Added by khursheed khairadi on September 7, 2017 at 12:48pm — 3 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 6, 2017 at 11:49pm — 8 Comments
Added by Mohammed Arif on September 6, 2017 at 9:55pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 6, 2017 at 9:09pm — 5 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 6, 2017 at 3:00pm — 2 Comments
Added by मंजूषा 'मन' on September 6, 2017 at 11:19am — 6 Comments
Added by मंजूषा 'मन' on September 6, 2017 at 11:17am — 2 Comments
दिल में प्यार
आँखों में सम्मान रहने दो
मंदीर की आरतियों संग
मस्जिद की अज़ान रहने दो
क्यों लड़ना धर्म के नाम पर
क्यों बेकार में खून बहाना
मज़हब के मोहल्लों में
इंसानों के मकान रहने दो
मुझे हिन्दू, उसे मुसलमान रहने दो!
माना सब एक ही हैं
पर थोड़ी अलग पहचान रहने दो
अगरबत्तियों की ख़ुशबू संग
थोडा लोहबान रहने दो
चढाने दो उसको चादरें
मुझे चढाने दो चुनरियाँ
दोनों मज़हब तो सिखाते हैं प्रेम ही
तो थोड़ी गीता थोडा क़ुरान…
Added by Ranveer Pratap Singh on September 5, 2017 at 10:59pm — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 5, 2017 at 7:39pm — 7 Comments
ग़ज़ल ( हाए वो शख़्स निकलता है सितमगर यारो )
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(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन )
मुन्तखिब करता है दिल जिसको भी दिलबर यारो |
हाए वो शख़्स निकलता है सितम गर यारो |
उनके चहरे से नज़र हटती नहीं है मेरी
किस तरह देखूं ज़माने के मैं मंज़र यारो |
कूचए यार से जाएँ तो भला जाएँ कहाँ
राहे उलफत में लुटा बैठे हैं हम घर यारो |
आस्तीनों में जो रखते हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 5, 2017 at 6:14pm — 17 Comments
Added by santosh khirwadkar on September 5, 2017 at 5:30pm — 6 Comments
तुम ही बताओ न ...
क्या हुआ
हासिल
फासलों से
आ के ज़रा
तुम ही बताओ न
इक लम्हा
इक उम्र को
जीता है
ख़ामोशियों के
सैलाब पीता है
उल्फ़त के दामन पे
हिज़्र की स्याही से
ये कैसी तन्हाई
लिख डाली
आ के
ज़रा
तुम ही बताओ न
ये किन
आरज़ूओं के अब्र हैं
जो रफ्ता रफ़्ता
पिघल रहे हैं
एक लावे की तरह
चश्मे साहिल से
क्यूँ हर शब्
तेरी…
Added by Sushil Sarna on September 5, 2017 at 5:30pm — 8 Comments
तुम ही बताओ न ...
क्या हुआ
हासिल
फासलों से
आ के ज़रा
तुम ही बताओ न
इक लम्हा
इक उम्र को
जीता है
ख़ामोशियों के
सैलाब पीता है
उल्फ़त के दामन पे
हिज़्र की स्याही से
ये कैसी तन्हाई
लिख डाली
आ के
ज़रा
तुम ही बताओ न
ये किन
आरज़ूओं के अब्र हैं
जो रफ्ता रफ़्ता
पिघल रहे हैं
एक लावे की तरह
चश्मे साहिल से
क्यूँ हर शब्
तेरी…
Added by Sushil Sarna on September 5, 2017 at 5:30pm — No Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 4:02pm — 22 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 5, 2017 at 3:17pm — 12 Comments
Added by khursheed khairadi on September 5, 2017 at 12:53pm — 7 Comments
"बेटा !बात हमारी गैरहाजिरी में उसे घर लाने की है।"
"तो मैं क्या करती अम्मी?आप ही बताएं ।उसे इस हाल में छोड़ा जा सकता था क्या?शुभम और रोहित से बोला था मैनें इसे एक दिन के लिए अपने घर पर रख लें, लेकिन उनके पास भी अपनी वाजिब वजहें थीं"
"ये सब मैं नहीं जानती शमा!तुम्हारे अब्बू को जब पता लगेगा की हमारी गैरहाजिरी में तुमने... "
"तो क्या गलत किया अम्मी?"
वह माँ की बात बीच में काट कर बोली।
"एक भी दिन का नागा ना करने वाला लड़का, चार दिन से ना स्कूल आया ना ट्यूशन।तब कहीं जाकर…
Added by Rahila on September 5, 2017 at 12:29pm — 11 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on September 5, 2017 at 11:47am — 2 Comments
बाढ़ ने फिर बाँध तोड़े
लुट गया घरबार फिर से
जो संभाले थे बरस भर
टिक न पाए एक भी क्षण
देखते ही देखते सब
ढह गया कुछ बचा ना अब
त्रासदी हर साल की है
क्या कहानी हाल की है?
क्यों नहीं हम जागते हैं?
व्यर्थ ही बस भागते हैं।
क्यों नहीं निस्तार करते
नदियों का विस्तार करते?
पथ कोई हो जिसमें चल के
प्राणदा खुद को संभाले।
हम बनाते घर सभी हैं
सोचते क्या पर कभी हैं?
नदी में…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on September 4, 2017 at 3:46pm — 3 Comments
Added by नाथ सोनांचली on September 4, 2017 at 1:44pm — 20 Comments
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