दमन कर अपनी खुशियों का,
फर्ज पर अपने डटी रही।
एक बार नहीं दो बार नहीं,
बार बार करती रही।।
समझ ना सके फिर भी मुझे क्यूं,
क्यूं बार बार झकझोर दिया।
फर्ज निभाने का मुझे,
दण्ड ये कैसा मिला?
बहु बनकर जब कभी भी,
सासु मां का साथ दिया।
रूढ़िवादी हो अम्मा की तरह,
बच्चों ने झट से कह दिया।
क्यूं समय के साथ नहीं हो,
आज समय है बदल गया।
फर्ज बहु का निभाने का,
दण्ड ये कैसा मिला?
माँ बनकर जब कभी भी,
अपने बच्चों का साथ दिया।
सर पर…
Added by Neeta Tayal on September 2, 2020 at 1:48pm — 5 Comments
221 2121 1221 212
ये तितलियाँ ये फूल भी सकते में आ गये
जब पेड़ चल के ख़ुद ही बगीचेे मेंं आ गए
कल तक मिरे अज़ीज़ अंँधेरों में क़ैद थे
आंँखें रगड़ - रगड़ के उजाले में आ गये
नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये
मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये
कह कर गए थे है ये मुलाक़ात आख़िरी
जैसे ही आँख झपकी वो सपने में आ…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on August 31, 2020 at 10:00pm — 14 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 31, 2020 at 7:00pm — 6 Comments
सृष्टि का चलन
चाँद चमकता
सूर्य की ही रोशनी से
हर दिन,
एक दिन क्यों आ जाता
सूर्य और पृथ्वी के बीच,
लगाता सूर्य को ग्रहण
बहुत पास जाकर
रोकता उसका प्रकाश,
बना देता है उसे
अपने ही जैसा,
यह प्यार है चाँद का
या जलन,
नहीं नहीं....
चन्द्र किरणों की तो
शीतल है छुअन
यह तो है बस
रचयिता की लीला
और सृष्टि का चलन !…
Added by Dr Vandana Misra on August 31, 2020 at 4:12pm — 4 Comments
कपड़ा-लत्ता बाँधि कै
जावैं अपने देस
कितने दिनन बिता गए
तबहुँ लगै परदेस
पहुचैं अपने द्वार-घर
लक्ष्य यही बस एक
जा खेती - बाड़ी करैं
आलस करैं न नेक
धूप - ताप मा बिन रुके
चले जाँय सब गाँव
सोचत जात , थमें नहीं
मिले जो चाहे छाँव
नदियन नाला केर सब
कचरा देब हटाय
लहर-लहर बहियैं सबै
धरती पियै अघाय
बबुआ से कहिबै चलौ
गइया लेइ खरीद
दूध, दही , मट्ठा…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 30, 2020 at 11:27pm — 2 Comments
दोहा त्रयी : गरीबी
दृगजल से रहते भरे, निर्धन के दो नैन।
दर्द सुनाए लोरियाँ, भूखी बीते रैन।।
बिखरे बाल गरीब के, आँसू शोभित गाल।
उदर क्षुधा जीवित रहे, बन कर सदा सवाल।।
आँसू गिरा गरीब का, कोई न समझा दर्द।
संग श्वास लिपटी रही, सदा भूख की गर्द।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 30, 2020 at 6:23pm — 2 Comments
122 122 122 12
नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे
मज़ा ले रहा है सता कर मुझे
अगर मेरे अंदर समाया है तू
कभी आइने में दिखा कर मुझे
हमेशा मिला है तू रोते हुए
मिला कर कभी मुस्कुरा कर मुझे
सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ
सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे
है डर कुर्सियों के नगर में यही
न वो बैठ जाए उठा कर मुझे
धड़कता हूँ मैं शोर करता नहीं
मैं दिल हूँ तेरा ही सुना कर…
