Added by Manoj kumar shrivastava on November 25, 2017 at 12:18pm — 10 Comments
क्यों मरते हो हे ! आतंकी
कीट पतंगों के मानिंद
हत्यारे तुम-हमे बुलाते
जागें प्रहरी नहीं है नींद…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on November 25, 2017 at 11:00am — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2017 at 7:16am — 7 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 25, 2017 at 12:00am — 9 Comments
22 22 22 22 22 2
आंखों में आबाद समंदर देखा है ।
हाँ मैंने उल्फ़त का मंजर देखा है ।।
कुछ चाहत में जलते हैं सब रोज यहां ।
चाँद जला तो जलता अम्बर देखा है ।।
आज अना से हार गया कोई पोरस ।
तुझमें पलता एक सिकन्दर देखा है ।।
एक तबस्सुम बदल गई फरमान मेरा ।
मैंने तेरे साथ मुकद्दर देखा है ।।
कुछ दिन से रहता है वह उलझा उलझा ।
शायद उसने मन के अंदर देखा है ।।
बिन बरसे क्यूँ बादल सारे गुज़र गए ।
मैंने उसकी जमीं को बंजर…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 24, 2017 at 6:30pm — 5 Comments
तेरे मेरे दोहे :
पथ को दोष न दीजिये , पथ के रंग हज़ार
प्रीत कभी पनपे यहां ,कभी विरह शृंगार!!१!!
दर्पण झूठ न बोलता ,वो बोले हर बार
पिया नहीं हैं पास तो, काहे करे सिँगार!!२!!
शर्म न आए चूड़ियाँ ,शोर करें घनघोर
राज रात के कह गई, पुष्प गंध हर ओर!!३!!
जर्ज़र तन ने देखिये, ये पायी सौग़ात
निर्झर नैनों से गिरे,दर्द भरी बरसात!! ४!!
बन कर लहरों पर रहें, श्वास श्वास इक जान।
मिट कर भी संसार में ,हो अपनी…
Added by Sushil Sarna on November 24, 2017 at 5:00pm — 8 Comments
Added by रक्षिता सिंह on November 24, 2017 at 5:34am — 8 Comments
हुआ होगा कुछ आज ही के दिन
भयानक सनसनी अभी अचानक
थम गई
हवा आदतन अंधेरे आसमान में
कहाँ से कहाँ का लम्बा सफ़र तय कर
थक गई
पत्तों की पत्तों पर थपथपी
अब नहीं
रुकी हुई है पत्तों पर कोई अचेत अवस्था
या, असन्तुलनात्मक ख़ामोशी से उपजी
है आज भीतर अनायास उदास अनवस्था
बातों बातों में हम भी
तो रूठ जाते थे कभी
फिर भी हृदय सुनते थे स्वर
कुछ ही पल, आँखों से आँखों में देख
दुलारते
हँस…
ContinueAdded by vijay nikore on November 23, 2017 at 6:31pm — 11 Comments
Added by रामबली गुप्ता on November 23, 2017 at 6:30am — 5 Comments
Added by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 12:02am — 23 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2017 at 12:00am — 4 Comments
ओ साहब!!!
क्या तुम आधुनिक लोकतंत्र को
लूटने वाले नेता हो!
या रईसी के दम पर बिकने वाले
अभिनेता हो!
क्या तुम वास्तविकता से अंजान
बड़े पद पर बैठे अधिकारी हो!
या मानवता की दलाली करने वाले
शिकारी हो!
क्या तुम भ्रष्टाचार में सिंके हुए
गुर्दे हो!
या विधानालय में वास करने वाले
मुर्दे हो!
तुम जो भी हो !!
मेरा प्रश्न है कि
अपनी बेटी की आबरू लूटने वाले के प्रति
तुम क्या सोचते?
तुम मौन हो!
पर मुझे मालूम है…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 22, 2017 at 10:30pm — 8 Comments
अजल की हो जाती है....
