गीत
-लो बरखा फिर आई-
बादल की झोली में भरकर
बिखराती जल लाई।
सुप्त प्राण में प्राण सींचने
लो बरखा फिर आई।
सूखे विटप तृप्त तन्मय अब
करते झुक अभिनन्दन।
झूम झूम उत्साहित हों ज्यों
गीत गा रहे वन्दन।
उष्ण अनल से तपे ग्रीष्म की
अब तो हुई बिदाई।...सुप्त प्राण....
तप्त दिवाकर ने झुलसाया
वन उपवन सब सूखे।
दरक रहा धरती का सीना
बिन तृण के सब भूखे।
मदमाते रिमझिम सावन ने
जग की पीर मिटाई।...सुप्त प्राण…
Added by seemahari sharma on September 18, 2014 at 9:00am — 7 Comments
प्रार्थना
जब सांझ ढलने लगेगी,
जब दिन का कोलाहल
थक कर किसी कोने में
दुबक कर बैठ जाएगा –
तुम्हारे स्पर्श का सिहरन लिए
धीरे-धीरे
आकाश का सभागार
तारों के दीपक से प्रफुल्लित हो उठेगा,
जागृत हो उठेंगी चेतनाएँ
सजीव होने लगेंगे हृदय के तंतु –
नीरवता के उस महाधिवेशन में
अपने अहंकार,
अपने गौरव की सच्ची-झूठी कहानियाँ,
अपनी अदम्य इच्छाओं की दबी आवाज़,
अपने टूटे सपनों का आर्त चीत्कार
और अचानक, लगभग कुछ…
Added by sharadindu mukerji on September 18, 2014 at 1:00am — 2 Comments
ख़्वाबों की बातें, अकसर किया करते हैं वो..!
फिर शब-ए-तन्हाई में, रोया करते हैं वो..!
शब-ए-तन्हाई= रात का अकेलापन;
ज़िंदगी में कई हादसे, आप ने झेले मगर..!
टूटे ख़्वाबों का शिकवा किया करते हैं वो..!
ख़्वाबों की बातें, अकसर किया करते हैं वो..!
शिकवा=शिकायत,
बिखरा सा वो ख़्वाब और अँधेरी वो रात..!
हाँ, मातम अब उनका, मनाया करते हैं वो..!
ख़्वाबों की बातें, अकसर किया करते हैं …
Added by MARKAND DAVE. on September 17, 2014 at 5:00pm — 2 Comments
हद से अपनी गुजर गया कोई ।
चुपके दिल में उतर गया कोई ।।
आँख में आसमान लाया था
मेरी अंजुरी में भर गया कोई ।।
छोटी बच्ची सा झूल बाहों में
मन की हर पीर हर गया कोई
टूटी छत से उतर के कमरे में
चाँदनी सा पसर गया कोई ।।
डाल पे फूल खिल गया जैसे
स्वप्न जैसे सँवर गया कोई ।।
रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई ।।
सामने वालमीकि के फिर से
क्रौंच पर वार कर गया कोई
बह…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on September 17, 2014 at 3:07pm — 23 Comments
2122 2122 2122 212
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दिल हमारा तो नहीं था आशियाने के लिए
फिर कहाँ से आ गये दुख घर बसाने के लिए
***
हम ने सोचा था कि होंगी महफिलों में रंगतें
पर मिली वो ही उदासी जी दुखाने के लिए
***
था सुना हमने बुजुर्गो से कि कातिल नफरतें
प्यार भी जरिया बना पर खूँ बहाने के लिए
***
जब सभल जाएगा तुझको पीर देगा अनगिनत
हो रहा बेचैन तू भी किस जमाने के लिए
***
जब बहाने थे नये तो दिल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:48am — 14 Comments
रास (चौपाई +अलिपद )8-8\6=22
पंख परेवों ने खोले नव भोर हुई
भजनों सा चहका फिर खगरव भोर हुई
शबनम झाड़ी ली अँगड़ाई किसलय ने
बाग बगीचों में है उत्सव भोर हुई
मंदिर की घंटी से और अजानों से
सुप्त धरा का टूटा नीरव भोर हुई
धूप गुलाबी उबटन सी कण कण पर है
निखरा फिर धरती का वैभव भोर हुई
