बलात हालात बलात नियंत्रण में हैं न!
देश-देशांतर तिजारात आमंत्रण में हैं न!
आचार-विहार, व्यवहार-व्यापार, प्रहार,
घात-प्रतिघात धार अभियंत्रण में हैं न!
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बदले 'बदले के ख़्यालात' चलन में हैं न!
अगले-पिछले अहले-वतन फलन में हैं न!
बापू तुम्हारे ही देश में, देशभक्तों के वेश में
नोट-वोट, ओट-चोट-वोट अवकलन में हैं न!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2018 at 11:30pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:05pm — 18 Comments
३ क्षणिकाएं....
भावनाओं की घास पर
ओस की बूंदें
रोती रही
शायद
बादलों को ओढ़कर
रात भर
चांदनी
... ... ... ... ... ... .
गोद दिया
सुबह की ओस ने
गुलाब को
महक
तड़पती रही
अहसासों के बियाबाँ में
यादों की नोकों पर
... ... ... .. .. .. .. . .
आकाश
ज़िंदगी भर
इंसान को
छत का सुकून देता रहा
उसे
धूप दी, पानी दिया ,
ईश के होने का
अहसास दिया
मगर
वह रे इंसान
आया जो…
Added by Sushil Sarna on October 8, 2018 at 7:07pm — 18 Comments
फिर आएंगे नेता मेरे गांव में |
अबके लूँगा सबको अपने दाव में |
पूछूँगा सड़क क्यों बनी नहीं ?
हैण्ड पम्प क्यों लगा नहीं ?
क्यों बिजली नहीं आई मेरे गांव में…
ContinueAdded by Naval Kishor Soni on October 8, 2018 at 5:00pm — 4 Comments
22 122 12
गीता में लिक्खा गया
सिद्धिर्भवति कर्मजा
बिन फल की चिंता करे
सद्कर्म करिए सदा
दिखता है जो कुछ यहाँ
सब खेल है काल का
ऊर्जा का सिद्धांत है
लक्षण है जो आत्म का
बदले हैं बस रूप ही
ऊर्जा हो या आत्मा
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 8, 2018 at 4:51pm — 8 Comments
२२१/२१२१/ १२२१/२१२
दिल से चिराग दिल का जलाकर गजल कहें
नफरत का तम जहाँ से मिटाकर गजल कहें।१।
पुरखे गये हैं छोड़ विरासत हमें यही
रोते हुओं को खूब हँसाकर गजल कहें।२।
कोई न कैफियत है अभी जलते शहर को
आओ धधकती आग बुझाकर गजल कहें।३।
रखता नहीं वजूद ये वहशत का देवता
सोया जमीर खुद का जगाकर गजल कहें।४।
बैठा दिया दिलों में सियासत ने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 8, 2018 at 6:34am — 14 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on October 7, 2018 at 11:06pm — 4 Comments
होटलों में बर्तन धोने से लेकर नेताओं और अधिकारियों के पैर दबाने तक, मूंगफली बेचने से लेकर अख़बार बेचने तक सभी काम करने के साथ ही साथ उस अल्पशिक्षित बेरोज़गार के यौन-शोषण के कारण होशहवास खो गये थे, या किसी शक्तिवर्धक दवा के ग़लत मात्रा के सेवन से या अत्याधिक मानसिक तनाव के कारण उसकी अर्द्धविक्षिप्त सी हालत थी; किसी को सच्चाई पता नहीं! हां, सब इतना ज़रूर जानते थे कि बंदा है तो होनहार और मिहनती। जो काम दो, कर देता है। इसलिए सड़क पर आज भी उसकी ज़िन्दगी सुरक्षित चल रही है परिजनों की उपेक्षा और दयावानों…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 6, 2018 at 11:30pm — 7 Comments
चिता पर चाचाजी का शरीर लकड़ियों से ढंका हुआ पड़ा था और उसको आग लगाने की तैयारी चल रही थी. चाचाजी उम्र पूरा करके गुजरे थे इसलिए घर में बहुत दुःख का माहौल नहीं था लेकिन उनकी सेहत के हिसाब से अभी कुछ और साल वह सामान्य तरीके से जी सकते थे. अभी भी सारा परिवार एक में था इसलिए पूरा घर वहां मौजूद था. चचेरे भाई ने चिता जलाने के लिए जलती फूस को हाथ में लिया और चिता के चारो तरफ चक्कर लगाने लगा.
