Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 23, 2016 at 11:08am — 4 Comments
1222 -1222-1222-1222
उन्हें ढूंढे मेरी ऑंखें बनी बीमार बरसों से
निकलता ही नहीं दिल से मेरा दिलदार बरसों से
नहीं काबू रहा ये दिल, तेरी उल्फ़त का जादू है
धड़कता है मचल कर ये मेरी सरकार बरसों से
किया है वायदा उसने कि अच्छे दिन मैं लाऊंगा
तभी विश्वास से जनता है बैठी यार बरसों से
नहीं झुकना नहीं गिरना कसम तुमको है भारत की
हिमालय आज है मांगे दिया जो प्यार बरसों से
वही धोखा है फितरत में कि तौबाजिस से की…
ContinueAdded by munish tanha on April 23, 2016 at 10:30am — 3 Comments
Added by Sushil Sarna on April 22, 2016 at 10:03pm — 11 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on April 22, 2016 at 11:44am — 6 Comments
मेरे महबूब सपनों से हक़ीक़त बन तू आ जाए
मेरा उजड़ा हुवॉ जीवन मेरी जाँ फिर सवर जाए
मुझे अहसास अब होने लगा है इश्क़ में तेरे
कहीं ना ज़िन्दगी तेरी ही गलियों में गुज़र जाए
जिसे हो जुस्तजू तेरी वो बेचारा किधर जाए
जिए वो ज़िंदगी अपनी या आहें भर के मर जाए
मैं अक्सर आह भरता हूँ तेरे दीदार के ख़ातिर
झलक तेरी मिले गर तो मेरा जीवन सँवर जाए
तेरी गलियों की मिट्टी भी मुझे जन्नत से प्यारी है
चले गर साथ हम दोनों मुहब्बत भी निखर…
Added by Amit Tripathi Azaad on April 22, 2016 at 10:03am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
बना कर इक बड़ी लाइन कई बीमार बैठे हैं,
उन्हींके साथ में कितने यहां एमआर बैठे हैं।
न जाने सेल को किसकी नज़र ये लग गई यारब,
रिटेलर सब हमारी कोशिशों के पार बैठे हैं ।
ये जितने डाक्टर है सब मुझे जल्लाद लगते है,
मरीजो को दवा क्या दें लिए तलवार बैठे हैं।
मरीजे इश्क हैं सारे इन्हें मतलब नज़ारे से,
लिए आँखों में कब से हसरते दीदार बैठे हैं।
दुपहिया धूप में रक्खा उठा कर चल पड़े थे वो,
बयाँ के बाद की तकलीफ…
Added by Ravi Shukla on April 21, 2016 at 10:30pm — 16 Comments
2122--1212--22
उनकी नज़रों से जो उतर जाए |
आसरा ढूंढ़ने किधर जाए |
कर लिया है यक़ीन उनपे मगर
डर है यह भी न वो मुकर जाए |
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |
भीड़ आए नज़र क़ियामत सी
शोख़ उनकी नज़र जिधर जाए |
मिल गया जब खिताबे दीवाना
उनके कूचे से कौन घर जाए |
जिसके घर का पता नहीं कोई
कैसे उस तक कोई ख़बर जाए |
दिन में तस्दीक़ आए रात…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 21, 2016 at 8:00pm — 9 Comments
Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:50pm — 7 Comments
Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:50pm — 1 Comment
जख्म फिर से हरा हो गया
दर्द -ए -दिल आइना हो गया
.
याद ऐसा किया देख कर
सोच के बाबरा हो गया
.
काम के नाम ने चोट की
दिल बचा दिल जला हो गया
.
नींद का आँख से रूठना
रोज़ का सिलसिला हो गया
.
फीस में छूट थी जो मिली
लाडला फिर बड़ा हो गया
.
दाद दो तुम जरा इसलिए
गिर के वो खड़ा हो गया
.
खेल की पोल थी जब खुली
फिर मज़ा किरकिरा हो गया
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
मुनीष…
Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:30pm — 3 Comments
Added by Ravi Prakash on April 21, 2016 at 3:23pm — 2 Comments
Added by kumar gaurav mishra on April 21, 2016 at 1:27pm — No Comments
२१२२ १२१२ २२
हुस्न गर बावफ़ा नहीं होता,
दिल कभी आशना नहीं होता
खेलना दिल से तोड़ देना फिर
ये कोई कायदा नहीं होता
दिल्लगी से हुए तमाशे का
हर कहीं तज़करा नहीं होता
जान पाता कभी नहीं उसको
,मैं अगर आइना नहीं होता
मार देती ये तिश्नगी मुझको,
काश ये मयकदा नहीं होता
मुश्किलों से निजात पाने को,
मौत ही रास्ता नहीं होता
छेड़ता वो न बारबार इसको,
जख्म मेरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 21, 2016 at 11:18am — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 21, 2016 at 10:37am — 2 Comments
2122 1212 22
उनकी नज़रों से जो उतर जाए |
आसरा ढूंढ़ने किधर जाए |
कर लिया है यक़ीन उनपे मगर
डर है यह भी न वो मुकर जाए |
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |
भीड़ आए नज़र क़ियामत सी
शोख़ उनकी नज़र जिधर जाए |
मिल गया जब खिताबे दीवाना
उनके कूचे से कौन घर जाए |
जिसके घर का पता नहीं कोई
कैसे उस तक कोई ख़बर जाए |
दिन में तस्दीक़ आए रात…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 20, 2016 at 9:00pm — 14 Comments
क्या कहा जो सुना नहीं
आँखों ने पढ़ लिया होगा
कह न सके वो जो बातें
आँखो ने पढ़ लिया होगा।
दूर दराज से आया कोई
अपनों ने जान लिया होगा
खो गया था जो उस जहाँ में
अपनों ने पा लिया होगा।
स्वप्न सा अँधेरे को वो
चीर कर वहाँ से जब आया
निशाँ अपने छोड़ कर वो
फिर अपनी दुनिया में गया होगा।
यादें है या है आहट उनकी
किसी ने तो यह जाना होगा
दिल से पूछा जब यह उसने
उसका दिल भी क्या वहाँ धड़का होगा।
(मौलिक एवं…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 20, 2016 at 9:00pm — 2 Comments
2212,121,122,1212
पल में हुई मैं खुद से पराई कुछ इस तरह
थामी उन्होंने हाय! कलाई कुछ इस तरह
नस-नस में सिहरने हैं, निगाहों में है सुरूर
साँसों में उनकी याद समाई कुछ इस तरह…
Added by Dr.Prachi Singh on April 20, 2016 at 3:47pm — 5 Comments
अच्छे दिन की यही तो शुरुआत है
सब बिज़ी ही रहें,खुशनुमा बात है
बात तन्हाइयों की चलाना नही
सब अंधेरे हो रुखसत, तो क्या बात है!!
झटका बिजली का अबतक तो खाया नही
रोशनी है मुसलसल,बड़ी बात है
जिन्दगी के सबब, वे सिखाने चले
जो जिये ही नही,क्या अज़ब बात है
मुफलिसी जिन्द़गी की अमानत सही
नूर झांका कमश्कम शुरुआत है
फालतू जिन्दगी यूँ ही ढोते रहे
एक मिशन अब मिला, खुशनुमा बात है
संगदिल बिन हुये सब चलें संग संग
आज सूरज से अपनी मुलाकात है
रोशनी हाथ…
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on April 20, 2016 at 10:39am — No Comments
बह्र : 22 22 22 22 22 22 22 22
वो तो बस पुल पर चलते जो गहराई से घबराते हैं
पुल की रचना वो करते जो खाई के भीतर जाते हैं
जिनसे है उम्मीद समय को वो पूँजी के सम्मोहन में
काम गधों सा करते फिर सुअरों सा खाकर सो जाते हैं
धूप, हवा, जल, मिट्टी इनमें से कुछ भी यदि कम पड़ जाए
नागफनी बढ़ते जंगल में नाज़ुक पौधे मुरझाते हैं
जिनके हाथों की कोमलता पर दुनिया वारी जाती है
नाम वही अपना पत्थर के वक्षस्थल पर खुदवाते…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 19, 2016 at 10:05pm — 4 Comments
ज़िंदगी डूब जाती है ....
ऐ बशर !
इतना ग़रूर अच्छा नहीं
ये दौलत का सुरूर अच्छा नहीं
साया तेरे करमों का
हर कदम तेरे साथ है
कुछ दूर तक दिन है
फिर लम्बी अंधेरी रात है
रातों में साये भी रूठ जाते हैं
दिन के करम
तमाम शब सताते हैं
शब की तारीकियों में
अहम के पैराहन
जिस्म से उतर जाते हैं
ज़न्नत और दोज़ख
सब सामने आ जाते हैं
बशर ख़ाके सुपुर्द हो जाता है
लाख चाहता है
फिर लौट नहीं पाता है
फिर न कोई रहबर होता…
Added by Sushil Sarna on April 19, 2016 at 9:48pm — 4 Comments
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