है ख़ुदी जब तक बनी खुद्दारियाँ जातीं नहीं
हो अना जब सामने दुश्वारियां जातीं नहीं
मुश्किलें हैं कोह की मानिंद गिर्दोपेश में
ज़िंदगी की ज़िल्लतोलाचारियाँ जातीं नहीं
हूँ फसां मैं रोज़गारी फ़िक्र के गिर्दाब में
सख्त हैं हालात जिम्मेदारियाँ जातीं नहीं
दिल हुआ मजरूह जिसकी इक नज़र से उम्र भर
उस फ़ुसूनेनाज़ की आजारियाँ जातीं नहीं
वो नहीं मुझको मिला सौगात लेकिन दे गया
खू-ए-सोज़िश हो गई गमख्वारियाँ जातीं…
Added by राज़ नवादवी on October 4, 2016 at 5:50pm — 10 Comments
“उत्कर्ष“
एक टिमटिमाते, बुझते तारे का उत्कर्ष,
देख लोग, होते चमत्कृत,
लेकिन वे बूझने में असमर्थ,
उसका नैपथ्य में छिपा,
गहन, सतत संघर्ष,
रुपहली चमक के पीछे छिपे,
कालिमा के सुदीर्घ, लंबे वर्ष,
फिर भी आशाओं से परिपूर्ण,
बाधाएँ, चुनौतियाँ पार कर,
उत्साहित, प्रसन्नचित्त, प्रकाशमान सहर्ष,
प्रोत्साहन देता अनूठा, गांभीर्य शब्द संघर्ष,
छिपा गूढ इसमें तात्पर्य,
ड़टे रहो कर्तव्यपथ पर “ संग + हर्ष",
अब दूर कहीं मुसकुराता है,…
Added by Arpana Sharma on October 4, 2016 at 5:41pm — 6 Comments
अगर ना भागता छुट कर मुसीबत और हो जाती
तेरे घरवालों से मेरी मुरम्मत और हो जाती।
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बुला कर घर में पिटवाना कहीं इतना ज़रूरी था
तू खुद ही डाँट देती तो नसीहत और हो जाती।
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खुदा का शुक्र है भाई तुझे दो ही दिए उसने
अगर दो और दे देता क़यामत और हो जाती।
.
बड़ी मुश्किल तेरे कुत्ते से हमने कफ़ था छुड़वाया
जो फ़ट पतलून जाती तो फजीहत और हो जाती।
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कि रस्ते में तो बिल्ली ने इशारा भी किया था पर
अगर कुछ बोल कर कहती सहूलत और हो…
Added by Gurpreet Singh jammu on October 4, 2016 at 9:30am — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2016 at 9:15am — 4 Comments
ग़ज़ल ( शुरुआते मुहब्बत हो गयी )
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(फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन- फाइलुन )
यक बयक मुझ पर सितमगर की इनायत हो गयी ।
ऐसा लगता है शुरुआते मुहब्बत हो गयी ।
की वफ़ा गैरों से अहदे इश्क़ अपनों से किया
जानेमन यह तो अमानत में खयानत हो गयी ।
यह नतीजा तो अज़ीज़ों पर यक़ी करने का है
यूँ नहीं पैदा सनम के दिल में नफरत हो गयी ।
दिल की अब कीमत कहाँ है हुस्न के बाजार…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on October 3, 2016 at 8:58pm — 16 Comments
उस दिन मैं हिन्दी दिवस के एक समारोह में शामिल होने के लिए शेयरिंग कैब में दिल्ली एयरपोर्ट से सिविल लाइंस जा रहा था। कैब में दो और सहयात्री सवार थे। वे दोनों पीछे की सीट पर और मैं फ्रंट सीट पर था। उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो पता चला एक मद्रासी तो दूसरा राजस्थानी है।
मद्रासी – तुम कहाँ का रहनेवाला है ?
राजस्थानी – आई’m फ़्रोम जयपुर, एंड यू ?
मद्रासी – मैं चेन्नै में रहता। तुम क्या करता है ?
राजस्थानी – आई’m ए एग्जीक्यूटिव इन बैंकिंग…
Added by Govind pandit 'swapnadarshi' on October 3, 2016 at 6:44pm — 4 Comments
Added by मनोज अहसास on October 3, 2016 at 2:54pm — 8 Comments
Added by shree suneel on October 3, 2016 at 11:45am — 3 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 2, 2016 at 7:17pm — 10 Comments
2212 2212 2212
ढलती सुहानी शाम है आ जाइये
हर सू तुम्हारा नाम है आ जाइये
ये वादियाँ ये खुश्बुएं हैरान हैं
हर फूल पे इल्जाम है आ जाइये
कैसी चुभन है ये दिले नासाज़ की
दिल टूटना तो आम है आ जाइये
उजड़ा हुआ है मुद्दतों से आशियाँ
सूनी तभी से बाम है आ जाइये
नासूर बन जो रूह पे आयद हुआ
उस ज़ख्म का पैगाम है आ जाइये
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
©बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 2, 2016 at 3:00pm — 14 Comments
212 212 212 22
ज़िन्दगी को मिरे रायगाँ करके,
चल दिये रंज को मेहमाँ करके,.