Added by सालिक गणवीर on August 30, 2020 at 5:30pm — 9 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 30, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
122 122 122 12
हवाओं के' झोंके मचलने लगे,
अदाओं के' आंचल सरकने लगे।1
दबे दिल के' कोने में ' जो थे कभी
परत दर परत राज खुलने लगे।2
बसाए फिरे जो जिगर में कभी
हकीकत बताने से बचने लगे।3
कहा था कभी, हम न होंगे जुदा,
मिले ही कहां,अब वो ' कहने लगे।4
नज़ाकत भरे थे जो लमहे कभी,
शरारत जदा आज डंसने लगे।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
@
Added by Manan Kumar singh on August 29, 2020 at 4:36pm — 4 Comments
( 1222 1222 1222 1222 )
मुहब्बत की ज़मीँ देकर यक़ीं का आसमाँ दे दो
रहोगे सिर्फ़ मेरे तुम मुझे बस यह ज़बाँ दे दो
न रक्खो चीज़ कोई तुम तअल्लुक़ जिसका ग़म से है
तुम्हारी सिसकियाँ आहें कराहें और फुगाँ दे दो
परख लें एक दूजे को किसी कोने में रह लूंगा
मुझे कुछ दिन किराये पर सनम दिल का मकाँ दे दो
मुहब्बत में नफ़'अ-नुक़्सान की परवाह किसको है
चलो रक्खो तुम्हीं सब फ़ायदा मुझको ज़ियाँ दे दो
मेरे जज़्बात की कुछ क़द्र करना सीख लो हमदम
मेरी परवाज़-ए-उल्फ़त को खुला तुम…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 28, 2020 at 5:30pm — 7 Comments
दृश्य देखकर वृद्धाश्रम का,
रूह मेरी सिहर उठी।
क्यूं उन निर्दयी औलाद ने,
फ़र्ज़ का गला घोंट दिया।।
लाड़ प्यार से पाला जिनको,
बच्चों पर सर्वस्व लूटा दिया।
क्यों ऐसी ममता के साए को
निर्दयी औलाद ने भुला दिया।।
क्यूं कदम नहीं लड़खड़ाए उसके,
जब ऐसा उसने कृत्य किया।
क्यूं भूल गया वो उनका एहसान,
जिसने उसको अपना नाम दिया।।
आँख के तारे को बूढ़ी आँखों का ,
क्यूं दर्द दिखाई नहीं दिया।
फर्ज निभाने के समय
क्यूं फ़र्ज़ से पल्ला झाड़…
Added by Neeta Tayal on August 28, 2020 at 8:31am — 3 Comments
छंद - मंदाक्रान्ता
(मातारा भानस नसल ताराज ताराज गागा = 17 वर्ण)यति =4,10,17
मेेले में ओ सहियर चलो आज जाए गुमेंगे,
आया है ये दिन लहरका मोज मस्ती करेंगे,
मेले की है रमझट बड़ी आ टहेले वहाँ पे,
खोजे मेरा प्रियतम मुझे ओ सखीरी चलो रे|
भागी भागी गुपचुप सखी मैं, बात कोई न जाने,
पानी का लें घट झपट से, लौटना जल्द माने,
मैंने लाई यह तुज लिए हा नयी ओढनी रे,
देखो कैसी तुम पर झझती ओढ ले ओढनी रे|
देखें मेला सहियर चलो ना रहे…
ContinueAdded by Mukulkumar Limbad on August 27, 2020 at 8:30pm — 3 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
फेंका जो होता आप ने पत्थर सधा हुआ
दिखता जरूर भेड़िया घायल गिरा हुआ।१।
**
हर बार अपनी चाल जो होती नहीं सफल
है दुश्मनों से आज भी कोई मिला हुआ।२।
**
स्वाधीन हो के भी कहाँ स्वाधीन हम हुए
फिरता न यूँ ही हाथ ले फदली कटा हुआ।३।
**
रोटी मिली न मुझको न तुझको खुशी मिली
ऐसी गजल से बोल तो किस का भला हुआ।४।
**
कल तक जो हँसता खेल के चिंगारियों से था
रोता है आज देख के निज घर जला हुआ।५।
**
मैं जुगनुओं को मुँह…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2020 at 7:17pm — 4 Comments
(12122)×4
ये ज़िंदगी का हसीन लमहा
गुजर गया फिर तो क्या करोगी
