For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

मानवता

आज बलि चढ़
रही है मानवता
हर तरफ़
शहीद हुए जा
रही है सचाई
गुम हो गये
है प्यार के फूल
डरा के छुप
रही है परछायी
कौन है ज़िम्मेदार
दरंदगी के लहु का
हर ओर क्यूँ
हो रही लड़ाई
मौलिक अप्रकाशित

Added by S.S Dipu on September 25, 2016 at 12:24am — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : श्रद्धांजलि (गणेश जी बागी)

श्रद्धांजलि
राज पथ पर अवस्थित
शहीद चौक ..
लोगो का हुजूम
मिडिया वालों का आवागमन
चकमक करते कैमरे
चमकते-दमकते चेहरे
फोटो खिंचाने की होड़
हाथों में मोमबत्तियाँ
नहीं-नहीं, कैंडल....
साथ में लकदक पोस्टर, बैनर
जिनपर अंकित था -
'शहीदों को
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि' !!

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 25, 2016 at 12:00am — 11 Comments

ग़ज़ल - आँख जब भी कभी लड़ी होगी

बहरे ख़फ़ीफ़ मुसद्दस् मख़बून

फाइलातुन मुफाइलुन् फेलुन



2122 1212 22



उन अदाओं में तिश्नगी होगी ।

कोई खुशबू नई नई होगी ।।



यूं ही नाराजगी नही होती ।

बात उसने भी कुछ कही होगी ।।



होश आया कहाँ उसे अब तक ।

कुछ तबीयत मचल गई होगी ।।



बेकरारी का बस यही आलम ।

बे खबर नींद में चली होगी ।।



कर गया इश्क में तिज़ारत वह ।

शक है नीयत नहीं भली होगी ।।



वो बगावत की बात करता है ।

खबर शायद सही पढ़ी होगी… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 24, 2016 at 11:54am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ज़ज्बात के समंदर ऐसी शराब रखना ---फिल्बदीह ग़ज़ल "राज '

मैं फूल इक छुपा दूँ दिल में किताब रखना

तैयार कल उसी में अपना जबाब रखना

 

वो सामने कहूँगा जो बात सच लगी है

तुम नाम चाहे मेरा खानाखराब रखना 

 

 कैसा एजाज़ वल्लाह कैसा हुनर है तुझमे

होटों पे इक तबस्सुम दिल में अज़ाब रखना

 

ले लेगी  जान मेरी तेरी अदा  कसम से

इस वक्त-ए-वस्ल में भी मुख पे निकाब रखना

 

पीकर जिसे सुखनवर अशआर दिल के कह दे 

ज़ज्बात  के समंदर ऐसी शराब रखना

 

मैं खुश रहूँ वहाँ पर है…

Continue

Added by rajesh kumari on September 24, 2016 at 10:45am — 16 Comments

सलीक़े जीने के

हर क़दम अपना
सलीक़े से उठा
रहा में फूल हैं
कम काँटें
हैं ज़्यादा
कुछ सोच के
मिला है तेरे
शहर का पता
राम हैं कम
यहाँ रावण
है ज़्यादा
किसी से
रही नही रंजिश
रखने की ताक़त
लकीरें हैं कम
ठोकर
हैं ज़्यादा
हंस के गुज़ार
लीजिए दो पल
जीने के
यहाँ उजाले
हैं कम बादल
हैं ज़्यादा
मौलिक अप्रकाशित

Added by S.S Dipu on September 24, 2016 at 1:28am — 5 Comments

ग़ज़ल

उजाड़े हैं हमारे घर, चले शकुनी के पासे हैं . 
तुम्हारे हाथ में हंटर, हुकुम हम तो बजाते  हैं . 
 
हमारी बेटियाँ, बहिनें तुम्हें जायदाद लगती हैं,
हमारा लुट रहा सब कुछ, मगर हम ही लजाते हैं . 
 
इधर जयघोष शंकर का, उधर अल्लाह-ओ-अकबर,
सुना दोनों तरफ दागी, तुम्हारी ही कृपा से  हैं . 
 
अँधेरा हँस रहा रौशन अनाचारी, दुराचारी,
निशा उपभोग करते हैं, दिवस जी भर सताते  हैं…
Continue

Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on September 23, 2016 at 11:30pm — 2 Comments

नज़्म : अदाकार (आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला')

किसी को हँसाये,किसी  को रुलाये,
कोई परेशां है,कोई हंसे कोई बिलखे,
कोई चुप- तो कोई चीखे,
उम्र के अलग अलग पड़ावों में,
अभिनय मिले नये-नये किरदारों में,
ज़िन्दगी तू मक़बूल अदाकार है,
कि क्या खूब अदायगी है तेरी...
सब कुछ बिल्कुल मौलिक लगे ।
और उस भगवान् का निर्देशन तो देखो !
कि हम जग के लोगों को सांसारिक लगे ।


आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 23, 2016 at 3:00pm — No Comments

शरारत कर वो तेरा मुँह बनाना याद आता है(ग़ज़ल)/सतविन्द्र कुमार राणा

बह्र:1222 1222 1222 1222

शरारत कर वो तेरा मुँह बनाना याद आता है

कि पहले रूठना फिर मान जाना याद आता है।



तुम्हारी प्यार की बोली ने मिश्री कान में घोली

कभी झूठे से झगड़े से सताना याद आता है।



बिताया हम कभी करते तुम्हारे साथ जो लमहेे

उन्हीं में गूँजता दिल का तराना याद आता है।



हुआ करते कभी हम भी अगर गमगीन थोड़े से

कि कर नादानियां हमको हँसाना याद आता है।



हमेशा ही हुआ करता हमारे पास आने का

तुम्हारा वो सही बनता बहाना याद आता… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 23, 2016 at 3:00pm — 10 Comments

गीत-सखि! री! मन न धरे अब धीर -रामबली गुप्ता

सखि! री! मन न धरे अब धीर।

विरही मन ले वन-वन डोलूँ, सही न जाये पीर।

सखि! री! मन न धरे अब धीर।



ना चिट्ठी ना पाती आयो, ना कोई संदेश।

जाय बसे कौने सौतन घर, प्रियतम कौने देश।।

राह तकत बीते दिन-रैना छिन-छिन घटत शरीर।

सखि! री! मन न धरे अब धीर।



बीते कितने साल-महीने, बीत गए मधुमास।

कितने सावन-भादो बीते, पर ना छूटी आस।।

अँखियाँ पिय दर्शन की प्यासी, झर-झर बरसत नीर।

सखि! री! मन न धरे अब धीर।



सेज-सिँगार भयो सब सूना, कजरा बहि-बहि… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 23, 2016 at 5:30am — 10 Comments

ज़िंदगी अजीब होती जा रही है

ये ज़िंदगी

कितनी

अजीब होती

जा रही है

कैसे

हाथों से

निकलती

जा रही है

माथे पर सिंदूर

हुआ करता था

औरत का गहना

अब साड़ी भी

स्कर्ट होती

जा रही है

शादी को होते

नहीं महीने दो

तलाक़ की

क़तार बड़ी

जा रही है

लड़के नही

मिलते होश

में अब तो

ये शराब

बोहत सस्ती हुई

जा रही है

बच्चे के सोने

का इंतज़ार

है माँ को

पार्टी की

रौनक़ बूझतीं

जा रही है

संस्कार… Continue

Added by S.S Dipu on September 23, 2016 at 12:27am — 6 Comments

ख़ामोशी ( कविता )

क्यों खामोश हो

कुछ बोलते भी नहीं

कुछ कहते भी नहीं

कुछ सुनते भी नहीं



वो देखो वहाँ

क्षितिज के किनारे

आकार ले रहा है

प्यार बादलों में



वो देखो  वहाँ

उन लहरों को

जो कर रही है बयां

प्यार चट्टानों से



वो देखो वहाँ

उन परिंदो को

जो उड़ते हुए भी

कर रहे बातें बादलों से



वो देखो वहाँ

रंग बदलते आस्मां को

किस तरह रंग बदलता है

बिलकुल तुम्हारी ही तरह



गुलाबी फ़ज़ाओं…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 22, 2016 at 3:00pm — 10 Comments

सूचना तंत्र(लघुकथा)राहिला

अपनी बीमार छोटी सी बेटी को दवा खिलाकर ,वो दो घंटे पहले ही विद्यालय पहुँच गयी।क्योंकि आज उसके विद्यालय में हाईस्कूल का शुभारंभ होना था।परन्तु सारा समय उसका मन अपनी नन्ही बेटी में ही उलझा रहा।रह ,रह कर उसकी आँखों में अपनी रोती बच्ची की सूरत झूल जाती।आख़िर विद्यालय समय से एक घंटे पूर्व वो संस्था प्रमुख से मौखिक अनुमति ले कर घर लौट आयी।

अभी घर में कदम रखा ही था कि मोबाइल की घंटी खनखना उठी।

"हैलो कौन?"

"हाँ हैलो,रमा!मैं किरण,तुम कहाँ हो?एक स्थानीय नेता जी की श्रीमती का फोन था।जो स्वयं… Continue

Added by Rahila on September 22, 2016 at 12:22pm — 14 Comments

कलम मेरी खामोश नहीं

कलम मेरी  खामोश नहीं, ये लिखती नई कहानी है।

इसमें स्याही के बदले मेरी, आंखों वाला पानी है।।

सृजन की सरिता इससे बहती

झूठ नहीं ये सच है कहती।

जीवन के हर सुख-दुख में ये,…

Continue

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on September 22, 2016 at 10:30am — 4 Comments

एक गज़ल

122    122    122    122

बचा कर रखेगी दुआ हादसों से,

करो अबसे तौबा बुरी आदतों से|

कदम अब बढे है जमाने से आगे,

नहीं रोक सकते हमें पायलों से|

करार तमाचा जवाबी मिलेगा,

रहें अपने घर में कहो दुश्मनों से|

गरीबों को मारा खुले आसमाँ ने,

बरसती है आफत यहाँ बादलों से|

लो मुश्किल हुआ अब यहाँ सांस लेना,

हुए शेर मुजरिम गलत फैसलों से|

सजा बन रहे है मरासिम हमारे,

मिलेगी मुहब्बत…

Continue

Added by sarita panthi on September 22, 2016 at 8:00am — 4 Comments

अथ से अभी तक

अथ से अभी तक जो जैसा मिला

सर माथे ले कर के जीते रहे

विधाता की झोली सुदामा भी हो गयी

तो बन कर के कान्हा सीते रहे

गिला है न शिकवा ज़माने से

कोई तकदीर से भी तकाज़ा नहीं

जीना कही जब ज़हर भी हुआ

तो मीरा बने प्याले पीते रहे

इन्द्रधनुष दिया कुरुक्षेत्र पाया

सत्ता से सत्ता की पायी लड़ाई

सिंहासन से चस्पा वफादारी देखी

 विदुरों के तरकश तो  रीते रहे

जतनों से बुनचुन जो सपना संजोया

तकिये बेचारे…

Continue

Added by amita tiwari on September 21, 2016 at 11:30pm — 2 Comments

एक तन .... (क्षणिकाएं) ...

1. एक तन .... (क्षणिकाएं) ...

लड़ते-लड़ते

धरा की गोद में

लहुलुहान

कोई सो गया

तिरंगे में

लिपटा हुआ

फिर एक तन

एक वतन

हो गया

... ... ... ... ... ... ... ... ...

2. शेष ....



गोली

बारूद

धमाके

लाशें

चीखें

धुऐं की गर्द

बस

हदों के झगड़ों का

यही था

शेष

... ... ... ... ... ... ... ... ... ...

3. हल ....



लिपट गया

तिरंगे में

भारत माँ का

एक लाल…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 8:21pm — 2 Comments

क़ुरबानी

जैसे ही पता चला कुछ आंतकवादी हमारी सीमा में घुस गए और मुठभेड़ में जवान कुर्बान हो रहे हैI आनन फानन में एमरजेंसी मीटिंग बुलाई पक्ष विपक्ष दोनों आये गहन चिंतन शुरू हुआI धीरे धीरे आरोप प्रत्यारोप शुरू हुआI गहन चिंतन गाली गलोच में तब्दील हो गयाI अब तो हद हो गयीI एक दूसरे के कपङे फाड़ने लगेI दोनों तरफ क़ुरबानी दे रहे थेI फर्क बस इतना थाI की एक कुर्सी के लिए तो दूसरा धरती माँ के लिएI "मौलिक व अप्रकाशित"

Added by harikishan ojha on September 21, 2016 at 7:40pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - चाँदनी, चाँदनी सी लगती थी ( गिरिराज भंडारी )

चाँदनी, चाँदनी सी लगती थी

2122   1212    22 /112

बात जो अनकही सी लगती थी

वो ही बस ज़िन्दगी सी लगती थी

 

मर गई सरहदों के पास कहीं

सच कहूँ, वो खुशी सी लगती थी

 

हाँ , न थे गर्द आसमाँ में, तब

चाँदनी, चाँदनी सी लगती थी

 

रात भी इस क़दर न थी तारीक  

उसमें कुछ रोशनी सी लगती थी

 

दुँदुभी साफ बज रही थी उधर

पर इधर बाँसुरी सी लगती थी

 

थी तबस्सुम जो उसकी सूरत पर

जाने क्यूँ बेबसी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 7:03pm — 5 Comments

बहुत याद आऊंगा ....

बहुत याद आऊंगा ....

रोज की तरह

आज भी भानु रश्मियों ने

एक नये जोश के साथ

धरती पर अपने

पाँव पसारे

चिडियों की चहचहाट ने

वातावरण को अपनी मधुर ध्वनि से

अलंकृत कर दिया

साइकिल की घंटी बजाता दूधवाला

घर घर दूध की आवाज देने लगा

सड़क पर सफाई वालों ने भी

अपना मोर्चा सम्भाल लिया

ये सारा नजारा

मैं अपनी युवा काल से

आज तक

इसी तरह देखता हूँ

आज मैं

अपने बदन पर

चंद पतियों के साथ

सड़क के…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2016 at 3:16pm — 2 Comments

भारत माता पूछ रही है (ताटंक छन्द )

कब तक सहन करूँ माथे पर, जुल्म सितम गद्दारों के।

भारत माता पूछ रही है, प्रश्न ओहदेदारों से।



लाँघी सीमा मानवता की, फिर से आग लगाई है ।

सोते वीरों पर जो गोली, तुमने आज चलाई है ।

फिर से मस्तक लाल हुआ है, कायर भीर प्रहारों से।

भारत माता पूछ----------।



हमला हुआ था संसद पर, मेरी आत्मा रोई थी ।

पठानकोट याद है सबको, कितनी जानें खोई थी।

कब तक रक्त बहेगा यूंही, राजनीतिक इशारों से।

भारत माता पूछ--------------।



उसके दिल पे क्या बीती है,…

Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 21, 2016 at 11:30am — 8 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
6 hours ago
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
6 hours ago
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service