बह्र : १२२ १२२ १२२ १२
बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम
सुनो, इस क़दर भी न टूटेंगे हम
किये जा रे पूँजी सितम दर सितम
इन्हें शाइरी में करूँगा रक़म
जो रखते सदा मुफ़्लिसी की दवा
दिलों में न उनके ज़रा भी रहम
ज़रा सा तो मज़्लूम का पेट है
जो थोड़ा भी दोगे तो कर लेगा श्रम
जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है
सभी देवताओं को रहता है भ्रम
मुआ अपनी मर्ज़ी का मालिक बना
न अब मेरे बस में है…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 27, 2016 at 11:30am — 8 Comments
नफरत न करना ..
प्यार
कितनी पावन
अनुभूति है
ये
पात्रानुसार
स्वयं को
हर रिश्ते
के चरित्र में
अपनी पावनता के साथ
ढाल लेता है
ये
आदि है
अनंत है
ये जीवन का
पावन बसंत है
प्यार
तर्क वितरक से
परे है
प्यार तो
हर किसी से
बेख़ौफ़
किया जा सकता है
मगर
नफ़रत !
ये प्यार सी
पावन नहीं होती
ये वो अगन है
जो ख़ुद…
Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 8:30pm — 4 Comments
Added by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 5:02pm — 8 Comments
उपहार.....
मौसम बदलेगा
तो
कुछ तो नया होगा
गुलों के झुरमट में
मैं तुम्हें
छुप छुप के
निहारता होऊंगा
तुम भी होगी
कहीं
प्रकृति के शृंगार की
अप्रतिम नयी कोपल में
छिपी यौवन की
नयी आभा सी
क्या
दृष्टिभाव की
ये अनुभूति
बदले मौसम का
उपहार न होगी
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 1:21pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 26, 2016 at 10:30am — 4 Comments
1212 1122 1212 22
जो हिकमतों से मुक़द्दर तराश लेते हैं
पड़े जो वक़्त वो मंज़र तराश लेते हैं
वो मुझसे पूछने आये हैं मानी हँसने का
सुकूँ के पल से जो महशर तराश लेते हैं
उन्हे यक़ीन है वो आँधियाँ बना लेंगे
हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं
अगर मिले उन्हे रस्ते में भी पड़ा पत्थर
तो उसके वास्ते वो सर तराश लेते हैं
उन्हे है जीत का ऐसा नशा कि लड़ने को
हमेशा ख़ुद से वो कमतर तराश लेते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 26, 2016 at 9:21am — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 25, 2016 at 8:33pm — 6 Comments
वागीश्वरी सवैया (122×7 + 12)
दया का महामन्त्र धारो मनों में,दया से सभी को लुभाते चलो।
न हो भेद दुर्भाव कैसा किसी से,सभी को गले से लगाते चलो।
दयाभूषणों से सभी प्राणियों के,मनों को सदा ही सजाते चलो।
दुखाओ मनों को न थोड़ा किसी का,दया की सुधा को बहाते चलो।
कलाधर छंद (गुरु लघु की 15 आवृति के बाद गुरु)
मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग, पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।
ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य, ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 25, 2016 at 6:30pm — 9 Comments
Added by Arpana Sharma on October 25, 2016 at 3:59pm — 4 Comments
कल का जंगल ...
खामोश चेहरा
जाने
कितने तूफ़ानों की
हलचल
अपने ज़हन में समेटे है
दिल के निहां खाने में
आज भी
एक अजब सा
कोलाहल है
एक अरसा हो गया
इस सभ्य मानव को
जंगल छोड़े
फिर भी
उसके मन की
गहन कंदराओं में
एक जंगल
आज भी जीवित है
जीवन जीता है
मगर
कल ,आज और कल के
टुकड़ों में
एक बिखरी
इंसानी फितरत के साथ
मूक जंगल का
वहशीपन…
Added by Sushil Sarna on October 25, 2016 at 3:04pm — 8 Comments
वागीश्वरी सवैया [सूत्र- 122×7+12 ; यगण x7+लगा]
करो नित्य ही कृत्य अच्छे जहां में सखे! बोल मीठे सभी से कहो।।
दिलों से दिलों का करो मेल ऐसा, न हो भेद कोई न दुर्भाव हो।।
बनो जिंदगी में उजाला सभी की, सभी सौख्य पाएं उदासी न हो।।
रखो मान-सम्मान माँ भारती का, सदा राष्ट्र की भावना में बहो।।
मत्तगयन्द सवैया [सूत्र-211×7+22 ; भगणx7+गागा]
यौवन ज्यों मकरन्द भरा घट, और सुवासित कंचन काया।
भौंह कमान कटार बने दृग, केश घने सम…
Added by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:30pm — 25 Comments
अम्मा आयी है......
नाती नातिन से मिलने को अम्मा आयी है|
बड़े दिनों के बाद मेरे घर अम्मा आयी है||
बच्चों से छुप छुप कर सुरती पान चबाती है|
पान का डिब्बा और तम्बाखू अम्मा लायी है||
मेरे घर का पानी भी मुश्किल से पीती है|
एक कनस्तर लड्डू मट्ठी अम्मा लायी है||
दिखे जमाई घर के अन्दर झट छुप जाती है|
शर्मो हया का संग पिटारा अम्मा लायी है||
इस दुनिया की है या फिर उस दुनिया की है|
भर कर देसी…
Added by Abha saxena Doonwi on October 24, 2016 at 10:49am — 13 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 24, 2016 at 9:30am — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2016 at 1:00am — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 24, 2016 at 12:00am — 10 Comments
2 2 2 2 2 2 2
-.-
पन्नो में घुल जाती हूँ
स्याही सी बह जाती हूँ
.
नाता बस मन से मेरा
भावो को कह जाती हूँ
.
जानूँ न* मैं छंद पिरोना
मन की तह बताती हूँ
.
न सुर है न लय सलीका
पाबन्दी तज जाती हूँ
.
खिलती भी हूँ सावन सी
पतझड़ सी झड़ जाती हूँ
.
सजा कर खुद को फिर से
पन्नो पर सज जाती हूँ
-.-
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on October 23, 2016 at 9:02pm — 13 Comments
वह एक दहशतगर्द इलाका था ।जहाँ खण्डरनुमा मकानों में रहने को विवश थी सहमी हुयी इंसानियत ।ऐसे ही एक मकान में-
"माँ! क्या अब मैं कभी स्कूल नहीं जा सकूंगी?"माँ की गोद में सिर रखे माहिरा ने पूछा।
"पता नहीं मेरी बच्ची।"जबाब ,उम्मीद और ना उम्मीदी के बीच झूलता सा था।
"क्या लड़कियों का पढ़ना-लिखना गुनाह हैं?"
"नहीं मेरी जान!ये किसने कह दिया ?लड़कियों को पढ़ने-लिखने की इज़ाजत तो खुद ख़ुदा ने दी है।"
"अच्छा!तो फिर उन लोगों ने उस लड़की को स्कूल जाने पर क्यों गोली मार दी?क्या…
ContinueAdded by Rahila on October 23, 2016 at 3:00pm — 6 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
मेरी बगिया खिल उठी मौसम निराला हो गया
आ गई बेटी मेरे घर में उजाला हो गया
दीप खुशियों के जले शुभ शंख मानो बज उठे
देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया
लहलहाई यूँ फसल खेतों की मेरी देखिये
सोने चाँदी से मढ़ा इक इक निवाला हो गया
बिन सुरा सागर के जैसे खाली था मेरा वजूद
आते ही उसके लबालब ये पियाला हो गया
पढ़ते पढ़ते रात दिन आँखें मेरी थकती नहीं
उसका चेह्रा खूबसूरत इक…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 23, 2016 at 12:55pm — 20 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 23, 2016 at 12:48pm — 10 Comments
नेहा सुबह से उदास थी। शादी के पाँच साल होने को आए थे, पर उसकी गोद अब तक सूनी थी। उसकी और उसके पति की मेडीकल जाँच हो चुकी थी। सब ठीक था। फिर भी बात बन नहीं रही थी। बस सास इसी बात को लेकर अपने बेटे पर लगातार दबाव डाल रही थी कि वह उसे तलाक क्यों नहीं दे देता।
माँ की बातों में आकर आज सुबह ही अभिषेक तलाक के कागजात बनवाने वकील के पास चला गया था। भविष्य की चिंता को लेकर नेहा की आँखों में आँसू छलक आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसे लग रहा था कि हो सकता है अभिषेक का गुस्सा ठंडा…
ContinueAdded by विनोद खनगवाल on October 23, 2016 at 10:37am — 7 Comments
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