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बुझते नहीं अलाव. . . . (दोहा गज़ल )

बुझते नहीं अलाव .....(दोहा गज़ल )

मौन  प्रीत  के  हो गए, अंकित मन में  भाव ।

इन  भावों  के उम्र भर, बुझते नहीं  अलाव ।।

साँसों को मिलती नहीं, जब तक प्रीत की साँस,

रिसते   रहते  ह्रदय  में, मौन  प्रीत   के   घाव ।

आँखों   को   देती  रहीं , आँखें  ये  संदेश ,

दूर किनारा है बहुत , कागज की है नाव ।

अजब अगन है प्रीत की, अजब प्रीत की रीत ,

नैन  कोर  से  याद   के , होते   रहते   स्राव ।

ठहर गया है वक्त भी…

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Added by Sushil Sarna on May 11, 2022 at 11:30am — 10 Comments

अहसास की ग़ज़ल::; मनोज अहसास

2122    2122     2122     212

है तेरे दम से ही रौशन मेरे जीवन की बहार।

तू नहीं तो ज़िन्दगी में मिल नहीं सकता करार।

पास तेरे रहने का हासिल नहीं है वक़्त पर ,

मेरी साँसों में बसा है तेरी साँसों का खुमार।

ज़िन्दगी की उलझनों से तंग आ जाता हूँ जब,

याद आ जाता है मुझको तब तेरी बाहों का हार।

हर घड़ी तेरी कमी महसूस होती है यहाँ,

ये पराया शहर मुझको तोड़ता है बार बार।

फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था,

है सफर इक रात का…

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Added by मनोज अहसास on May 10, 2022 at 10:30pm — 3 Comments

दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक.....

अपने कृत्यों  से  कभी, देना  मत  संताप ।
माँ के चरणों में कटें, जन्म- जन्म के पाप ।
फर्ज निभाना दूध का , हरना हर तकलीफ -
बेटे को  आशीष  से, माँ  के  मिले  प्रताप ।
                     * * * *
भूले से करना नहीं, माता का  अपमान ।
देना उसके  त्याग  को, सेवा से सम्मान ।
मूरत है ये ईश की, ये  करुणा  की  धार -
माँ के चरणों में सदा, सुखी रहे सन्तान ।

सुशील सरना / 10-5-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on May 10, 2022 at 8:12pm — 5 Comments

ग़ज़ल (इबादतों में अक़ीदत की सर-कशी न मिला)

1212 - 1122 - 1212 - 112

इबादतों में अक़ीदत की सर-कशी न मिला  

महब्बतों में मेरे यार दुश्मनी न मिला

हवाओं में न कहीं अब ये ज़ह्र घुल जाए 

फ़ज़ा को साफ़ ही रहने दे शोरिशी न मिला 

कहीं नहीं है कोई ग़ैर दूर-दूर तलक

मगर क़रीब भी मुझको मेरा कोई न मिला 

सिहर उठा हूँ किया याद वक़्त वो जब जब

चिता को आग लगाने को आदमी न मिला 

मिले हैं यूँ तो हज़ारों हसीं ज़माने में

जिसे तलाशता रहता हूँ बस वही…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 10, 2022 at 1:57pm — 10 Comments

बरगद गोद ले लिया

ज़मीन पर पड़ा  अवशेष

बरगद का मूल आधार शेष

 

सोचता है आज

कल तक था बरगद विशाल

बरगदी सोच,बरगदी ख्याल

बरगदी मित्र ,मन भी बरगदी

सहयोगी प्रतिद्वंदी बरगदी बरगदी

 

गर्वित निज का उत्कर्ष रहा

शेष की लघुता पर हर्ष रहा

निज तक की जड़ को नहीं ताका

गैर की छांह को कभी  न  लांघा

झुकना न सीखा सूखना न जाना

मनना न सीखा रूठना न जाना

आंधी को थकाया

मेघों को रुलाया

जलते सूरज को छतरी…

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Added by amita tiwari on May 9, 2022 at 9:00pm — 11 Comments

अद्भुत गुणों की खान... माँ

माँ सिर्फ जननी ही नही पालनहार भी होती हैं। संतान के जीवन को परिपूर्णता देने वाला माँ जीवन का संबल साया होता हैं। बच्चों के संघर्ष में कदम-दर-कदम साथ निभाती माँ का भरोसा आत्मविश्वास को कभी कम नही होने देती। अपने बच्चों के इर्द-गिर्द सपने बुनती माँ का स्पर्श तसल्ली देता हैं उसके कहे शब्द ,सीखे संकटमोचक बनकर हिम्मत देते हैं,ढांढस बँधाते हैं। प्यार-दुलार की बारिश करने वाली माँ भावनाओं का ऐसा अथाह सागर हैं माँ शब्द में पूरा संसार समाया हैं।अपने पूरे जीवन को समर्पित करने वाली माँ के त्याग अनमोल…

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Added by babitagupta on May 8, 2022 at 9:10am — 2 Comments

मनोरम छंद में मुक्तक ....