जो जिंदगी के इधर खड़ा है
उधर गया फिर तो क्या करोगी
तुम्हें सँवरने का हक दिया है
वो कोई पत्थर का तो नहीं है
लगाये फिरती हो जिसको ठोकर
बिखर गया फिर तो क्या करोगी
कि जिनकी शाखों पे तो गुमां है
मगर उन्हीं की जड़ों से नफरत
"वो आँधियों में उखड़ जड़ों से"
शज़र गया फिर तो क्या करोगी
जिसे अनायास कोसती हो
छिपाए बैठा है पीर…
ContinueAdded by आशीष यादव on August 25, 2020 at 2:30am — 6 Comments
छंद - तोटक
(सलगा सलगा सलगा सलगा = 12 वर्ण)
नभ बादल बादल आज यहाँ,
चमकार करे सुन वीज यहाँ,
नभ काजल काजल मेश हुआ,
दिलका दव ठार तु यही दुआ|
मृग-बादल आज महेर दया,
दिलसे बरसो अब छोड़ हया,
गजराज जरा गरजे नभमें,
वनराज फिरे फिरसे वनमें|
टपके जलबुंद हजार कहीं,
झमकार सुनो जलधार यही,
जल-चुंबन अंबर से बरसे,
पल ये पल को धरती तरसे|
मधु सोडम जो प्रसरी भुवने,
तन वो मन हाश भरे सुखमें,…
Added by Mukulkumar Limbad on August 24, 2020 at 11:30pm — 5 Comments
मेरा सीमित प्यार तुम्हे आयाम चाहिए
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 24, 2020 at 2:55pm — 4 Comments
अपनी माटी गांव छोड़,हम
माया नगरी आए थे..
अम्मा बाबू और बच्चों के
सपने संग में लाए थे।
हाँफ रहे बेजान शहर मे
जीवन हमने डाला था..
अपने श्रम सीकर से इसको
हरा भरा कर डाला था।
टैम्पो रिक्शा खींचा हमने
उद्योगों के पहिये घुमाए थे
रहे सदा झोपड़ी मे हम
पर कितने महल बनाए थे।
समय का पहिया ऐसे घूमा
सारे पहिए जाम हुए...
तुम अपने थे,फिर यों कैसे
निष्ठुर बन अनजान हुए।
एक बार तो कहते हमसे
रूको यहाँ मत जाओ…
Added by Sheela Sharma on August 24, 2020 at 10:00am — 3 Comments
पन्द्रह अगस्त फिर आया है
हमको यह याद दिलाने को,
स्वतंत्रता की खुशी मनाएं
पर ना भूलें बलिदानों को।
ये धरती, येअम्बर अब भी
साक्षी है उन दीवानों की,
सर्वस्व लुटाकर अमर हुए
आजादी के परवानों की।
ना सहन कर सके जो थे
भारत माता का बन्धन,
निज शीश चढ़ा आहुति में
करते थे राष्ट्र यज्ञ, वन्दन।
हम भूलें नहीं कभी भी
आजादी का वह नारा,
हम मिटें भले, लेकिन यह
लहराए तिरंगा प्यारा।
हम बंटे नहीं टुकड़ों में
यह शपथ हमें लेना है,
उन वीरों की यह…
Added by Sheela Sharma on August 24, 2020 at 9:30am — 2 Comments
खालीपन का भारीपन
नहीं मालूम, नहीं मालूम मुझको
मेरा यह अनुभव केवल मेरा ही है
या है यह हर किसी का
कहीं कुछ खो देने की पीड़ा से निवर्त होने का
अनवरत प्रारम्भिक प्रयास…
ContinueAdded by vijay nikore on August 24, 2020 at 7:30am — 4 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
1.
बहुत कुछ कह जाती हैं
कुछ
कहने से पहले
ये
ख़ामोश सी आँखें
............................
2.
गुंजित कर गईं
कितनी ही चुप सी दस्तकें
एक
जुगनू सी याद
.................................
3.
कब टूटा है
आसमान से चाँद
टूटते तो
तारे हैं
अतृप्त अभिलाषाओं के
आसमान से
दिल के
..............................
4.
करती रही बातें
बिस्तर पर
सोये सपनों से…
Added by Sushil Sarna on August 23, 2020 at 9:50pm — 6 Comments
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