गर्म होती जा रहीं है,
शहर में पागल हवाएँ.
क्या पता इन बस्तियों में,
कब पटाखे फूट जाएँ.
ढूँढता अस्तित्व अपना,
सच बहुत बेचैन है.
डस रहा है दिन उसे तो,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 11:16am — 18 Comments
२१२/ १२२२// २१२/ १२२२
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हाँ! सराब का धोखा तिश्नगी में होता है,
ग़लतियों पे पछतावा आख़िरी में होता है.
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तितलियों के पंखों पर चढ़ते हैं गुलों के रँग
ज़िक्र जब मुहब्बत का शाइरी में होता है.
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शम्स ख़ुद भी छुपता है देख कर अँधेरे को,
इम्तिहान जुगनू का तीरगी में होता है.
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बीज यादों के बो कर सींचता है अश्कों से
दिल ख़याल उगाता है जब नमी में होता है.
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जिस ख़ुदा की ख़ातिर तुम लड़ रहे हो सदियों से
काश ये समझ पाते वो सभी में…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 3, 2018 at 9:00pm — 12 Comments
यथार्थ ....
कुछ पीले थे
कुछ क्षत-विक्षत थे
कुछ अपने शैशव काल में थे
फिर भी उनका
शाखाओं का साथ छूट गया
धरा पर पड़े
इन पत्तों की बेबसी पर
हवा कहकहे लगा रही थी
जिसके फैले बाज़ुओं पर
निश्चिंत रहा करते थे
उम्र के पड़ाव पर
उन्हीं बाजुओं से
साथ छूटता चला गया
अब उनका बाबा
एक कंकाल मात्र ही तो था
पीले पत्ते बात को समझते थे
कभी -कभी हवा के बहकावे में
इधर -उधर हो जाते थे
लेकिन…
Added by Sushil Sarna on April 3, 2018 at 6:17pm — 7 Comments
ग़ज़ल(याद आती हैं जब)
212 212 212 212
याद आतीं हैं जब आपकी शोखियाँ,
और भी तब हसीं होतीं तन्हाइयाँ।
आपसे बढ़ गईं इतनी नज़दीकियाँ,
दिल के लगने लगीं पास अब दूरियाँ।
डालते गर न दरिया में कर नेकियाँ,
हारते हम न यूँ आपसे बाज़ियाँ।
गर न हासिल वफ़ा का सिला कुछ हुआ,
उनकी शायद रही कुछ हों मज़बूरियाँ।
मिलता हमको चराग-ए-मुहब्बत अगर,
राह में स्याह आतीं न दुश्वारियाँ।
हुस्नवालों से दामन बचाना ए…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 3, 2018 at 8:30am — 9 Comments
‘क्या बात करते हो दद्दू ,प्रयास में कमी?’- मैंने झुंझलाकर कहा, ‘अरे हम जमीन आसमान एक कर दिए. कहाँ-कहाँ नहीं दौड़े. जिसने जहाँ बताया भाग-भागे गये. अख़बारों के मेट्रोमोनियल्स छान मारे, बड़े-बड़े घमंडी अह्मकों के आगे दामन फैलाया पर नतीजा वही सिफ़र. दो-तीन जगह तो दिखाई भी हुई, दो-एक लोगों ने पसंद भी किया, विवाह के लिये हाँ भी कर दी पर बाद में मुकर गए. इतना भी न सोचा कि लडकी पर क्या गुजरेगी. माँ-बाप पर क्या बीतेगी. जुबान की तो ससुरी कोई कीमत ही नही.’
