न्याय के घर झूठ भारी
सत्य की अवहेलना है,
अब पतन निश्चित वतन का,
दण्ड सबको झेलना है,
पाप का पापड़ कहाँ तक,
मौन रहकर बेलना है.
दांव पे साँसे लगी हैं,
ये जुआ भी खेलना है,
मृत्यु की खाई में बाकी,
शेष जीवन ठेलना है....
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 12:30pm — 19 Comments
मॉं
एक शब्द
एक संबोधन
एक रिश्ता
क्या हैं,मॉं
नहीं समझ पाया
नहीं जान पाया
नीमअंधकार से निकला मैं
खुली पलकें
मखमली गोद में
सिर पर स्नेह की छाया
सीने से लग कर
क्षुधार्त की शांति
क्या यही हैं मॉं
या मॉं हैं
हाड़ मॉंस की एक पुतली
जिसके अनेकों रूप
जाने अंजाने कितने
बेटी,बहन,बहू पत्नी
आसानी से बनते रिश्ते
मगर मॉं
दिर्घावधि…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 17, 2013 at 11:39am — 7 Comments
बताई बात मिलने की अगर तूँने जमाने को
बचेगा पास मेरे क्या बताओ फिर गँवाने को
न दिल को लगने पाएगा ये गम जुदाई का
तुम्हारी याद जो होगी हमें हँसने-हँसाने को
लगी सूंघने दुनिया तेरी खुशबू हवाओं में
लिखी जब गयी चिट्ठी किताबों में छुपाने को
किया फौलाद जैसा दुखों ने पालकर तन से
खुशी एक ही काफी हमें जी भर रूलाने को
गिरे अनमोल मोती जो सुख की कड़ी टूटी
सहेजे दामनों ने हैं नयन में फिर सजाने को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 17, 2013 at 7:00am — 8 Comments
कभी जब तुम नही रहते ,
तुम्हारा कोई "अहसास" रहता है
कि जैसे बंद कमरे मे
कोई आहट गुजरती हो
कि जैसे हवा के साथ कोई
ख़ुशनुमा ठंडा झोंका
मेरे कमरे में आता , जाता
पर
ठहरता नहीं है
कि जैसे किसी बंद क़िताब के पन्ने
कोई सदा देते हों
कि जैसे पुराने खतों की खुश्बू
गुदगुदाती हो
कोई पुरानी तस्वीर
जैसे बोलने को बे-करार हो
कि जैसे वक़्त का टुकड़ा कोई ,
गुज़र कर भी नहीं गुज़रता है
कभी जब तुम नहीं रहते ,…
Added by ajay sharma on November 16, 2013 at 11:00pm — 12 Comments
पूछे कौन गरीब को, धनिकों की जयकार .
धन के माथे पर मुकुट, और गले में हार ..
और गले में हार , लुटाती दुनिया मोती .
आवभगत हर बार, अगर धन हो तब होती .
'ठकुरेला' कविराय , बिना धन नाते छूछे .
धन की ही मनुहार,बिना धन जग कब पूछे .
जनता उसकी ही हुई , जिसके सिर पर ताज.
या फिर उसकी हो सकी ,जो हल करता काज ..
जो हल करता काज,समय असमय सुधि लेता.
सुनता मन की बात , जरूरत पर कुछ देता .
