मिलन
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क्या मिलन परिणाम यही है ?
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संध्या मिलन के हित वासर
निज अस्तित्व को खो देता
नद नदी में ,नदी उदधि में
मिल खोते स्वनाम सभी हैं |
क्या मिलन परिणाम यही है ?
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जब जब मिले धनुष से तीर
पलटे वो खाकर दुत्कार
लक्ष्य से मिल जाये यदि तो
करता घायल प्राण यही है |
क्या मिलन परिणाम यही है ?
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क्षिति मिलन के हित से अम्बर
झुकने पर बाध्य नित्य हुआ
दिशा मिलन की असीम दौड़
कि दौड़ा पवमान नहीं है ||
क्या मिलन परिणाम…
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on September 4, 2014 at 7:47am — 1 Comment
अब खतरनाक हो गया बादल
या कहें बेलगाम है पागल
कोई तो इन्द्र को ये समझाये,
कर रहा है किसान को घायल
आसमाँ ने कहा शराबी है,
मेघ नाचे है बाँध कर पायल
ओ रे मूर्ख खडी फ़सल को देख,
बालियों में है धूधिया चावल
गडगडाहट करे, डराये है,
बिजलियाँ हो रही तेरी कायल
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मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on September 4, 2014 at 12:00am — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 3, 2014 at 8:50pm — 8 Comments
अपने ही घर में दासी हिंदी
हिंदी धीरे- धीरे समृद्ध हुई और फली फूली है। संस्कृत के सरल शब्दों, क्षेत्रीय बोलियाँ / भाषाओं को लेकर आगे बढ़ी, पवित्र गंगा की तरह लगातार कठिनाईयों को पार करते हुए । उर्दू , अरबी, फारसी आदि भी छोटी नदियों की तरह इसमें शामिल होती गईं जिससे हिंदी और मधुर हो गई। आज हिंदी के पास विश्व की किसी भी भाषा से अधिक शब्द हैं। लेकिन आजादी के बाद से सरकार की नीति से हिंदी निरंतर उपेक्षित होती गई। हिंदी के शब्द कोष में…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 3, 2014 at 8:30pm — 10 Comments
1222/1222/122
खुदा से पूछता ये बात कब तक।
कि सुधरेंगे मिरे हालात कब तक।।
मैं शर्मा हूँ कि वर्मा हूँ कि क्या हूँ
भला पूछोगे मेरी ज़ात कब तक।।
ज़माने कम से कम ये तो बता दे।
मुझे मिलती रहेगी मात कब तक।।
उजालों से हमेशा पूछता हूँ।
रहेगी ये अँधेरी रात कब तक।।
मेरे आकाश से होती रहेगी।
सुनो तेज़ाब की बरसात कब तक।।
वो देखेगा मुझे मुड कर कभी क्या।
वो समझेगा मिरे जज़्बात कब…
ContinueAdded by Ketan Kamaal on September 3, 2014 at 7:30pm — 17 Comments
2222 2222 2222 222
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रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों को मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं
***
अपना हो या बेगाना हो सुख में ही अपना होता
जब भी मिलना हॅसके मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
चाहे भाये कुछ पल लेकिन आगे चलकर दुख देगा
उम्मीदों से जादा मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर मौसम को अपना कहना सच कहता हूँ यारो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2014 at 12:00pm — 13 Comments
जन निनाद से ही
मंजिल तय हो
निश्चय ही।
विश्वभाषाओं संग हो
हिंदी निश्चय ही।
हिन्दी विश्वपटल पर चर्चित
पर्व मनायें
अब समवेत स्वरों में
गौरवगाथा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 3, 2014 at 8:41am — 6 Comments
रदीफ़- रही
काफ़िया -चलती , ढलती
अर्कान -२१२२,२१२२,२१२२,२१२
दायरों में ही सिमट कर जिंदगी ढलती रही
तुम फलक थे मैं जमीं औ कश्मकश चलती रही।
मायने थे रौशनी के रात भर उनके लिये
लौ दिये की थरथराती ताक में जलती रही।
दे रहा दाता मुझे खुशियाँ हमेशा बेशुमार
फिर कमी किस बात की जाने हमें खलती रही।
ज़िद ज़माने को दिखाने की रही थी बेवजह
जानि - पहिचानी मुसीबत कोख में पलती रही।
हौसला रखकर फ़तह का जंग हम…
ContinueAdded by dr lalit mohan pant on September 3, 2014 at 1:30am — 9 Comments
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम....
जैसा लिखते हैं वैसा उच्चारण,
इसलिये हिन्दी को करें धारण
विश्व को आओ सच बतायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम.....
सभ्यता लिप्त हिन्दी भाषा में
एक इतिहास जिसकी गाथा में
अपनी गाथायें मत भुलायें हम...
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम.....
संस्कृत रक्त में समायी है
देव भाषा वही बनायी है
अपने सम्मान को बढायें हम..
आओ हिन्दी पढें…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 2, 2014 at 11:00pm — 12 Comments
बस सबको पीछे छोड़ रही थी, बिलकुल सरपट दौड़ रही थी।
कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही थी।
चालक- परिचालक दोनों में
बस के चारों ही कोनों में
मची हुई होड़ा-होड़ी थी
सब्र सभी ने छोड़ी थी
इंद्रजाल का पाश पड़ा था
या फिर कोई नशा चढ़ा था
जिसने एक झलक भी पा ली
रह गया ठिठक कर वहीँ खड़ा था
कसी हुई थी जींस कमर पर, थी कुर्ती ढीली-ढाली।
जिसमे छलक-छलक जाती थी,यौवन-मदिरा की प्याली।
हर एक कंठ में प्यास जगी, कुछ ऐसी बनी कहानी। …
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on September 2, 2014 at 10:00pm — 2 Comments
हैं अनेकों धर्म भाषा, ...एक हिंदुस्तान है l
मातृभाषा हिन्द की, हिंदी हमारी जान है ll
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देश की संस्कृति रिवाजों पर हमें भी गर्व हो l
भारती की शान हिंदी, . विश्व में पहचान है ll
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नृत्य शंभू ने किया, डमरू बजा, ॐ नाद का l
देववाणी के सृजन से ..विश्व का कल्यान है ll
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पाणिनी ने दी व्यवस्था व्याकरण की विश्व को l
हम सनातन छंद रचते ...गीत लय मय गान है ll
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सूर तुलसी जायसी, ......भूषण कवि केशव हुए l
चंद मीरा पन्त दिनकर, काव्य मय…
Added by harivallabh sharma on September 2, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
संस्कृत बृज अवधी
से सुवासित,
मैं हिंदी हूँ हिन्द
की शान।
बीते सात दशक
आजादी,
अब तक क्यों ना
मिली पहचान।
दुनियाँ के सारे
देशों में,
मातृभाषा का प्रथम
स्थान।
उर्दू, आंग्ल, फ़ारसी
सबको,
आत्मसात कर दिया
है मान।
हिंदी दिवस मनाता
अब भी,
मेरा लाडला हिन्दुस्तान
बीते सात दशक......
मैं हूँ स्वामिनी अपने
घर की,
भाषा पराई करती
राज।
लज्जा आती मुझे
बोलकर,
इंगलिश…
Added by seemahari sharma on September 2, 2014 at 3:30pm — 11 Comments
अमृता प्रीतम जी ... दर्द की दर्द से पहचान
स्मृतियों की धूल का बढ़ता बवन्डर ... पर उस बवन्डर में कुछ भी वीरान नहीं। कण-कण परस्पर जुड़ा-जुड़ा, कण-कण पहचाना-सा। प्रत्येक स्मृति से जुड़ी सुखद अनुभूति, बीते पलों को जीवित रखती उनको बहुत पास ले आती है, अमृता जी को बहुत पास ले आती है...कि जैसे बीते पल बारिश की बूंदों में घुले, भीगी ठँडी हवा में तैरते, लौट आते हैं, आँखों को नम कर जाते हैं...
आज ३१ अगस्त ... मेरी परम प्रिय अमृता जी का पुण्य जन्म-दिवस ... वह…
ContinueAdded by vijay nikore on September 1, 2014 at 5:00pm — 10 Comments
अच्छा ही करते हैं
कितना भी अपना हो
खून का हो या अपनाया हो प्यार से
मर जाने पर जला देते हैं
मुर्दा शरीर
न जलाएं तो सड़ने का डर बना रहता है
फिर इन्फेक्शन , बीमारी का भय
ज़िंदा लोगों के लिए खतरा ही तो है , किसी का मुर्दा शरीर
और फिर भूलने में भी सहायता मिलती है
कब तक याद करें
कब तक रोयें
जीतों को तो जीना ही है
अच्छा ही करते हैं जला के
कुछ रिश्ते भी तो मुर्दा हो जाते हैं / सकते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 4:30pm — 20 Comments
विक्रमादित्य ने वेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादा और चल पड़ा। वेताल ने कहा-‘राजा तुम बहुत बुद्धिमान् हो। व्यर्थ में बात नहीं करते। जब भी बोलते हो सार्थक बोलते हो। मैं तुम्हें देश के आज के हालात पर एक कहानी सुनाता हूँ।
विक्रमादित्य ने हुँकार भरी।
वेताल बोला- ‘देश भ्रष्टाचार के गर्त में जा रहा है। भ्रष्टाचार की परत दर परत खुल रही हैं। बोफोर्स सौदा, चारा घोटाला, मंत्रियों द्वारा अपने पारिवारिक सदस्यों के नाम जमीनों की खरीद फरोख्त, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की वोट…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 1, 2014 at 3:00pm — No Comments
अस्मिता इस देश की हिन्दी हुई
किन्तु कैसे हो सकी
यह जान लो !!
कब कहाँ किसने कहा सम्मान में..
प्रेरणा लो,
उक्तियों की तान लो !
कंठ सक्षम था
सदा व्यवहार में…
Added by Saurabh Pandey on September 1, 2014 at 5:30am — 39 Comments
‘’बहुत खुश दिख रही हो लाजो” गाँव से आई लाजो की सहेली कनिया ने कहा|
“हाँ हाँ क्यूँ नहीं बेटा बहू काम पर चले जाते हैं नौकरानी सब काम कर जाती है बस घर में महारानी की तरह रहती हूँ” लाजो ने जबाब दिया|
कुछ देर की शान्ति के बाद फिर लाजो बोली”ये सुख तेरा ही तो दिया हुआ है उस दिन न तू उस बुढ़िया से पिंड छुडाने का आइडिया देती तो आगे भी न जाने कितने सालों तक मुझे उसकी गंद उठानी पड़ती और मेरा रोहित दादी की सेवा के लिए मुझे वहीँ सड़ने के लिए छोड़े रखता, नरक बनी हुई थी मेरी…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 31, 2014 at 1:00pm — 18 Comments
" बेटा , अब दूसरे विवाह की तैयारी करो , इससे तो कुछ होना नहीं है " |
" लेकिन माँ , दूसरे में भी क्या भरोसा , थोड़ा और सबर करो " , और बात आई गयी हो गयी |
कुछ महीनों बाद खुश खबरी थी , माँ बहुत प्रसन्न हुई |
और बेटे का दोस्त जो कुछ दिनों पहले आया था , अचानक वापस चला गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on August 31, 2014 at 2:57am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 30, 2014 at 11:00am — 11 Comments
रमेश अपने बेटे व् त्यौहार पर आई हुई अपनी बहन के बेटे को, लेकर बाजार गया था, उसकी बहन कल अपने घर जाने वाली है. सोचा शायद उसके बेटे को कुछ दिलवा दिया जाये, उसे कुछ सस्ते से कपडे एक दुकान से दिला लाया है. बहन के बेटे ने भी निसंकोच उन्हें स्वीकार कर लिया. बाजार में रमेश का बेटा जिद करता रहा पर , उसने अपने बेटे को कुछ नही दिलवाया है ...
“ पापा..!! मुझे तो वो ही वाले ब्रांड के कपडे चाहिए जो मैंने पसंद किये थे, कुछ भी हो उसी दुकान से दिलवाना पड़ेगा आपको..” रमेश के बेटे ने, रमेश…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on August 29, 2014 at 2:08pm — 8 Comments
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