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ठठकरम

           

 

 माँ की बात सुनते ही पिताजी के दोनों बड़े भाईयों का चेहरा ऐसा हो गया था मानो दोनों गाल पर किसी ने एक साथ तमाचा मारा हो | एक क्षण के लिए तो ऐसा लगा था कि  वे उत्तेजित होकर न जाने क्या कर बैठें या फिर नवांगतुक को साथ लेकर घर छोड़कर ही न चले जाएँ | पर , ऐसा कुछ नहीं हुआ | नवांगतुक जो पिताजी के सबसे बड़े भाई याने मेरे दादाजी के साले थे , असहज हो गए थे और सहज होने के प्रयास में फर्श पर रखे अपने पांवों को जोर जोर से हिला रहे थे | काफी देर तक निस्तब्धता छाई रही | हमेशा हाथ…

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Added by अरुण कान्त शुक्ला on April 1, 2012 at 11:31pm — 3 Comments

ओ.बी.ओ. की दूसरी वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोजित काव्य समारोह (इलाहाबाद)

मुख्य अतिथि श्रीमती लक्ष्मी अवस्थी दीप-प्रज्ज्वलन करते हुए. साथ में (बायें से) डा. जमीर अहसन, एहतराम इस्लाम, इम्तियाज़ गाज़ी तथा सौरभ पाण्डेय …

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Added by वीनस केसरी on April 1, 2012 at 9:00pm — 9 Comments

मैं एक पेड़ हूँ

तनहा खड़ा 

एक पेड़ हूँ मैं 

बरसों पहले 

नन्हा सा प्यारा बच्चा

पास के जंगल से …

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2012 at 4:00pm — 20 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
वो पीपल का पेड़

कुछ पल मेरी छावं में बैठो तो सुनाऊं

हाँ मैं ही वो अभागा पीपल का दरख्त हूँ

जिसकी संवेदनाएं मर चुकी हैं

दर्द का इतना गरल पी चुका हूँ

कि जड़ हो चुका हूँ !

अब किसी की व्यथा से

विह्वल नहीं होता

मेरी आँखों में अश्कों का

समुंदर सूख चुका है |

बहुत अश्रु बहाए उस वक़्त

जब कोई वीर सावरकर

मुझसे लिपट कर…

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Added by rajesh kumari on April 1, 2012 at 8:00am — 11 Comments

हाइकु

हाइकु

*******

देकर दवा

मत देना जहर

करना दुआ



*************

बीमार मन

प्रदूषित शरीर

घायल सब

***********…

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Added by Rita Singh 'Sarjana" on March 31, 2012 at 6:30pm — 5 Comments

क्यों हम लौट चलें !

क्यों हम लौट चलें !

कि चाहत देख कर हमारी  ज़माना जलता है ,

कि घर बहार हर दम कोई फ़साना  पलता है .

निगाहें घूम जाती हैं, तेरे साथ आने से

दीवारें सुन ही लेती हैं हमारे गुनगुनाने से

क्यों हम लौट चलें !

ये अंकुर है जो फूटा है, नहीं शुरुआत ये जाना

ये बढ़ते कदम तो बस एक परवाज़ है जाना .

ये दीपक है जो लड़ता है , तूफां में अँधेरे में,

ये जुगनू चमकेगा फिर से, अंधियारे घनेरे  में

क्यों हम लौट चलें !

ये मंजिल बन चुकी है…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 31, 2012 at 4:54pm — 1 Comment

वलवले

लुटा के सब कुछ चुपके से तेरी बज्म में हैं आये 
 बच गया था जो राख में  तेरी अंजुमन में हैं लाये 
महका करते थे जो कहीं और क्यों आज यहाँ हैं आये 
मर चुका जब अहसास गुलजार हो चमन अब  न भाये …
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 30, 2012 at 9:55pm — 6 Comments

बिल्ली के गले में घंटी बांधना हर समय विशेष में कठिन काम रहा है

गीत और ग़ज़ल ऐसी विधाएं हैं जो प्रत्येक साहित्य प्रेमी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं | चाहे वह मजदूर वर्ग हो या उच्च पदस्थ अधिकारी वर्ग, सभी के ह्रदय में एक कवि छुपा होता है | हर काल में गीतकार और ग़ज़लकार होने को एक आम आदमी से श्रेष्ठ और संवेदनशील होने का पर्याय मन गया है ऐसे में प्रत्येक साहित्य प्रेमी को प्रबल अभिलाषा होती है कि वह सृजनात्मकता को अपने जीवन में स्थान दे सके और समाज उसे गीतकार ग़ज़लकार के रूप में मान दे इस सकारात्मक सोच के साथ अधिकतर लोग खूब अध्ययन करने के पश्चात और शिल्पगत…

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Added by वीनस केसरी on March 30, 2012 at 6:00pm — 16 Comments

इन्तजार की अवधि

मृत्यु जब तक तुम्हे

वरण नहीं कर लेती

तब तक करो इन्तजार

रखो अटल  विश्वास

गले लगा लो

सारी  प्रवंचनाएं

मत ठुकराओ

दुनियावी…

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Added by MAHIMA SHREE on March 29, 2012 at 10:17pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सच्चाई का दमन

 

कल फिर किसी चट्टान को फोड़ने की कोशिश होगी 
कल फिर किसी ईमान को निचोड़ने की कोशिश होगी 
सूरज तो दिन में हर रोज की तरह दमकेगा 
कल फिर  अँधेरे में सच को मरोड़ने की कोशिश होगी 
एक और बुलंद आव़ाज का शीशा चट्केगा 
कल फिर तिलस्मी वादों से जोड़ने की कोशिश होगी
फूट रहा क्रोध का लावा बनकर हर्दय में जो 
कल फिर उसी सैलाब को मोड़ने की कोशिश होगी 
फिर तमाश्बीन  की तरह बैठे रहेंगे…
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Added by rajesh kumari on March 28, 2012 at 7:55pm — 16 Comments

