा नही जाता था 

तो बम के साथ हम 

फट जाते थे कहीं भी

और उड़ा देते थे चीथड़े 

इंसानी जिस्मों के...



अब कहा जा रहा है 

मारे न जायें अपने आदमी 

सो पूछ-पूछ कर 

जवाब से मुतमइन होकर 

मार रहे हैं हम...



बस समस्या भाषा की है 

उन्हें समझ में नही आती

हमारी भाषा 

हमें समझ में नही आती 

उनकी बोली 



हेल्लो हेल्लो 

क्या करें हुज़ूर..

एक तरफ आपका फरमान 

दूजे टारगेट की…

Continue

Added by anwar suhail on September 24, 2013 at 6:30pm — 7 Comments

भोर हो चुकी है

मन की अंतर्वेदना , कहीं बह ना जाए आंसुओ में !

बहुत टुटा हूँ ,समेट लो बाजुओं में !

अपमान के ना जाने कितने घूंट पी चूका !

पर प्यासा हूँ , डूब जाने दो आँखों में !

घना होता जाता है ये अन्धकार क्यों ?

एक दिया तो उम्मीद का जलाओ रातो में !

तिरस्कार किया गया , हिकारत से देखा गया !

ना जाने कैसा भाग्य है मेरे इन हाथो में !

लौट जाओ कि अब रंगीन जवानी गुजर चुकी !

हासिल होगा क्या  अब इन मुलाकातों में…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 24, 2013 at 5:00pm — 9 Comments

खुद ही सारी रात जलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये

शोहरतें पाने मचलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये

हसरतों पे जीता मरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये

 

यूँ किसी की याद में जलने का मौसम गम भरा

फिर उसी को याद करता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये

                                                         

चोट खाता है मुसलसल जिन्दगी की राह में

तब सनम जैसे सँवरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये

 

आईने से रू-ब-रू होने की हिम्मत है नहीं

हार के फिर आह भरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये

 

इल्म है उसको गली ये…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:39pm — 22 Comments

अनुभूति

अनुभूति

 

( जीवन साथी नीरा जी को सस्नेह समर्पित )

 

अनंत्य सुखमय सौम्य संदेश लिए

भावमय भोर है ओढ़े छवि तुम्हारी,

पल-पल झंकृत, पथ-पथ ज्योतित

आनंदमय  नाममात्र से तुम्हारे...

औ, अरुणित उत्कर्षक उष्मा !

संगिनी सुखमय प्राणदायक..!

 

प्रत्येक फूल के ओंठों पर

विकसित हँसी तुम्हारी,

स्नेहमय उन्माद नितांत

सोच तुम्हारी रंग देती है

स्वच्छंद फूलों के गालों को

गालों के गुलाल से…

Continue

Added by vijay nikore on September 24, 2013 at 4:30pm — 12 Comments

'सास बहू के झगड़े'

 

माँ ममता की लाली घर आँगन छा जाए

जब प्राची की गोद बाल दिनकर आ जाए ।

कलरव कर कर पंछी अपना सखा बुलाएं

चलो दिवाकर खुले गगन क्रीड़ा हो जाए ॥

 

सब जग में सुन्दरतम तस्वीर यही मन भाती

गोद हों शिशु अठखेलियाँ मैया हो दुलराती |

लगे ईश सी चमक मुझे उन नयनों से आती

तभी यक़ीनन नित प्रातः प्राची पूजी जाती ||

 

शीत काल है जब जब कठिन परीक्षा आई

खेल हुआ है कम तब तब रवि करे पढाई ।

और, स्वतंत्र हो खूब सूर्य तब चमक…

Continue

Added by Pradeep Kumar Shukla on September 24, 2013 at 4:00pm — 14 Comments

बे-नकाब

रात की चांदनी मैं जो तू बे-नकाब हो जाए 

खुदा  का चाँद  भी फिर लाजबाव हो जाए 

.

तेरे गुलाबी होंठों पे जो गिर जाए शबनम 

बा-खुदा शबनम खुद शराब हो जाए 

.

तेरी उदासी से होती है सीने मैं चुभन 

तू जो हंस दे तो काँटा गुलाब हो…

Continue

Added by Sachin Dev on September 24, 2013 at 1:30pm — 33 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . निर्वाण

दोहा दशम्. . . . निर्वाणकौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ । अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।तन…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service