अखबारों के पन्नों में जागी दुनिया
गर्म चाय का पीकर आसव भोर हुई
दिन भी गुजरेगा ही रात कटी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 10:30am — 5 Comments
Added by Priyanka Pandey on September 17, 2014 at 7:29am — 11 Comments
कुछ ऐसे सिलसिले हैं जो हमेशा साथ चलते हैं
कुछ ऐसे फासले हैं जोकि यादों में ठहरते हैं
छुपे कुछ राज होते हैं हरेक पैगाम में उसके
कभी हम जान लेते हैं, कभी अनजान रहते हैं
सँदेशे दिल के आते हैं, हमेशा आँख के रस्ते
कभी गालों को तर करते, कभी नूपुर से बजते हैं
वो मेरे साथ ज्यादा रासता तय कर नहीं पाये
पर उतनी राह पर अब भी हजारों फूल खिलते हैं
उन्हें जब याद करते हैं तो कोई गीत होता है
ग़ज़ल होती है जब कोई, उन्हें हम याद…
Added by Sulabh Agnihotri on September 16, 2014 at 3:00pm — 9 Comments
खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.
बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.
वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.
ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.
कौन जाने थी नज़र या वो बला जादूगरी.
देख मुझको बीज दिल में इश्क का वे बो…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 16, 2014 at 1:30pm — 16 Comments
नए ज़हनों को छूने दो अदब के अनछुए पहलू
इन्हे मीरास में उलझी हुई ज़न्जीर मत देना
लबों को सी लिया मैने,खुदा ये बस में था मेरे
जो आहें दिल से उठ जाएं उन्हें तासीर मत देना
नई है नस्ल नई जंगें नए हथियार भी होंगे
क़लम दो मुल्क के हाथों में अब शमशीर मत देना
मचल जाए ना मेरी रूह फिर दुनिया में आने को
जिया गुमनाम हूँ तो मौत को तशहीर मत देना
रहूँ मैं मुन्हसिर दीदार…
ContinueAdded by saalim sheikh on September 16, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
चारसू आइने लगाना भी
और ख़ुद से नज़र चुराना भी
बैठकर साये में मेरे रहरौ
चाहता है मुझे गिराना भी
मेरी मौजूदगी भी नादीदा
सुर्ख़ियों में तेरा न आना भी
शौक आवारगी का किसको है
हो कहीं अपना आशियाना भी
बस्तियों को उजाड़ने वालों
सीख लो बस्तियाँ बसाना भी
हो गया एक जंग के जैसा
आजकल रोटियाँ जुटाना भी
आज ‘खुरशीद’ बालता है दिल
साथ देगा कभी ज़माना भी
मौलिक व…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 16, 2014 at 10:30am — 5 Comments
घर-चमन में झिलमिलाती, रोशनी तुमसे पिता
ज़िंदगी में हमने पाई, हर खुशी तुमसे पिता
छत्र-छाया में तुम्हारी, हम पले, खेले, बढ़े
इस अँगन में प्रेम की, गंगा बही तुमसे पिता
गर्व से चलना सिखाया, तुमने उँगली थामकर
ज़िंदगी पल-पल पुलक से, है भरी तुमसे पिता
याद हैं बचपन की बातें, जागती रातें मृदुल
ज्ञान की हर बात जब, हमने सुनी तुमसे पिता
प्रेरणा भयमुक्त जीवन की, सदा हमको मिली
नित नया उत्साह भरती, हर घड़ी…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on September 15, 2014 at 9:30pm — 10 Comments
" भाई! रामौतार.. यह साल तो खेती के हिसाब से बहुत ही बढ़िया रहा. काश! ऐसा हर साल ही होता रहे " दिनेश ने अपनी हथेली पर तंबाकू मे चूना लगाकर , रगड़ते हुए कहा
