गीत-१०
----------
सब स्वागत में खड़े हुए हैं, आने वाले साल के
कौन विदाई देगा बोलो, जाने वाले साल को।।
*
कितनी कड़वी मीठी यादें, बाँधे घूम रहा गठरी में
आँसू वाली आँख न कोई, देखी मतवाली नगरी में
आया था तो पलकपावड़े, बिछा दिये थे सब लोगो ने
आज न कोई पूछ रहा है, बोलो जाओगे किस डगरी।।
*
दुख पाया जिसने उसकी तो, बात समझ में आती है
सुख पाने वाले भी कहते, रुको न जाते काल को।।
*
माना अभिलाषायें सबकी, पूर्ण न कर पाया हो लेकिन
कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 1:30pm — No Comments
( गीत -९)
**
हर्षित करने सब का जीवन, आना नूतन साल।
निर्धन हो कि धनी नर नारी, रखना उन्नत भाल।।
*
धर्म जाति से फूट मत पड़े, हो जनता समवेत।
नगर गाँव में अन्तर कम हो, यूँ व्यवहार समेत।।
हर आँगन में किलकारी हो, हरा भरा हर खेत।
स्वर्ण कणों में अबके बदले, ऊसर मिट्टी रेत।।
*
अतिशय हों भण्डार अन्न के, दूध दही भरपूर।
महामारियों, दुर्भिक्षो का, रूप न ले फिर काल।।
*
शासक कोई न हो विश्व में, इतना बढ़चढ़ क्रूर।
झोंके जायें और समर में, राष्ट्र न अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
अतुकांत कविता : सुनो ना
=====
सुनो ना,
कहनी है मुझे
दिल की बात..
जब घर से निकलता हूँ
और कोई पूछ लेता है,
कहाँ जा रहे हो
मैं बुरा नहीं मानता
जब चलता हूँ गाड़ी से
और बिल्ली काट देती है रास्ता
मैं रुकता नहीं
चलता रहता हूँ
मैं नही मानता अंधविश्वास
जब भी निकलता हूँ
किसी महत्वपूर्ण कार्य हेतु
माँ खिलाती है
दही और चीनी
माँ को है विश्वास
ऐसा करना
होता है शुभ …
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 27, 2022 at 5:30pm — 5 Comments
11212 11212 11212 11212
हैं यूँ ज़िंदगी ने सितम किए, मुझे क्या से क्या है बना दिया
मैं तो आसमाँ के सफ़र में था, मुझे ख़ाक में ही मिला दिया
ये ख़ुशी भी दर्द समेत थी, कि ग़मों के सहरा की रेत थी
जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया
मिरे दिल में दर्द ही दर्द था, कि तमाम उम्र ये सर्द था
लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया
जो दिल-ओ-जिगर से भी प्यारा था, जिसे अपना कहके पुकारा…
ContinueAdded by Zaif on December 26, 2022 at 9:17pm — 6 Comments
तेरे उपकार का ये ऋण, भला कैसे चुकाऊंगा?
दबा हूँ बोझ में इतना, खड़ा अब हो ना पाऊँगा
मेरी पूंजी है ये जीवन, जो तुम चाहो तो बस ले लो
सिवा इसके तुम्हें अर्पण, मैं कुछ भी कर ना पाऊँगा
दिया था हाथ जब तुमने, मैं तब डूबता हीं था
सम्हाला था मुझे तुमने, के जब मैं टूटता हीं था
मैं भटका सा मुसाफिर था, राह तू ने था…
ContinueAdded by AMAN SINHA on December 26, 2022 at 2:22pm — No Comments
गीत-८
--------
कामना में नित्य जिस की, हर कली सुख की लुटाई।
पा लिया स्पर्श तेरा वेदना ने, अब न लेगी वो विदाई।।
*
वेदना के बीज से ही, जन्म लेता है सुखद क्षण।
जेठ की तीखी तपन का, दान जैसे ओस का कण।।
कंटकों में पुष्प खिलते, दीप जलते नित तमस में।
मोल सुख का जानने को, हो गयी दुख से सगाई।।
*
ध्वंस के अवशेष पर नित, दीप दुनिया है जलाती।
प्राण रहते पूछने पर, एक पल भी वह न आती।।
कर समर्पित प्राण ऐसे, चिर अखण्डित वेदना पर।
शेष करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2022 at 7:30am — 4 Comments
2122 2122 2122 212
कौन सी मंज़िल पे ये रस्ता नया ले जाएगा।
मुझको लगता है ये मेरा हौसला ले जाएगा।
ऐ फरेबी वक़्त मुझको हर सितम तेरा कुबूल,
मेरी साँसों से अधिक तू मेरा क्या ले जाएगा।
ये अँधेरा युग तो इक दिन बीत जाएगा मगर,
कीमती मौसम हमारी उम्र का ले जाएगा।
इससे पहले वक़्त अपनी चाल चल दे डाकिये,
उससे कहना मेरे होने का पता ले जाएगा।
टूट जाएगा मेरी उम्मीद का सच जानकर,
मेरी ग़ज़लों को कुरेदा तो…
Added by मनोज अहसास on December 26, 2022 at 12:15am — 11 Comments
भिखारी छंद - 24 मात्रिक - 12 पर यति
पदांत-गा ला
जब -जब सर्दी आती ,कब वृद्धों को भाती ।
गिरे आँख से पानी ,खाँसी बहुत सताती ।
रोटी गिर -गिर जाती ,चाल संभल न पाती ।
लड़ते-लड़ते आख़िर ,काया चुप हो जाती ।
* * *
ठहर जरा दीवानी , तेरी उम्र सयानी ।
आशिक़ नज़रें घूरें, तेरी मस्त जवानी ।
अक्सर मीठे धोखे ,इन राहों पर होते ।
पड़ न जाए महंगी , थोड़ी सी नादानी ।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 25, 2022 at 1:30pm — 8 Comments
किस मौसम के रंग चुराऊँ किस मौसम की रीत।
जिस को पाकर फिर से रीझे रूठा मन का मीत।।
*
तितली फूल हवा को भी है इस का पूरा भान।
जगत मन्थरा बनकर भरता निश्चित उसके कान।।
आँखों देखा जाँचा परखा बना दिया सब झूठ।
इसीलिए तो मन के आँगन वह रच बैठी भीत।।
*
फागुन गाये फाग भला क्या सावन धोये पाँव।
मधुमासों में भी जब लगता पतझड़ जैसा गाँव।।
गुनगुन करते तितली भौंरे विरही मन सह मौन।
उस बिन व्याकुल हुई लेखनी रचे भला क्या गीत।।
*
तपते सूरज से विनती की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2022 at 7:23pm — 6 Comments
122 122 122 12
सज़ा तय हुई है ख़ता के बग़ैर
गला जाएगा अब रज़ा के बग़ैर
मेरे सब्र की इंतिहा देखिए
शिफ़ा चाहता हूँ दवा के बग़ैर
तेरे दाम-ए-तज़्वीर की ख़ैर हो
रिहा हो गया हूँ क़ज़ा के बग़ैर
तेरी बेवफ़ाई प कबतक जियूँ
कभी इश्क़ कर ले दग़ा के बग़ैर
अजब रस्म-ए-दुनिया है क़ाबिज़ यहाँ
न कुछ भी मिले इल्तिजा के बग़ैर
अना से छुटा तो ख़याल आया है
मैं कुछ भी नहीं हूँ ख़ुदा के…
Added by Zaif on December 24, 2022 at 2:48pm — 5 Comments
उषा अवस्थी
यह कोरा उपदेश नहीं
कोई झूठा संदेश नहीं
सत्य ही आधार है
न स्त्री, न पुरुष
एक निराकार है
मौत हमारा क्या बिगाड़ेगी?
हम उससे डरें क्यों?
भूत हो, वर्तमान हो,भविष्य हो
हम काल के महाकाल हैं
सदा चैतन्य; नहीं इन्द्रजाल हैं
आत्मा कहाँ मरती है?
अतः इस जगत की
वैतरणी के पार
सच्चिदानन्द में समाओ
शोक से परे हो जाओ
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on December 24, 2022 at 11:14am — No Comments
डूबते को जैसे तिनके का, सहारा काफी होता है
हर निराश चेहरे का, उम्मीद हीं साथी होता है
अंधेरी गुफा में जब कोई राही, अपनी राह बनाता है
आँखों से कुछ दिख ना पाए, उम्मीद पर बढ़ता जाता है
जब कोई अपना संगी-साथी, अपनों से बिछड़ जाए
और दूर तक उसके पग के, निशां ना हमको मिल पाए
तब भी ये उम्मीद हीं है, जो हमको बांधे रखती है
मिल जाएगा हमदम…
ContinueAdded by AMAN SINHA on December 19, 2022 at 3:05pm — 1 Comment
यह रचना "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-146
हेतु सृजित है किंतु गलती से यहाँ पोस्ट कर दी गयी है, लेखक द्वारा अब महोत्सव में रचना पोस्ट करने के फलस्वरूप यहाँ से रचना एडमिन स्तर से हटा दी गयी है ।
Added by Saurabh Pandey on December 18, 2022 at 5:00pm — 2 Comments
उषा अवस्थी
जहाँ अपना कुछ नहीं
सब पराया है
न जाने कौन सा
आकर्षण समाया है?