मुक्तक

आधार छंद - मनोरम



प्यार का इजहार लेकर ।

   आस का  अंबार लेकर ।

       दे  रहा  आवाज  कोई -

          श्वास का  शृंगार  लेकर ।

           ***

प्रीत  का  संसार  देकर ।

   मौन का  आधार  देकर ।  

       छल गया  विश्वास कोई -

           स्पर्श का अंगार देकर ।

           ***

ख्वाब जो साकार  होते ।

    दर्द  क्यों  गुलज़ार होते ।

        तिश्नगी  को  जीत  लेते -

            आप का हम प्यार होते ।

सुशील…

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Added by Sushil Sarna on May 6, 2022 at 2:18pm — 4 Comments

पश्चाताप

तोड़े थे यकीन मैंने मुहल्ले की हर गली में

चैन हम कैसे पाते इतनी आहें लेकर

मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है

ठोकरे हीं हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर

हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया

ज़मी थी सख्त मैं मगर बस धंसता हीं गया

गुनाह जो मैंने किये थे बे-खयाली में

याद करके उन सबको मैं बस गिनता…

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Added by AMAN SINHA on May 6, 2022 at 12:54pm — 1 Comment

मातृ दिवस पर गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

होता न माँ का तुझ पे जो अहसान आदमी

मिलते न राम -श्याम से भगवान आदमी।१।

*

चरणों में माँ के तीर्थ हैं दुनिया जहान के

समझा नहीं है आज भी यह ज्ञान आदमी।२।

*

माता बसी हो मन में तो शौतान मारकर

नारी का जग में करता है सम्मान आदमी।३।

*

गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ

मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी।४।

*

पढ़ने को माँ के रूप में केवल किताब इक

लिखने को लिख ले लाख तू दीवान आदमी।५।

*

चाहे पिता के नाम का सिर पर है ताज…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2022 at 12:31pm — 10 Comments

ग़ज़ल-अपना है कहाँ

2122 2122 2122 212

1

औरों के जैसा मुकद्दर यार अपना है कहाँ

अपने दिल का जोर उसके दिल प चलता है कहाँ

2

रात होती है कहाँ और दिन गुज़रता है कहाँ

मन मुआफ़िक़़ ज़िन्दगी में जीना मरना है कहाँ

3

एक दिन में कुछ नहीं पर एक दिन होगा ज़रूर

आदमी ये सब्र तब तक यार रखता है कहाँ'

4

आज तक कोई नहीं यह जान पाया दोस्तो

इस ज़माने को बनाने वाला रहता है कहाँ

 5

किस तरह भर लूँ उनींदी आँखों में ख़्वाबों के…

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Added by Rachna Bhatia on May 6, 2022 at 10:30am — 8 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक ....

मन में मदिरा पाप की, तन व्यसनों का धाम ।

मानव का चोला करे, मानव को बदनाम ।।

छोड़ो भी अब रूठना, छोड़ो भी तकरार ।

देखे थे जो आपके , स्वप्न करो साकार ।।

लुप्त हुई संवेदना , मिटा खून का प्यार ।

रिश्तों में गुंजित हुई , बंटवारे की रार ।।

दिख जाएगी देख तू , तुझको  अपनी भूल ।

मन के दर्पण से हटा , जमी स्वार्थ की धूल ।।

भेद बढ़ाती प्यार में, बेमतलब की रार ।

खो न दें कहीं रार में, जीवन का…

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Added by Sushil Sarna on May 3, 2022 at 11:58am — 4 Comments

तन-मन के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

तन-मन के दोहे

-------------------

चतुर लालची मन हुआ, भोली देह गँवार

जब तब जैसा मन कहे, होती वह तैयार।१।

*

सहज देह की भूख है, निदिया, रोटी, नीर

जग में पर बदनाम है, मन से अधिक शरीर।२।

*

तन को थोड़ा चाहिए, मन की माग अनंत

कहते मन बस में रखो, इस कारण ही सन्त।३।

*

बढ़े भावना काम की, करें नैन व्यभिचार

केवल साधन देह तो, मन साधक की मार।४।

*

तन से बढ़कर मन रहे, नित्य विषय में लीन

जिस की बातें मानकर, कर्म करे तन हीन।५।

*

विषय मुक्त जो मन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2022 at 1:59pm — 8 Comments

ताकत (लघुकथा )

ताकत .....

"क्या बात है रामदेव जी। आज बहुत  उदास लग रहे हो ।"" दीनानाथ जी ने चाय पीते- पीते पूछा ।

"दीनानाथ जी आजकल किसी को कुछ कहने का जमाना नहीं है ।" रामदेव ने कहा ।

"क्या हुआ कुछ बताओ तो।" दीनानाथ जी बोले ।

"अरे कल रात की ही बात है । आधी रात को सड़क बनाने वाले इंजन की आवाज़ सुनकर हमारी नींद उखड़ गई । बाहर  आकर देखा तो रोड रोलर हमारी गली के कोने की दुकान के सामने की सड़क के छोटे से टुकड़े पर डामरीकरण कर रहे थे ।" रामदेव जी बोले जा रहे थे ।

"फिर…

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Added by Sushil Sarna on April 30, 2022 at 8:49pm — 8 Comments

जी चाहता है

है फूलों सी खुशबू तेरे इस बदन में

जी चाहता है मैं साँसों में भर लूँ

अधूरा रहेगा ये इकरार मेरा

पहलू में अपने जो तुझको ना भर लूँ

हंसी से तेरी खिल जाती है कलियाँ

जगमग सी हो जाती है तेरे आने से दुनिया

है किसने मिलाया नशा इस समा में

कदम लड़खड़ाते है देख कर तेरी गालियां

मैं ज़िंदा हूँ साँसे लिए जा रहा…

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Added by AMAN SINHA on April 30, 2022 at 12:01pm — No Comments

रक्त से भीगा है आगन आज तक भी -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

2122-2122-2122

झूठ का  सन्सार  करना  चाहता है

सत्य पर नित वार करना चाहता है।१।

*

जो न रखता वास्ता अपनो से कोई

अन्य का  आभार  करना चाहता है।२।

*

देह को पतवार करके आदमी अब

हर नदी को  पार  करना चाहता है।३।

*

भाव गुणना आज भी आया नहीं पर

शब्द  का  व्यापार  करना  चाहता है।४।

*

भीड़ से लगने  लगा  अब डर बहुत

डर को भी हथियार करना चाहता है।५।

*

तोड़ देता था कभी दिखते ही उसको

अब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2022 at 11:00am — 9 Comments

आरज़ू

आरज़ू है ये दिल की इस कदर तुझको चाहूँ

आँखों से तुझको छू लूँ प्यास अपनी बुझा लूँ

तमन्ना है यही तुझको बाहों में भर लूँ

ज़रा ही सही प्यार तुझसे मैं कर लूँ

आशिक़ी में तेरी आज खुदको मिटा दूँ

दिल की जो लगी है आज तुझको बता दूँ

कोई कह सके ना ये मैं हूँ के तू है

आज खुदको तुझी में इस कदर मैं मिला…

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Added by AMAN SINHA on April 29, 2022 at 11:28am — No Comments

अहसास की ग़ज़ल::; मनोज अहसास

नज़र में उलझन भरी हुई है, तमाम रस्ते उजड़ गये हैं ।

सँभलना जितना भी हमने चाहा, हम उतने ज्यादा बुरे गिरे हैं।

हमारे जैसा उदास कोई, हमें कहीं भी नहीं मिला पर,

हमारे दुख से बड़े बहुत दुख ज़माने भर में भरे पड़े हैं।

कभी नहीं वो कहेंगे हमसे, के उनके दिल में है प्यार अब भी,

सकार को भी जिया था हमने नकार को भी समझ रहे हैं।

ये ज़िन्दगी की उदास खुशबू ,जो बस गयी है मेरी रगों में,

ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें ग़म भी सजे हुए…

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Added by मनोज अहसास on April 28, 2022 at 5:38pm — 6 Comments

कुछ याद सम्हाले रखा है

कुछ याद सम्हाले रखा है,

हमने दर्द को पाले रक्खा है

हँसते चेहरे के आड़ में हमने,

दिल के छालों को रक्खा है

 

सब कहते है हम हँसते हैं,

हम अपने अंदर ही बसते हैं  

अब सबको हम बतलाएं क्या,

हम तनहाई से कैसे बचते है

 

अब रोना धोना छोड़…

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Added by AMAN SINHA on April 28, 2022 at 11:42am — No Comments

गाँव की धरती (कविता)

गाँव की धरती

गाँव की छवि अति निराली

शहर से छटा उसकी है न्यारी

गगनचुंबी से मुक्त धरा है होती

खुले आकाश सँग बातें ज्यादा है होती ।

सुबह सवेरे गाय बैल जगाते

दुग्ध धोने अपने ग्वाल को पुकारते

रुनझुन करती आती श्यामा

खुश हो जाती घर में दादी माँ

हल लेकर खेतो को निकलते

मेहनतकश पुरुष पसीना बहाते

बरगद नीम की छाँव तले बैठकर

खाते रोटी अचार चटनी प्याज मिलकर

हँसी ठट्ठा औ कोलाहल होता

हर घर से अपनापन है मिलता

सब कोई चाचा…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 27, 2022 at 10:26pm — 8 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : बँटवारा (गणेश जी बाग़ी)

गाँव के एक दबंग व्यक्ति ने दादा जी के भोलेपन का फ़ायदा उठाकर ज़मीन और घर के एक भाग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया था । दादा जी तो अब रहे नही किन्तु तीन दशकों की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद ज़मीन और घर वापस मिले । आपसी सहमति से बँटवारा हुआ । पूरी संपत्ति पिता जी और चाचा जी के बीच बराबर-बराबर बाँट दी गई । दोनों ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना-अपना हिस्सा स्वीकार किया । सहसा पिता जी ने चाचा जी से कहा,

"देख छोटे, ज़मीन और घर का बँटवारा तो हो गया । किन्तु भविष्य में कभी तुझे रहने के लिए घर छोटा पड़े…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 27, 2022 at 8:20pm — 7 Comments

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