कलाधर छन्द
शारदे समग्र काव्य में विचार भव्यता कि
सत्यता उघार के कुलीन भाव मन्त्र दें।
शब्द शब्द सावधान अर्थ की विवेचना
करें विशुद्ध भाव से सुताल छन्द तंत्र दें।।
व्यग्रता सुधार के विनम्रता सुबुद्धि ज्ञान
मान के समस्त मानदण्ड के सुयंत्र दें।
आप ही कमाल वाह वाह की विधायिनी
सुभाषिनी प्रवाह गद्य पद्य में स्वतन्त्र दें।।
मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार . .केवल प्रसाद सत्यम
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 28, 2016 at 10:37am — 6 Comments
Added by Samar kabeer on August 28, 2016 at 12:19am — 26 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2016 at 11:47pm — 10 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जहाँ श्री राम की मूरत वहीं सीता बिठाते हैं
जपें जो नाम राधा का वहीं घनश्याम आते हैं
करें पूजन हवन जिनका करें हम वंदना जिनकी
वही दिल में हमारे ज्ञान का दीपक जलाते हैं
लिए विश्वास के लंगर चलें जो पोत के नाविक
समंदर के थपेड़ों से नही वो डगमगाते हैं
पराये देश में जाकर भले दौलत कमाएँ हम
हमारे देश के मौसम हमें वापस बुलाते हैं
भरे हम बैंक कितने भी मगर क्या बात गुल्लक…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 27, 2016 at 8:18pm — 9 Comments
2122 2122 2122
बेदिली के अनवरत ये सिलसिले हैं
इसलिये तो ख्वाब सारे अनमने हैं
बाद मुद्दत के सफ़र आया वतन तो
थे बशर बिखरे हुये घर अधजले हैं
बादलों औ बारिशों ने साजिशें कीं
भूख की संभावनायें सामने हैं
अस्ल ए इंसानियत मजबूत रक्खो
हर कदम पे ज़िन्दगी में जलजले हैं
इस शहर में चीखने से कुछ न होगा
गूंगी जनता शाह भी बहरे हुये हैं
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 27, 2016 at 12:30pm — 10 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on August 27, 2016 at 1:33am — 9 Comments
थाम लो इन आंसुओं को
बह गए तो ज़ाया हो जाएंगे
इन्हें खंजर बना कर पेवस्त कर लो
अपने दिल के उस हिस्से में
जहाँ संवेदनाएं जन्म लेती हैं
उसके काँधे पर रखी लाश से कहीं ज्यादा वज़न है
तुम्हारी उन संवेदनाओं की लाशों का
जिन्हें अपने चार आंसुओं के कांधों पर
ढोते आए हो तुम
अब और हत्या मत करो इनकी
संवेदनाओं का कब्रस्तान बनते जा रहे तुम
हर ह्त्या, आत्महत्या, बलात्कार पर
एक शवयात्रा निकलती है तुम्हारी आँखों…
Added by saalim sheikh on August 26, 2016 at 1:00am — 4 Comments
22 22 22 22 22 22 22 22 -- बहरे मीर
छोटी मोटी बातों में वो राय शुमारी कर लेते हैं
और फैसले बड़े हुये तो ख़ुद मुख़्तारी सर लेते हैं
वहाँ ज़मीरों की सच्चाई हम किसको समझाने जाते
दिल पे पत्थर रख के यारों रोज़ ज़रा सा मर लेते हैं
चाहे चीखें, रोयें, गायें फ़र्क नहीं उनको पड़ता, पर
जैसे बच्चा कोई डराये , वालिदैन सा डर लेते हैं
कल का नीला आसमान अब रंग बदल कर सुर्ख़ हुआ है
पंख नोच कर सभी पुराने, चल बारूदी पर लेते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:28pm — 18 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२
सब खाते हैं एक बोता है
ऐसा फल अच्छा होता है
पूँजीपतियों के पापों को
कोई तो छुपकर धोता है
एक दुनिया अलग दिखी उसको
जिसने भी मारा गोता है
हर खेत सुनहरे सपनों का
झूठे वादों ने जोता है
महसूस करे जो जितना, वो,
उतना ही ज़्यादा रोता है
मेरे दिल का बच्चा जाकर
यादों की छत पर सोता है
भक्तों के तर्कों से ‘सज्जन’
सच्चा तो केवल…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 25, 2016 at 11:37am — 8 Comments
हे पार्थ के सारथी, हे जसुमति के लाल
हरने जन की पीर अब , फिर आओ गोपाल
ध्वस्त किया था कंस का ,इक दिन तुमने मान
निडर हो गया कंस अब ,और हुआ बलवान
घूम रहा है ओढ़ कर ,सज्जनता की खाल
हरने जन की पीर अब , फिर आओ गोपाल
पाँचाली के चीर का ,किया खूब विस्तार
नयनों में भर नीर फिर ,तुमको रही पुकार
अंध सभा में ठोकता , दुःशासन फिर ताल
हरने जन की पीर अब ,फिर आओ गोपाल
अर्जुन का रथ थाम कर…
ContinueAdded by pratibha pande on August 25, 2016 at 8:00am — 14 Comments
यह 1980-81 की बात है । मैं दसवी क्लास में थी । स्कूल का आखरी टूर था । पता चला कि नेपाल जाना था । स्कूल के टूर साल में दो बार होते थे गर्मी और विंटर की छुट्टियों में । दिसम्बर में जाना तय हुआ था । प्रिंसिपल सर ने घोषणा की कि दिल्ली , आगरा , पटना , गया से समस्तीपुर होते हुए नेपाल जाना होगा । हम क्लास में आपस में बाते करने लगे थे । अपने अपने मनसूबों के साथ हम में एक उत्साह था । यह स्कूल का आखरी टूर था । हम सब जल्द ही बिछड़ने वाले थे । मेरे मन में था मैं भी जाऊं । पर कैसे ?? एक नोटिस मिलता था ।…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 25, 2016 at 7:00am — 9 Comments
टिमटिमाते तारे की रोशनी में
मैंने भी एक सपना देखा है ।
टुटे हुए तारे को गिरते देखकर
मैंने भी एक सपना देखा है ।
सोचता हूं मन ही मन कभी
काश ! कोई ऐसा रंग होता
जिसे तन-बदन में लगाकर
सपनों के रंग में रंग जाता ।
बाहरी रंग के संसर्ग पाकर
मन भी वैसा रंगीन हो जाता ।
सपनों से जुड़ी है उम्मीदें, पर
उम्मीदों की उस परिधि को
क्या नाम दूं ? सोचता हूं तो
मन किसी अनजान भंवर में
दीर्घकाल तक उलझ जाता…
ContinueAdded by Govind pandit 'swapnadarshi' on August 24, 2016 at 10:13pm — 4 Comments
१ २ २ / १ २ २ / १ २ २ /१ २
याँ कुछ लोग जीते भलों के लिए
जिओ जिंदगी दूसरों के लिए |
गुणों की नहीं माँग दुख वास्ते
सकल गुण जरुरी सुखों के लिए |
मैं गर मुस्कुराऊं, तू मुँह मोड़ ले
शिखर क्यूँ चढूं पर्वतों के लिए ?
मैं किस किस की बातें सुनाऊं यहाँ
जले शमअ कोई शमो के लिए |
मकाँ और दुकाने जो भी हैं यहाँ
जवाँ केलिए ना बड़ों के लिए |
मौलिक…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 24, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
पास ही की झुग्गी के बच्चे और यहाँ तक की कुत्ते भी अचानक से उस और दौड़ पडे .
"अरे मुन्ना! वो देख जा जल्दी बहुत सारा खाना आया दिखता है." लूली ने जोर देकर अपने भाई से कहा और …
Added by नयना(आरती)कानिटकर on August 23, 2016 at 10:00pm — 6 Comments
122 122 122 122
मेरे दर्दो गम की कहानी न पूछो ।
मुहब्बत की कोई निशानी न पूछो ।।
बहुत आरजूएं दफन मकबरे में ।
कयामत से गुजरी जवानी न पूछो ।।
मुझे याद है वो तरन्नुम तुम्हारा ।
ग़ज़ल महफ़िलों की पुरानी न पूछो ।।
हुई रफ्ता रफ्ता जवां सब अदाएं ।
सितम ढा गयी कब सयानी न पूछो ।।
बयां हो गई इश्क की हर हकीकत ।
समन्दर की लहरों का पानी न पूछो ।।
सलामी नजर से नज़र कर गयी थी ।
वो चिलमन से नज़रें झुकानी न पूछो…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 23, 2016 at 10:00pm — 7 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 23, 2016 at 9:00pm — 7 Comments
पड़े आफ़ात तो छुपता किसी मशहूर का बेटा
कलेजा शेर का रखता मगर मजदूर का बेटा
कहीं ऊपर जमीं के उड़ रहा मगरूर का बेटा
जमीं को चूमता चलता किसी मजबूर का बेटा
कई तलवार बाहर म्यान से आती दिखाई दें
पकड़कर हाथ राधा का चले जो नूर का बेटा
सिखाने पर परायों के भरा है जह्र नफरत का
चला हस्ती मिटाने को कोई अखनूर का बेटा
कदम पीछे हटा लेता जहाँ उसकी जरूरत हो
हर इक रहबर फ़कत कहने को है जम्हूर का बेटा
सरापा थाम…
Added by rajesh kumari on August 23, 2016 at 6:32pm — 23 Comments
Added by Rahila on August 23, 2016 at 1:30pm — 4 Comments
कुकुभ छंद -२
जीवन में दुःख के लिए तो, गुण जरुरी नहीं होता
हमेशा दुख है घुसपैटिया, अनाहूत पाहुन होता |
योग्यता, प्रतिभा जरूरी है, गर दिल में सुख की इच्छा
चढ़ता वही पर्वत शिखर पर, जिसमे है सशक्त स्वेच्छा |
प्रकृति कब कुपित हो लोगों से, कोई नहीं कभी जाने
करते गलती मानव जग में, कभी भूल से अनजाने |
जल प्रलय में डूबे हजारों, मकान थे नदी किनारे
ज़खमी न जाने जितने हुए, कितने अल्ला को प्यारे |
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 23, 2016 at 10:19am — 5 Comments
गुड़ मिला पानी पिला महमान को
2122 2122 212
********************************
तब नज़र इतनी कहाँ बे ख़्वाब थी
और ऐसी भी नहीं बे आब थी
नेकियाँ जाने कहाँ पर छिप गईं
इस क़दर उनकी बदी में ताब थी
गैर मुमकिन है अँधेरा वो करे
बिंत जो कल तक यहाँ महताब थी
बे यक़ीनी से ज़ुदा कुछ बात कह
ठीक है, चाहत ज़रा बेताब थी
डिबरियों की रोशनी, पग डंडियाँ
थीं मगर , बस्ती बड़ी शादाब थी
शादाब-…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 23, 2016 at 8:30am — 24 Comments
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