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गजल(रात जब मुझको मिली...)

2122 212 2212

रात यूँ रसने लगी मेरी गजल

राग बन बहने लगी मेरी गजल।1



रोशनी हूँ चाँद की सुन लो सनम!

कान में कहने लगी मेरी गजल।2



फिर चली पुरवा सुहानी मंद-सी

कँपकपा गहने लगी मेरी गजल।3



अधखुले-से केश लहराते गगन

पाश में कसने लगी मेरी गजल।4



गुम हुई सहमे रदीफों की हवा

काफिये ढ़लने लगी मेरी गजल।5



चौंधिआयी आँख तारक मल रहे

प्रेम-रस पगने लगी मेरी गजल।6



धड़कनें अब थामकर बैठा 'मनन'

साँस बन चलने लगी मेरी… Continue

Added by Manan Kumar singh on May 28, 2016 at 6:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल - तड़प रहा हूँ मगर मुस्कुरा रहा है कोई

तड़प रहा हूँ मगर मुस्कुरा रहा है कोई

सितम पे और सितम आज ढा रहा है कोई



अदाओं नाज़ से दामन बचा रहा है कोई

की आज मुझसे निगाहें चुरा रहा है कोई



सहूंगा कैसे मैं ग़म अर्स-)ए जुदाई का

बिछड़ के मुझसे बहुत दूर जा रहा है कोई



हवाएं बुग्जो अदावत की लाख तेज़ सही

मग़र चराग़ वफ़ा के जला रहा है कोई



कमा के नेकियाँ फिर आज आखरत के लिए

नये मकान का नक्शा बना रहा है कोई



वफ़ा ही करता रहा आज तक मगर "रिज़वान"

नज़र से अपनी मुझे क्यूँ गिरा रहा है… Continue

Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 28, 2016 at 3:30pm — 6 Comments

रिश्ते खून और धर्म के या..............

रिश्ते खून और धर्म के या..............
सुबह  के ८ बज गए थे, बिस्तर  छोड़ने का मन नहीं था, सोचा आधा घण्टा और सो लू ,तभी  पत्नी ने आवाज लगाई ,सुनो  मन्सूर अंकल' आये है, मैं कसमसा कर बिस्तर से उठा, ये मन्सूर अंकल  न सुबह देखते है ना शाम और कभी-कभी तो रात को ११ -१२ बजे भी बेल  बजा  देते है, अभी पिछले माह रात को १२ बजे बेल बजी…
Continue

Added by Rajendra kumar dubey on May 28, 2016 at 3:30pm — 10 Comments

कर्तव्य पथ (सुरेश कुमार ' कल्याण '

हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।

अंधेरा देख तू खिन्न मत हो,
उजाला देख तू प्रसन्न मत हो,
न जाने फूल सी ये जिन्दगी
कब मुरझा जाए,इसलिए
हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।

इन्सान से तू द्वेष न कर,
सच कहता हूँ भगवान से डर,
तुझे इसका फल तो पाना होगा,
'हम हैं राही प्यार के'इसलिए
हमें शूलों पर भी चलना होगा,
कर्तव्य पथ पर बढना होगा।

मौलिक व अप्रकाशित
सुरेश कुमार ' कल्याण '

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 28, 2016 at 10:06am — 2 Comments

टू इन वन (लघुकथा)राहिला

"बड़ी जटिल समस्या में फंस गये हो भई! "

"ये आप क्या कह रहें हैं बाबा! हम तो बड़ी आस लेकर आये हैं आपके पास, देखिये कल रात कैसी लाल नीली पीठ कर दी इसने!"

"अरे ब्याहनें एक गये और दो-दो ब्याह के लाओगे तो और क्या होगा? "

"दो -दो मतलब? "

"मतलब ये दूल्हे राजा!कि ये जो दीख रही है ना, ये तो तू जान के ले आया और जो तेरा ये हाल कर रही है वो तो अनजाने में तुझसे बंध गई। "

"मतलब? "जितना उसकी समझ में आया उससे, उसके पसीने छूट गये ।

"मतलब, मतलब ना कर छोरा !ये जो दूजी है किसी से धोखा… Continue

Added by Rahila on May 28, 2016 at 7:00am — 4 Comments

मनहरण घनाक्षरी

मंद चलती पवन , शांत रहती अगन,
भोर सा उल्लास प्रभु आठों याम चाहिए,
तप्त धरती गगन , और जलता बदन,
ग्रीष्म प्रभू और नहीं ना ही घाम चाहिए,
आयें घन लिए नीर हरें व्याकुलों कि पीर,
एक वरदान भगवान राम चाहिए,
एक बनें नेक बनें, हिलमिल सब रहें,
वसुधा पे ऐसा प्रभु सुखधाम चाहिए ||


मौलिक/अप्रकाशित.

Added by Ashok Kumar Raktale on May 27, 2016 at 10:48pm — 7 Comments

पहचान

पहचान - लघुकथा



"बाऊजी, मैं तो बस इतना कहना चाहता हूँ कि आप घर से बाहर जाया करे तो कुछ अच्छे कपड़े पहन लिया करें।" कुछ ही दिन पहले गाँव से आये पिता को घर से बाहर सोसाइटी में निकलने के मद्देनजर बेटा समझा रहा था।

"पर बेटा, मेरे कपड़े पहनने लायक के साथ-साथ साफ़ सुथरे भी होते है और मैं नहीं समझता कि इस पहनावे के कारण तुम्हारे मान-सम्मान को कोई ठेस पहुँच सकती है।"

"बाऊजी अब कैसे समझाऊं आपको ? यहाँ हमारे गांव के लोग या हमारे गांव की चौपाल नहीं है....." बेटे ने अपने नजरिये से बात… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 27, 2016 at 10:46pm — 8 Comments

वंदना- दुर्मिल सवैया

तव भक्त पुकार रहा कब से,

अब आय प्रभो! कर शीश धरो।

मन में अँधियार घना बढ़ता,

तम-बंधन काट प्रकाश भरो।।

बस एक सहाय प्रभो! तुम ही,

दुविधा-दुख-संकट धाय हरो।

मम डूब रही नइया मग में,

भवसागर से प्रभु! पार करो।।1।।



मधुसूदन! द्वार परा कब से,

निज दर्शन दे उपकार करो।

तुम दीनन के दुख तारन हो,

दुविधा-दुख मोर अपार हरो।

प्रभु! ज्ञानद-प्रेमद-पुंज तुम्हीं,

उर ज्ञान-प्रभा-चिर-प्रेम भरो।

कमलापति हे! कमला सँग ले,

मन-मन्दिर मोहि सदा… Continue

Added by रामबली गुप्ता on May 27, 2016 at 3:00pm — 5 Comments

कलाधर छंद.....धन्यवाद ज्ञापन

कलाधर छंद............धन्यवाद ज्ञापन

(१)

 

धन्यवाद ज्ञाप  आज आपका विशेष  श्लेष वंदना करूं  यथा प्रणाम राम-राम है.

दूर - दूर से  यहां   पधार के  पवित्रता   सुमित्रता दिया  हमें  अवाम राम-राम है.

शब्द भाव भक्ति ज्ञान दे रहे सुवृत्ति मान सत्य सूर्य-चंद्र मस्त श्याम राम-राम है.

आपके सुयोग से   रचे गये सुपंथ मंत्र   भव्य का प्रणाम   ब्रह्म- धाम राम-राम है.

 

(२)

धन्य-धन्य भाग्य है कि धन्य है सुभारती कि धन्य स्थान काल दिव्य आरती…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 27, 2016 at 9:00am — 8 Comments

अपनी क़बा में .....

अपनी क़बा में .....

अहसासों की कभी

हदें नहीं होती

नफ़स और नफ़स के दरमियाँ

ये ज़िंदा रहते हैं

ये तुम्हारा वहम है कि

तुम मुझसे दूर हो

तुम जहां भी हो

मेरी साँसों की हद में हो

तुम कस्तूरी से

मेरी रूह में बसे हो

हर शब मैं तुम्हारी महक से लिपट

परिंदा बन जाती हूँ

तुम से मिलने की

इक अज़ीब सी ज़िद कर जाती हूँ

बंद पलकों में

तुम्हारे ख़्वाबों की दस्तक से

रूह जिस्मानी क़बा से

बाहर आ…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 26, 2016 at 8:14pm — 2 Comments

भैंस का शाप - (हास्य कविता )

ब्रेकिंग समाचार

भैंस ने दूधिये कों मारी लात

दूध देने से किया इनकार

भ्रस्टाचार अब सहन नही

भैंस संघ का पलट वार

भैंस बोली सुनो ओ दूधिये

भ्रष्टाचार से तेरा गहरा नाता

देती मैं तुझको दूध खालिस

तू जी भर उसमे पानी मिलाता

चकित दूधिया पलट कर बोला

ये तों मेरा जन्म सिद्ध अधिकार

जानो वंशागत तेरी मेरी गति

सुन दूध देना तेरा है संस्कार

खालिस दूध कोई हजम न कर पाए

पी भी गया तों शीघ्र डाक्टर बुलवाए

दूधिया बोला सुन तू काली…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 26, 2016 at 12:00pm — 2 Comments

संघर्ष - डॉo विजय शंकर

कभी यूं भी हुआ ,
मैं हारा ,
कोई गम नहीं।
हौसला कितनों का टूटा ,
किसी ने गिना नहीं।
--------
लोग दंग थे ,
जो जीता ,
उसे भी ,
कुछ मिला नहीं ।
--------
मैं हार कर भी खुश था ,
कुछ गया नहीं।
वो जीत कर भी ,
रोया , हाय , कुछ ,
कुछ भी , मिला नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on May 26, 2016 at 11:00am — 6 Comments

ग़ज़ल - बदलना भी ज़रूरी है सदा अच्छा नही रहता

1222-1222-1222-1222

ग़ज़ल

बदलना भी ज़रूरी है सदा अच्छा नही रहता

खुदा से प्यार करते हो तो फिर पर्दा नही रहता

हमारे सामने देखो बना अफसर से वो माली

दिनों का फेर है साहिब सदा पैसा नहीं रहता

बने गद्दारहै जो घूमें करें हैं देश से धोखा

उन्हें फिर मौत मिलती है निशां उनका नहीं रहता

जमीं तिड्की हलक प्यासे तडपते है परिंदे भी

लगाये पेड़ जो होते तो फिर सूखा नही रहता

ये नफरत की हैं दीवारें इन्हें तुम तोड़ दो वरना…

Continue

Added by munish tanha on May 26, 2016 at 9:30am — 3 Comments

ग़ज़ल :शिकस्ता दिल है...

1222×4



शिकस्ता दिल है, रंजोग़म से ये क्योंकर उबर जाए

जज़ा ये है अब आँखों में ज़रा ख़ूँ भी उतर जाए.



हम एेसे सच्चे दिल का हैं ख़तावार आज ऐ यारो

कि चलने भी न संगे राह दे, तल्वीम कर जाए.



कहाँ कुछ बदले हैं हालात मेरे चंद सालों में

लकीरे दस्त पे कोई मेरे भीतर विफर जाए.



कदम इन कुर्सियों पे बैठ कर बस धुन हीं लेता हूँ

ये पा ए पीर क्या निकले भी घर से और घर जाए.



