चेहरा तेरा चाँद का टुकड़ा
भौहें तनी कमान हैं क्या
इन आँखों में मैं मर जाऊँ
होंठों का तिल शान है क्या..2
तेरे तन की ख़ुशबू लेकर
फूल चमन में खिलते हैं
शायर तेरे हुशनो जवाँ की
दिल में किताबें लिखते हैं
उठी नज़र फिर झुक जाए तो
ढल जाती ये शाम है क्या
इन आँखों पे ...
तेरे लबों की बात करूँ तो
खिले कमल शर्माते हैं
तेरे क़दम जो पड़े जमी पे
शहंशाह झुक जाते हैं
तेरा खनकता स्वर गूंजा या
वीना की कोई तार है…
Added by Amit Tripathi Azaad on April 19, 2016 at 6:14pm — No Comments
घूरे के दिन भी संवरते ....
ज़िंदगी जो आज है
वह कल थी
किसी घूरे पर पड़ी मल
गंध से कराहती.
कोई पूंछने को न आता
सितारे दूर से निकल…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 19, 2016 at 5:30pm — No Comments
मेरे सपनों में अक्सर ही
आकर मुझे जागता है
गाँव मेरा मुझको फिर यारों
वापस मुझे बुलाता है
वो खलिहानों की पगडंडी
सड़क बन गई काली है
दीपक भी अब नहीं रह गए
लाइट चमक निराली है
जिनके ख़ातिर दूर गया तू
वो सब मुझे दिखाता है
गाँव मेरा ....
मिट्टी के घर नहीं रहे अब
ईंटों के माकान बने
निर्मल निश्चल दिल वाले
अब पत्थर के इंसान बने
दिन प्रति दिन उन पत्थर में
इंसान नज़र ना आता है
गाँव...
हरे भरे तालाब सूखकर खेलों के…
Added by Amit Tripathi Azaad on April 19, 2016 at 1:09pm — 3 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on April 19, 2016 at 9:36am — 5 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 17, 2016 at 8:52am — 6 Comments
कन्या दान के बाद से बिदाई तक लगातार रोती रही । रोते रोते सोफे पर बेसुध सी पडी़ रही।सभी बिदाई में व्यस्त जो थे।
दादा जी ने गोदी में उठाया,"उठ बिट्टो खाना खा ले, बुआ तो गई।"
तुनक कर गुस्से से बोली "नहीं कुछ नहीं खाउंगी आपने मेरी कल्लो बुआ और लाली बछिया दोनों को दान में दे दिया।बुआ को दूल्हा अपने साथ ले गया।"
"बुआ की शादी हुई है बिट्टो,बे तुम्हारे फूफा जी है।"
"कोई फूफा जी नहीं, मैं और बुआ दोनों रोते रहे फिर भी बुआ को साथ ले गए।"
"अगले हफ्ते ले आयेगे बुआ को।"
"अब…
Added by Pawan Jain on April 17, 2016 at 7:30am — 5 Comments
Added by ram shiromani pathak on April 16, 2016 at 2:25pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
खोटा सिक्का हो गया है आज अय्यारों का फन
हर तरफ छाया हुआ है आज बाजारों का फन
कर रही है अब समर्थन पप्पुओं की भीड़ भी
क्या गजब ढाने लगा है आज गद्दारों का फन
हौसला देते जरा तो क्या गजब करती सुई
आजमाने में लगे सब किन्तु तलवारों का फन
पुल बने हैं कागजों पर कागजों पर ही नदी
क्या गजब यारो यहा आजाद सरकारों का फन
पास जाती नाव है जब साथ नाविक छोड़ता
आपने देखा न होगा यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 16, 2016 at 11:21am — No Comments
Added by दिनेश कुमार on April 15, 2016 at 6:08pm — 4 Comments
चिंचोली की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा हैं
छद्म भेष में प्रतिद्वंदी समाज को धोखा देता है
स्ंग्रहालय के संरक्षण मे करते कितना खोट
कुर्सी के लालच में फंस समाज पे करते चोट
जर-जर होकर फट रही आज तेरी टाई कोट
तेरी निशानी मिटती देख बाबा हम शर्मिंदा है
चिंचोली की दशा देखकर बाबा हम शर्मिंदा हैं
छद्म भेष में प्रतिद्वंदी समाज को धोखा देता है
टंकण मशीन धूल खा रही मेरे कर्मो में खोट
भारत का संविधान लिख बाबा ने किया भेंट
तेरी धरोहर आज…
ContinueAdded by Ram Ashery on April 15, 2016 at 3:30pm — No Comments
तुम तो जिगरी यार हो
==================
दोस्त बनकर आये हो तो
मित्रवत तुम दिल रहो
गर कभी मायूस हूँ मैं
हाल तो पूछा करो ..?
-------------------------------…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 15, 2016 at 1:00pm — 4 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 15, 2016 at 12:00am — 9 Comments
बह्र : 1212 1122 1212 22
जहाँ में पाप जो पर्वत समान करते हैं
वो मंदिरों में सदा गुप्तदान करते हैं
लहू व अश्क़, पसीने को धान करते हैं
हमारे वास्ते क्या क्या किसान करते हैं
कभी मिली ही नहीं उन को मुहब्बत सच्ची
जो अपने हुस्न पे ज़्यादा गुमान करते हैं
गरीब अमीर को देखे तो देवता समझे
यही है काम जो पुष्पक विमान करते हैं
जो मंदिरों में दिया काम आ सका किसके?
नमन उन्हें जो सदा रक्तदान करते…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2016 at 10:10pm — 14 Comments
तुम गए तो प्राण का जाना लिखा
बिन तेरे निःश्वांस हो जाना लिखा।
देखिये ना प्रेम की जादूगरी
स्वयं को मीरा तुम्हें कान्हा लिखा।।1।।
जब कभी भी पूर्णिमा का चाँद निकला
खिडकियों से झांककर आगे चला।
भाग कर छत पर गया देखा तुम्हें
और झट से तेरा आ जाना लिखा।।।।2।।
एक भीनी सी सुरभि जब भी कभी
मेरे कमरों की हवाओं में घुली।
मैंने खुद को फिर मचलता देखकर
रात रानी का महक जाना लिखा।।3।।
जब कभी अवसाद सागर में मेरी
नाव मन की…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 14, 2016 at 6:35pm — 10 Comments
दोपहर का समय था।सूर्य की प्रचंड किरणें आग के गोले बरसा रही थी।रश्मि अभी-अभी काॅलेज से आई थी, जबकि रूपेश अपने आॅफिस से पहले ही आ चुका था।
परंतु आते ही आज फिर वही बात हो गई जो प्रायः इस समय घटित होती थी।प्रतिदिन लडाई जूते-चप्पलों को सही जगह पर रखने को लेकर होती थी।ज्योंही रश्मि ने रूपेश के जूतों को बैडरूम में देखा तो वह भडक उठी।
"अपने आप को एक मैनेजिंग डायरेक्टर कहते हुए शर्म नहीं आती, न जाने अपने जूतों को भी सही जगह पर मैनेज करना सिखोगे_ _ _ _।"
"तुम किसलिए हो? इतना भी…
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 14, 2016 at 9:30am — 10 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 13, 2016 at 2:15pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 13, 2016 at 8:28am — 7 Comments
Added by amita tiwari on April 12, 2016 at 11:06pm — 4 Comments
आईने तो आईने हैं ...
क्यूँ ,आखिर क्यूँ
आईनों से बात करते हो
ये करीबियां ये दूरियां
सब फ़िज़ूल हैं
कांच के टुकड़ों की तरह
टूटे हुए ज़ज़्बात
कब जुड़ पाते हैं
गर्द की आंधियां
ज़र्द पत्तों पर ही कहर ढाती हैं
बेज़ान जिस्मों पर
कब कोई तरस खाता है
बेमन से ही सही
हर कोई उसे ख़ाके सुपुर्द कर जाता है
कुछ भी तो हासिल न होगा
यूँ अपने अक्स से बात करके
हर सवाल मुंह चिढ़ाएगा
हर जवाब मुहं मोड़ जाएगा
आँखों का भीगापन…
Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 9:49pm — 2 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on April 12, 2016 at 8:50pm — 3 Comments
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