'ठकुरेला' कविराय…
ContinueAdded by Trilok Singh Thakurela on November 16, 2013 at 8:00pm — 16 Comments
जहाँ से अब ज़रा चलने कि तैयारी करो बिस्मिल
वहम में जी लिए कितना कि बेदारी करो बिस्मिल
जमाने ने किसे रहने दिया है चैन से अब तक
पुरानी बात छोड़ो खुद को चिंगारी करो बिस्मिल
बुरा हो वक़्त कितना भी न घबराना कभी इस से
गया अब वक़्त गर्दिश का न दिल भारी करो बिस्मिल
ग़रीबों का दुखाना मत कभी भी दिल मेरे दोस्त
दुआ किसकी मिलेगी फिर जो ज़रदारी करो बिस्मिल
सवर जाये अगर इस से बुरा क्या है ज़रा सोंचो
कभी इस मुल्क की…
Added by Ayub Khan "BismiL" on November 16, 2013 at 8:00pm — 25 Comments
नारी पीड़ा सह रही, मन में है अवसाद,
संत वेश में घूमते, दुष्कर्मी आजाद |
दुष्कर्मी आजाद, सताते नहीं अघाते
करे नहीं परवाह, गंदगी यूँ फैलाते |
राजनीति का मंच, भरे अपराधी भारी,
हमको यही मलाल,कष्ट में अबला नारी |
(2)
गांधी के इस देश में, हिंसा है आबाद,
निरपराध है जेल में, सौदागर आजाद |
सौदागर आजाद, कर रहे भ्रष्टाचारी
इनमे है उन्माद, कष्ट में जनता सारी
जागरूकता रोक सके अपराधी आंधी,
जनता पर ही भार,सहे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 16, 2013 at 7:00pm — 9 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2013 at 12:00pm — 52 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २
बह्र- "रमल मुसम्मन महजूफ"
.
मुन्तज़िर अरमाँ सभी हाथों से ढा देते
ऐ ख़ुदा हमको अगर पत्थर बना देते
इक समंदर हम नया दिल में बसा देते …
ContinueAdded by rajesh kumari on November 16, 2013 at 10:00am — 44 Comments
लाश मुहब्बत की उठाता फिरता हूँ
गीत गमों के गुनगुनाता फिरता हूँ
काश के मिल जाये खुशी का पल कोई
हाथ फकीरों को दिखाता फिरता हूँ
नींद हमें आती नहीं दुनिया वालो
साथ सितारों को जगाता फिरता हूँ
हो न अँधेरा आशियाने में उनके
सोच यही खुद को जलाता फिरता हूँ
खूब किया है फैसला किस्मत तूने
जख्म भरे दिल को छुपाता फिरता हूँ
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित
Added by umesh katara on November 16, 2013 at 8:55am — 17 Comments
बह्र : २२१२ २२१२ २२१२ २२१२
जब से हुई मेरे हृदय की संगिनी मेरी कलम
हर पंक्ति में लिखने लगी आम आदमी मेरी कलम
जब से उलझ बैठी हैं उसकी ओढ़नी, मेरी कलम
करने लगी है रोज दिल में गुदगुदी मेरी कलम
कुछ बात सच्चाई में है वरना बताओ क्यों भला
दिन रात होती जा रही है साहसी मेरी कलम
यूँ ही गले मिल के हैलो क्या कह गई पागल हवा
तब से न जाने क्यूँ हुई है बावरी मेरी कलम
उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 15, 2013 at 11:34pm — 30 Comments
सुनो !!
वक्त मत लिया करो ...
समय से तारीफ करा करो
हाँ मगर सच्ची तारीफ़ें
और समय से मुबारकें
तुम्हारी दुआ कबूल हो
उस खुदा को मंजूर हो
जिसने मुझे भेजा यहाँ
तुम जैसे दोस्तों के दिलों में
मिला एक आसियाँ
मैं कितना भी उड़ लूँ
आज मगर सच कहता हूँ
प्यार से अपने बांध लेते हो
वरना मैं क्या होता हूँ
मुस्कराहट में मेरी, तुम्हारी नज़र है
कलम से कुछ नाराज़ अक्षर हैं
वरना कहाँ मैं तुमसे…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on November 15, 2013 at 10:16pm — 9 Comments
वस्ल की उस रात को जमाने गुजर गए
शराब अभी भी वही है बस पैमाने बदल गए
शाम की गुल रंग हवा का कुछ ऐसा असर है
लबो पे सजे गम के सब तराने बदल गए
अब कौन संभालेगा कौन गले से लगाएगा
बचपन के वो सब दोस्त पुराने बदल गए
अब कौन यहाँ जबान और कुल है देखता
अब तो वो चोहद्दर वो राजघराने बदल गए
अब चढ़ते छप्पर को हाथ लगाने कोई नहीं आता
अब तो गाँव के वो सीधे लोग सयाने बदल गए
मौलिक व अप्रकाशित
Added by डॉ. अनुराग सैनी on November 15, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
२ १ २ २ १ १ २ २ १ १ २ २, २ २ /११२
दिल के ज़ख्मों से उठी जब से गुलाबी ख़ुशबू,
शह्र में फ़ैल गई मेरी वफ़ा की ख़ुशबू.
