Added by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:00am — 15 Comments
मत्तगयन्द सवैया
नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई…
ContinueAdded by रविकर on October 16, 2012 at 9:45am — 9 Comments
नव रात्री नव रात है,नव जीवन संदेश/
तन मन भवन शुद्ध रखो,आये माँ किस भेष//
भक्तगण नव रात्री में,रखते हैं उपवास/
कन्या पूजन भी करें,माँ का यही निवास//
देखो कैसे सज रहा,माता का दरबार/
माँ के दर्शन को लगी,लम्बी बहुत कतार//
जयकारों से मात के,गूंज रहा दरबार/
माता का आशीष ले,पायें शक्ति अपार//
गरबा रमती मात है,चहुँ दिसि उत्सव होय/
भक्त यहाँ सुख पात हैं,सबके मंगल…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on October 16, 2012 at 7:59am — 11 Comments
देख-देख दुनिया हँसी, मन ही मन में कोसती |
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||
कैसा गड़बड़झाल ये, जाने कैसा खेल है,
लोटे औ जलधाम का, होता कोई मेल है |
आ जाएगा घूम के, सबकी खोपड़ सोचती,
नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||
पौधा है नवजात ये, कोमल इसकी डाल है,
हट्टा-कट्टा पेड़ तो, मानो गगन विशाल है |
बुढ़िया काकी…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 7:27am — 12 Comments
दोहा सलिला:
सूत्र सफलता का सरल
संजीव 'सलिल'
*
सूत्र सफलता का सरल, रखें हमेशा ध्यान।
तत्ल-मेल सबसे रखें, छू लें नील वितान।।
*
सही समन्वय से बने, समरस जीवन राह।
सुख-दुःख मिलकर बाँट लें, खुशियाँ मिलें अथाह।।
*
रहे समायोजन तभी, महके जीवन-बाग़।
आपस में सहयोग से,…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 15, 2012 at 8:00pm — 6 Comments
“मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला,”
कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.
कांच की कारीगरी में जो निपुण थे साथियों,
आजकल उन के ही हाथों में हमें पत्थर मिला.
पेट भर रोटी मिली जब भूखे बच्चों को हुज़ूर,
सब कठिन प्रश्नों…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 15, 2012 at 1:30pm — 15 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 15, 2012 at 11:43am — 16 Comments
मैं निर्मल ,निःस्वार्थ
प्रस्फुटित हुआ
एक अभिप्राय के निमित्त
हर लूँगा सबका अभिताप ,व्यथा
अपनी अनुकम्पा से
अलौकिक अभिजात मलय
के आँचल की छाँव में
श्वास लेकर बढ़ता रहा
कब मेरी जड़ों में
वर्ण, धर्म भेद मिश्रित
नीर मिलने लगा
कब वैमनस्य ,स्वार्थ परता
की खाद डलने लगी
पता ही नहीं चला
विषाक्त भोजन
विषाक्त वायु ,नीर
से मेरे अन्दर कसैला
जहर भरता गया
फिर जो…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 15, 2012 at 10:35am — 9 Comments
मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥
उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥
हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥
रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥
कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥
ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को…
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on October 15, 2012 at 12:30am — 10 Comments
मानव मणि:
नर से नारायण - स्वामी विवेकानंद
संजीव 'सलिल'
*
'उत्तिष्ठ, जागृत, प्राप्य वरान्निबोधत।'
'उठो, जागो और अपना लक्ष्य प्राप्त करो।'
'निर्बलता के व्यामोह को दूर करो, वास्तव में कोई दुर्बल नहीं है। आत्मा अनंत, सर्वशक्ति संपन्न और सर्वज्ञ है। उठो! अपने वास्तविक रूप को जानो…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 14, 2012 at 4:51pm — 4 Comments
सूरज ताप बढ़ाकर जो मरुभूमि धरा पर दृश्य दिखाता,
मानव अक्सर जीवन में यह रीत मिसाल बना भरमाता,
भाग रहा वह तेज भयंकर झूठ कहे फिर भी अपनाता,
हाथ न आय तहाँ वह रोकर व्याकुल नीर बहा पछताता/
Added by Ashok Kumar Raktale on October 14, 2012 at 1:00pm — 11 Comments
मेरे पास नहीं
बूढ़े बरगद सी बाहें
फैलाकर
जिन्हें अनवरत
बांट सकूं
छांह
धरती को चीरती
विकराल जड़ें -
गहराइयों की
लेती जो थाह
पास नहीं मेरे
पीपल का जादुई
संगीत
वो हरी- भरी
काया ,
वह पत्तों का
मर्मर गीत
कोई न
पूजे मुझको
पीपल, बरगद
के मानिंद
कंटकों से
पट गयी है
देह ऐसे-
निकट आते
हैं नहीं
खग वृन्द
मरुथली संसार में
रेत के विस्तार में…
Added by Vinita Shukla on October 14, 2012 at 12:30pm — 14 Comments
Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 14, 2012 at 11:54am — 5 Comments
Added by Shubhranshu Pandey on October 13, 2012 at 9:30pm — 14 Comments
पिता की मृत्यु के चार वर्ष बाद बड़े लड़के निर्मल की शादी के समय छोटा भाई सबल 13 वर्ष का था । नयी बहु आये दिन साँस से झगडती रहती थी | निर्मल अन्दर से परेशान | भाई भाभी के बेरुखे व्यव्हार से और गलत संगत के कारण सबल देर रात तक आने लगा |एक दिन निर्मल ने अपने जीजा को कहने लगा "जीजाजी मेरी पत्नी को न मै समझा सकता हूँ, और न ही उसको डांटकर अशांति फैलाना चाहता हूँ" | परेशान हो माँ ने अलग रसोई करने का निर्णय स्वीकार कर लिया |
माँ को अल्प पारिवारिक पेंशन से अपना और छोटे लड़के सबल का निर्वाह…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 13, 2012 at 3:30pm — 7 Comments
स्वात घाटी की निर्भीक बेटी मलाला को समर्पित
सुन्दरी सवैया
अधिकार मिले सब शिक्षित हों बिखरे चहुँ ओर हि ज्ञान उजाला.
लड़ती जब जायज़ घायल क्यों सुकुमारि दुलारि पियारि 'मलाला'.
सब…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 13, 2012 at 3:00pm — 20 Comments
ऐतिहासिक इमारतों में कितना आकर्षण समाया है. इक पूरी ज़िंदगी और ज़माने का कोई थ्री डी अल्बम हों ये जैसे. ख्यालों की लम्बी दौड़ लगानेवालों के लिए गोया ये फंतासी, रूमानियत, त्रासदी, और न जाने किन किन रंगों के तसव्वुरात की कब्रगाह या कोई मज़ार हैं ये इमारतें.
ज़िंदगी जीते हुए जितनी हसीन नहीं लगती उससे कहीं अधिक माजी के धुंधले आईने में नज़र आती है. जैसे गर्द से आलूदा किसी शीशे में कोई हसीन सा चेहरा पीछे से झांकता नज़र आ जाए और हम खयालों में मह्व (खोए), हौले से अपनी उंगुलियाँ आगे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 13, 2012 at 11:19am — 10 Comments
(1)
(तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित)
सुंदरी सवैया
उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं ढीठ मराला ।।
(2)…
ContinueAdded by रविकर on October 13, 2012 at 8:30am — 12 Comments
खूबसूरत दृश्य
हम गढ़ते रहे,
शब्द चित्रों की
सफलता के लिए |
शहर धीरे धीरे
बन बैठा महीन
दिख रहा है हर कोई
कितना जहीन
गाँव दण्डित है
सहजता के लिए || १ ||
घर की दीवारों
में हाहाकार है
लक्ष्मी का रूप
अस्वीकार है
कौन सोचे
नव प्रसूता के लिए || २ ||
जब से हम सब
खुद पे अर्पण हो गये
बस तभी शीशा से
दर्पण हो गये
या सुपारी हैं
सरौता के लिए || ३ ||…
Added by वीनस केसरी on October 13, 2012 at 1:00am — 6 Comments
Added by ajay sharma on October 12, 2012 at 5:30pm — 1 Comment
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