कांच के जज़्बात, हिम्मत कांच की
यार ये कैसी है इज्जत कांच की
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पालते हैं खोखले आदर्श हम-
माँगते हैं लोग मन्नत कांच की
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पत्थरों के शहर में महफूज़ है-
देखिये अपनी भी किस्मत कांच की
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चुभ…
ContinueAdded by Ravindra Prabhat on March 11, 2016 at 2:53pm — 2 Comments
गजल/धूप
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1222 1222 1222 1222
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करो तय दोस्तो थोड़ा जिगर में धूप का होना
मिटा सीलन को देता है कि घर में धूप का होना /1
दुआ मागी थी रिमझिम में जरा सी धूप तो दे दो
अखरता क्यों तुझे है अब डगर में धूप का होना /2
जहाँ देखो वहीं जलवा करें साए इमारत के
पता चलता किसे है अब नगर में धूप का होना /3
चलो आँगन में रख आए चटखती हड्डियों को अब
जरूरी है बुढ़ापे की उमर में धूप का होना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2016 at 11:52am — 18 Comments
सदा सच से दूर भागते
धूप ताप सब सह जाते
भगवान की मूर्ति बनाते
पूजा के हैं नियम बनाते
धर्म के पीछे ढोग रचाते
धूप दीप और नैवेद चढ़ाते
हवन के नाम अन्न जलाते
पत्थर पर हैं दूध पिलाते
भूखे बालक दूध न पाते
शिल्पी इनको जरा न भाते
उसे मूर्ति को छूने नहीं देते
मूर्ति को भगवान बताते
मंत्रो का उच्चारण करते
सुबह शाम आरती करते
शंख मजीरा ढ़ोल बजाते
सदा सुख की आशा करते
नारायण की कथा…
ContinueAdded by Ram Ashery on March 11, 2016 at 9:00am — 5 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2016 at 9:32pm — 3 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2016 at 9:28pm — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 10, 2016 at 7:56pm — No Comments
Added by Ashish Painuly on March 10, 2016 at 6:36pm — No Comments
मानसिक रूप से तैयार न होने के बावजूद उसने बीज डाल दिया और अंकुर भी फूट गया ।नौ माह कैसे सिंचित हुआ,चूसता रहा रस परजीवी बन कर ।
"लो ये आ गया आपका कुल दीपक ।"
बच्चे को सास के सुपुर्द करते हुए।"अब सम्हालो इसे।"
छुट्टी खराब कर दी छः महीने की और छः स्ट्रेच निल की बोतल ।
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पवन जैन,जबलपुर।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Pawan Jain on March 10, 2016 at 5:00pm — 3 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 10, 2016 at 4:37pm — 1 Comment
अनाम रिश्ते......
मैंने कभी
उसके बारे में सोचा न था
न कभी
उसे ख्वाब में देखा था
उसके नाम से
मैं कभी आशना न थी
न कभी अपने दिलोदिमाग में
उसे पाने की तमन्ना का
कोई बीज बोया था
फिर भी न जाने क्यूँ
सदा मुझे किसी साये के
करीब होने का अहसास होता था
शब की तारीकियों हों
या मेरी तन्हाईयाँ हों
मेरे हर लम्हे को
वो अपनी मौजूदगी के अहसास से
लबरेज़ करता था
उसके अहसास ने…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 10, 2016 at 3:39pm — 7 Comments
कसक – ( लघुकथा ) –
रोहित बिहार के पटना ज़िले के एक छोटे से गॉव के एक गरीब किसान परिवार का इकलौता मगर होनहार पुत्र था!वह हैदराबाद विश्वविद्यालय में "भारतीय राजनीति का गिरता स्तर" विषय पर शोध कार्य कर रहा था!उसकी कार्य शैली और थीसिस के संस्करण देख उसके गाइड चकित थे!
राजनीतिज्ञों को जैसे ही इन बातों की हवा लगी, वे रोहित को साम, दाम, दंड, भेद खरीदने में लग गये!वे नहीं चाहते थे कि उसका शोध कार्य छपे!सबके चेहरे बेनक़ाब हो जायेंगे!जब कोई युक्ति कारगर साबित नहीं हुई तो रोहित को खत्म…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 10, 2016 at 11:52am — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 10, 2016 at 7:46am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
निगाहों में किसी की चंद-पल रुक कर चला आया
परिंदा क़ैद का आदी नहीं था, घर चला आया
सितमगर की ख़िलाफ़त में उछाला था जिसे हमने
हमारे आशियाने तक वही पत्थर चला आया
सभी क़समों, उसूलों, बंदिशों को तोड़कर,आखिर
मैं अरसे बाद आज उसकी गली होकर चला आया
दनादन लीलता ही जा रहा है कैसे हरियाली
कि चलकर शह्र से अब गाँव तक अजगर चला…
Added by जयनित कुमार मेहता on March 9, 2016 at 9:59pm — 10 Comments
Added by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 5:40pm — 4 Comments
2122 2122 212
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कब यहाँ पर्दा उठाया जाएगा
कब हमें सूरज दिखाया जाएगा /1
थक गए हैं झूठ की उँगली पकड़
सच का दामन कब थमाया जाएगा /2
सब परेशाँ तीरगी से दोस्तो
कब दिया कोई जलाया जाएगा /3
है सुरक्षा खाद्य की कानून में
पर अनाजों को सड़ाया जाएगा /4
दूर महलों से खड़ी कुटिया में फिर
इक निवाला बाँट खाया जाएगा /5
यह समय है झूठ का कहते है सब
राम को रावण बताया जाएगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 12:09pm — 16 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 9, 2016 at 11:30am — 3 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 9, 2016 at 6:00am — 10 Comments
नवगीत........सेंभल के फूल
खिले जो फूल सेंभल के
रहे वह मात्र दस दिन के
वो दुनियां देख न पाये
अहं के झूठ के साये
लड़े हर वक्त मौसम से
हुये बस धूल कण-कण के.............खिले जो फूल सेंभल के
रुई की नर्म फाहें उड़
गगन को भेदना चाहें
हवा रुख को बदल देती
उगाती रक्त की बांहें.
पकड़ कर ठूंसते-पीटें
लिहाफों में भरें धुन के...............खिले जो फूल सेंभल के
हवाओं से भरे फूले
निशक्तों…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 8, 2016 at 10:30pm — 6 Comments
मैंने सोचा न था ......
मुझे गीत का नाम देकर
तुम बार बार
मुझे गुनगुनाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
मेरे रक्ताभ अधरों पर
अपनी अनुभूति का
अनमोल स्पर्श छोड़ जाओगे
सच ! ऐसा तो कभी
मैंने सोचा न था//
मेरे अंतरंग पलों में
प्रेम घनों की
नन्ही बूंदों सा बरसता
तुम कोई राग छोड़ जाओगे
सच ! ऐसे तो कभी
मैंने सोचा न था//
कभी मेरी मूक व्यथा
शून्यता से मिल
उसके अंक में…
Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 9:34pm — 14 Comments
“हे भोले भंडारी, कुछ कर बहुत परेशान कर रक्खा है मेरी सास ने जीना दूभर हो गया है हर वक़्त कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर टें टें करती रहती है मैं क्या करूँ?”
“बहुत बार समझा चुका हूँ तुम दोनों को वो माँ जैसी और तुम बेटी जैसी हो एक दूसरे की अहमियत समझो और सम्मान करो महिला होकर महिला का सम्मान नहीं करोगी तो किसी और से क्या उम्मीद करोगी किन्तु मुझे तुम्हारा कोई समाधान नजर नहीं आता हर बार अपना वादा तोड़ देती हो अच्छा बताओ क्या चाहती हो”?
“हे प्रभु कुछ ऐसा करो कि मेरी सास बोल न सके उसे गूंगी…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:13pm — 12 Comments
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