बाँह के इस क़फ़स से उड़े, अब क्या?
हसरतें बाँध लें बेडियाँ करके,
बेबसी आदमी की कहाँ ठहरे,
रास्ते पर रहे आशियाँ करके,
पैर के धूल पर वक़्त मेहरबाँ,
धूल उड़ने लगे आँधियाँ करके,
लज़्ज़तें कुछ नहीं, दर्द ओ आंसू,
ये मिले फासले दरमियाँ करके,
वक़्त यूँ ही गुज़रता रहा…
ContinueAdded by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on October 2, 2016 at 1:00pm — 4 Comments
Added by harikishan ojha on October 2, 2016 at 12:55pm — 8 Comments
"वह लड़की विधर्मी लगती है, कपड़े ज़रूर अलग पहने हैं, लेकिन शक्ल और चाल-ढाल तो..." सड़क के कोने में छिपकर बैठे एक मनचले ने शराब का घूँट भरते हुए दूसरे मनचले से कहा|
"इसको उठा लेते हैं... आजकल पूरा देश भी इनके विरुद्ध है" दूसरे की लाल आँखों में मक्कारी स्पष्ट झलक रही थी|
दोनों दौड़ कर उस लड़की के सामने खड़े हो गये, और तेज़ स्वर में दुश्मन देश के मुर्दाबाद का नारा लगाया|
लड़की भौचंकी रह गयी, उसको डरता देखकर उन दोनों के हौसले और भी बुलंद हो गये और…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 2, 2016 at 11:24am — 12 Comments
कुकुभ छंद
१
घोड़े चढ़कर दुर्गनाशिनी, माँ भवानी आ रही है
घोड़े के वाहन पर दुर्गा, लौटकर भी जा रही है |
घोडा उथल पुथल का प्रतीक, युद्ध की संभावना है
ज्योतिष विद्या मानते इसको, देशो की तना तनी है |
२.
ज्योतिष गणना में है पाते, आपद विपद कष्ट सारा
पूजो माता दुर्गा को अब , माता ही एक सहारा |
भक्त वत्सला, शक्ति स्वरूपा, भक्तों के घर आएँगी
कार्तिक गणेश महेश को भी, साथ साथ ही लाएँगी |
३.
नवरात्रि में आद्य शक्ति स्रोत,…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 2, 2016 at 10:30am — 8 Comments
ग़ालिब साहब की ज़मीन पर एक प्रयास
तब अलग थी, अब जवानी और है
2122 2122 212 --
शक्ल में जिनकी कहानी और है
क्या उन्होनें मन मे ठानी और है
लफ़्ज़ तो वो ही पुराना है मगर
आज फिर क्यों निकला मअनी और है
हाथ में पत्थर है, लब खंज़र हुये
तब अलग थी, अब जवानी और है
है समंदर की सतह पर यूँ सुकूत
पर दबी अब सरगिरानी और है
साजिशें सारी पस ए परदा हुईं
पर अयाँ जो है ज़बानी,.. और है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 8:00am — 31 Comments
खामोश मौसम ....
अपनी ही आवाज़ों के साथ
बैसाखियाँ
आग में जलने लगी
समय
और सुईयों की रफ़्तार
अपनी बेख़ौफ़ चाल के साथ
ज़िन्दा होने का
सबूत देती रही
जज़्बात
हड्डियों की बैसाखियों पर
खामोशियों के लिबास पहने
खुद को ढोते रहे
एक बैसाखी दिल की
किसी शरर की उम्मीद में
तारीकियों से लिपटी
पल पल जलती हुई
ज़ख्मों की तलाशी लेती रही
जलते हुए ख़्वाब
शायद अपनी बैसाखियाँ…
Added by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 8:54pm — 14 Comments
दो मिनट में
नहीं लिख दी जाती
कोई कविता
जैसे नहीं बनती सब्जी
दो मिनट में बढ़िया
दो मिनट में तो
बनती है बस मैगी
जो सिर्फ पेट भरती हैं |
अपनी संतुष्टि के लिए
भले लिख दो
मिनट, दो मिनट में
कुछ भी…
Added by savitamishra on October 1, 2016 at 11:43am — 17 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
अंधे बहरे हैं चंद गूँगे हैं
मेरे चेहरे पे कितने चेहरे हैं
मैं कहीं ख़ुद से ही न मिल जाऊँ
ये मुखौटे नहीं हैं पहरे हैं
आइने से मिला तो ये पाया
मेरे मुँह पर कई मुँहासे हैं
फेसबुक पर मुझे लगा ऐसा
आप दुनिया में सबसे अच्छे हैं
अब जमाना इन्हीं का है ‘सज्जन’
क्या हुआ गर ये सिर्फ़ जुमले हैं
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 1, 2016 at 10:00am — 19 Comments
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