For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,126)

न अब मेरे बस में है मेरा क़लम (ग़ज़ल)

बह्र : १२२ १२२ १२२ १२

 

बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम

सुनो, इस क़दर भी न टूटेंगे हम

 

किये जा रे पूँजी सितम दर सितम

इन्हें शाइरी में करूँगा रक़म

 

जो रखते सदा मुफ़्लिसी की दवा

दिलों में न उनके ज़रा भी रहम

 

ज़रा सा तो मज़्लूम का पेट है

जो थोड़ा भी दोगे तो कर लेगा श्रम

 

जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है

सभी देवताओं को रहता है भ्रम

 

मुआ अपनी मर्ज़ी का मालिक बना

न अब मेरे बस में है…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 27, 2016 at 11:30am — 8 Comments

नफरत न करना ..

नफरत न करना ..

प्यार

कितनी पावन

अनुभूति है

ये

पात्रानुसार

स्वयं को

हर रिश्ते

के चरित्र में

अपनी पावनता के साथ

ढाल लेता है

ये

आदि है

अनंत है

ये जीवन का

पावन बसंत है

प्यार

तर्क वितरक से

परे है

प्यार तो

हर किसी से

बेख़ौफ़

किया जा सकता है

मगर

नफ़रत !

ये प्यार सी

पावन नहीं होती

ये वो अगन है

जो ख़ुद…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 8:30pm — 4 Comments

अर्पणा शर्मा : "गोलगप्पा"/हास्य कविता

रसना लपलपाये देख गोलगप्पा,

चलो हो जाये कुछ धौल धप्पा,

धनिया, पुदिना, कैरी की चटनी,

और जोरदार इमली का खट्टा,

है मिलाया इसमें गुड़ का मीठा,

हींग और जीरे का लगाया है तड़का,

हरदिल अजीज, लाजवाब शै है

ये गोलगप्पा ,

भरे बाजार,लिये दोना सबरे खड़े,

ना होता कोई हक्का-बक्का,

मुँह में घुलाया, फिर जीभ से,

दिया अंदर धक्का,

गले में यह जा अटका,

साँस आधी ऊपर आधी नीचे,

बड़ी मुश्किल से गटका,

पर तब भी मन न माना,

जल्दी से एक और… Continue

Added by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 5:02pm — 8 Comments

उपहार.....

उपहार.....

मौसम बदलेगा
तो
कुछ तो नया होगा

गुलों के झुरमट में
मैं तुम्हें
छुप छुप के
निहारता होऊंगा

तुम भी होगी
कहीं
प्रकृति के शृंगार की
अप्रतिम नयी कोपल में
छिपी यौवन की
नयी आभा सी

क्या
दृष्टिभाव की
ये अनुभूति
बदले मौसम का
उपहार न होगी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 1:21pm — 8 Comments

एक ग़ज़ल-सतविन्द्र कुमार राणा

2122 2122 212
क्यों रहा गुस्ताखियों पे तू अड़ा
इसलिए ही गाल पर झापड़ पड़ा।

बैठ जा खाली पड़ी हैं कुर्सियाँ
तू रहेगा कब तलक यूँ ही खड़ा।

बेसुरी आवाज तेरी हो गयी
इसलिए ही तो तुझे अंडा पड़ा।

देख जिसके हाथ में अंडा नहीं
पास उसके है टमाटर इक सड़ा।

शाइरी को छोड़ के कुछ और कर
देख ले के फैसला ये तू कड़ा।

आब ‘राणा’ को मिला पूरा नहीं
देख खाली ही पड़ा उसका घड़ा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 26, 2016 at 10:30am — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं ( गिरिराज भंडारी )

1212   1122   1212   22

जो हिकमतों से मुक़द्दर तराश लेते हैं

पड़े जो वक़्त वो मंज़र तराश लेते हैं

 

वो मुझसे पूछने आये हैं मानी हँसने का

सुकूँ के पल से जो महशर तराश लेते हैं 

 

उन्हे यक़ीन है वो आँधियाँ बना लेंगे

हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं 

 

अगर मिले उन्हे रस्ते में भी पड़ा पत्थर

तो उसके वास्ते वो सर तराश लेते हैं

 

उन्हे है जीत का ऐसा नशा कि लड़ने को

हमेशा ख़ुद से वो कमतर तराश लेते…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on October 26, 2016 at 9:21am — 4 Comments

उम्मीद की किरणें (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"घबराओ नहीं, हम तुम्हारे मन की बात जानते हैं, इसकी परवाह हम भी करते हैं!" उसने बड़ी सावधानी से अपना काम जारी रखते हुए बालक को तसल्ली दी। अनपढ़ की समझदारी की बात पर आश्चर्य करते हुए बालक पुनः झूले पर बैठा अपने मन से बातें करने लगा। सात-आठ माह में विकास के अद्भुत अनुभव पर ख़ुश होता बालक पुनः नियत समय पर सेवारत हो गया। हंसिया और खुरपी हाथ में लिए चपरासी अब कुछ दूर से बालक को निहार रहा था। नीम के पौधे को जलदान करते हुए बालक ख़ुशी हासिल कर रहा था। चपरासी अब साहब और मेम साहब के दफ़्तर से लौटने का… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 25, 2016 at 8:33pm — 6 Comments

वागीश्वरी सवैया और कलाधर छंद

वागीश्वरी सवैया (122×7 + 12)



दया का महामन्त्र धारो मनों में,दया से सभी को लुभाते चलो।

न हो भेद दुर्भाव कैसा किसी से,सभी को गले से लगाते चलो।

दयाभूषणों से सभी प्राणियों के,मनों को सदा ही सजाते चलो।

दुखाओ मनों को न थोड़ा किसी का,दया की सुधा को बहाते चलो।



कलाधर छंद (गुरु लघु की 15 आवृति के बाद गुरु)



मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग, पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।

ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य, ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो…

Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 25, 2016 at 6:30pm — 9 Comments

अर्पणा शर्मा: कविता - "अक्षर"

अक्षर-अक्षर माला जुड़ी,

मिली मानुष मन को वाणी,

अक्षर की रचना बनी,

विश्व में प्रगतिवाहिनी,

लिखें या बोलें , संप्रेषण में,

अक्षर का ना कोई सानी,

दर्द, दर्प, दुख, प्रेम-विरह,

शंका, उल्लास या सनसनी,

अक्षरों में निहित भावों से,

हर मन की थाह जानी,

अक्षर हैं संवदिया,

महत्ता इनकी जिसने गुनी,

वश में कर ली दुनिया उसने,

बोल सच्ची-मधुर वाणी,

अक्षर-अक्षर में छिपी,

सभ्यता के उत्थान की कहानी,

रच लो सृजन का अमर संसार,

बन कर… Continue

Added by Arpana Sharma on October 25, 2016 at 3:59pm — 4 Comments

कल का जंगल ......

कल  का  जंगल  ...

खामोश चेहरा

जाने

कितने तूफ़ानों की

हलचल

अपने ज़हन में समेटे है

दिल के निहां खाने में

आज भी

एक अजब सा

कोलाहल है

एक अरसा हो गया

इस सभ्य मानव को

जंगल छोड़े

फिर भी

उसके मन की

गहन कंदराओं में

एक जंगल

आज भी जीवित है

जीवन जीता है

मगर

कल ,आज और कल के

टुकड़ों में

एक बिखरी

इंसानी फितरत के साथ

मूक जंगल का

वहशीपन…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 25, 2016 at 3:04pm — 8 Comments

सवैये-रामबली गुप्ता

वागीश्वरी सवैया  [सूत्र- 122×7+12 ; यगण x7+लगा]



करो नित्य ही कृत्य अच्छे जहां में सखे! बोल मीठे सभी से कहो।।

दिलों से दिलों का करो मेल ऐसा, न हो भेद कोई न दुर्भाव हो।।

बनो जिंदगी में उजाला सभी की, सभी सौख्य पाएं उदासी न हो।।

रखो मान-सम्मान माँ भारती का, सदा राष्ट्र की भावना में बहो।।





मत्तगयन्द सवैया [सूत्र-211×7+22 ; भगणx7+गागा]



यौवन ज्यों मकरन्द भरा घट, और सुवासित कंचन काया।

भौंह कमान कटार बने दृग, केश घने सम…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:30pm — 25 Comments

अम्मा आयी है

अम्मा आयी है......

नाती नातिन से मिलने को अम्मा आयी है|

बड़े दिनों के बाद मेरे घर अम्मा आयी है||

बच्चों से छुप छुप कर सुरती पान चबाती है|

पान का डिब्बा और तम्बाखू अम्मा लायी है||

मेरे घर का पानी भी मुश्किल से पीती है|

एक कनस्तर लड्डू मट्ठी अम्मा लायी है||

दिखे जमाई घर के अन्दर झट छुप जाती है|

शर्मो हया का संग पिटारा अम्मा लायी है||

इस दुनिया की है या फिर उस दुनिया की है|

भर कर देसी…

Continue

Added by Abha saxena Doonwi on October 24, 2016 at 10:49am — 13 Comments

समस्या बड़ी(गीतिका)हिंदी ग़ज़ल

मापनी-212 212 212 212

आधार छंद-(वाचिक स्त्रंगविणी)

_____________________________

धर्म का नाम ही क्यों समस्या बड़ी।

एक ही फूल से पंखुडी है झड़ी।1

-----

भेद भाषा निराशा बनी देश में,

अब कला बन बला युद्ध को है अड़ी। २

-----

शिष्य बिगड़े ग्रहण ज्ञान करते नही,

छीन गुरु हाथ की अब गई जब छड़ी। ३

-----

लाड़लों से जताते रहें प्यार फिर,

लाड़ली पाँव में बेड़िया क्यों पड़ी। ४

-----

चाँद छत पर नहीं आ रहा रूठकर,

रात गुजरी न आई मिलन… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 24, 2016 at 9:30am — 6 Comments

ग़ज़ल - जाती तेरे मिज़ाज से क्यूँ बेरुख़ी नहीं

221 2121 1221 212

बुझते रहे चिराग गई तीरगी नही ।

फिर भी हवा के रुख से मेरी दुश्मनी नही ।।





आ जाइए हुज़ूर मुहब्बत के वास्ते ।

दैरो हरम में आज कहीं बेबसी नहीं ।।





बहकी अदा के साथ बहुत आशिकी हुई ।

गुजरी तमाम रात मिटी तिश्नगी नहीं ।।





कब से नज़र को फेर के बैठी है वो सनम ।

शायद मेरे नसीब में वो बात ही नहीं ।।





माना कि गैर से है ये वादा भी वस्ल का ।

उल्फ़त की बेखुदी में कहीं रौशनी नही ।।





तेरा… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2016 at 1:00am — 6 Comments

है काँटों भरी प्रीत की ये डगर मन----ग़ज़ल

122 122 122 122



मना तो किया था न जाना उधर मन

चला इश्क़ की राह पर तू मगर मन



सुहाना सफ़र तो महज़ कल्पना है

है काँटों भरी प्रीत की ये डगर मन



निगाहों का तटबंध तो टूटना था

ये बादल तो बरसेंगे अब उम्र भर मन



मिलेंगे वफ़ा हुस्न इक साथ दोनों

ये ख्वाहिश भरम है कभी भी न कर मन



सितम खुद पे कर के किसे कोसता है

पिया तूने खुद चाहतों का ज़हर मन



सिखाया तो था त्याग में बस ख़ुशी है

हुआ ही नहीं बात का कुछ असर… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 24, 2016 at 12:00am — 10 Comments

गीतिका //अलका ललित

2 2 2 2 2 2 2

-.-
पन्नो में घुल जाती हूँ
स्याही सी बह जाती हूँ

.

नाता बस मन से मेरा
भावो को कह जाती हूँ

.

जानूँ न* मैं छंद पिरोना
मन की तह बताती हूँ

.

न सुर है न लय सलीका
पाबन्दी तज जाती हूँ

.

खिलती भी हूँ सावन सी
पतझड़ सी झड़ जाती हूँ

.

सजा कर खुद को फिर से
पन्नो पर सज जाती हूँ

-.-
 "मौलिक व अप्रकाशित"

Added by अलका 'कृष्णांशी' on October 23, 2016 at 9:02pm — 13 Comments

दो इस्लाम (लघुकथा )राहिला

वह एक दहशतगर्द इलाका था ।जहाँ खण्डरनुमा मकानों में रहने को विवश थी सहमी हुयी इंसानियत ।ऐसे ही एक मकान में-

"माँ! क्या अब मैं कभी स्कूल  नहीं जा सकूंगी?"माँ की गोद में सिर रखे माहिरा ने  पूछा।

"पता नहीं मेरी बच्ची।"जबाब ,उम्मीद और ना उम्मीदी के बीच झूलता सा था।

"क्या लड़कियों का पढ़ना-लिखना गुनाह हैं?"

"नहीं मेरी जान!ये किसने कह दिया ?लड़कियों को पढ़ने-लिखने की इज़ाजत तो खुद ख़ुदा ने दी है।"

"अच्छा!तो फिर उन लोगों ने उस लड़की को स्कूल जाने पर क्यों गोली मार दी?क्या…

Continue

Added by Rahila on October 23, 2016 at 3:00pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया (ग़ज़ल 'राज ')

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

मेरी बगिया खिल उठी मौसम निराला हो गया

आ गई  बेटी मेरे घर में उजाला हो गया

 

दीप खुशियों के जले शुभ शंख मानो बज उठे

देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया

 

लहलहाई यूँ फसल खेतों की मेरी देखिये

सोने चाँदी से मढ़ा इक इक निवाला हो गया 

 

बिन सुरा सागर के जैसे खाली था मेरा वजूद   

आते ही उसके लबालब ये पियाला  हो गया

 

पढ़ते पढ़ते रात दिन आँखें मेरी थकती नहीं

उसका चेह्रा खूबसूरत इक…

Continue

Added by rajesh kumari on October 23, 2016 at 12:55pm — 20 Comments

पंख /सुरेश कुमार ' कल्याण '

पंख

---



पंख

जो

समय की मार से

हो चुके थे

जीर्ण-शीर्ण

मैंने

खूब फैलाने का प्रयास किया,

ताकि

विश्राम कर सकें

इनकी छत्रछाया में

मेरे अपने

मेरे अजीज

मेरे संबंधी।



मगर

जब वो जीर्णावस्था से

उबरे

जब पूर्ण छाया

देने ही वाले थे

चढ़ गए

मेरे

सुन्दर पंखों पर

काटने के लिए

मेरे अपने

मेरे अजीज

मेरे संबंधी।



बहुत दर्द

बहुत पीड़ा

सहने की कोशिश

बहुत… Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 23, 2016 at 12:48pm — 10 Comments

नाम (लघुकथा)

 नेहा सुबह से उदास थी। शादी के पाँच साल होने को आए थे, पर उसकी गोद अब तक सूनी थी। उसकी और उसके पति की मेडीकल जाँच हो चुकी थी। सब ठीक था। फिर भी बात बन नहीं रही थी। बस सास इसी बात को लेकर अपने बेटे पर लगातार दबाव डाल रही थी कि वह उसे तलाक क्यों नहीं दे देता।

माँ की बातों में आकर आज सुबह ही अभिषेक तलाक के कागजात बनवाने वकील के पास चला गया था। भविष्य की चिंता को लेकर नेहा की आँखों में आँसू छलक आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसे लग रहा था कि हो सकता है अभिषेक का गुस्सा ठंडा…

Continue

Added by विनोद खनगवाल on October 23, 2016 at 10:37am — 7 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service