‘धीरज धरो, छोटे’ – दद्दू ने सांत्वना दी,…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2018 at 9:13pm — 7 Comments
एक दुआ
साथ देने की गुजारिश के साथ
जाने अबकी बार खुदाया कैसी पूर्णमासी है
चाँद के पूरे दीदार की चाहत सुलग रही है माथे पर
और पैरों को हिला रहा है डर मंज़र खो देने का
सूनी आँखे ढूंढ रही हैं अपनी क्षमता से दूर
घुटने टेके, हाथ पसारे ,दुआ सहारे
हर दम
मर्यादा से बँधे खड़े हैं
और अम्बर का कैसा नज़ारा
इन नज़रों को सता रहा है
पेड़ों के पीछे चाँद के आने की आहट से
धड़ धड़ सीना धड़क रहा है
लेकिन
जो अंधियारे ,गहरे, काले बादल गरज रहे हैं
उनसे इन…
Added by मनोज अहसास on April 2, 2018 at 7:02pm — 12 Comments
212 212 212 212
रूह से मेरे अब तक जुदा तू नहीं ।
बात सच है सनम बेवफा तू नहीं ।।1
कर रहा एक मुद्दत से सज़दा तेरा ।
कह दिया किसने तुझको खुदा तू नहीं ।।2
जिंदगी से मेरे जा रहा है कहाँ ।
इस तरह अब नजर से गिरा तू नहीं ।।3
मेरे कूचे से निकला न कर बेसबब ।
दिल हमारा अभी से जला तू नहीं ।।4
वार कर मत निगाहों से मुझ पर अभी ।
सब्र मेरा यहाँ आजमा तू नहीं ।।5
लोग अनजान हैं कत्ल के…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 2, 2018 at 6:57pm — 9 Comments
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
मेरी सारी वफ़ा ओबीओ के लिये
काम करता सदा ओबीओ के लिये
दिल यही चाहता है मेरा दोस्तो
जान करदूँ फ़िदा ओबीओ के लिये
आठ क्या,आठ सो साल क़ाइम रहे
है यही इक दुआ ओबीओ के लिये
मेरे दिल में कई साल से दोस्तो
जल रहा इक दिया ओबीओ के लिये…
Added by Samar kabeer on April 2, 2018 at 3:00pm — 40 Comments
ओ बी ओ में हो रहा, उत्सव का आगाज |
आठ वर्ष तक का सफ़र,साक्ष्य बना है आज ||
दूर दृष्टि बागी लिए, खूब बिछया साज |
योगराज के यत्न से, बना खूब सरताज | |
काव्य विधा को सीखते, विद्वजनों…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2018 at 2:30pm — 27 Comments
माथे की बिन्दी
कोई ताज़ी भूलें, कुछ नए आँसू
हमारा अब अलसाया-सा बन्धन
ले आता है ओठों पर रूक-रूक एक ही सवाल ---
सुबह से गोधूली तक के अल्प समय में
तिरछी परछाइयाँ डूबने से पहले ही
मेरे प्यार, भूल गए तुम प्यार की पहचान
तुम कैसे इतने बदल गए ?
समुद्र से करती कोमल-स्पर्श संवेदित हवाएँ
लहरों के ओठ बन्द कर उन्हें सुलातीं थीं जो
उन हवाओं के भी जैसे मिजाज बदल…
ContinueAdded by vijay nikore on April 2, 2018 at 11:00am — 10 Comments
22 22 22 22
मूर्खों का सम्मेलन हो फिर,
बीतीं बातें,चिंतन हो फिर।1
उम्र हुई तो क्या होता है
सुन्नत,चाहे मुंडन हो फिर।2
अपने तर्क उठाते रहिये
औरों का बस खंडन हो फिर।3
जात-धरम अवसाद हुए कब?
मुँहदेखी हो,मंडन हो फिर।4
भाषा,भनिति अबला जैसी
नाच नचा लें,ठन-ठन हो फिर।5
पीठ नहीं पूजी जाये तो
चलते-फिरते अनबन हो फिर।6
पढ़ने से परहेज भला है
मतलब कुछ हो, लेखन हो…
Added by Manan Kumar singh on April 1, 2018 at 9:08pm — 14 Comments
Added by Sushil Sarna on April 1, 2018 at 1:05pm — 9 Comments
एक दिन तंग आकर ज़िंदगी मौत से बोली-" आख़िर तू मुझे कब तक डसती रहेगी ?"
