2122 1212 22/112
ग़ज़ल
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आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला…
Added by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 5:30pm — 44 Comments
जब से पिया गए परदेस ...
प्रेम हीन अब
इस जीवन में
कुछ भी नहीं है शेष
जब से पिया गए परदेस//
नयन घट
सब सूख गए
बिखरे घन से केश
जब से पिया गए परदेस//
दर्पण सूना
हुआ शृंगार से
सूना हिया का देस
जब से पिया गए परदेस//
लगे दंश से
बीते मधुपल
दीप जलें अशेष
जब से पिया गए परदेस//
बिरहन का तो
हर पल सूना
रहे अश्रु न शेष
जब से पिया गए…
Added by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 4:54pm — 14 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 2, 2016 at 4:30pm — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2016 at 8:22am — 14 Comments
मज़दूर दिवस – ( लघुकथा ) -
कारखाने में मज़दूर दिवस मनाया जा रहा था! मंच पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान थे! उनके दायीं ओर प्रदेश के मुख्य मंत्री और बायीं तरफ़ कारखाने के मालिक सेठ धनपति लाल मौज़ूद थे!
कारखाने के चुंनिंदा कामगारों को सम्मानित किया जाना था! सर्वश्रेष्ठ कामगार का पुरुस्कार सुखराम को मिलना था! सेठ जी ने माइक पर जैसे ही संबोधित करना शुरू किया! तभी सेठ जी के सैक्रेटरी ने सेठ जी के कान में बताया “आपके कार्यालय के ए सी को जांच करते समय…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 1, 2016 at 3:00pm — 28 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2016 at 1:00pm — 21 Comments
१२१२ /११२२ /१२१२ /२२ (११२)
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कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो,
जो कश्तियाँ नहीं लौटीं उन्हें दुआ में रखो.
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ग़ज़ब सितम है इसे यूँ अलग थलग रखना,
शराब ज़ह’र नहीं है इसे दवा में रखो.
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इधर हैं बाढ़ के हालात और उधर सूखा,
हमारी दीदएतर अब, उधर फ़ज़ा में रखो.
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शबाब हुस्न पे आया तो है मगर कम कम,
है मशविरा कि हया भी हर इक अदा में रखो.
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तमाम फ़ैसले मेरे तुम्हे लगेंगे सही,
अगर जो ख़ुद को कभी तुम मेरी क़बा में रखो.
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ज़बां…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 12:28pm — 20 Comments
ग़ज़ल (उल्फत का रंग है )
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221 --2121 --1221 ---212
ऐसा लगे है चढ़ गया उल्फत का रंग है ।
जो कल मेरे ख़िलाफ़ था वह आज संग है ।
वह मेरे पास बैठ गए सब को छोड़ के
यूँ हर कोई न देख के महफ़िल में दंग है ।
तरके वफ़ा का मश्वरा मत दीजिये हमें
सब जानते हैं आपका ये सिर्फ ढंग है ।
जिस दिन से जायदाद गए बाप छोड़ कर
घर तब से बन गया मेरा मैदाने जंग है ।
मैं एक क़दम…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2016 at 9:37am — 16 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 1, 2016 at 9:02am — 4 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on April 30, 2016 at 9:01pm — 14 Comments
22-22-22-22-----22-22-22-2
जीवन पथ में, तेज़ धूप, तुम घने पेड़ की छाया माँ।
इस मन्दिर सा पावन दूजा, मन्दिर कहीं न पाया माँ।।
जब भी दुख के बादल छाये, मन तूफ़ाँ से घिरा कभी।
इस चेहरे पर दर्द की रेखा, और कौन पढ़ पाया माँ।।
तुम अपने सारे बच्चों को, कैसे बांधे रखती हो।
जबकी सबके अलग रास्ते, फिर भी एक बनाया माँ।।
विह्वल व्यथित हृदय की धड़कन, ज्यूँ अमृत पा जाती है।
जब भी सर पर कभी स्नेह से, तुमने हाथ फिराया माँ।।
जब भी दर्द यहाँ उट्ठा है, चोट कहीं…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 30, 2016 at 1:30pm — 10 Comments
Added by amita tiwari on April 29, 2016 at 10:00pm — 9 Comments
अनाम ख़त
चेरी के फूल जैसे
मुरझाये हुए शब्दों को
जब छु जायेंगी तुम्हारी नफ्स
तो शायद,यह फिर से सब्ज़ हो खिलें
और हाँ, इनके पीछे
छुपे हुए अर्थों की खुश्बू
उड़ने लगे तुम्हारे कमरे में
सावन के बादलों-सी बेचैनी
मंडराएगी सिने पे कहीं
और जब तुम्हारी आँखों से बरसेगी झड़ी
होंठ पे उगती इक नन्ही मुस्कान
यूँ ही दब जायेगी दर्द के ओलों से
तब यह मुर्दे शब्द और भी सजीव लगेंगी
तो क्या…
ContinueAdded by Rajkumar Shrestha on April 29, 2016 at 2:30pm — 3 Comments
22-22-22-22----------2212-1222
सोते रहिये, किसने टोका, जगना कहाँ ज़रूरी है?
ढ़ोते रहिये, जीवन बोझा, रखना कहाँ ज़रूरी है?
क्या मतलब है, और किसी से, अपने रहें सलीके से।
लिखते रहिये, इन पन्नों से, हटना कहाँ ज़रूरी है।।
घर से बाहर, भूले से भी, मेहनत ज़रा न करियेगा।
चिंतन करिये यूँ ही, कुछ भी, करना कहाँ ज़रूरी है।।
राहों में घायल को छोड़ें, व्याकुल पड़े ही रहने दें।
कलयुग में सिद्धार्थ का बुद्धा,बनना कहाँ ज़रूरी है।।
रावण…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 28, 2016 at 8:00pm — 11 Comments
1. रोशनी ....
क्या ज़मीं
क्या आसमां
हर तरफ
चटख़ धूप है
सहर से सांझ तक
उजालों की बारिश है
बस, तुम आ जाओ
कि मेरी तारीकियों को
रोशनी मिले //
२. यकीन ....
चटख धूप में भी
अब्र चैन नहीं लेते
आधी सी धूप में
आधी सी बारिश है
जैसे अधूरी सी ज़िंदगी की
अधूरी से ख्वाहिश है
सबा भी बेसब्र नज़र आती है
लगता है कोई रूठा पल
मिलन को बेकरार है
शायद कोई वादा
मेरी तन्हाई में
आरज़ू-ऐ-शरर बन के…
Added by Sushil Sarna on April 28, 2016 at 2:27pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
इस तरह इक औ नया रिश्ता यहाँ बनता गया
आप हम से ना मिले औ दिल गरां बनता गया
दिल से दिल मिलने लगे जब तो जहाँ बनता गया
प्यार से भरपूर रोशन आशियाँ बनता गया
मिल फकीरों की दुआ से फायदा ये है हुआ
घर मेरा भी धीरे - धीरे आस्तां बनता गया
मैं पलटने जब चला किस्मत तो खाली हाथ था
मेहनत के साथ फिर तो कारवां बनता गया
रोज कुछ बाजार से लाने की आदत बन गयी
और फिर तो घर में मेरे…
ContinueAdded by munish tanha on April 28, 2016 at 9:00am — 5 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
ये दिमागी बुखार टेढ़ा है
यही सच है कि प्यार टेढ़ा है
स्वाद इसका है लाजवाब मियाँ
क्या हुआ गर अचार टेढ़ा है
जिनकी मुट्ठी हो बंद लालच से
उन्हें लगता है जार टेढ़ा है
खार होता है एकदम सीधा
फूल है मेरा यार, टेढ़ा है
यूकिलिप्टस कहीं न बन जाये
इसलिए ख़ाकसार टेढ़ा है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 27, 2016 at 10:43pm — 15 Comments
हौले हौले-(ग़ज़ल - एक प्रयास)
बहर -२२ २२ २२ २
हौले हौले रात चली
हौले हौले बात चली !!१!!
हौले हौले होंठ हिले
हौले से बरसात चली !!२!!
हौले हौले आँखों में
प्यासी प्यासी रात चली !!३!!
हौले हौले जीत हुई
आलिंगन की बात चली !!४!!
हौले हौले ख़्वाबों की
आँखों से बरसात चली !!५!!
हौले हौले आँखों से
जागी जागी रात चली !!६!!
हौले हौले वो महकी
जुगनू की बारात चली !!७!!
सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on April 27, 2016 at 4:40pm — 15 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on April 27, 2016 at 2:15pm — 7 Comments
सुधि आँगन ....
याद आये वो बैन तुम्हारे
तृषित नयनों का सिंगार हुआ
संग समीर के
उलझी अलकें
स्मृति कलश से फिर
छलकी पलकें
याद आये वो अधर तुम्हारे
फिर मूक पल हरसिंगार हुआ
स्मृति मेघों की
निर्मम गर्जन
देह कम्पन्न का
करती अभिनन्दन
याद आये वो स्पर्श तुम्हारे
आलिंगन क्षण अंगार हुआ
जब देह से देह की
गंध मिली
तब स्वप्निल पवन
मकरंद चली
याद आये…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 26, 2016 at 9:41pm — 8 Comments
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