कुछ ही पल में चिता ने आग पकड़ ली और वह एक किनारे से एकटक जलती चिता को देखता रहा. चाचाजी से पिछले कई सालों से…
Added by विनय कुमार on October 6, 2018 at 8:18pm — 14 Comments
अभी तो यहाँ कुछ हुआ ही नहीं है ।
वो नादां उसे तज्रिबा ही नही है ।।1
उसे ही मिलेगी सजा हिज्र की अब ।
मुहब्बत में जिसकी ख़ता ही नहीं है ।।2
मिलेगा कहाँ से हमें कोई धोका ।
हमें आप का आसरा ही नहीं है ।।3
अगर आ गए हैं तो कुछ देर रुकिए ।
अभी तो मेरा दिल भरा ही नहीं है ।।4
है बेचैन कितना वो आशिक तुम्हारा ।
कहा किसने जादू चला ही नहीं है ।।5
जिधर जा रही वो उधर जा रहे हम ।
हमें जिंदगी से गिला ही नहीं…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 6, 2018 at 6:31pm — 8 Comments
कोई 'रोज़ी-रोटी' और 'नोटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था; तो कोई 'वोटों' और 'ओटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था। आम जनता जानती थी कि हर मुकाम पर कहीं न कहीं 'दाल में कुछ काला' है क्योंकि सालों से उसने सब कुछ देखाभाला है; अपने आपको वक़्त-व-वक़्त 'चोटों' से उबारा है। तरक़्क़ी के मुद्दों पर नेता व अधिकारी सब अपनी-अपनी वफ़ा की सफाई पेश कर दूसरों पर छींटाकशी कर, अपनी ही जगहंसाई कर चिल्ला रहे थे; विरोधी बिलबिला रहे थे!
"ये डील नहीं .. मतलबियों को ढील है! .. राजनीति नहीं .. चील है! चीट है ...…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 5, 2018 at 9:03pm — 8 Comments
अजनबी लगता है ... ...
न वज़ह पूछी
न मौका मिला
वक्त सरकता रहा
कोई अपना
हर लम्हा
अजनबी लगता रहा
किसे आवाज़ दूँ
तारीकियों की क़बा में
उजालों को ओढ़ कर
खो गयी कोई तलाश
टूट गया
उसके साये होने का भ्रम
बावज़ूद ज़िस्मानी करीबी के
वो हर नफ़स
जाने क्यूँ
अजनबी लगता रहा
झूठ है
वो अजनबी है
मेरी तिश्नगी का
समंदर है वो
मेरे हर ख्वाब का
मंज़र है वो
मेरे ज़ह्न में सदियों से…
Added by Sushil Sarna on October 5, 2018 at 6:07pm — 7 Comments
मौसम
धूप की तपन
विदा होने को तैयार
नन्ही कोपलों के फूटने का
पौधों को इंतजार
छांह को ढोते बादल
अब बूंदें चुराएँगे
इस कालचक्र के बीच
मौसम बदल जाएंगे ।
सीप
चमकते मोती
पलते सीप के सीने में
पिरोये जाकर धागों में
शोभा बढ़ाते गले की शान से
छुपाकर रखा मोती को
दर्द सजाकर सीने में
छाती चीरकर दिया…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on October 5, 2018 at 4:13pm — 14 Comments
किसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर?
फिर किसी सुनसान कोने
चीख कोई जो उठी
रात की खामोशियों में
रातरानी रो उठी
दानवी अट्टाहसों में
आह तड़पी घुट गई
टूटती साँसें समेटे
लड़खड़ाती वो उठी
इस कदर बरपी क़यामत
बन गई मातम सहर
इसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर
है नहीं जग में ठिकाना
आँख जाए नीर का
मोल कोई दे सकेगा
वेदना का पीर का
जिस नज़र पे था भरोसा
घात भी उससे मिली
हाथ…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2018 at 6:00pm — 20 Comments
ट्रैफिक सिग्नल की बत्ती लाल हो गयी थी तो उसने ब्रेक लगाया और बाहर देखने लगा. जाने और आने वालों की दो दो लेन थी और हर आदमी ने अपनी गाड़ी थोड़े थोड़े फासले पर खड़ा कर रखी थी. जोहानसबर्ग की यह बात उसे बेहद पसंद थी कि अमूमन हर व्यक्ति कानून का पूरी तरह से पालन करता था और शायद ही कभी लाल बत्ती पर सड़क पार करता था. हॉर्न बजाना तो बेहद असभ्यता की बात मानी जाती थी और किसी की गलती को जताने के लिए ही लोग हॉर्न बजाते थे.
