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उधेड़-बुन

हर रोज़ एक शब्द

सोचती हूँ

उसे बुन लेती हूँ 

बुन कर सोचती हूँ 

फिर उधेड़ देती हूँ ..

उधड़े  हुए शब्द

ह्रदय में

एक लकीर सी बनते

तीखी धार की तरह

निकल जाते हैं ....

सोचती हूँ यह शब्दों

का बुनना फिर

उधेड़ देना

यह उधेड़-बुन न जाने

कब तक चलेगी ..

शायद यह जिन्दगी ही

एक तरह से उधेड़ - बुन ही है

Added by upasna siag on January 15, 2013 at 6:44pm — 12 Comments

अदना सा आदमी (राजेश कुमार झा)

एक फसली जमीन को

तीन फसली करने का हुनर.....

धर्म के अंकुश तले

आकुल उड़ान की कला......

अभिशप्त़ कामनाओं को

ममी बनाने का शिल्प.......

कहां जानता है

एक अदना सा आदमी ?



वह जानता है

ताप, पसीना, थकान

विषाद, उत्पीड़न

और उससे उपजी

तटस्थता

जिसको उसने नहीं चुना,



वह जानता है

टीस, चुभन, दर्द, मरण

और इन्हें समेटकर

हो जाता है एकदिन…

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Added by राजेश 'मृदु' on January 15, 2013 at 6:00pm — 14 Comments

प्रताड़ना

कोई हद नहीं थी ,

उसके ऐतबार की !

एक अंतहीन अंधविश्वास ,

शायद !अतिशयोक्ति थी प्यार की !!

कोई प्रतिरोध नहीं किया ,

सोचा न क्या होगा अंजाम ,

घुटन भरी ज़िन्दगी ,

जीती रही गुमनाम !!

जब कोई अपना ही ,

दिन रात प्रताड़ित करता है !

एक नहीं सैकड़ों बार ,

जी जी कर फिर वो मरता है !

मानसिक बीमार कर दिया इतना ,

इसलिए उसने आत्मदाह किया ,

घुटन भरी ज़िन्दगी ने ,

ऐसा करने पर मजबूर किया !!

इतना भयंकर निर्णय ,

कोई ऐसे ही…

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Added by ram shiromani pathak on January 15, 2013 at 3:30pm — 7 Comments

दोहे

==========दोहे===========…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 3:30pm — 14 Comments

सेना दिवस

सेना दिवस 
-------------

धन्य  धरा भारत की जहाँ पग पग लगते मेले 

 उड़े अबीर गुलाल  हवा में  सब मिल गोद खेले
तिहुँ ओर घिरी  जल  से धरती  हिमालय बना  प्रहरी 
सूरज सबसे पहले उग कर  बिखेरे छटा सुनहरी 
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सब भाई चारा निभाते 
होली ईद हो या दिवाली संग   मिल पर्व मनाते
सुखदेव सुभाष  भगत…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 14, 2013 at 1:08pm — 16 Comments

गीत ..बेटियाँ

धीर धरे चुप गहन कूप
होतीं हैं बेटियाँ ../
गंगा की जलधार सीं ,
अर्घ्य की पावनधार सीं ,
जीवन के आधार सीं .
भोर सजीली भक्ति रूप
होतीं हैं बेटियाँ ..!!
सुभग अल्पना द्वार कीं,
सजतीं वंदनवार सीं/
महकें हरसिंगार सीं ,
जीवन भर की छाँह -धूप
होतीं हैं बेटियाँ ..!!
बाबा के सत्कार सीं ,
मर्यादा परिवार कीं ,
बेमन हैं स्वीकार सीं ,
धीर धरे चुप गहन कूप
होतीं हैं बेटियाँ ...!!!

Added by भावना तिवारी on January 14, 2013 at 1:00pm — 11 Comments

राजनैतिक षड्यंत्र का शिकार हिंदी...संजीव वर्मा 'सलिल'

विशेष आलेख

      राजनैतिक षड्यंत्र का शिकार हिंदी …

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 14, 2013 at 12:00pm — 10 Comments

महाकुम्भ

मकर संक्रांति पर्व है,बीस तेरहा साल,

संगम घाट प्रयाग का,बजे शंख अरु थाल/

 

शाही सवारी चलती,होती जय जयकार,

चलते साधू संत है, करें अजब श्रृंगार/

 

प्रथम शाही स्नान करे, महाकुम्भ शुरुआत,

साधू संत नहा रहे,क्या दिन अरु क्या रात/

 

भीड़ भरे पंडाल हैं,गूंजे प्रवचन हाल,

श्रोता शिक्षा पा रहे,झुका रहे हैं भाल/

 

जुटे कोटिशः जन यहाँ,लेकर उर आनंद,

पाय   रहे  प्रसाद सभी, खाएं परमानंद/

Added by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 9:00am — 16 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मकर संक्रान्ति : कुछ तथ्य // --सौरभ

मकर संक्रान्ति का पर्व हिन्दुओं के अन्यान्य बहुसंख्य पर्वों की तरह चंद्र-कला पर निर्भर न हो कर सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है. इस विशेष दिवस को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं.

पृथ्वी की धुरी विशेष कोण पर नत है जिस पर यह घुर्णन करती है. इस गति तथा पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर वलयाकार कक्ष में की जा रही परिक्रमा की गति के कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश-काल बदलता रहता है. इसे ठीक रखने के प्रयोजन से प्रत्येक…

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Added by Saurabh Pandey on January 14, 2013 at 4:00am — 45 Comments

थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला

ज़माने को सरल सीधे , नहीं चेहरे सुहाते है 

हैं अब दर्पण वही जिनको , नहीं श्रृंगार भाते हैं 

 
कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का 
मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है 



वही अब शख्स है मशहूर हर महफ़िल में देखा है 

जिसे बस झूठ और साजिश के सब व्यौहार आते हैं 
 
उसे मंज़ूर कब होंगी फरेब और झूट की दौलत 
वो बन्दा…
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Added by ajay sharma on January 13, 2013 at 11:51pm — 7 Comments

नया विश्व ..

शिक्षित बनो ,

शिक्षा का विस्तार करो !

परतंत्रता के  जंजीरों से मुक्त हो ,

नए विचारों का स्वागत करो !

 

सृष्टि का मूल हो तुम ,

अपना महत्व समझो ,जानो !

मूक बन अब न सहो 

उठो, बोलो 

विश्व को अपने विचारों से अवगत करो !

 

इस विश्व के…

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Added by Anwesha Anjushree on January 13, 2013 at 9:38pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
श्वेत बर्फीला कश्मीर

उड़ेल दिए क्या नमक के बोरे ,या चाँदी  की किरचें  बिछाई 

लटके यहाँ- वहां  रुई के गोले  क्या  बादलों   की फटी रजाई 

मति मेरी  देख- देख चकराई |

डाल- डाल पर  जड़े कुदरत ने जैसे धवल नगीने चुन- चुन कर  

लगता कभी- कभी  जैसे धुन रहे …

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Added by rajesh kumari on January 13, 2013 at 7:08pm — 14 Comments

प्रकृति सौन्दर्य

कितने सुन्दर लग रहे थे ,
डाल पर हिलते सुमन !
मंत्र मुग्ध हो गया सुन ,
भ्रमरों के मधुर गुंजन !!
प्रकृति की अनुपम सुन्दरता,
कितनी कोमल और अनंत !
कल्पने से परे है ,
निर्माणकर्ता की सोच अनन्त !!
पुष्प आगंतुक को सदैव ,
सस्नेह प्रफुल्लित करता है !
हो कोई कैसी भी ऋतू ,
तत्पर सेवा में रहता है !
वातावरण रहेगा सदैव ,
मुस्कुराता मंद मंद !
बस निकलती…
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Added by ram shiromani pathak on January 13, 2013 at 4:00pm — 3 Comments

आधुनिकता

अजीब विडम्बना देखो ,
शिष्टाचार विलुप्त हो गया !
बेटा! बेटा नहीं रहा ,
बाप हो गया !
लज्जा आती है इन्हे ,
प्रणाम ,.नमस्कार करने में !
थोडा भी संकोच नहीं ,
महिला मित्र से गले मिलने में !!
मै सोच रहा हूँ ,
क्या होगा आनेवाला कल !
मेरे उदार संस्कारों का ,
कैसा है ये फल !!
प्रायः सुनता रहता हूँ ,
हाय ,बाय और हेल्लो ,
कितना स्नेह छुपा है इनमे…
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Added by ram shiromani pathak on January 13, 2013 at 4:00pm — 6 Comments

गजल - कशाकश !!!

समय के इस कशाकश में, बदलना सीख जायेंगे
गिरेंगे फिर उठेंगे, खुद ही चलना सीख जायेंगे ।

नदी नालों ने ली है जान कुछ लाचार धारों की
करो मजबूत पैरों को, ये पलना सीख जायेंगे ।

कटे पंखों से उडती है जिगर वाली वो गौरेया,
नये मौसम में पर फिर से निकलना सीख जायेंगे ।

नहीं पहचानते बच्चे अभी तक लाल अंगारा,
हथेली पर रखेंगे तो ये जलना सीख जायेंगे ।

'सलिल' छोड़ो ये वैशाखी चलो थामो कलम-कागज,
सियासत डगमगायेगी, बदलना सीख जायेंगे ।

Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 13, 2013 at 3:26pm — 10 Comments

आज के युवा बनाम राष्ट्रीय युवा दिवस (व्यंग्य) // -शुभ्रांशु

आज मुहल्लेवालों ने राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने के लिये एक कार्यक्रम का आयोजन किया था. लाला भाई के प्रयास से ही आज का आयोजन सम्भव हो पाया था इसलिये वे बहुत ही प्रसन्न दिख रहे थे. कार्यकारिणी के सभी सदस्यों के अनुरोध पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता लाला भाई को ही बनाया गया था.

इस वर्ष ठंढ ने न्यूनतम होने के कई सारे रिकार्ड तोड दिये थे. मैं भी शरीर पर कई तह में कपडे तथा सिर पर कनटोप और मफ़लर के साथ जमा था. कडाके की ठंढ आदमी को प्याज के छिलकों की तरह वस्त्र पहनने को विवश कर देती है. तीन-चार…

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Added by Shubhranshu Pandey on January 13, 2013 at 12:30am — 13 Comments

माँ तुमसॆ बलिदान माँगती है

माँ तुमसॆ बलिदान माँगती है :--

========================

भारत कॆ सैनिकॊं की हत्या पर, इंद्रासन हिला नहीं,

प्रलयं-कारी शंकर का क्यॊं, नयन तीसरा खुला नहीं,

शॆष अवतार लक्ष्मण जागॊ, मत करॊ प्रतीक्षा इतनी,

मर्यादाऒं मॆं बंदी भारत माँ,दॆ अग्नि-परीक्षा कितनी,

हॆ निर्णायक महा-पर्व कॆ, तुम फिर सॆ जयघॊष करॊ,

युद्ध-सारथी बन भारत कॆ, जन-जन मॆं जल्लॊष भरॊ,

भारत माँ की बासंती चूनर,तुमसॆ नया बिहान माँगती है !!

महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2013 at 10:30pm — 12 Comments

पाठक नामा- मेरी आपबीती: बेनज़ीर भुट्टो पर संजीव 'सलिल'

पाठकनामा:

संजीव 'सलिल'

*

गत दिनों बेनजीर भुट्टो की लिखी पुस्तक मेरी आपबीती पढ़ी. मेरे पिता की हत्या, अपने ही घर में बंदी, लोकतंत्र का मेरा पहला अनुभव, बुलंदी के शिखर छूते ऑक्सफ़ोर्ड के सपने, जिया उल हक का विश्वासघात, मार्शल लॉ को लोकतंत्र की चुनौती, सक्खर जेल में एकाकी कैद, करचे जेल में- अपनी माँ की पुरानी कोठारी में बंद, सब जेल में अकेले और २ वर्ष, निर्वासन के वर्ष, मेरे भाई की मौत, लाहौर वापसी और १९८६ का कत्ले-आम, मेरी शादी, लोकतंत्र की नयी उम्मीद, जनता की जीत,…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 12, 2013 at 8:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल

=========ग़ज़ल=========

बहरे जदीद मुसद्दस महजूफ मक्फूफ़ मुतव्वी

वजन - 212 2121 2112



बात करना बड़ी बड़ी ही सही

झूठ हो या सही सही ही सही



इश्क के हर कदम पे वादे हों

तब तो करना है दोस्ती ही सही



गरचे…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 12, 2013 at 6:25pm — 5 Comments

मकर संक्रांति पर्व

मकर संक्रांति पर्व है, चौदह जनवरी जान

उत्तरायण सूर्य का है, देख शास्त्रीय विज्ञान

पित्त कफ़ वायुप्रकोपहै,शुष्क ठण्ड के रोग .

ओजस्वी उर्जावान सूर्य किरणे करे निरोग

छत पर, खुले में जा लोग पतंग खूब उड़ाते

दूर उडती पतंग निहार नयन ज्योति बढ़ाते

मानसिक संतोष,औ तंदुरस्ती चाहे बढ़ाना

गरीब औ अनाथ को ठण्ड में वस्त्र…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 12, 2013 at 2:00pm — 12 Comments

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