लुत्फ़-ए-बुढ़ापा

लुत्फ़-ए-बुढ़ापा 




एक कतरा दर्द-ए-दिल का उनके ही काम आया

जब मिला न कोई हमदर्द तो यही काम आया  
हम तो 'दीपक' की मानिंद जले जलते गए
मेरा रोना भी उन्हें शायद न…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 28, 2012 at 3:06pm — 7 Comments

आसमां परिंदो का

मन कहता है

आसमां में चलो

दिमाग कहता है

चले आसमां में

तो गिर जाओगे

दिल और दिमाग ने

किया मिलकर मंथन और

कर दिया फैसला

जिंदगी की मेरी

संभल कर चलो

जमीन पर

पहुंच जाओगे मंजिल पर

न पालों ख्‍वाहिश

आसमां में उडने की

क्‍योंकि

जमीं तुम्‍हारी

आसमां परिंदो का

अपनी हद में रहो

उडने दो उन्‍हें भी

खुले आकाश में

फिर देखा है न

आसमां में उडने वाले को

उन्‍हें भी आना होता है

अपनी जमीं… Continue

Added by Harish Bhatt on March 28, 2012 at 12:48pm — 6 Comments

बेहिसाब मिला

गम मिला मुझको बेहिसाब मिला 

बस मुहब्बत का यह ईनाम मिला 
गम मिला मुझको--------------
.

हमको आता है मज़ा जलने में हकीकत है…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 27, 2012 at 11:30am — 7 Comments

ग़ज़ल.



प्यार की मीठी बातों क़े माने ग़ज़ल,..
इश्क करते है जो वो ही जाने ग़ज़ल.
**
गोया गागर में सागर समाया करे,...
चंद लफ़्ज़ों में कहती फ़साने ग़ज़ल....
**
प्यार पर ही टिका है ये सारा जहाँ,...
बात सबको लगी है बताने ग़ज़ल.....
**
रौब अपना जमाने यहाँ बज़्म में,..
छेड़ देते है यूँ  ही सयाने ग़ज़ल.....
**
चांदनी रात में देख उनकी…
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Added by AVINASH S BAGDE on March 27, 2012 at 11:22am — 12 Comments

मै ..........

जीवन मुझसे हरदम जीता ,

मै सदा सदा इससे हारा ,,

आकुल मन पिंजर बंद हुआ ,

कातर घायल यह बेचारा ,,

अति गहन तिमिर में व्याकुलमन,

विस्मृति से मुझे उबारे कौन,,

यह बुद्धि मनीषा किससे पूछे,

निर्जर भी सब हो गए मौन ,,

कुसुमित होता था कुसुम जहां ,

वह बगिया भी अब सूख गई ,,

निर्झरिणी बहती थी जहां सदा,

वह अमिय जाह्नवी सूख गई ,,

हा करुणा करुण विलाप करे ,

पर नेत्र नही हैं पनियाले ,,

तट बंध भ्रमित हो यह प्रश्न करे…

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Added by अश्विनी कुमार on March 26, 2012 at 10:00pm — 7 Comments

बुझना ही होता है

बुझना ही होता है

वोह जाना चाहते थे दूर

किनारा कर किया हमनें
न हो तकलीफ उनको
यह ईरादा कर लिया हमनें 
वोह जाना चाह----------
बड़ा मुश्किल था जीना क्या…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 26, 2012 at 10:40am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
देश की सूरत

भावनाओं का दमन,  

संवेदनाओं का संकुचन देख रहे हैं 

आदान-प्रदान सब गौण  हुए  

अब ऐसा चलन देख रहे हैं |

स्वार्थ के बढ़ते  दाएरे, 

जन- जन  को छलते देख रहे हैं 

हिंद  का वैभव स्विस बेंकों में 

 हक को जलते देख रहे हैं |

भ्रष्टाचारी को जीवंत, 

संत ज्ञानी को मरते देख रहे हैं 

अगन उगलते सूरज में, 

नम धरा झुलसते देख रहे हैं | 

दूध की नदियाँ…

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Added by rajesh kumari on March 26, 2012 at 10:30am — 10 Comments

स्वप्निल पाती

इस प्यार भरे बासंती बयार में- 
तेरे स्वप्निल नयनो की पाती.
नयनो नयनो में मधुरगीत गाती 


स्वप्निल मधुर गीतों की पाती 
गायन के मौसम में खूब सुहाती …


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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 26, 2012 at 10:00am — 3 Comments

सत्य का प्रहार

अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

धन की बहुत लालसा  बिके हुए जमीर हैं.

तन के महाराज सभी  मन के ये फ़कीर हैं.

विवश  अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

                   

कौम अब पुकारती  न और इन्तजार कर,

रक्त से बलिदान के सींचित इस…

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Added by Ashok Kumar Raktale on March 25, 2012 at 4:25pm — 10 Comments

ये कहाँ आ गए हम

ये कहाँ आ गए हम

यूँ साथ चलते-चलते….

कभी मरते थे

एक-दूजे पर

आज मार रहे

एक-दूजे को

कभी कहते थे

हिन्दू- मुस्लिम- सिख- ईसाई

आपस में है भाई-भाई

कैसे बदलती है सोच

यह भी देख रहे

गैरों से लड़ते-लड़ते

अपनों से लड़ बैठे

शान्ति की तलाश में

अमन को खो…

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Added by Harish Bhatt on March 25, 2012 at 12:02pm — 2 Comments

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