थका तन
थका मन
कैसे चले जांगर
क्या जा पाएंगे घर ?
हुक्म देने वाले
ठाने बैठे हैं जिद
एक काम होता नही खत्म
कि दूजे का हुक्म मिल जाता..
पंछी भी लौट आते
घर अपने
नियत समय पर
लेकिन हम पंछी नहीं
सूरज भी छिप जाता
क्षितिज पार
नियत समय पर
लेकिन हम सूरज नही
तो क्या हम समंदर की लहरें हैं
जो दिन-रात अनथक
आ-आकर टकराती रहतीं किनारों पर
और…
ContinueAdded by anwar suhail on March 16, 2013 at 9:00pm — No Comments
नापाक, पाक
हे निर्लज्ज निकर्ष्ठ पडोसी
तुझे कोटि कोटि धिक्कार है
पीठ पर बार करते हो
यही तुम्हारी हार है
हम सदभावी शांतिदूत
तुम हमें कमजोर आंकते हो
कायर बन चोर की मानद…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on March 16, 2013 at 1:30pm — No Comments
"फूल हो क्या तुम" ????
तुमसे खूबसूरत कौन होगा
क्या नाज़ुकी है
क्या तराश है
इस दुनिया मैं कोई नही
दूजा तुमसा
भँवरे तुम्हे यूँ भरमाते हैं
और तुम
इठलाने लगती हो
फूल हो क्या तुम ??
पता है
एक कोना होता है
जिस्म में
छोटा सा
जो हम सब को
सच ही बताता है
सच ही दिखाता है
रूको रूको
यूँ मत मुस्कुराओ
तुम जो सोच रही हो न !
दिल नहीं है
वो है दिमाग
जो काम नहीं करता
हाई टेक झूठ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 16, 2013 at 12:29pm — 4 Comments
माँ -
बहुत कोशिश की मैंने ,
इन आँसुओं को पीने की,
कुछ और,दिन जीने की।
इस अँधेरे , घर में,
जहाँ मेरा कुछ भी नहीं,
जहाँ मैं अभिशाप हूँ।
तुम्हारा कोई, पाप हूँ।
मगर मैं, अस्तित्वहीन ,
वेदना और दुख से क्षीण ,
आज भी, चुप-चाप हूँ।
यह मांग का सिंदूर,
जो सौभाग्य की निशानी है।
कैद मेरी आत्मा की,
अनकही, कहानी है।
जो कभी दुष्चक्र से,
निकल नहीं सकती।
मजबूर,अपने भाग्य को,
वह बदल नहीं सकती।
हर सुबह,जिसके…
Added by Kundan Kumar Singh on March 16, 2013 at 12:00pm — 7 Comments
सुधीजनो,
तोटकाचार्य आदिशंकर के प्रथम चार शिष्यों में से थे. ’आचार्यदेवोभव’ सूत्र के प्रति अगाध भक्ति के माध्यम से समस्त ज्ञान प्राप्त कर आप आदिशंकर के अत्यंत प्रिय हो गये. आगे, आदिशंकर ने बद्रीनाथधाम की स्थापना कर आपको वहीं नियुक्त किया था.
तोटकाचार्य विरचित तोटकाष्टकम् --इसे श्रीशंकरदेशिकाष्टकम् भी कहते हैं-- दुर्मिल वृत्त में है.
तोटकाष्टकम् का आधुनिक वाद्यों के साथ समूह-गान प्रस्तुत…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 11:30am — 12 Comments
एक मुक्कमल इन्सां .......]
ता उम्र टुकड़ों मे बंटता रहा
क्या मैं पूरा हूँ पूछ पूछ
आईने से लड़ता रहा
एक दिन वो भी सच बोल गया
गिर कर टुकड़ों मे बिखर गया
शांत झील मे पत्थर उछाल…
Added by pawan amba on March 16, 2013 at 10:00am — 1 Comment
मैं जिंदगी हूँ ,मेरा वजूद बहुत हसींन और सौम्य हैं | ताजे खूबसूरत खिलते गुलाब या मुस्कुराते/खिलखिलाते बच्चे सा खूबसूरत मेरा अस्तित्व हैं |वैसे तो मैं दुनिया के हर प्राणी में हूँ ,पर मैं खुद को इस पृथ्वी के सबसे खतरनाक जानवर ....इंसान के माध्यम से खुद को यहाँ व्यक्त कर रही हूँ |ज्यादातर इंसान मुझे ऑटोपायलट मोड पर रखते हैं ,उनकी जिन्दंगी में अगली क्या…
ContinueAdded by ajay yadav on March 15, 2013 at 11:30pm — No Comments
इक ग़ज़ल पेशेखिदमत है
ये ज़माना अजल से है खराब क्या कहिये
खार दामन में रक्खे है गुलाब क्या कहिये
चंद खुशियाँ मिली थी इश्क में हमें लेकिन
दर्द दिल को मिला है बेहिसाब क्या कहिये
आब की जद में जब रहा वजूद कायम था
आ के बाहर खुदी मिटे हुबाब क्या कहिये
गर्दिशों से निकल के रौशनी में आते ही
टूट जाते हैं मेरे सारे ख्वाब क्या कहिये
बाद पीने के किसको होश क्या कहे न कहे
बोल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on March 15, 2013 at 10:34pm — 5 Comments
घन घोर घटा जब से बरसो, वन मोर नचावहिं मोर जिया।
बिहॅसे हरषे तन सींच गयो, जगती तल शीतल मो रसिया।।
बिजली घन बीच हॅसी गरजी, छल छन्द कियो बन गाज गिरी।
हिय जार गयी विष सौतन सी, मन त्रास घनी प्रिय नाथ नही।।1
बरखा बरखै असुआॅ टपकै, जिय शूल धंसे तन आग लगै।।
जर जाइ समूल न आश बंधे, कब आव पिया अब चात कहै।।
जर राख बनी उड़ जाइ चली, पिउ राह बिछी यहु चाह भली।
जहॅ पावॅ धरें हम धन्य लगी, पग धूलि बनी सिर मॅाग भरी।।2
कहॅु नीति कुनीति सुनीति नही, पर…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 9:00pm — 6 Comments
जब ढल जाती है रात
कृष्ण-पक्ष की काली गह्वर सी अकेली,
एक सितारा टिमटिमाता हुआ
उलटा लटका सा नज़र आता है.
शय्या पर बैठी उनींदी,
एक सांस खींचती गहरी सी,
खोलती हूँ जब आँखें पूरी
दूर कहीं निगाह भटक जाती है.
निःस्तब्ध रात्रि और मेरा अकेलापन
अपने विचारों को समेटती,
अनगिनत नक्षत्रों को गिनती
रहती हूँ शून्य में खोई सी.
दूर कहीं बादल भटकते,
कुछ यादें शूल से चुभते,
बाग में पत्रहीन वृक्ष भीड़ में…
Added by coontee mukerji on March 15, 2013 at 8:41pm — 4 Comments
एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --
जाने कैसी मारा मारी रहती है --
एक ही दफ़्तर हैं, दोनों की शिफ्ट अलग
सूरज ढलते चाँद की बारी रहती है --
भाग नहीं सकते हम यूँ आसानी से
घर के बड़ों पर…
Added by विवेक मिश्र on March 15, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 15, 2013 at 6:45pm — 6 Comments
चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें में सब अतिथि blogers का स्वागत है. आप के पर्संसात्मक comments का धन्यवाद यह एक लम्बी काव्या कथा है कृपया बने रहें. कोशिश करूंगा आप को निराश न करूं. यदि रचना बोर करने लगे तो कह देना.
Dr. Swaran J. Omcawr
गंगा कहती रहीं- ज्ञानि सुनता रहा
‘तुम इतना ताम-झाम करते हो!
इतनी…
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 3:00pm — 10 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2013 at 2:41pm — 5 Comments
जब भी मै गयी
स्टोर में
या अटारी में
या खेत के गोदाम में
उठाने पुरानी यादें
जहाँ कोई नही जाता
मेरे तुम्हारे सिवा
एकदम से तुम आ गये
धीरे से ..और
जोर से डरा दिया मुझे
धप्पा!!
- 'वेदिका'
Added by वेदिका on March 15, 2013 at 11:30am — 6 Comments
सुप्रभात मित्रों , आप सभी के अवलोकन हेतु सत्य सनातन पर लिखी अपनी कुछ पंक्तियाँ | सादर
सत्य सनातन व्याकुल होकर देख रहा अपने उपवन को
खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर वन को ||
मैंने ही सारी वशुधा को एक कुटुंब पुकारा था
मेरी ही साँसों से निकला शांति पाठ का नारा था ||
दया धर्म मानवता जैसी सरल रीत मैंने सिखलाई
परहित धर्म आचरण शिक्षा मैंने ही सबको बतलाई ||
क्या हालत कर दी हे मानव भूल गया क्यूँ अंतर्मन को
खर -पतवार सरीखे मजहब खा जायेंगे सुन्दर…
Added by Manoj Nautiyal on March 15, 2013 at 9:15am — 3 Comments
(आदरणीया डा0 प्राची सिहं जी के सुझाव के बाद पुनः प्रस्तुत)
भ्रष्टाचार जड़ विकट, माया मन परतोष।
कहे सुने बढ़ जात है, अहम काम मद दोष।।1
पंडित वेद कुरान पाठ, करि सब भये मसान।
नेता भ्रष्ट भय आतंक, सब बनगै श्रीमान।।2
भ्रष्टाचार बन जग गुरु, लूटें देश समूल ।
रामदेव अन्ना लड़े , लिये हाथ मा तूल।।3
जनता निरी गाय-भैंस, लठैत है सरकार।
दूध दुहन को वोट है, फिर पीछे मक्कार।।4
नेता सब ज्रागत भये, सोवत सन्सद बीच ।
जनता…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 6:30am — 5 Comments
मन मंगल मन मीत है, मन मारूत मन मीन!
मन मारत मन जीत है, मन मान मन मलीन!!1
पानी पियास हरि कहें, तुरतहि तन में वारि!
तोय भुलावत रोग बढे़, पावत पय उध्दारि!!2
हरि हरि हरिनाम रसना,हर हर भव जस जान!
हरि हर हार जात विधना,हरि नारद अस मान!!3
जपत निरन्तर राम राम, तन मन में सिय राम!
अहम को जय राम कहें, विनय भजे श्री राम!!4
रस रसे रस चाहना, रस रस कर रस जाय!
रस रस कर रस बांटना, रस रस मन हरषाय!!5
हरि अनन्त हरि संत है,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 5:00am — 3 Comments
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 14, 2013 at 11:28pm — 12 Comments
गणात्मक “मनहरण घनाक्षरी “
(रगण जगण)x2 +रगण+लघु, (रगण जगण)x2 +रगण
(चार चरण प्रति चरण ३१ वर्ण १६,१५ पर यति)
आन बान शान ध्यान, में रखे उठो जवान
मान देश का घटे न, स्वाभिमान लाइए
कर्मशील धीर वीर, सत्य मार्ग में रुके न
काम क्रोध मोह त्याग, धर्म को बढाइये
भूल लोक-लाज धर्म, जो हुआ युवा अचेत
रीत प्रीत शंख फूंक, नींद से जगाइए
लाज नार की लुटे न, देवियाँ यही महान
नारियाँ पुनीत पूज्य, देश में बचाइए
संदीप पटेल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on March 14, 2013 at 10:46pm — 1 Comment
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