चारों ओर मारा-मारी है
धन-दौलत की खुमारी है
प्रतिस्पर्धा तारी है
अहंकार पर सवारी है
प्रति पल बदलाव है
न ही ठहराव है
इच्छित वस्तु प्राप्त हो जाए
फिर आगे क्या?
सब यहीं छोड़ जाना है
पाँच तत्वों का ताना-बाना है
कहीं स्थिरता नहीं
केवल आना है,जाना है
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on December 16, 2022 at 10:46am — 1 Comment
1222 1222 122
बड़ी दिल-जू रही सूरत हमारी
उदासी खा गई सूरत हमारी
ग़मों को एक चहरा चाहिए था
उन्हें भी भा गई सूरत हमारी
सभी हैरान होकर देखते हैं
लगे सबको नई सूरत हमारी
न जाने कौन शब भर ख़्वाब में था
किसे अच्छी लगी सूरत हमारी
हमारे लब भले चुप हो गये 'ब्रज'
कहे हर अनकही सूरत हमारी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 15, 2022 at 6:30pm — 18 Comments
भावों के सागर को जब-जब
अमृत घट बंधन में बाँधा-
क्षणभंगुर सा स्वप्न सजीला, छन से टूटा...बिखर गया
तड़प-तड़प प्राणों ने ढूँढा, लेकिन जाने किधर गया ?
भीतर-भीतर अंतःमन में जन्मे जाने कितने सपने,
लिए रवानी एहसासों की लगे सदा जो बिल्कुल अपने,
मदहोशी में खोया-खोया अपने ही सपनों में जीता,
अपने ही मद में डूबा मन अपनी ही मदिरा को पीता,
घट फूटा तंद्रा भी टूटी,
घट की हर आकृति भी झूठी-
सुध-बुध छलता मनहर हर घट, रीता देखा...…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 14, 2022 at 11:55pm — 3 Comments
हम मिलें या ना मिलेंं, चाहे फूल ना खिलें
लेकिन इन हवाओं में, हमारा वजूद होना चाहिए
हम चलें जिस राह में, मंज़िलों की चाह में
गर मिल सके ना कारवाँ से
राहपर अपने मगर, निशान होने चाहिए …
ContinueAdded by AMAN SINHA on December 12, 2022 at 2:00pm — 1 Comment
वज़्न -1222 1222 1222 1222
ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड
मुक़ाबिल तुमको पाकर हो गई कितनी गुलाबी ठंड
तुम्हारी याद की इक गुनगुनी सी धूप के दम पर
सुखाए कितने ग़म हमने बिताई कितनी भारी ठंड
अलावों की न थी कोई कमी उसको मगर फिर भी
ज़मीं ने देखकर सूरज को ही अपनी गुज़ारी ठंड
तुम्हारे प्यार के धागों की मैंने शॉल जब ओढ़ी
लगी है तब मुझे सारे हसीं मौसम से प्यारी ठंड
मैं अक्सर सोचती हूंँ काश फिर…
ContinueAdded by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 11, 2022 at 9:41pm — 11 Comments
2122 1212 22
फ़स्ल-ए-गुल है समाँ है मस्ताना
आज फिर दिल हुआ है दीवाना
यूँ तो हर आँख में नशा लेकिन
उनकी आँखों में पूरा मयखाना
जबसे आये हैं उनको महफ़िल में
भूल बैठे…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on December 11, 2022 at 9:30pm — 2 Comments
उषा अवस्थी
लोक कथाएँ "कुछ" कहती हैं
भाव भरे, विभिन्न रस सिंचित
वह जीवन को गहती हैं
जुड़े रहें सम्बन्ध आपसी
प्रेम प्रगाढ़ विरचती हैं
परिवारों के रिश्ते-नाते
नेह- स्वरों से भरती हैं
प्रीति- पगे सुन्दर वचनो से
हो उत्फुल्ल गमकती हैं
सामाजिक समरसता के
शुभ ताने-बाने बुनती हैं
लोक -कथाएँ "कुछ" कहती हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 10, 2022 at 7:17pm — 2 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |