212 212 212 212
ये है आलम अब आपस की तकरार से
गुफ़्तगू हो रही सबकी दीवार से
फिर हमें कब रहा डर किसी वार से
लफ्ज़ अपने हुए जब से हथियार से
कुछ ख़बर हो न पाई हमें, इस क़दर
जिस्म से दिल निकाला गया प्यार से
सोचिये, स्वस्थ तब देश कैसे रहे
ख़ैरख़्वाह आज सारे हैं बीमार - से
जीत को जब बनाया है मक़सद,तो फिर
मैं भला क्यों डरूं एक - दो हार…
Added by जयनित कुमार मेहता on April 5, 2016 at 10:08pm — 1 Comment
कितना अजीब खेल है
ये तंबोला
हाउस कटते हैं
तभी मिलती है जीत
आज के महानगरीय
सत्य जैसा
मजबूरी का मुखौटा पहने
यहाँ स्वार्थ चीखता है
दंभ के मंच से
जुड़ाव, रिश्ते कटते हैं
तंबोला की संख्या की तरह
और बनता है' हाउस '
कुछ की भावुक बेवकूफियाँ
काट नहीं पातीं सारे रिश्ते
वो हारे हुए कुंठित
इर्ष्या से देखते हैं
उन विजयी लोगों को
जो पूरा हाउस काट कर
जीत…
ContinueAdded by pratibha pande on April 5, 2016 at 10:00pm — No Comments
Added by दिनेश कुमार on April 5, 2016 at 6:59pm — 10 Comments
1222 1222 1222 1222
बिछड़ कर भी कहाँ तुझसे तेरी बातों को भूले हैं
कहाँ उस झील के तट की मुलाकातों को भूले हैं।1।
कि छोड़ा हमने अपना दिन तेरी जुल्फों के साये में
तेरे काँधें पे हम अपनी सनम रातों को भूले हैं।2।
बजा करती हैं कानों में तुम्हारी पायलें अब भी
खनकती चूडि़यों वाले न उन हातों को भूले हैं।3।
न छत पर चाँद तारों से हमारा हाल तुम पूछो
तपन की याद किसको है कि बरसातों को भूले हैं।4।
अगर है याद जो थोड़ा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 12:01pm — 15 Comments
Added by मनोज अहसास on April 5, 2016 at 11:05am — 21 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 5, 2016 at 11:00am — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
हमें अब याद आते हैं सुहानी शाम के चर्चे
तुम्हारी बज़्म की बातें तुम्हारे नाम के चर्चे
सदायें ये मुहब्बत की दिशायें गुनगुनायेंगी
कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे
लिये बैठा हूँ नम आँखें अधूरा प्यार का किस्सा
कभी मजनू कभी राँझे कभी खय्याम के चर्चे
किसी ने राग जो छेड़ा घुली खुशबू…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 4, 2016 at 9:00pm — 20 Comments
प्राणहीन जर्जर जीवन को
अपनाया एकान्त ने।
अपनी अद्भुद्ता की व्यापकता से
मोह लिया ऐसे,
कि अब, वही मेरा सगा है।
बाकी सब ने, मनमाना ठगा है। ।
शून्य को पाकर मैं,
बन गया, मालिक विराट का।
लुटाने को कितना हूँ…
Added by Dr T R Sukul on April 4, 2016 at 4:30pm — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 4, 2016 at 10:30am — 14 Comments
१२२२ १२२२ १२
जदल से ऊबती मेरी ग़ज़ल
मुहब्बत ढूँढती मेरी ग़ज़ल
कहाँ वो प्यार उल्फ़त का जहाँ
कलम से पूछती मेरी ग़ज़ल
कदूरत के समंदर चार सू
किनारा ढूँढती मेरी ग़ज़ल
न खिड़की है न रोशनदान है
जिया बिन सूखती मेरी ग़ज़ल
सुलगते तल्खियों के अर्श पे
सितारे गूँथती मेरी ग़ज़ल
लिखे हर बार लफड़े रोज के
कसम से टूटती मेरी ग़ज़ल
अमन का रंग गर मिलता यहाँ
दिलों को लूटती मेरी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 4, 2016 at 9:16am — 26 Comments
Added by vijay nikore on April 3, 2016 at 8:00pm — 12 Comments
(१)
जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो नफ़रत करते हैं
बेइंतेहाँ नफ़रत
जिनमें प्रेम करने की बेइंतेहाँ क्षमता होती है
उनके पास नफ़रत करने का समय नहीं होता
जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो अपने पूर्वजों के आखिरी वंशज होते हैं
(२)
तुम्हारी आँखों के कब्जों ने
मेरे मन के दरवाजे को
तुम्हारे प्यार की चौखट से जोड़ दिया है
इस तरह हमने जाति और धर्म की दीवार…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 3, 2016 at 3:01pm — 18 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 3, 2016 at 1:35pm — 7 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 3, 2016 at 1:32pm — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते
कि दादुर कूप के यारो कभी बाहर नहीं होते ।1
समर्थन पाक को हासिल हमारे बीच से वरना
कभी कश्मीर पर इतने कड़े तेवर नहीं होते।2
पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है
कभी मासूम हाथो में लिए पत्थर नहीं होते।3
बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में
कभी जयचंद जाफर तब छिपे भीतर नहीं होते।4
समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता
हमेशा इस सियासत में भरे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2016 at 9:41am — 14 Comments
Added by Rahila on April 2, 2016 at 8:00pm — 15 Comments
रोटी (लघु कथा )
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ऑफिस में लंच का वक़्त होते ही आज़ाद ने खाना खाने के बाद रोज़ की तरह बाहर आकर एक मिट्टी के बर्तन में पानी भरके पास में बाजरे के दाने डाल दिए ,ताकि चिड़ियाँ भी अपनी भूक और प्यास बुझ सकें | सामने दो कुत्ते भी इंतज़ार में खड़े हुए थे , आज़ाद ने बची हुई रोटी के दो टुकड़े करके उनकी तरफ फेंक दिए | ....... अचानक बड़ा कुत्ता एक टुकड़ा मुंह में दबा कर दूसरे टुकड़े की तरफ बढ़ने लगा , यह देख कर छोटा कुत्ता फ़ौरन आगे बढ़ा ,...... देखते ही देखते दोनों कुत्ते आपस में…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2016 at 12:16pm — 16 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 2, 2016 at 5:32am — 10 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on April 2, 2016 at 12:08am — 4 Comments
ग़ज़ल (क़ियामत से पहले )
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122 --122 --122 --122
जुदा हो गए हैं वो क़ुरबत से पहले |
क़ियामत उठी है क़ियामत से पहले |
तड़प आह ग़म अश्क वह इम्तहाँ हैं
जो होंगे मुहब्बत कि जन्नत से पहले |
कहीं बाद में हो न अफ़सोस तुम को
अभी सोच लो तरके उल्फ़त से पहले |
ख़ुशी ज़िंदगी भर भला किसने पाई
कई कोहे ग़म हैं मुसर्रत से पहले |
न इतराओ करके तसव्वुर किसी का
अभी ख़्वाब…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 1, 2016 at 9:35pm — 20 Comments
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