For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

October 2018 Blog Posts (124)

बलातकार्य (छंदमुक्त कविता)

बलात हालात बलात नियंत्रण में हैं न!
देश-देशांतर तिजारात आमंत्रण में हैं न!
आचार-विहार, व्यवहार-व्यापार, प्रहार,
घात-प्रतिघात धार अभियंत्रण में हैं न!
**
बदले 'बदले के ख़्यालात' चलन में हैं न!
अगले-पिछले अहले-वतन फलन में हैं न!
बापू तुम्हारे ही देश में, देशभक्तों के वेश में
नोट-वोट, ओट-चोट-वोट अवकलन में हैं न!


(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2018 at 11:30pm — 8 Comments

टुकड़ों में बटा आदमी - डॉo विजय शंकर

टुकड़ों में बटा आदमी 

टुकड़ों की बात करता है , 

टुकड़ों को छोटे , और छोटे 

टुकड़ों…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:05pm — 18 Comments

३ क्षणिकाएं....

३ क्षणिकाएं....

भावनाओं की घास पर

ओस की बूंदें

रोती रही

शायद

बादलों को ओढ़कर

रात भर

चांदनी

... ... ... ... ... ... .

गोद दिया

सुबह की ओस ने

गुलाब को

महक

तड़पती रही

अहसासों के बियाबाँ में

यादों की नोकों पर

... ... ... .. .. .. .. . .

आकाश

ज़िंदगी भर

इंसान को

छत का सुकून देता रहा

उसे

धूप दी, पानी दिया ,

ईश के होने का

अहसास दिया

मगर

वह रे इंसान

आया जो…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 8, 2018 at 7:07pm — 18 Comments

फिर आएंगे नेता मेरे गांव में |

फिर आएंगे नेता मेरे गांव में |

अबके लूँगा सबको अपने दाव में |

पूछूँगा सड़क क्यों बनी नहीं ?

हैण्ड पम्प क्यों  लगा नहीं ?

क्यों बिजली नहीं आई मेरे गांव में…

Continue

Added by Naval Kishor Soni on October 8, 2018 at 5:00pm — 4 Comments

सिद्धिर्भवति कर्मजा-----ग़ज़ल

22 122 12

गीता में लिक्खा गया
सिद्धिर्भवति कर्मजा

बिन फल की चिंता करे
सद्कर्म करिए सदा

दिखता है जो कुछ यहाँ
सब खेल है काल का

ऊर्जा का सिद्धांत है
लक्षण है जो आत्म का

बदले हैं बस रूप ही
ऊर्जा हो या आत्मा

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 8, 2018 at 4:51pm — 8 Comments

गजल कहें - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/ १२२१/२१२



दिल से चिराग दिल का जलाकर गजल कहें

नफरत का तम जहाँ से मिटाकर गजल कहें।१।



पुरखे  गये   हैं   छोड़   विरासत   हमें   यही

रोते  हुओं  को   खूब  हँसाकर  गजल  कहें।२।



कोई न कैफियत है अभी जलते शहर को

आओ धधकती आग बुझाकर गजल कहें।३।



रखता नहीं  वजूद  ये  वहशत  का देवता

सोया जमीर खुद का जगाकर गजल कहें।४।



बैठा दिया दिलों में सियासत ने…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 8, 2018 at 6:34am — 14 Comments

मैं बहुत कुछ सोंचता रहता हूँ पर कहता नहीं

बह्र- 2122-2122-2122-212



ज्यों हवा दस्तक करे खटखट कोई होता नहीं।।

मैं बहुत कुछ सोंचता रहता हूँ पर कहता नहीं।।



इस तरह परछाई सा महसूस होता वो मुझे।

जैसे कोई दरमियाँ अपने है पर दिखता नहीं।।



हर बुढ़ापा रात भर कुछ खोजता है जाने क्या

नींद में भी जागता रहता है क्यों सोता नहीं ।।



चौक में करता नुमाइश ,वक्त भी दल्ला हुआ।

एक झटके में मुझे क्यों नग्न कर देता नहीं।।



इक समंदर कैद है आँखों में अपने दर्द का ।

जो भरा रहता है अंदर,पर… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on October 7, 2018 at 11:06pm — 4 Comments

"अंखियों के झरोखों से" (लघुकथा)

होटलों में बर्तन धोने से लेकर नेताओं और अधिकारियों के पैर दबाने तक, मूंगफली बेचने से लेकर अख़बार बेचने तक सभी काम करने के साथ ही साथ उस अल्पशिक्षित बेरोज़गार के यौन-शोषण के कारण होशहवास खो गये थे, या किसी शक्तिवर्धक दवा के ग़लत मात्रा के सेवन से या अत्याधिक मानसिक तनाव के कारण उसकी अर्द्धविक्षिप्त सी हालत थी; किसी को सच्चाई पता नहीं! हां, सब इतना ज़रूर जानते थे कि बंदा है तो होनहार और मिहनती। जो काम दो, कर देता है। इसलिए सड़क पर आज भी उसकी ज़िन्दगी सुरक्षित चल रही है परिजनों की उपेक्षा और दयावानों…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2018 at 11:30pm — 7 Comments

रिश्तों की चिता--लघुकथा

चिता पर चाचाजी का शरीर लकड़ियों से ढंका हुआ पड़ा था और उसको आग लगाने की तैयारी चल रही थी. चाचाजी उम्र पूरा करके गुजरे थे इसलिए घर में बहुत दुःख का माहौल नहीं था लेकिन उनकी सेहत के हिसाब से अभी कुछ और साल वह सामान्य तरीके से जी सकते थे. अभी भी सारा परिवार एक में था इसलिए पूरा घर वहां मौजूद था. चचेरे भाई ने चिता जलाने के लिए जलती फूस को हाथ में लिया और चिता के चारो तरफ चक्कर लगाने लगा.

