For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,126)

प्रकृति-दोहा छंद, शृंगारिक मत्त सवैया-रामबली गुप्ता

प्रकृति : दोहा छंद



सिंधु-शैल-सरि-नभ-धरा, तारक-रवि-सारंग।

पेड़-पुष्प-नर-जन्तु-खग, सभी प्रकृति के अंग।।



महकाते खिल के सुमन, प्रकृति-युवति के अंग।

स्वच्छ गगन तन-वसन को, देता स्यामल रंग।।



मृदा-वायु-जल-वृक्ष-वन, प्रकृति-दत्त सौगात।

युक्ति-युक्त दोहन करें, सुखी रहें दिन-रात।।



सखे! प्रकृति ने है दिया, संसाधन अनमोल।

सौम्य-सरल दोहन करें, सुख के पट लें खोल।।



मृदा मृदुल-जल वायु को, सखे! सहेजें नित्य।

धरा प्रदूषण मुक्त हो, करिये… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 20, 2016 at 4:09pm — 18 Comments

मैं बंजारन (कविता )

मैं बंजारन खोज रही हूँ

तेरे निशाँ

यह रेत के टीले

मिटा रहें है जो  निशानियाँ ,

घूम घूम कर तलाश रही हूँ

तेरे कदमों के चिह्न

जो कभी हुआ करते थे

इन्हीं  रेतीली ज़मीन पर |



आती थी आवाज़ तुम्हारी

दूर से ही

पुकारते हुए दौड़े चले आते थे ,

तुम अपने घर से

मुझसे मिलने को ,

गवाह है -

यह यहाँ की  सर ज़मीं |



वो कटीले पौधे

जो चुभ जाते थे तुम्हें

आज भी यहीं हैं

देखती हूँ इनपर

तुम्हारा सुखा…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 20, 2016 at 3:30pm — 10 Comments

कविता .....माँ का श्राद्ध

कल माँ का श्राद्ध है

पन्द्रहवाँ श्राद्ध

कल उनकी बहु उठेगी

पौ फटते ही पूरा घर करेगी

गंगाजल के पानी से साफ

सुबह सुबह ठंडे गंगाजल मिले पानी से

नहायेगी भी, पहनेगी उनकी  दी हुयी साड़ी

जो उसे पसन्द भी नहीं थी...

फिर पूरा घर बुहारेगी

बनायेगी तरह तरह के पकवान

जो भी माँ को पसन्द थे

पूजा में नतमस्तक हो बैठेगी मन लगा कर

अपने हाथों से खिलायेगी

गाय को पूरी खीर

कौओं को हांक लगा कर बुलायेगी छत पर

फिर खिलायेगी छोटे छोटे कौर…

Continue

Added by Abha saxena Doonwi on September 20, 2016 at 3:00pm — 13 Comments

कमलनयनी ब्रांड .... ...

कमलनयनी ब्रांड .... ...

अरे!

ये क्या हुआ

कल ही तो वर्कशाप में

ठीक करवाया था

टेस्ट ड्राईव भी

करवाई थी

कार्य प्रणाली

बिलकुल ठीक पाई थी

माना

टक्कर बहुत भारी थी

दिल के

कई टुकड़े हो गए थे

पर वर्कशाप में

कमलनयनी ब्रांड के

नयनों के फैविकोल से

टूटे दिल के टुकड़े

अच्छी तरह चिपकाए थे

उसकी मधुर मुस्कान ने

ओके किया था

दिल फिर अपने

मूल रूप में

धड़कने लगा था

गज़ब

ठीक होते ही

वर्कशाप के मेकैनिक…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 20, 2016 at 1:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल-इस्लाह के लिए

2122 1212 22(112)



आदरणीय बाऊजी द्वारा इस ग़ज़ल का मत्ला सुझाया गया है, उनको सादर नमन

.................................



सोचिये तो जनाब क्या होगी

ख़ूब,दिल से किताब क्या होगी"



इश्क़ से जिसका वास्ता ही नहीं

नींद उसकी ख़राब क्या होगी



क्रोध के घूँट का मज़ा है अलग

इससे बेहतर शराब क्या होगी



खुद खुली इक किताब है जो नफ़र

ज़िल्द उस पर ज़नाब क्या होगी



चल रही ज़िस्म की नुमाइश तो

रूह फिर आफ़ताब क्या होगी



मौलिक… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 20, 2016 at 7:30am — 6 Comments

बिंदु और सिंदु

बिंदू
मिटकर ही
बनता है
सिंधु ।
पानी की
टपकती बूँद
समंदर को
छू लेतीं है
मिटाकर अपना
आप
विशालता को
छू लेती है
समंदर पाने
के लिए
बूँद बनना
पड़ता है
कुछ हासिल
करने के लिए
खोना भी पड़ता है
कभी बिंदु भी
बनना पड़ता है
कभी सिंधु भी
बनाना पड़ता है

मौलिक व अप्रकाशित"

Added by S.S Dipu on September 20, 2016 at 12:08am — 6 Comments

ग़ज़ल - क्या आपके दिल में है ?बता क्यों नहीं देते?

ग़ज़ल

क्या आपके दिल में है,बता क्यों नहीं देते ?

नजरों से मेरी पर्दा उठा क्यों नहीं देते ?



ये किसलिये अहसान के नीचे है दबाया?

मुझको मेरी कमियों की सज़ा क्यों नहीं देते ?



कुछ गलतियाँ करवाती हैं मज़बूरियाँ सबसे

तुम तो बड़े हो गलती भुला क्यों नहीं देते?



हालाँकि सराबोर महब्बत से हूँ लेकिन

मौसम ये बहारों के मज़ा क्यों नहीं देते?



ये कौन ज़ुदा शख्स मेरे पीछे पड़ा है

सब पूछते हैं मुझसे,बता क्यों नहीं देते ?



जो शख्स… Continue

Added by सूबे सिंह सुजान on September 19, 2016 at 11:04pm — 12 Comments

ताटंक छन्द- उरी हमले के संदर्भ में

नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।

रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।

सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।

चीख रही हैं बहिनें फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।

सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।

प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।

अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।

माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।

वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली…

Continue

Added by डॉ पवन मिश्र on September 19, 2016 at 3:30pm — 7 Comments

गुम हो जाएँ

बरसों बात मिली 
है सहेली मेरी 
एक चाई का 
प्याला और खट्टी
मीठी यादें 
समेट कर 
लायी है 
सहेली मेरी 
चल चले 
मेले में 
कुछ ख़ुशियाँ 
बटोरने 
कुछ कची
कचौरी खाने
कुछ इमली
तोड़ने 
अठन्नी कम 
पड़ गयी 
थी घसीटे
की ठेली में
कान मरोड़…
Continue

Added by S.S Dipu on September 19, 2016 at 1:14pm — 4 Comments

ग़ज़ल ( साजन के तेवर देख कर )

ग़ज़ल

--------

फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फाइलुन

चाहता है सिर्फ़ दिल मेरा ये मंज़र देख कर ।

फोड़ लूँ मैं अपनी आँखें उनको मुज़्तर देख कर ।

ज़िन्दगी में भी वो आजाएं जो मेरे दिल में हैं

सोचता रहता यही हूँ उनको अक्सर देख कर ।

हर किसी के पास तो होता नहीं ख़ुद का मकाँ

किस लिए हैं आप हैराँ मुझको बे घर देख कर ।

किस में हिम्मत है बढाए दोस्ती का हाथ जो

आस्तीं में आपकी पोशीदा खंज़र देख कर ।

फिर मुसीबत ना…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 18, 2016 at 11:53am — 10 Comments

उम्मीद में

बेटा बेटा करते

करते आज

तीसरी बेटी हुई है

उम्मीदों की बली

आँचल फिर चढ़ी है

दुर्गा माँ की डोली

धूम धाम से

सजी है

और बेटी के

हँसने पर

बेड़ियाँ

लगी है

भाई किसी

लड़की को

छेड़ कर

आया है

बहन ने

फिर भाई को

पुलिस से

छुपाया है

जिस कोख से

तू जन्मा है

उसको शर्मसार

ना कर

अस्तिवा ही

औरत है तेरा

मर्द है तो

हाहा कार

ना कर

जिस रोज़

औरत अपनी

ज़िद पर

अड़… Continue

Added by S.S Dipu on September 18, 2016 at 11:47am — 4 Comments

ग़ज़ल- सितारे रक़्स करते हैं

1222 1222 1222 1222



उन्हें देखें जो बेपर्दा सितारे रक़्स करते हैं।

नज़र जो उनकी पड़ जाए नज़ारे रक़्स करते हैं।।



तेरे पहलू में होने से शबे दैजूर भी रौशन।

बरसती चाँद से खुशियाँ सितारे रक़्स करते हैं।।



तुम्हे है इल्म मेरी जिंदगी कुछ भी नही तुम बिन।

इन्हीं वजहों से तो नख़रे तुम्हारे रक़्स करते हैं।।



कभी तो तुम ही आओगे शबे हिज़्रां मिटाने को ।

इसी उम्मीद से अरमां हमारे रक़्स करते हैं।।



जड़ों की कद्र तो केवल समझते हैं वही पत्ते।

शज़र… Continue

Added by डॉ पवन मिश्र on September 18, 2016 at 9:55am — 14 Comments

माता मैं ना जाऊँगा

कितने कष्ट सहे हैं तूने , कैसे मुझे पढ़ाया है,

तुझे छोड़कर घर से बाहर, मैंने कदम बढाया है |

अनचाहे ही माता तुझको , मैंने आज रुलाया है

भाग्य विधाता ने भी देखो, कैसा खेल रचाया है ||

 

 

रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,

जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |

देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,

तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी ||

 

 

दमकुंगा बन कुंदन लेकिन, काम न तेरे…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on September 17, 2016 at 9:30pm — 13 Comments

नींद रहने लगी हर घडी लापता (ग़ज़ल)

212 212 212 212



ज़िन्दगी से है यूँ ज़िन्दगी लापता

जैसे हो रात से चाँदनी लापता



चाँद है चाँदनी है सितारे भी हैं

रात से अब मगर रात ही लापता



इस तरफ उस तरफ हर तरफ भीड़ है

शह्र से है मगर आदमी लापता



मुझको मुझसे मिलकर गया था जो शख्स

बदनसीबी कि है अब वही लापता



चाँद-तारों से जा मिलते हैं हम तभी

खुद से हो जाते हैं जब कभी लापता



मेरी आँखों को इक ख़्वाब क्या मिल गया

नींद रहने लगी हर घड़ी लापता



(मौलिक व… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2016 at 8:57pm — 10 Comments

अध्यापक और शिक्षा

गुरु भगवान से पहले आते सब जाते बलिहारी

ज्ञान का सूरज यहाँ निकलता नहीं रहे अज्ञानी

सूरज सादृश्य वह ज्ञान बांटते कोई नहीं शानी

शिक्षा एवं संस्कार बांटते यह है अमिट कहानी

सरकारी स्कूलों में अध्यापक करते हैं मनमानी

देश की प्रगति में बाधक पर कहलाते हैं ज्ञानी

ऐसे शिक्षक को दंड मिले तो नहीं कोई हैरानी    

मानवता को शर्मिंदा कर बच्चों की करते हानी

बच्चों संग करते भेद भाव शिक्षा में आनाकानी

नादानों से करते दुर्व्यवहार सुनकर होती हैरानी …

Continue

Added by Ram Ashery on September 17, 2016 at 3:00pm — 7 Comments

गीत ........अब हृदय में वेदनाओं का सृजन है |

अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,

भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।



पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,

सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।



जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,

प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।



अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,

आदमी का विषधरों जैसा चलन है।



ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,

इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।



याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,

हालात से है जूझता हर तन और मन है ।…



Continue

Added by Abha saxena Doonwi on September 17, 2016 at 10:00am — 9 Comments

एक तरही ग़ज़ल(समीक्षार्थ)

बह्र:1222 1222 1222 1222



नफ़स मुश्किल हुआ लेना नजारे रक्स करते हैं

छुड़ा कर आज दामन को सहारे रक्स करते हैं।



यकीं जिनपर मुझे सबसे ज़ियादा था हुआ करता

गिरा कर हौंसला मेरा वो'प्यारे रक्स करते हैं।



गवाही कौन देगा अब तुम्हारी बे गुनाही की

बिका ईमां गवाहों का वे' सारे रक्स करते हैं।



भुला आवाज को दिल की तमाशा देखते हैं सब

"सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।"



मुहब्बत कर रहे देखो पराई से सभी यारो

भुला अपनी ही'भाषा को… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 16, 2016 at 11:30pm — 13 Comments

मुद्रा स्फीति --डॉo विजय शंकर

( नवीन मुद्रा के आगमन पर स्वागत सहित, अचानक प्रस्तुत )



कैसे गायब हो जाते हैं छोटे सिक्के ,

पाई , अधेला , धेला , दाम ,

छेदाम , पैसा , दो पैसा ,

इक्कनी , दुअन्नी , चवन्नी ,

गला कर उन्हें तांबे ,

पीतल में ढाल लेते हैं।

कहते हैं , उनकी खरीदने की

ताकत ख़तम हो जाती है ,

या उनकीं अपनी कीमत बढ़ जाती है ?

हमारी समझ घट जाती है ,

तभी तो वे पुराने सिक्के

चलन में आज मिलते नहीं ,

कहीं मिल जायें तो

सौ, दो सौ , हजार , दस हजार… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 11:10pm — 12 Comments

ग़ज़ल: इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

2122. 2122. 2122. 212



इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,



टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,

वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,



दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,

बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,



जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,

आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,



लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,

प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।…



Continue

Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 16, 2016 at 11:00pm — 10 Comments

सृष्टि का सबसे मधुर फिर गीत हम गाते सनम-----ग़ज़ल, पंकज मिश्र

2122 2122 2122 212



काश तेरे नैन मेरी रूह पढ़ पाते सनम।

दर ब दर भटकाव से ठहराव पा जाते सनम।।



इक दफ़ा बस इक दफ़ा तुम मेरे मन में झाँकते।

देखकर मूरत स्वयं की मन्द मुस्काते सनम।।



धड़कनों के साथ अपनी धड़कनें गर जोड़ते।

इश्क़ का अमृत झमाझम तुमपे बरसाते सनम।।



हाथ मेरे थाम कर चुपचाप चलते दो कदम।

प्रीत का जिंदा नगर हम तुमको दिखलाते सनम।।



खुद से अब तक मिल न पाए हो तो बतलाऊँ तुम्हें।

लोग कहते शेर मेरे तुझसे मिलवाते… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:50pm — 13 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
Friday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service