Added by S.S Dipu on September 20, 2016 at 10:55pm — 6 Comments
माता तेरा बेटा वापस, ओढ़ तिरंगा आया था।
मातृ भूमि से मैंने अपना, वादा खूब निभाया था।
बरसो पहले घर में मेरी, गूंजी जब किलकारी थी।
माता और पिता ने अपनी हर तकलीफ बिसारी थी
पढ़ लिख कर मुझको भी घर का,बनना एक सहारा था
इकलौता बेटा था सबकी मैं आँखों का तारा था
केसरिया बाना पहना कर ,भेज दिया था सीमा पे
देश प्रेम का जज़्बा देकर ,इक फौलाद बनाया था
सोते सोते प्राण गँवाना, मुझे नहीं भाया यारो
कायर दुश्मन की हरकत पर ,क्रोध बहुत आया यारो
शुद्ध रक्त…
Added by Ravi Shukla on September 20, 2016 at 8:30pm — 20 Comments
Added by रामबली गुप्ता on September 20, 2016 at 4:09pm — 18 Comments
मैं बंजारन खोज रही हूँ
तेरे निशाँ
यह रेत के टीले
मिटा रहें है जो निशानियाँ ,
घूम घूम कर तलाश रही हूँ
तेरे कदमों के चिह्न
जो कभी हुआ करते थे
इन्हीं रेतीली ज़मीन पर |
आती थी आवाज़ तुम्हारी
दूर से ही
पुकारते हुए दौड़े चले आते थे ,
तुम अपने घर से
मुझसे मिलने को ,
गवाह है -
यह यहाँ की सर ज़मीं |
वो कटीले पौधे
जो चुभ जाते थे तुम्हें
आज भी यहीं हैं
देखती हूँ इनपर
तुम्हारा सुखा…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 20, 2016 at 3:30pm — 10 Comments
कल माँ का श्राद्ध है
पन्द्रहवाँ श्राद्ध
कल उनकी बहु उठेगी
पौ फटते ही पूरा घर करेगी
गंगाजल के पानी से साफ
सुबह सुबह ठंडे गंगाजल मिले पानी से
नहायेगी भी, पहनेगी उनकी दी हुयी साड़ी
जो उसे पसन्द भी नहीं थी...
फिर पूरा घर बुहारेगी
बनायेगी तरह तरह के पकवान
जो भी माँ को पसन्द थे
पूजा में नतमस्तक हो बैठेगी मन लगा कर
अपने हाथों से खिलायेगी
गाय को पूरी खीर
कौओं को हांक लगा कर बुलायेगी छत पर
फिर खिलायेगी छोटे छोटे कौर…
Added by Abha saxena Doonwi on September 20, 2016 at 3:00pm — 13 Comments
कमलनयनी ब्रांड .... ...
अरे!
ये क्या हुआ
कल ही तो वर्कशाप में
ठीक करवाया था
टेस्ट ड्राईव भी
करवाई थी
कार्य प्रणाली
बिलकुल ठीक पाई थी
माना
टक्कर बहुत भारी थी
दिल के
कई टुकड़े हो गए थे
पर वर्कशाप में
कमलनयनी ब्रांड के
नयनों के फैविकोल से
टूटे दिल के टुकड़े
अच्छी तरह चिपकाए थे
उसकी मधुर मुस्कान ने
ओके किया था
दिल फिर अपने
मूल रूप में
धड़कने लगा था
गज़ब
ठीक होते ही
वर्कशाप के मेकैनिक…
Added by Sushil Sarna on September 20, 2016 at 1:30pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 20, 2016 at 7:30am — 6 Comments
Added by S.S Dipu on September 20, 2016 at 12:08am — 6 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on September 19, 2016 at 11:04pm — 12 Comments
नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।
रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।
सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।
चीख रही हैं बहिनें फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।
सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।
प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।
अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।
माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।
वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली…
ContinueAdded by डॉ पवन मिश्र on September 19, 2016 at 3:30pm — 7 Comments
Added by S.S Dipu on September 19, 2016 at 1:14pm — 4 Comments
ग़ज़ल
--------
फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फाइलुन
चाहता है सिर्फ़ दिल मेरा ये मंज़र देख कर ।
फोड़ लूँ मैं अपनी आँखें उनको मुज़्तर देख कर ।
ज़िन्दगी में भी वो आजाएं जो मेरे दिल में हैं
सोचता रहता यही हूँ उनको अक्सर देख कर ।
हर किसी के पास तो होता नहीं ख़ुद का मकाँ
किस लिए हैं आप हैराँ मुझको बे घर देख कर ।
किस में हिम्मत है बढाए दोस्ती का हाथ जो
आस्तीं में आपकी पोशीदा खंज़र देख कर ।
फिर मुसीबत ना…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 18, 2016 at 11:53am — 10 Comments
Added by S.S Dipu on September 18, 2016 at 11:47am — 4 Comments
Added by डॉ पवन मिश्र on September 18, 2016 at 9:55am — 14 Comments
कितने कष्ट सहे हैं तूने , कैसे मुझे पढ़ाया है,
तुझे छोड़कर घर से बाहर, मैंने कदम बढाया है |
अनचाहे ही माता तुझको , मैंने आज रुलाया है
भाग्य विधाता ने भी देखो, कैसा खेल रचाया है ||
रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,
जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |
देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,
तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी ||
दमकुंगा बन कुंदन लेकिन, काम न तेरे…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on September 17, 2016 at 9:30pm — 13 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2016 at 8:57pm — 10 Comments
गुरु भगवान से पहले आते सब जाते बलिहारी
ज्ञान का सूरज यहाँ निकलता नहीं रहे अज्ञानी
सूरज सादृश्य वह ज्ञान बांटते कोई नहीं शानी
शिक्षा एवं संस्कार बांटते यह है अमिट कहानी
सरकारी स्कूलों में अध्यापक करते हैं मनमानी
देश की प्रगति में बाधक पर कहलाते हैं ज्ञानी
ऐसे शिक्षक को दंड मिले तो नहीं कोई हैरानी
मानवता को शर्मिंदा कर बच्चों की करते हानी
बच्चों संग करते भेद भाव शिक्षा में आनाकानी
नादानों से करते दुर्व्यवहार सुनकर होती हैरानी …
ContinueAdded by Ram Ashery on September 17, 2016 at 3:00pm — 7 Comments
अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,
भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।
पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।
जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।
अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।
ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।
याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,
हालात से है जूझता हर तन और मन है ।…
Added by Abha saxena Doonwi on September 17, 2016 at 10:00am — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 16, 2016 at 11:30pm — 13 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 11:10pm — 12 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |