मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
लिखा रहा वह, हम लिखते हैं.
अधिक देखते कम लिखते हैं..
तुमने जिसको पूजा, उसको-
गले लगा हमदम लिखते हैं..
जग लिखता है हँसी ठहाके.
जो हैं चुप वे गम लिखते हैं..
तुम भूले सावन औ' कजरी
हम फागुन पुरनम लिखते हैं..
पूनम की चाँदनी लुटाकर
हँस 'मावस का तम लिखते हैं..
स्वेद-बिंदु से श्रम-अर्चन कर
संकल्पी परचम लिखते हैं..
शुभ विवाह की रजत जयन्ती
मने- ज़ुल्फ़ का ख़म…
Added by sanjiv verma 'salil' on April 4, 2012 at 8:30pm — 8 Comments
(ओ.बी.ओ. का अपना बैज है. ये रचना ओ.बी.ओ. गीत हेतु तैयार की है.)
भटकता फिर रहा था न जाने कब से भीड़ में एक आस लिए
मुट्ठी भर पा जाऊं धरा औ ज्ञान की एक बूँद का विश्वास लिए
मिली जानकारी जब कि ओ.बी.ओ. एक ऐसा आधार है
गुनी जनों के सानिध्य मिले तो अवश्य तेरा बेडा पार है
गजल छन्द और कई भाषाओँ के हैं विधान यहाँ ,
कहानी और कविता का मिलता है ऐसा ज्ञान कहाँ
नए पुराने और धर्म जाति का न कोई भेद यहाँ
वो जगह बताएं…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 4, 2012 at 6:00pm — 10 Comments
तीन वर्ण और
एक मायावी शब्द ,
Added by rajesh kumari on April 4, 2012 at 10:31am — 10 Comments
पुनः लुंठन हो रहा चुपचाप हैं हम|
अक्षमाला पर मरण के जाप हैं हम|
चिर विकेन्द्रीकृत हुई केन्द्रीय सत्ता,
नव्य युग, प्राचीनता के सांप हैं हम|
…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 4, 2012 at 10:30am — 10 Comments
यह क्या
ऐसा तो न सोचा था
यह तो धोखा हो गया
बच्चा समझ के बहलाया नानी ने
दूर एक ग्रह को बनाया था मामा
रोज रात में बताती थी मुझे
देखो आसमां में जो चमक रहा है
वह हैं सबका प्यारा चंदामामा
धीरे-धीरे अक्ल आने लगी
नानी का झूठ समझ आने लगा
क्यों बोला झूठ उन्होंने
बच्चा जान बहलाया मुझे
लेकिन कहते है
प्यार में होता है सब जायज
यह बात भी समझ आती है
जब बचाना होता है गृह अपना
तब लेता हूं झूठ का सहारा
और कहता हूं अपनी…
Added by Harish Bhatt on April 4, 2012 at 2:52am — 2 Comments
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on April 4, 2012 at 12:00am — 2 Comments
कालबाह्य हो गयी अचानक सिर से वंचित चोटी है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
मृतिका पात्रों का सोंधापन,
स्नेहपूर्ण परसन,प्रक्षालन|
मधुमय मंगल गीतों…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 10:30pm — 8 Comments
Added by Ravindra Prabhat on April 3, 2012 at 7:30pm — 16 Comments
सदा आती है ये अक्सर तड़प के मेरे सीने से
Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on April 3, 2012 at 5:00pm — 4 Comments
अंधे रास्ते
ये वो रास्ते है
जो अंधे हैं
ये कर देते हैं
मजबूर पथिक को
रुकने को कभी
तो कभी लौटने को.
करते हैं जो हिम्मत
बढ़ने की आगे,
लडखड़ा जाते हैं वो भी
कुछ कदम पर ही .
आखिर क्यों ?
चांदनी सा बदन
दिलों का मिलन
कसमें वादे
मज़बूत इरादे
दुनिया से बगावत
डेटिंग व दावत
माँ -बाप, मित्र अपने
मखमली -रुपहले सपने
हो जाते हैं धूमिल
इन अंधे रास्तों में ..
मेरे महबूब
नहीं…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on April 3, 2012 at 4:10pm — 4 Comments
(चतुष्क-अष्टक पर आघृत)
पदपदांकुलक छंद (१६ मात्रा अंत में गुरू)
***********************************************************************************************************
सपनों पर जीत उसी की है,
जिसके मन में अभिलाषा है.
वह क्या जीतेंगे समर कभी,
जिनके मन घोर निराशा है ..
चींटी का सहज कर्म देखो,
चढ़ती है फिर गिर जाती है.
अपनें प्रयास के बल पर ही,
मंजिल वह अपनी पाती है..
स्वप्न की उन्नत…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 3, 2012 at 3:00pm — 24 Comments
उसमे थी उच्छृंखलता,तुम शांति के करीब हो
वो थी सिर्फ एक घटना, शायद तुम मेरा नसीब हो
उसमे थी, पाने की चाहत तुम त्याग को प्यार कहते हो
उसकी बातें थी अविश्वसनीय,तुम विश्वास को आधार कहते हो
उसकी बातें हंसते हुए थी रुलाती,भरती थी मन में निराशा
तुम भी आशावादी,आस दिलाती तुम्हारे प्यार की भाषा
वो थी मेरी सबसे बङी भूल ,तुम सुधार बनके आऐ हो
वो था एक आकर्षण,तुम जिंदगी में प्यार बनके आऐ हो
जितना आसां है उसे भूल के जीना,उतना ही मुश्किल…
ContinueAdded by minu jha on April 3, 2012 at 11:36am — 8 Comments
उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं
मगर पहले मुझे अपना बनाएं
खुदा पर है यकीं तनकर चलूँगा
जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं
जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर
चलो बैठे कहीं आँसू बहाएं
तुम्हारे आफताबों की वज़ह से
अभी कुछ सर्द है बाहर हवाएं
तिरा दरबार है मुंसिफ भी तेरे
कहूँ किससे यहाँ तेरी खताएं
खता उल्फत की करने जा रहा हूँ
कहो अय्याम से पत्थर…
ContinueAdded by Arun Sri on April 3, 2012 at 11:00am — 20 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on April 3, 2012 at 9:59am — 10 Comments
शर्मा जी, आजकल बड़े उद्विग्न से दिखने लगे हैं! ....वैसे वे हमेशा शांतचित्त रहते, किसी से भी मुस्कुराकर मिलते और जो भी उनके पास आता, उनसे जो मदद हो सकता था, अवश्य करते.
पर, आज कल दफ्तर में काम का अत्यधिक बोझ, बॉस का दबाव और बीच बीच में झिड़की, सहकर्मी की ब्यंग्यबान, बाजार की महंगाई, सीमित वेतन में बच्चों की पढ़ाई लिखाई, उनकी आकाँक्षाओं की पूर्ति, पत्नी के अरमान.... सबकुछ सीमित वेतन में कैसे पूरा करें....... वेतन समझौता भी एक साल से बकाया है. अभी तक कोई सुगबुगाहट नहीं सुनाई पड़ रही है. हर…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 7:34am — 13 Comments
बंजारा लोगो की कैसी भी हो किस्मत
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2012 at 10:30pm — 4 Comments
दीनो धरम,ईमान के हाइल हैं यहाँ पर|
मैं इल्म किसे दूँ,सभी जाहिल हैं यहाँ पर|
.
नादान बशर रो रहा जिस शख्स के आगे,
वह शख्स कहीं और है,गाफिल है यहाँ…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 10:30pm — 14 Comments
Added by dilbag virk on April 2, 2012 at 9:00pm — 5 Comments
मेरे बचपन के एक मित्र के बड़े भैया पढ़ने में बड़े तेज़ थे, और पूरे मोहल्ले में अपनी आज्ञाकारिता और गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे. भैया हम लोगो से करीब 5 साल बड़े थे तो हमारे लिए उनका व्यक्तित्व एक मिसाल था, और जब भी हमारी बदमाशियो के कारण खिचाई होती थी तो उनका उदहारण सामने जरूर लाया जाता था. सभी माएं अपने बच्चो से कहती थी की कितना 'सीधा लड़का' है. माँ बाप की हर बात मानता है. कभी उसे भी पिक्चर जाते हुए देखा है?
मेधावी तो थे ही, एक बार में ही रूरकी विश्वविद्यालय में इन्जिनेअरिंग में…
ContinueAdded by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 2, 2012 at 12:30pm — 18 Comments
मैंने देखा है -
हलांकि जार-जार टूटे हुए ,
हवादार
फिर भी उमस में डूबे हुए झोपडो में
जो चेहरे रहते है ,
इस जानलेवा भागम भाग में भी
वो चेहरे ठहरे रहते हैं !
ये ठहरा हुआ वक्त का मरहम
और फिर भी उनके जख्म
गहरे के गहरे रहतें हैं !
टूटी हुई छत से टपकती उदास धूप
नहीं सुखा पाती
सिसकती हुई छाँव की सीलन !
जिनके छिल चुके होंठ
नहीं उठा पाते
गूंगी हँसी का बोझ तक
लेकिन वो उठाए…
ContinueAdded by Arun Sri on April 2, 2012 at 10:37am — 10 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |