Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 26, 2016 at 8:29pm — 4 Comments
तपकर लोहा आग में, बन जाता फौलाद,|
मात-पिता की आँच में, संस्कारी औलाद |
संस्कारी औलाद, प्रगति में हाथ बँटाते
करते जो पुरुषार्थ, काम से कब घबराते
कह लक्ष्मण कविराय,युवक ले शिक्षा जमकर
सक्षम और कुशाग्र, बने गुरुकुल में तपकर |
सुनकर लंबित फैसला, विधवा हुई निढाल
दुख सहते वादी मरा, घर का खस्ता हाल |
घर का खस्ता हाल, हुई जब पेंशन लंबित
सुनने हक़ में न्याय, हुआ न वहाँ उपस्थित
लक्ष्मण माँगे न्याय, परिस्थिति हो जब…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 26, 2016 at 5:00pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 25, 2016 at 11:02pm — 15 Comments
1222-1222-1222-1222
दिवाना आप का होकर फिरे वो यार बरसों से
लिए फिरता है दिल में वो तो तेरा प्यार बरसों से
हुआ है ज़िक्र महफ़िल में उसी की बात का लेकिन
बना रहता है वो मजनू करे दीदार बरसों से
अदालत ये अनोखी है जहाँ पे झूठ चलता है
हुए कैदी मिली फांसी जो थे सरदार बरसों से
जरा दिल की सुनो तो जी बड़ा मासूम भोला है
पड़ा धोखे में जाकर ये लुटा घर बार बरसों से
मेरे मौला सफर में हूँ अता कर फ़िक्र ना मुझको
दे वो ढूँढा…
Added by munish tanha on April 25, 2016 at 10:00pm — 3 Comments
१२२/१२२/१२२/१२
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कोई राज़ मुझ पर खुला देर से,
वो आँसू वहीँ था,, बहा देर से.
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चिता की हुई राख़ ठंडी मगर,
सुलगता हुआ दिल बुझा देर से.
.
मैं दुनिया से लड़ने को तैयार था,
मगर ..ख़त तुम्हारा मिला देर से.
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तेरा नाम धडकन पे गुदवा लिया,
ये ताबीज़ मुझ को फला देर से.
.
हमारी सिफ़ारिश फ़रिश्तों ने की,
मगर आसमां ही झुका देर से.
.
अजब सी नमी लिपटी हर्फ़ों से थी,
वो ख़त तो जला पर जला देर से.
.
कई खेत…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2016 at 8:32pm — 23 Comments
Added by amita tiwari on April 25, 2016 at 8:00pm — 3 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २
हँसते दर्पण जब जब तेरी आँखों के
रफ़्ता रफ़्ता महके गुलशन साँसों के
धीमे धीमे होती है ये रात जवाँ
ख़्वाब मचलते हैं प्यासे पैमानों के
कैसे डूबे भँवरों में किश्ती नादां
सिखलाते हमको गड्ढे रुखसारों के
गोया नभ से चाँद उतर आया कोई
चेह्रे से हटते ही साए बालों के
पार उतर आये हम तूफां से बचकर
मस्त सफीने पाए तेरी बाहों के
खूब शफ़ा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 25, 2016 at 8:00pm — 19 Comments
मरणोपरांत मृतक युवक के कर्मो का हिसाब किताब करने की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी। दूसरी दुनिया का दरोगा लेखा-जोखा देखने वाले से पूछताछ कर रहा था ।
"इस लड़के की उम्र विधाता ने कम लिखी थी क्या? "
"नहीं दरोगा साहब! उम्र तो खूब लिखी थी। लेकिन इसने खुदकुशी कर ली ।"
"क्यूं? "
"इसका इम्तेहान चल रहा था, पर ये बीच में ही भाग निकला। "
"क्यूं क्या इसने जीने की कला नहीं सीखी? "
"नहीं, ये सतयुग के प्राणी नहीं, कलयुग की खुदपरस्त पीढ़ी है।ना सब्र,ना मर्यादा, ना अनुशासन और ना…
Added by Rahila on April 25, 2016 at 7:30pm — 49 Comments
165
ये गठरी!
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ये गठरी!
कब होगी हलकी,
परायों के समानार्थी,
अपनों के कर्ज से छलकी!
मूलाॅंश को पटाने की
योजना बनाई मैंने,
तत्क्षण,
अपनी अपनी व्याज दर बढ़ाई इन्होंने।
जिंदगी की रेलगाड़ी,
कभी पा न सकी पटरी!
कुछ लोग,
सुखपूर्वक जीते हैं,
कर्ज लेकर भी घी पीते हैं!
और,
चुकाने के नाम पर---
देते हैं धमकी!
सुख! क्या है?
क्या पता।
घर! क्या है?
नहीं सकता बता।
किराये की…
Added by Dr T R Sukul on April 25, 2016 at 6:19pm — 6 Comments
121-22 121-22 121-22 121-22
ख़ुशी में तू है,है ग़म में तू ही,नज़र में तू, धड़कनों में तू है ।
मैं तेरे दामन का फूल हूँ,माँ मेरी रगों में तेरी ही बू है ।।
हरेक लम्हा सफ़र का मेरे ,भरा हुआ है उदासियों से ।
ये तेरी आँखों की रौशनी है, जो मुझमे चलने की आरज़ू है ।।
है तेरे क़दमों के नीचे जन्नत, ज़माना करता तेरी इबादत ।
तेरे ही रुतबे का देख चर्चा, माँ सारे आलम में चार सू है ।।
तमाम है रौनके जहाँ में ,जो बेकरारी नज़र में भर दें ।
मगर जो खाता है…
Added by मनोज अहसास on April 25, 2016 at 3:00pm — 9 Comments
चिन्तामग्न
तुमसे मिलने पर
और तुमसे न मिलने पर भी
काँपते हुए, डरे हुए
पिघलते हुए प्रश्न
व्यथाओं की उलझन के अंतर्वर्ती विस्तार में
दर्दीली रातों में द्वंद्व की आड़ी-टेड़ी…
ContinueAdded by vijay nikore on April 25, 2016 at 1:30pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on April 25, 2016 at 10:28am — 9 Comments
किस तरह का ये कहो नाता है
उनके बिन पल न रहा जाता है
लूट ले जाता है खुशियाँ सारी
उसका जाना न हमें भाता है
रात लाती है उम्मीदें लेकिन
दिन का सूरज हमें तड़पाता है
धूल हो जाते हैं अरमां सारे,
चैन इस दिल को नहीं आता है
रात आती है सितारे लेकर
चाँद रातों की नमी लाता है
मौलिक/अप्रकाशित.
Added by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
" क्यों बे तुझे कहा था ना चाय देके जल्दी आ जाना पर तू यहाँ टीवी देखते खड़ा है। वहां काम कौन करेगा तेरा बाप ? चल दूकान पे। " लडके पर झल्लाते हुए चायवाले ने कहा।
" बस एक ओवर देख के आता हूँ भैयाजी। आखरी ओवर है जीत-हार की बात है। " उत्सुकता से आईपीएल देख रहे लड़के ने कहा।
" अबे एक ओवर के बच्चे, वहाँ चार ओवर जितने गिलास जमा हो गए है, चल बोला ना। " चायवाले ने फिर चिल्लाते हुए कहा।
" हाँ हाँ भैयाजी चल रहा हूँ। और ये आऊट। येsssss मैच जीत गये भैयाजी। " ख़ुशी में झूमते हुए लड़का चिल्लाया और…
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on April 24, 2016 at 4:30pm — 4 Comments
212 212 212 212
चार दीवारें भी हों छतों के लिये
और क्या चाहिये मुफलिसों के लिये
महफिलें भूख की हो रहीं हैं ज़बां
है सियासत मगर रहबरों के लिये
अत्ड़ियाँ पेट की घुटनों से मिल गईं
अब कहाँ तक झुकें रहमतों के लिये
जिन दरख्तों तले पल रहा आदमी
प्यार की हो नमी उन जड़ों के लिये
लाख दौलत अकूबत है हासिल जिन्हें
वो तरसते मिले कहकहों के लिये
ठोकरें नफरतें झिड़कियों के सिवा
और…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
अपनी क्षमता से अधिक भारी दाना उठा कर धीरे-धीरे दीवार पर चढती एक चींटी को देख उसके साथ चल रही दूसरी चींटी चौंकी और उसने कहा, "इतना भारी दाना! तुम फिसल जाओगी|"
पहली चींटी कुछ क़दमों ही में हांफ चुकी थी, लेकिन उसने दृढ शब्दों में उत्तर दिया, "कल सभा में हमारे नेता हाथी ने कहा था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, चींटियों को भारी से भारी दाना उठाना चाहिये, तभी हमारी गरीबी खत्म होगी, हमारे सपने पूरे होंगे|"
दूसरी ने मुस्कुरा कर कहा, "लेकिन अपने सामर्थ्य के अनुसार ही कोशिश…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 24, 2016 at 3:00pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२ आप पहले झोपडी तो इक बनाकर देखिये ख्वाब फिर महलों के भी दिल में सजा कर देखिये मैं नहीं हूँ तो हुआ क्या ये ग़ज़ल मेरी तो है मेरी गजलें भी कभी तो गुनगुना कर देखिये जिस तरफ देखोगे, तुमको बस नजर आयेंगे हम है मगर बस शर्त इतनी मुस्कुराकर देखिये है विरह के बाद में ही यार मिलने का मज़ा आग पहले ये विरह की खुद लगा कर देखिये चीज़ मय अच्छी… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2016 at 2:00pm — 13 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २
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जब धरती पर रावण राजा बनकर आता है
जो सच बोले उसे विभीषण समझा जाता है
केवल घोटाले करना ही भ्रष्टाचार नहीं
भ्रष्ट बहुत वो भी है जो नफ़रत फैलाता है
कुछ तो बात यकीनन है काग़ज़ की कश्ती में
दरिया छोड़ो इससे सागर तक घबराता है
भूख अन्न की, तन की, मन की फिर भी बुझ जाती
धन की भूख जिसे लगती सबकुछ खा जाता है
करने वाले की छेनी से पर्वत कट जाता
शोर मचाने वाला…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2016 at 1:38pm — 8 Comments
अगर मैं मर जाऊँ, प्रियतमा मत रोना तुम।
स्वर्ग लोग की तभी, घण्टियाँ सुन पाओगी।
अधम पतित संसार, को देना सूचना तुम।।
एक रूह इस जगत, अपावन से अब चल दी।।
तू ये रचना पढ़े, रचयिता याद न आये।
चाहत तो थी कई, किन्तु चाहत है ये अब।
दीवाना ये मनस, नगर में रह ना पाये।।
क्योंकि यदि सोचोगे, शोक में डूबोगे तब।।
जबकि माटी होकर, गीत ये लिखता हूँ मैं।
कहीं प्रेम का भाव, न जग जाये फिर तुझमें।
हो ना तू बदनाम, प्रियतमा डरता हूँ मैं।
मेरा नाम तलाश,…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 24, 2016 at 9:00am — 2 Comments
लघुकथा : " बेटी का भाग्य "
" आज कुछ परेशान से दिख रहे हो, क्या बात है ? चाय बना के लाऊँ ?" पत्नी ने पूछा...
" हाँ ! पर थोड़ी कड़क। " पति ने कहा...
कुछ देर बाद...
" ये लो तुम्हारी कड़क चाय, अब बताओ बात क्या है ? " पत्नी ने चाय का प्याला देते हुए कहा...
" आज पुरुषोत्तम जी मिले थे, उनकी बेटी दो दिनों से लापता है। कोचिंग गई थी पर लौटी नही उसके बाद से। " पति ने चाय का घूँट लेते हुए कहा...
" अरे... तो कोचिंग में पता किया के नही उन्होंने ? " पत्नी ने हैरान होते हुए…
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on April 24, 2016 at 2:09am — 6 Comments
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