मान है सम्मान गर दौलत नगद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
हाल मैं ससुराल का कैसे बताऊँ सखियों,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
स्वाद चखते थे कभी हम स्नेह की बातों का,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
कौन…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 12, 2013 at 11:00am — 10 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 12, 2013 at 11:00am — 36 Comments
एक.
अपने सुख की खोज में,सब जा रहे विदेश।
वहां जा कर पता चला, कितना अच्छा देश।।
दो-
सब बदलने की कोशिश,करते हैं सब आज।
आदमी वहीं का वहीं, बदला नहीं समाज।।
Added by सूबे सिंह सुजान on January 12, 2013 at 10:57am — 7 Comments
घटना ऐसी घटित हो गयी सुनकर भारत रोया है,
वीर सपूतो को फिर से इस मात्रभूमि ने खोया है.
छल कर गया पड़ोसी उसने अपनी जात दिखा डाली,
सोते सिंहो पर हमला अपनी औकात दिखा डाली.
खून हमारा उबल उठा है पाक तेरी नादानी से,
दिल्ली कैसे सहन कर गयी सोंचू मै हैरानी से.
आज हमारी सहनशक्ति का बाँध तोड़ डाला तूने,
सोये सिंह जगाकर अपना भाग्य फोड़ डाला तूने.
अरे भेंड़िये कायरपन पर बार-बार धिक्कार तुझे,
हिन्दुस्तानी बच्चा-बच्चा देता है ललकार तुझे.
कूटनीति अपनाने वाले…
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 12, 2013 at 9:30am — 12 Comments
टूटती सी ताल है ,भेड़िये की खाल है ..
चीख भी न सुन सके ,कानों का ये हाल है।।
बात तो तपाक सी ,गंदली नापाक सी ..
रोम रोम जल उठे ,'तीन पात ढाक' सी ..
गंगा निर्मल कहाँ ,प्रण में अब बल कहाँ ..
स्वच्छ जलधार हो ,कोई भी हल कहाँ?
स्वदेश है पुकारता ,स्वजनों से हारता ,
हिन्द के लिए कहाँ ,स्वयं कोई वारता ?
कुर्सी में गोंद है, उठना मोहाल है …
Added by Lata R.Ojha on January 12, 2013 at 3:00am — 10 Comments
ककहरा
क- काले दिल कपड़े सफ़ेद
ख- खादी की नियत में छेद
ग- गद्दार देश को बेच रहे
घ- घर को रहे भालो से भेद
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
च- चिड़िया थी जो सोने की
छ- छलनी है आतंक की गोली से
ज- जहां तहां है ख़ून खराबा
झ- झगड़े, जात-धर्म की बोली से
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
ट - टंगी है आबरू चौराहे पे माँ की
ठ - ठगी सी आंसू बहाती है
ड - डरी हुयी है बलात्कारियों से
ढ - ढंग से जी नहीं…
Added by Ranveer Pratap Singh on January 11, 2013 at 11:30pm — 11 Comments
एक बच्चा था, अबोध, हमारे यहाँ की भाषा के उसे निरा कहते है| निरा अबोध बच्चा, अक्ल से कच्चा, दिल से सच्चा| एक दिन खेलते खेलते जाने कहाँ आ पहुचा, उसे नहीं पता था, उसने देखा कुछ लोग थे , अजीब दाड़ी टोपी लगाए, हँसते हुए, बांस की पंचटो के ढाँचे पर आटे की लेई से पतंगी कागज चिपकाते हुए| उसने देखा, कुछ बच्चे उस जैसे ही, निरे अबोध बच्चे, मदद कर रहे है अजीब दाड़ी टोपी वाले लोगे की, वो देखता रहा, बहुत देर तक देखता रहा, उसका दिल रंगीन कागजों में अटक गया था, वो चिपकाना चाहता था उस पतंगी कागज को, बांस की…
ContinueAdded by अमि तेष on January 11, 2013 at 11:11pm — 4 Comments
सांस उसकी थम गई
एक बेटी सो गई।
पर अब जागा हिंदूस्तां
हर आंख नम हो गई।।
मैं सजा दिलाना चाहती हूं
उन दरिंदों को मां।
ताकि अपवित्र ना हो
फिर कोई दामिनी मां।।
हौंसला बुलंद देखा
कुछ पलों के होश में।
देशवासी न्याय मांगे
हर कोई आक्रोश में।।
तेरा बलिदान हमेशा याद रहेगा
अब मेरा हिंदूस्तां नहीं सहेगा।
यू हीं घूमते रहे गर दरिंदे
तो आक्रोश यूं ही कायम रहेगा।।
चिंगारी जो जल चुकी है
अब नहीं बुझने देना।
बेटी की मौत औ
अपमान का…
Added by chandramauli pachrangia on January 11, 2013 at 8:33pm — 4 Comments
हो रहा है फिर उजाला इस शहर में,
जल उठी है मोमबत्ती मेरे घर में ।
आँधियों के पैर कतराने लगे हैं,
है समंदर आस का अब हर नजर में ।
देखकर कोंपल नयी खुश हो गये हम,
शेष है आशा घनी बूढ़े शजर में ।
शाम से महसूस होती है थकावट,
लौट आती है जवानी, नव सहर में ।
यूँ मिला किरदार जीवन का 'सलिल' को,
गीत गम का गुनगुनाया भी बहर में ।
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 11, 2013 at 6:32pm — 8 Comments
डा . तुकबंद की तबाहियां
------------------------------
निकला मेरा जनाजा उनके इश्क की छाँव में
फूल बिछाए हमने बिखेरे कांटे उन्होंने राह में
भूल गए वो कि जनाजा तो काँधे पे जाएगा
गुजरेंगी इस राह से कोई बहुत याद आएगा
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आशिक और शायरों की है अलग पहचान
जानते हैं सब फिर भी बनते हैं अनजान
आशिकी में आशिक बस करते हैं आह आह
पढ़े गजल शायर लोग करते हैं वाह…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 11, 2013 at 5:57pm — 9 Comments
===========ग़ज़ल=============
बहर-ए-हजज मुसम्मन सालिम
वजन- 1222 / 1222 / 1222 / 1222
गरीबों का दमन करके जो सीना तान बोलेंगे
झुकाए सर उन्ही को आप तुर्रम खान बोलेंगे
सिपाही काठ के पुतले बने फिरते हैं राहों में
कसम खाई वो करने जो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 11, 2013 at 3:30pm — 8 Comments
बह रही थी एक नदी मेरे सपने में
रह गयी फिर भी प्यासी सपने में
जी रही थी इस दुनिया में मगर
देखती थी दूसरी दुनिया सपने में
करती थी इंतेजार उसका दिनभर
आता था जो आंसू पोछने सपने में
यकीन था आएगा वो पूरा करने
कर गया था वादे, जो सपने में
ढूढती हूँ एक वही चेहरा भीड़ में
बस गया था अक्श जिसका सपने में
काश ।अब सूरज ना निकले कभी
'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में
Added by shubhra sharma on January 11, 2013 at 10:00am — 17 Comments
कलम की नॊंक सॆ
===========
फ़ांसी कॆ फन्दॊं कॊ हम,गर्दन का दान दिया करतॆ हैं,
गॊरी जैसॆ शैतानॊं कॊ भी,जीवन-दान दिया करतॆ हैं,
क्षमाशीलता का जब कॊई, अपमान किया करता है,
अंधा राजपूत भी तब, प्रत्यंचा तान लिया करता है,
भारत की पावन धरती नॆं, ऎसॆ कितनॆं बॆटॆ जायॆ हैं,
मातृ-भूमि कॆ चरणॊं मॆं, जिननॆ निजशीश चढ़ायॆ हैं,
दॆश की ख़ातिर ज़िन्दगी हवन मॆं, झॊंकतॆ रहॆ हैं झॊंकतॆ रहॆंगॆ !!
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 10, 2013 at 8:30pm — 16 Comments
अफ़सोस है दुनिया में दीवाने कहाँ जायें.
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.
यातना वंचना असह्य हो,
सहचरी वेदना बनी सदा.
निर्जन पथ निर्मम मीत मिला,
व्याकुल करती मदहोश अदा.
उलझन में पड़ा जीवन सुलझाने कहाँ जायें.
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ जायें.
पल में विचलित कर देती हैं,
ये प्यार मुहब्बत की बातें.
नयनों मे कोष अश्रुओं का,
क्यूँ काटे नहीं कटती रातें.
राँझा की तरह बोलो मिट जाने कहाँ जायें..
शम्मा से भला बचकर परवाने कहाँ…
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 10, 2013 at 8:00pm — 10 Comments
हाइकु मुक्तिका:संजीव 'सलिल'
*
जग माटी का
एक खिलौना, फेंका
बिखरा-खोया.
फल सबने
चाहे पापों को नहीं
किसी ने ढोया.
*
गठरी लादे
संबंधों-अनुबंधों
की, थक-हारा.
मैं ढोता, चुप
रहा- किसी ने नहीं
मुझे क्यों ढोया?
*
करें भरोसा
किस पर कितना,…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 7:30pm — 10 Comments
राहबर जब हवा हो गई
नाव ही नाखुदा हो गई
प्रेम का रोग मुझको लगा
और दारू दवा हो गई
जा गिरी गेसुओं में तेरे
बूँद फिर से घटा हो गई
चाय क्या मिल गई रात में
नींद हमसे खफ़ा हो गई
लड़ते लड़ते ये बुज़दिल नज़र
एक दिन सूरमा हो गई
जब सड़क पर बनी अल्पना
तो महज टोटका हो गई
माँ ने जादू का टीका जड़ा
बद्दुआ भी दुआ हो गई
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 10, 2013 at 4:30pm — 20 Comments
जाने कौन कहां से आकर
मुझको कुछ कर जाता है
मेरी गहरी रात चुराकर
तारों से भर जाता है
जाने कौन.........
देख नहीं मैं पाउं उसको
दबे पांव वह आता है
और न जाने कितने सपने
आंखों में बो जाता है
जाने कौन.......
एक दिन उसको चांद ने देखा
झरी लाज से उसकी रेखा
मारा-मारा फिरता है अब
दूर खड़ा घबराता है
जाने कौन....
चैताली वो रात थी भोली
नीम नजर भर नीम थी डोली
वही तराने सावन-भादो
उमड़-घुमड़ कर गाता है …
Added by राजेश 'मृदु' on January 10, 2013 at 3:00pm — 6 Comments
नोंच डालो ,
अस्मिता को ,बेच डालो ,
हम यही कहते रहेंगे
मौन का ...
इम्तिहान न लो ..!!
सूरज से युद्ध
करने का दुस्साहस
करता जुगनू प्रतिदिन
आकाश बँधाता ढाढस
ज़ुल्म हम सहते रहेंगे ,
हम यही कहते रहेंगे
शौर्य का
अनुमान न लो ..!!
चीखती रह जाएँगीं
विधवा घाटियाँ
जर्जर सी छत की
छूट गईं लाठियाँ
प्रतीक्षारत ,आक्रमण का
अनुचित परिणाम न हो
हम यही कहते रहेंगे ,
हौसले का ,
अनुमान न लो ..!!
मौन का,इम्तिहान न…
Added by भावना तिवारी on January 10, 2013 at 2:30pm — 5 Comments
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहिये,
प्यार की रस्म को आगे बढ़ाते रहिये |
अंधेरों मे ही ना गुजर जाय जीवन का सफ़र,
प्यार की शमा को दिल मे जलाते रहिये |
रहता यूँ चमन मे बिजलियों के गिरने का डर,
चाहत के फूलों को दिल मे खिलाते रहिये |
रोने गाने मे हो ना जाएँ सारी उमर तमाम,
उलफत के जाम को खुद पीकर पिलाते रहिये |
चले है जब तो मिल ही जाएगी मंज़िल हमको
अलबिदा कहते हुए हाथ हिलाते रहिये |
Added by Dr.Ajay Khare on January 10, 2013 at 2:30pm — 3 Comments
दहक उठे अंगारे धरती हुई रक्त से फिर पग पग लाल
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 10, 2013 at 2:01pm — 6 Comments
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