ज़िंदगी
साँसों के महीन रेशों से
गुंथी हुई
बिना सिरों वाली
एक रस्सी ही तो है
जिसकी उत्पत्ति भी अंधेरों से
और विलय भी अंधेरों में होता है
ज़िंदगी
लम्हों के पायदानों पर
आबगीनों सी ख़्वाहिशों को
छूने के लिए
सांस दर सांस
चढ़ती जाती है
मौसम
अपने ज़िस्म के
इक इक लिबास को उतारते
ज़िंदगी को
हकीकत के आफ़ताब की
तपिश से रूबरू करवाने की
हर मुमकिन कोशिश करते हैं
मगर अफ़सोस…
Added by Sushil Sarna on November 22, 2017 at 12:00pm — 12 Comments
फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन
ये जो राबिता है अपना फ़क़त एक शे'र का है।
कोई इक रदीफ़ है तो कोई उसका क़फ़िया है।
है अजीब ख़ाहिश-ए-दिल कि रहूँ गा साथ ही में,
मैं हबीब हूँ हवा का मेरा आश्ना दिया है।
कभी मुझ से आके पूछो सर-ए-शाम बुझ गया क्यों,
कभी उस तलक भी जाओ कि जो दिन में भी जला है।
कभी कश्तियों को छोड़ो दिले आबजू में उतरो,
मेरे पास आके देखो मेरे दिल में क्या छिपा है।
मेरा क्या है मेरी मंज़िल मुझे ढूँढ…
ContinueAdded by रोहिताश्व मिश्रा on November 22, 2017 at 11:30am — 4 Comments
212 1222 212 1222
तेरे प्यार में दिल को बेक़रार करते हैं
रात - रात भर तेरा इंतज़ार करते हैं
-
तुमको प्यार करते थे तुमको प्यार करते हैं
जाँ निसार करते थे जाँ निसार करते हैं
-
ख़ुश रहे हमेशा तू हर ख़ुशी मुबारक हो
ये दुआ खुदा से हम बार - बार करते हैं
-
उँगलियाँ उठाते हैं लोग दोस्तों पर भी
हम तो दुश्मनों पर भी ऐतबार करते हैं
-
वादा उसका सच्चा है लौट के वो आएगा
इस उमीद पर अब भी इंतज़ार करते…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on November 22, 2017 at 8:30am — 6 Comments
जब तुमने की होगी आत्महत्या,
तब कितना कठोर किया होगा मन,
कितनी सही होगी वेदना,
संभवतः तुम्हारे अंगों ने भी,
तुमसे कहा होगा कि,
‘एक बार फिर सोच लो‘,
परंतु तुमने निष्ठुरता का
प्रमाण देते हुए,
अनदेखा कर दिया होगा,
कदाचित तुमने यह भी
नहीं सोचा होगा कि,
तुम्हारे मृत शरीर को
देखकर अवस्थाहीन
हो जाएगी तुम्हारी ‘जननी‘,
जिसका अंश है तुम्हारा शरीर,
तब, चहुंदिशि होगी,
करूणा और क्रंदन
जो चीख-चीख कर
कह रहे होंगे-‘‘आखिर
क्यों की…
Added by Manoj kumar shrivastava on November 22, 2017 at 7:30am — 4 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on November 21, 2017 at 11:00pm — 8 Comments
Added by पंकजोम " प्रेम " on November 21, 2017 at 7:12pm — 4 Comments
२१२२ १२१२ २२
कोंचती है ये धूल कहता है
किस नफ़ासत से फूल कहता है
मख़मली ये लिबास चुभते हैं
रास्ते का बबूल कहता है
जिन्दगी से निबाह करती हूँ
आइना जब क़ुबूल कहता है
अपने दम पे मक़ाम हासिल कर
मुझसे मेरा उसूल कहता है
चाहो मंजिल तो आबले न गिनो
हर कदम पे रसूल कहता है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:46am — 25 Comments
खामोश आखें
होली आयी और चली गयी,
पिछले साल से भली गयी,
पर किसी ने देखा!
किसका क्या जला?
मैंने देखा,
’उसकी डूबती खामोश आॅंखें’
और भीगी पलकों को,
और वह खड़ा,
एकटक देख रहा था,
’होली को जलते’
जैसे उसे मालूम न हो,
अपनी ‘आॅंखों ’ के कारनामे
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Manoj kumar shrivastava on November 20, 2017 at 10:00pm — 5 Comments
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