कुछ ही पल में चिता ने आग पकड़ ली और वह एक किनारे से एकटक जलती चिता को देखता रहा. चाचाजी से पिछले कई सालों से…

Continue

Added by विनय कुमार on October 6, 2018 at 8:18pm — 14 Comments

ग़ज़ल



अभी तो यहाँ कुछ हुआ ही नहीं है ।

वो नादां उसे तज्रिबा ही नही है ।।1

उसे ही मिलेगी सजा हिज्र की अब ।

मुहब्बत में जिसकी ख़ता ही नहीं है ।।2

मिलेगा कहाँ से हमें कोई धोका ।

हमें आप का आसरा ही नहीं है ।।3

अगर आ गए हैं तो कुछ देर रुकिए ।

अभी तो मेरा दिल भरा ही नहीं है ।।4

है बेचैन कितना वो आशिक तुम्हारा ।

कहा किसने जादू चला ही नहीं है ।।5

जिधर जा रही वो उधर जा रहे हम ।

हमें जिंदगी से गिला ही नहीं…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 6, 2018 at 6:31pm — 8 Comments

'अंधवायु में प्राणवायु' (लघुकथा)

कोई 'रोज़ी-रोटी' और 'नोटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था; तो कोई 'वोटों' और 'ओटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था। आम जनता जानती थी कि हर मुकाम पर कहीं न कहीं 'दाल में कुछ काला' है क्योंकि सालों से उसने सब कुछ देखाभाला है; अपने आपको वक़्त-व-वक़्त 'चोटों' से उबारा है। तरक़्क़ी के मुद्दों पर नेता व अधिकारी सब अपनी-अपनी वफ़ा की सफाई पेश कर दूसरों पर छींटाकशी कर, अपनी ही जगहंसाई कर चिल्ला रहे थे; विरोधी बिलबिला रहे थे!

"ये डील नहीं .. मतलबियों को ढील है! .. राजनीति नहीं .. चील है! चीट है ...…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 5, 2018 at 9:03pm — 8 Comments

अजनबी लगता है ... ...

अजनबी लगता है ... ...

न वज़ह पूछी

न मौका मिला

वक्त सरकता रहा

कोई अपना

हर लम्हा

अजनबी लगता रहा

किसे आवाज़ दूँ

तारीकियों की क़बा में

उजालों को ओढ़ कर

खो गयी कोई तलाश

टूट गया

उसके साये होने का भ्रम

बावज़ूद ज़िस्मानी करीबी के

वो हर नफ़स

जाने क्यूँ

अजनबी लगता रहा

झूठ है

वो अजनबी है

मेरी तिश्नगी का

समंदर है वो

मेरे हर ख्वाब का

मंज़र है वो

मेरे ज़ह्न में सदियों से…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 5, 2018 at 6:07pm — 7 Comments

दो कवितायें मुक्तछंद

मौसम

धूप की तपन

विदा होने को तैयार

नन्ही कोपलों के फूटने का

पौधों को इंतजार

छांह को ढोते बादल

अब बूंदें चुराएँगे

इस कालचक्र के बीच

मौसम बदल जाएंगे ।

 

सीप

 

चमकते मोती

पलते सीप के सीने में

पिरोये जाकर धागों में

शोभा बढ़ाते गले की शान से

छुपाकर रखा मोती को

दर्द सजाकर सीने में

छाती चीरकर दिया…

Continue

Added by Neelam Upadhyaya on October 5, 2018 at 4:13pm — 14 Comments

गीत-इसलिये हैं नैन घायल आँसुओं से तर-ब-तर-बृजेश कुमार 'ब्रज'

किसलिये हैं नैन घायल

आँसुओं से तर-ब-तर?