बहुत दिन एक से हालात में गुज़री ह़यात,अब तो

कोई लम्हा तसल्ली… Continue

Added by shree suneel on May 26, 2016 at 12:32am — 6 Comments

देश को आगे बढ़ाओ नौजवानों बढ़ चलो तुम |

२१२२       २१२२     २१२२         २१२२
देश को आगे बढ़ाओ  नौजवानों बढ़   चलो तुम   |
सो रहे जो आलसी बन…
Continue

Added by Shyam Narain Verma on May 25, 2016 at 5:21pm — 4 Comments

शिकवा - डॉ उषा साहनी

कितनी बंदिशें ज़िन्दगी में,
कितनी रुकावटें,
दिल नाशाद
दिमाग में रंजिशें।
बेपरवाह होके जीना,
इक गुनाह
घुट घुट के जीना,
इक सज़ा
न यह सही है न यह ग़लत
तिसपर भी ज़िन्दगी के हैं उसूल
औ नियम ,...... अनगिनत।
चाहा तो बहुत था
सब रहे सलामत
पर कब, कैसे बिगड़ गया,
याद भी नहीं रह गया
अब ये आलम है कि..... क्या है ,
क्या नहीं ,
पड़ता कहीं कोई फ़र्क़ नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha on May 25, 2016 at 5:01pm — 10 Comments

उदास चेहरा ...

उदास चेहरा ...

तुम आये

और मैं तुम्हें

बंद पलकों से

निहारती रही

तुम्हारी हर आहट को

मैं अपने अंदर समेटती रही

वो चुप सा

तुम्हारा उदास चेहरा

मेरी मजबूरी को कचोटता रहा

तुम्हारे हाथों के गुलाब की

इक इक पंखुड़ी

अश्कों में भीगी

मुझपर गिरती रही

मैं तुम्हारे अश्कों की आतिश में

इक शमा सी पिघलती रही

तुम ज़मीं तक

मुझपर झुकते चले गए

बेबस पुकार मुझसे टकराकर

कहीं खला में खो गयी

तुम मेरी लहद में

आ…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 1:49pm — 12 Comments

भुजंगप्रयात छन्द

भुजंगप्रयात छन्द

दिलों में सदा प्रेम ही हो हमारे।
डिगे ना कभी पाँव देखो तुम्हारे।।
भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।

हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।
चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।

✍ डॉ पवन मिश्र

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by डॉ पवन मिश्र on May 25, 2016 at 12:12am — 11 Comments

हमारी दिल्ली में- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

अरकान - 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2

 

पैसों का व्यापार हमारी दिल्ली में|   

गुंडों की सरकार हमारी दिल्ली में|

 

साँप–सपोले जब से संसद जा पहुंचे ,

ज़हरों का व्यापार हमारी दिल्ली में|

 

लूट रहे है अस्मत मिलकर सब देखो,

हैं भारत माँ लाचार हमारी दिल्ली में|

 

जाति-धरम के नाम पे मिलती नौकरियाँ

हम जैसे बेकार हमारी दिल्ली में |

 

लालकिला, जंतर-मंतर सब रोते हैं,

अब गुल ना गुलज़ार हमारी दिल्ली…

Continue

Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 24, 2016 at 6:00pm — 7 Comments

ग़रीबों की विरासत (लघुकथा) शेख़ शहज़ाद उस्मानी

नई सदी, विरासत और सत्ता के बीच कुछ मुद्दों पर बहस छिड़ गई थी। सत्ता विरासत से संतुष्ट और प्रसन्न थी, उसे विरासत में ही अपना भविष्य नज़र आ रहा था। नई सदी विरासत को बोझ समझ कर उसे समस्याओं का जनक मान रही थी। विरासत अपनी प्रासंगिकता और महत्व की पुष्टि कर रही थी।



"केवल विज्ञान की विरासत सदैव मेरे लिए सार्थक और लाभदायक रही है, बाक़ी सभी ने ढेर सारी समस्याएँ और दुविधायें हम पर थोपीं हैं। एक ही लकीर पीटते रहने से मौलिक नवीन सृजन बाधित हुआ है। लोग आलसी, निकम्मे पराधीन और आश्रित हो रहे हैं… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 24, 2016 at 2:30pm — 10 Comments

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