मौत खिलखिलाकर बोली-" जब तक तू जीने की हठ करती रहेगी ।"
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on April 1, 2018 at 9:00am — 8 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 1, 2018 at 8:24am — 13 Comments
सूँघा हमने फूल को, महज समझ कर फूल
था कागज का तो मना, अपना 'अप्रैल फूल'।१।
हम में दस ही मूर्ख हैं, नब्बे हैं हुशियार
लेकिन ये दस कर रहे, हर दुख का उपचार।२।
मूरख कब देता भला, मूर्ख दिवस को मान
इस पर कृपा कर रहा, सहज भाव विद्वान।३।
भोले भाले का उड़ा, खूब कुटिल उपहास
मूर्ख दिवस पर सोचते, वो हैं खासमखास।४।
दसकों से सर पर रहा, बेअक्लों का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 7:28am — 20 Comments
बेचैनी बढ़ रही धरा की,
पशु-पक्षी बेहाल
सूरज बाबा सजा रहे हैं,
अंगारों का थाल
दिखते नहीं आजकल हमको,
बरगद, पीपल, नीम
आँगन छोड़, घरों में बालक,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 31, 2018 at 8:30pm — 10 Comments
विहग निज चोंच में देखो,,,,,,
विहग निज चोंच में देखो, अहा! मछली दबोचे है|
फँसी खग कंठ में मछली, पड़े तन पर खरोंचे हैं ||
विहग औ मीन दोनों इक, सरीखे ही अबोले हैं |
मगर इक हर्ष दूजी भय, सँजोये आँख बोले हैं |१ |
उदर की भूख मिट जाए, यही चाहत विहग पाले |
वहीं पर मीन के देखो, पड़े हैं जान के लाले ||
सलामत जान की अपने, खुदा से चाहती मछली |
निवाला छूट ना जाए, यही मन सोचती बगुली |२ |
मौलिक और अप्रकाशित…
Added by Satyanarayan Singh on March 30, 2018 at 1:30pm — 12 Comments
बह्र -1212-1122-1212-22
बड़ा शह्र है ये अपना पता नहीं मिलता।।
यहाँ बजूद भी हँसता हुआ नहीं मिलता।।
दरख़्त देख के लगता तो आज भी ऐसा ।
के ईदगाह में अब भी खुदा नहीं मिलता।।
समाज ढेरों किताबी वसूल गढ़ता है।
वसूल गढ़ता ,कभी रास्ता नहीं मिलता।।
मैं पढ़ लिया हूँ कुरां,गीता बाइबिल लेकिन ।
किसी भी ग्रन्थ में , नफरत लिखा नहीं मिलता।।
मुझे भी दर्द ओ तन्हाई से गिला है पर।
करें भी क्या कोई हमपर फ़िदा नहीं…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 30, 2018 at 11:11am — 6 Comments
122 122 122 122
मेरी चाहतें सब दहकने से पहले ।।
चले आइये सर पटकने पहले ।।
नहीं भूलती वो सुलगती सी रातें ।
मुहब्बत का सूरज चमकने से पहले ।।
सुना हूँ यहाँ हुस्न वालों की बस्ती।
मगर वो मिले कब भटकने से पहले ।।
है ख्वाहिश यही तुझको जी भर के देखूँ ।
क़ज़ा पर पलक के झपकने से पहले ।।
बहुत कोशिशें गुफ्तगू की हैं उनकी ।
अभी सर से चिलमन सरकने से पहले…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 30, 2018 at 3:30am — 7 Comments
“ रात महके तेरे तस्सवुर में
दीद हो जाए तो फिर सहर महके “
“अमित अब बंद भी करो !बोर नहीं होते |कितनी बार सुनोगे वही गजल |” सुनिधि ने चिढ़ते हुए कहा
प्रतिक्रिया में अमित ने ईयरफोन लगाया और आँखें बंद कर लीं |
कुछ देर बाद सुनिधि ने करवट बदली और अपना हाथ अमित की छाती पर रख दिया |पर अमित अपने ही अहसासों में खोया रहा और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी |
“ऐसा लगता है तुम मुझे प्यार नहीं करते |” सुनिधि ने हाथ हटाते हुए कहा पर अमित अभी भी अपने ख्यालों में खोया…
ContinueAdded by somesh kumar on March 30, 2018 at 12:00am — 2 Comments
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