फिर किसी सुनसान कोने

चीख कोई जो उठी

रात की खामोशियों में

रातरानी रो उठी

दानवी अट्टाहसों में

आह तड़पी घुट गई

टूटती साँसें समेटे

लड़खड़ाती वो उठी

इस कदर बरपी क़यामत

बन गई मातम सहर

इसलिये हैं नैन घायल

आँसुओं से तर-ब-तर

है नहीं जग में ठिकाना

आँख जाए नीर का

मोल कोई दे सकेगा

वेदना का पीर का

जिस नज़र पे था भरोसा

घात भी उससे मिली

हाथ…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2018 at 6:00pm — 20 Comments

अपराधबोध-लघुकथा

ट्रैफिक सिग्नल की बत्ती लाल हो गयी थी तो उसने ब्रेक लगाया और बाहर देखने लगा. जाने और आने वालों की दो दो लेन थी और हर आदमी ने अपनी गाड़ी थोड़े थोड़े फासले पर खड़ा कर रखी थी. जोहानसबर्ग की यह बात उसे बेहद पसंद थी कि अमूमन हर व्यक्ति कानून का पूरी तरह से पालन करता था और शायद ही कभी लाल बत्ती पर सड़क पार करता था. हॉर्न बजाना तो बेहद असभ्यता की बात मानी जाती थी और किसी की गलती को जताने के लिए ही लोग हॉर्न बजाते थे.

रोज की तरह ही वह अफ़्रीकी नवयुवक, जिसे वह शक्ल से पहचानता था, लेकिन कभी उसने उसका…

Continue

Added by विनय कुमार on October 4, 2018 at 4:50pm — 10 Comments

साफ़ सफाई- लघुकथा

गाँववालों की भीड़ इकठ्ठा हो चुकी थी, उनको भी पता था कि जब किसी गाड़ी में लोग आते हैं तो कुछ न कुछ बांटते हैं. गाड़ी में से कुछ पैकेट निकाले जा रहे थे और चारो तरफ खड़े लोगों में से कई निगाहें बड़ी हसरत से उन्हें निहार रही थीं.

कुछ समय बाद छोटा सा मंच सज गया और गाड़ी से आये कुछ लोगों ने गांववालों को समझाना शुरू किया "सफाई बहुत जरूरी है चाहे वह घर की हो या अपने शरीर की. आप लोग आज से यह प्रण कीजिये कि आगे से सफाई का पूरा ध्यान रखेंगे. आज हम लोग स्वछता से सम्बंधित सामग्री वितरित करेंगे".

बीमार…

Continue

Added by विनय कुमार on October 3, 2018 at 4:32pm — 23 Comments

बेज़ुबान पहचान ...

बेज़ुबान पहचान ...

कितनी खामोशी होती है
कब्रिस्तान में
जिस्मों की मानिंद
कब्रों पर लिखे नाम भी
वक्त के थपेड़ों से
धीरे -धीरे
सुपुर्द-ए-ख़ाक हो जाते हैं


रह जाती है
कब्रों पर
उगी घास के नीचे
ख़ामोशी की कबा में सोयी
अपने -पराये रिश्तों की
बेज़ुबान पहचान

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 3, 2018 at 4:00pm — 10 Comments

नज़्म (मेरे अब्बू) मरहूम के नाम

  1. किस क़दर तल्ख़ियां हैं दुनिया में

नीम रिश्तों में जेसे दर आया

हर तरफ़ तीरगी सी फेली है

रूह घायल है और सहमी है

अपका साथ अब न होने से 

ज़िन्दगी जैसे एक मक़तल है 

और मक़तल में मैं अकेला हूं

ज़िन्दगी की तवील राहों में

ख़ुद को बेआसरा सा पाता हूँ 

साथ एसे में राहबर भी नहीं 

दिल की मेहफ़िल में रोशनी भी नहीं 

रूह में कोई ताज़गी भी नहीं 

मैं हूँ बेआसरा सा सहरा में

ढ़ूंढ़ता हूं वही…

Continue

Added by mirza javed baig on October 3, 2018 at 12:30am — 24 Comments

राजा चोर है   -  लघुकथा   –

राजा चोर है   -  लघुकथा   –

"आचार्य,इस चोर राजा के शासन से मुक्ति का कोई तो उपाय बताइये। प्रजा त्राहि त्राहि कर रही है।"

"वत्स, सर्वप्रथम तो अपनी वाणी को नियंत्रित करो।"

"गुरू जी, आपका आशय क्या है।"

"जब तक राजा का अपराध प्रमाणित नहीं होता, उसे सम्मान देना अनिवार्य है।"

"राजा का अपराध कैसे प्रमाणित होगा?"

"यह जाँच द्वारा सुनिश्चित करना दंडाधिकारी का कार्य है, जो कि विधि द्वारा स्थापित न्याय प्रणाली के तहत कार्य करता है।"

"दंडाधिकारी यह जाँच…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 2, 2018 at 8:30pm — 16 Comments

मानवता के अग्रदूत

मानवता के अग्रदूत

मानवता के अग्रदूत बन

नववाहक सच्चे सपूत बन

किया स्वप्न तूने साकार

नत मस्तक पशुता बर्बरता

देख अहिंसा का हथियार

तुझसे धन्य हुआ संसार ll

मानवता का ध्वज लहराए

जन जन को सन्मार्ग दिखाए

तेरे दया धर्म के आगे

जग लगता कितना आसार

तुझसे धन्य हुआ संसार ll

नित सुकर्म भरपूर किया है

हर विषाद को दूर किया है

श्रम प्रसूति के बल से बापू

किया चतुर्दिक बेड़ा पार

तुझसे धन्य हुआ संसार…

Continue

Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 2, 2018 at 6:25pm — 12 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service