...
ये महक, बात नहीं सिर्फ हिना के बस की,
गोरी के हाथों महकती है पिया की ख़ुशबू.
...
फूल को ख़ुद में समेटे हुए थी कोई क़िताब,
फूल से आने लगी आज क़िताबी ख़ुशबू.
...
वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,
जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू.
....
चंद लम्हात गुज़ारे थे तुम्हारे नज़दीक़, …
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on November 15, 2013 at 7:41am — 17 Comments
तमन्ना जाग उठती है , तेरे कूचे में आने से
तेरे चिलमन हटाने से जरा सा मुस्कुराने से/१
अजब ही दौर था जालिम ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी
मेरी पलकें उठाने से तेरी पलकें झुकाने से/२
कहीं जाओ मगर अच्छे मकां मिलते कहाँ हैं अब
हमारे दिल में आ जाओ, ये बेहतर हर ठिकाने से/३
पतंगों सा गिरा कटकर तेरी छत पर अरे क़ातिल
कि बाहों उठाले तू किसी तरह बहाने से/४ …
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on November 14, 2013 at 11:00pm — 15 Comments
जो बातें होठों तक न आ पाएँ
उसे कागजों पर
उकेरा करो ....
दिल में न रखा करो
ओंठ न सिया करो
कुछ बातें लिखनी मुश्किल हो
तो आँखों से कह दिया करो
जब तन्हा हुआ करो
तो आवाज़ दिया करो
जो हसरत तेरी चाहत मे हो
मेरे दामन से ले लिया करो
गुफ्तगू
जम कर किया करो ....
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Amod Kumar Srivastava on November 14, 2013 at 10:30pm — 10 Comments
टूटी चूड़ियाँ
बह गया सिन्दूर
साथ ही टूटा
अनवरत
यंत्रणा का सिलसिला
बह गया फूटकर
रिश्तों का एक घाव
पिलपिला
अब चाँद के संग नहीं आएगा
लाल आँखें लिए
भय का महिषासुर
कभी कभी अच्छा होता है
असर
जहरीली शराब का ..
... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on November 14, 2013 at 8:30pm — 32 Comments
ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
अक्षरों में खुदा दिखाई दे
अब मुझे ऐसी रोशनाई दे |
हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,
सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे |
रोशनी हर चिराग में भर दूं ,
कोई ऐसी दियासलाई दे |
माँ के हाथों का स्वाद हो जिसमें,
ले ले सबकुछ वही मिठाई दे |
धूप तो शहर वाली दे दी है,
गाँव वाली बरफ मलाई दे |
बेटियों को दे खूब आज़ादी ,
साथ थोड़ी उन्हें हयाई दे…
ContinueAdded by Abhinav Arun on November 14, 2013 at 7:45pm — 41 Comments
मंदिरों में है बसेरा मस्जिदों में घर तेरा
ऐ परिन्दा बोल आख़िर कौन है रहबर तेरा ?
तेरे ज़ख्मों को भरेगा कौन ऐ हिन्दोस्तां ?
मुददतों से है पड़ा बीमार चारागर तेरा
अम्न के दुश्मन ने फिर ओढ़ा है चाँदी का नक़ाब
हो न जाये बेअसर इस बार भी पत्थर तेरा
इस तरफ मोहताज टूटी खाट को आम आदमी
उस तरफ मख़मल पे सोता है हर इक नौकर तेरा
सोच दिल पे हाथ रखकर ऐ वतन के नौजवां
हादसों के बाद क्यों आता है नाम अक्सर तेरा
.
"मौलिक व…
ContinueAdded by Sushil Thakur on November 14, 2013 at 4:30pm — 16 Comments
मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों हैं भगवान ।।
उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।
नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।
ईश्वर से कर कामना, उपजें नेक विचार ।
भाषा मीठी प्रेम की, खुशियों का आधार ।
सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:00pm — 23 Comments
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