" हाँ भाई! दिनेश.. सच इस बार, हर साल की तुलना मे अतिवृष्टि से थोड़ी कम फसल ज़रूर हुई लेकिन लोक-सभा और विधान- सभा चुनाव के रहते सरकारों ने खूब मुआवज़ा भी दिया और फसल बीमा को भी मंज़ूरी दिलवाई , तो देखो न! दोगुने से भी ज्यादा बचत हो गई " रामौतार ने दिनेश की हथेली पर से मली हुई तंबाकू अपने मुंह में दबाते हुए…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2014 at 8:30pm — 12 Comments
Added by seemahari sharma on September 15, 2014 at 7:00pm — 14 Comments
आदमी खुद को बनाता आदमी है आदतन
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२१२२ २१२२ २१२२ २१२
आदमी में जानवर भी जी रहा है फ़ित्रतन
आदमी में आदमी को देखना है इक चलन
साजिशें रचतीं रहीं हैं चुपके चुपके बदलियाँ
सूर्य को ढकना कभी मुमकिन हुआ क्या दफअतन ?
पर ज़रा तो खोलने का वक़्त दे, ऐ वक़्त तू
फिर मेरी परवाज़ होगी और ये नीला गगन
बाज, चुहिया खा …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 15, 2014 at 4:30pm — 28 Comments
धन प्रभुता ना मिले विद्वान् जो ना हो साथ |
कर्म यज्ञ में दे आहुति विद्वान् ही का हाथ ||
विद्वता का उपयोग कर धनवान धन कमाए|
विद्वान् इस राह चले तो धनी निर्धन बन जाए||
धनवान को वाहन मिले संग्रह करके धन |
विद्वान वाहन में घूमे निग्रह करके मन ||
धन की करे चौकीदारी हर रात धनवान |
ज्ञान का सृजन करे हर रात विद्वान् ||
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 15, 2014 at 11:30am — 5 Comments
संताप और क्षोभ
इनके मध्य नैराश्य की नदी बहती है, जिसका पानी लाल है.
जगत-व्यवहार उग आये द्वीपों-सा अपनी उपस्थिति जताते हैं
यही तो इस नदी की हताशा है
कि, वह बहुत गहरी नहीं बही अभी
या, नहीं हो पायी…
Added by Saurabh Pandey on September 15, 2014 at 3:00am — 41 Comments
1-
संस्कार होंगे
राम राज्य के स्वप्न
साकार होंगे !
2-
बेच ज़मीर
बनता है तब ही
कोई अमीर !
3-
स्वतंत्र हुए
बगल के नासूर
हैं पाले हुए !
4-
है नारी वो क्या
न सिर पे पल्लू न
आँखों में हया !
5-
क्या नाजायज
सत्ता, युद्ध, प्रेम में
सब जायज !
*मौलिक एवं अप्रकाशित*
Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 14, 2014 at 10:51pm — 4 Comments
कांटे जो मेरी राह में बोये बहार ने
छूकर बना दिया है उन्हें फूल यार ने
यारी है तबस्सुम से करी अश्क-बार ने
कुछ तो असर किया है खिजाँ की फुहार ने…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on September 14, 2014 at 10:00pm — 18 Comments
२१२२ २१२२ २1२२
जब भी सागर बनने इक दरिया चला है
पत्थरों को राह के हरदम खला है
जूझते दरिया पे जो कसते थे ताने
आज जलवे देख हाथों को मला है
यूं नहीं बढ़ता है कोई जिन्दगी में
बढ़ने वाला रात दिन हरदम चला है
अपने ही हाथों से रोका था हवा को
तब कहीं ये दीप आंधी में जला है
दोस्तों जिस को गले हमने लगाया
बस रहा अफ़सोस उसने ही छला है
मौलिक व…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
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