रोज की तरह ही वह अफ़्रीकी नवयुवक, जिसे वह शक्ल से पहचानता था, लेकिन कभी उसने उसका…
Added by विनय कुमार on October 4, 2018 at 4:50pm — 10 Comments
गाँववालों की भीड़ इकठ्ठा हो चुकी थी, उनको भी पता था कि जब किसी गाड़ी में लोग आते हैं तो कुछ न कुछ बांटते हैं. गाड़ी में से कुछ पैकेट निकाले जा रहे थे और चारो तरफ खड़े लोगों में से कई निगाहें बड़ी हसरत से उन्हें निहार रही थीं.
कुछ समय बाद छोटा सा मंच सज गया और गाड़ी से आये कुछ लोगों ने गांववालों को समझाना शुरू किया "सफाई बहुत जरूरी है चाहे वह घर की हो या अपने शरीर की. आप लोग आज से यह प्रण कीजिये कि आगे से सफाई का पूरा ध्यान रखेंगे. आज हम लोग स्वछता से सम्बंधित सामग्री वितरित करेंगे".
बीमार…
Added by विनय कुमार on October 3, 2018 at 4:32pm — 23 Comments
बेज़ुबान पहचान ...
कितनी खामोशी होती है
कब्रिस्तान में
जिस्मों की मानिंद
कब्रों पर लिखे नाम भी
वक्त के थपेड़ों से
धीरे -धीरे
सुपुर्द-ए-ख़ाक हो जाते हैं
रह जाती है
कब्रों पर
उगी घास के नीचे
ख़ामोशी की कबा में सोयी
अपने -पराये रिश्तों की
बेज़ुबान पहचान
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 3, 2018 at 4:00pm — 10 Comments
नीम रिश्तों में जेसे दर आया
हर तरफ़ तीरगी सी फेली है
रूह घायल है और सहमी है
अपका साथ अब न होने से
ज़िन्दगी जैसे एक मक़तल है
और मक़तल में मैं अकेला हूं
ज़िन्दगी की तवील राहों में
ख़ुद को बेआसरा सा पाता हूँ
साथ एसे में राहबर भी नहीं
दिल की मेहफ़िल में रोशनी भी नहीं
रूह में कोई ताज़गी भी नहीं
मैं हूँ बेआसरा सा सहरा में
ढ़ूंढ़ता हूं वही…
ContinueAdded by mirza javed baig on October 3, 2018 at 12:30am — 24 Comments
राजा चोर है - लघुकथा –
"आचार्य,इस चोर राजा के शासन से मुक्ति का कोई तो उपाय बताइये। प्रजा त्राहि त्राहि कर रही है।"
"वत्स, सर्वप्रथम तो अपनी वाणी को नियंत्रित करो।"
"गुरू जी, आपका आशय क्या है।"
"जब तक राजा का अपराध प्रमाणित नहीं होता, उसे सम्मान देना अनिवार्य है।"
"राजा का अपराध कैसे प्रमाणित होगा?"
"यह जाँच द्वारा सुनिश्चित करना दंडाधिकारी का कार्य है, जो कि विधि द्वारा स्थापित न्याय प्रणाली के तहत कार्य करता है।"
"दंडाधिकारी यह जाँच…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2018 at 8:30pm — 16 Comments
मानवता के अग्रदूत
मानवता के अग्रदूत बन
नववाहक सच्चे सपूत बन
किया स्वप्न तूने साकार
नत मस्तक पशुता बर्बरता
देख अहिंसा का हथियार
तुझसे धन्य हुआ संसार ll
मानवता का ध्वज लहराए
जन जन को सन्मार्ग दिखाए
तेरे दया धर्म के आगे
जग लगता कितना आसार
तुझसे धन्य हुआ संसार ll
नित सुकर्म भरपूर किया है
हर विषाद को दूर किया है
श्रम प्रसूति के बल से बापू
किया चतुर्दिक बेड़ा पार
तुझसे धन्य हुआ संसार…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 2, 2018 at 6:25pm — 12 Comments
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