हृदय-सम्बन्ध - ५
संकोच, घबराहट
ढुलता अश्रुजल
हर प्रवाह के नीचे
एक और प्रवाह
पता नहीं भूचाल था वह, या
था कोई भीषण प्रकम्पक तूफ़ान…
ContinueAdded by vijay nikore on March 14, 2018 at 8:06am — 26 Comments
221 2121 1221 212
इस बेखुदी में आप भी जाते कहाँ कहाँ ।
दिल के हजार ज़ख्म दिखाते कहाँ कहाँ ।।
खानाबदोश जैसे हैं हम जहान में ।
रातें तमाम आप बिताते कहां कहां ।।
मुश्किल सफर में अलविदा कह कर चले गए ।।
यूँ जिंदगी का साथ निभाते कहाँ कहाँ ।।
चहरा हो बेनकाब न जाहिर शिकन भी हो।
क़ातिल का हम गुनाह छुपाते कहाँ कहाँ…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 14, 2018 at 5:00am — 3 Comments
उनके बंगले के बाहर आज फिर उनके दीवानों, प्रशंसकों और पत्रकारों की ग़ज़ब की भीड़ लगी हुई थी। एक वरिष्ठ पत्रकार को उनसे रूबरू होने का मौक़ा मिला। बातचीत शुरू हुई :
"बहुत-बहुत मुबारक हो आपकी एक और जीत !" पत्रकार ने अभिवादन करते हुए कहा - "अस्पताल से लौट कर अब कैसा महसूस कर रहे हैं?"
"चिकित्सकों की कर्मभूमि से अपनी कर्मभूमि पर जाने के लिए फिर से तैयार हूं!" उन्होंने अपनी चिर-परिचित जोशीली आवाज़ में पत्रकार को जवाब देते हुए कहा - "बचपन से ही सिर पर है अल्लाह का हाथ इस अल्लारक्खा…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 14, 2018 at 4:00am — 7 Comments
2122 2122 212
आंधियों के बाद भी अक्सर मिले ।।
फिर किसी दरिया में हम बहकर मिले ।।
हौसले ने आसमाँ तब छू लिया ।
आप मुझ से जब कभी हंस कर मिले ।।
हक़ जो मांगा इस ज़माने से यहां ।
दोस्तों के हाथ में ख़ंजर मिले ।।
लूट की थीं दौलतें जिसमें लगीं ।
वो मकां अक्सर हमें जर्जर मिले ।।
क्या गले मिलते भी हम तुमसे सनम ।
प्यार के बदले बहुत पत्थर मिले…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 14, 2018 at 12:30am — 8 Comments
2122 2122 2122
बेवफा वे अब कहाँ,अपने हुए हैं
वर्जनाएँ तोड़कर आगे बढ़े हैं।1
दो कदम उनके हुए तो कम नहीं हम
कुछ कदम चलकर मुरव्वत से मिले हैं।2
गालियाँ उनकी नहीं लगतीं बुरी अब
लफ्ज उनके चासनी में ज्यों सने हैं।3
दोस्ती का सिलसिला चलता रहेगा
लोग वैसे कह रहे,चिकने घड़े हैं।4
डर सताता हार जाने का हमेशा
इस कदर ही मोहरे कि त ने लुटे हैं।5
फूलती-फलती रहे अपनी तिजारत
नाव जिनकी डूबती वे आ…
Added by Manan Kumar singh on March 13, 2018 at 9:30pm — 3 Comments
221 2121 1221 212
इस बेखुदी में आप भी जाते कहाँ कहाँ ।
दिल के हजार ज़ख्म दिखाते कहाँ कहाँ ।।
खानाबदोश सा लगा आलम जहान का ।
रातें तमाम आप बिताते कहां कहां ।।
मुश्किल सफर में अलविदा कह कर चले गए ।
यूँ जिंदगी का साथ निभाते कहाँ कहाँ ।।
चहरा हो बेनकाब न जाहिर शिकन भी हो।
क़ातिल का हम गुनाह छुपाते कहाँ कहाँ ।।
कुछ तो हमें भी फैसला लेना था…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 13, 2018 at 11:01am — 7 Comments
खुशियों का बँटवारा
“पापा,बड़े कमरे में चलों “ मनीष ने मैच देख रहे अजीत गुप्ता का हाथ खींचते हुए कहा
“अरे चल रहा हूँ मेरे लाडले,इतनी उतावली क्या है !”
और कमरे में प्रवेश करते ही- सरप्राइज !
“क्यों पापा कैसी लगी डेकोरेशन !” मझली बेटी आनंदी ने पूछा
“एक्सीलेंट!”
“अभी एक और सरप्राइज है “ मिसीज अजीत ने चॉकलेट केक आगे बढ़ाते हुए कहा
“यार ! तुम भी बच्चों के साथ बच्ची बन रही हो |क्या यह उम्र है बर्थडे मनाने की ---केक काटने…
ContinueAdded by somesh kumar on March 12, 2018 at 11:23pm — 3 Comments
अरकान:फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन
ज़िन्दगी से दूर कब तक जाओगे,
किस तरह सच्चाई को झुटलाओगे।।
सादगी इतनी मियाँ अच्छी नहीं,
ज़िन्दगी में रोज़ धोका खाओगे।।
तल्ख़ यादें दिल से मिटती ही नहीं,
ज़िन्दगी में चैन कैसे पाओगे।।
तुम ग़मों को मात देना सीख लो,
अश्क पीकर कब तलक ग़म खाओगे।।
अपनी कमज़ोरी को ज़ाहिर मत करो,
वरना हर सौदे में घाटा खाओगे।।
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on March 12, 2018 at 11:00pm — 15 Comments
221 2121 1221 212
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छोटी सी ज़िन्दगी में किसे ख़ुश बता करूँ,
ज़लता चराग़ हूँ मैं अँधेरे का क्या करूँ ।
कैसे सुनाऊँ सबको महब्बत की दास्ताँ,
या फिर बता दो दर्द वो कैसे सहा करूँ ।
ये माना ख़ुद की फ़िक्र में इतना नहीं सकूँ,
जो मिलता ज़ख्म-ए-ग़ैर के मरहम मला करूँ ।
दस्तक़ तू दे ऐ मौत, मज़ा तब है, हो नशा,
मैं जब खुदा के ध्यान में सिमरण किया करूँ ।
जब हो नसीब में ये तग़ाफ़ुल ये बेरुख़ी,
तो…
ContinueAdded by Harash Mahajan on March 12, 2018 at 6:27pm — 17 Comments
उतरती नहीं है धूप
तुम्हारे स्नेहिल मादक स्पर्श
मेरे शिशु-मन को स्वयं में समाविष्ट करते
प्राणदायक आत्मीय वसन्ती हवा-से
और फिर अचानक कभी-कभी
तुम्हारे रोष
पता नहीं थे…
ContinueAdded by vijay nikore on March 12, 2018 at 12:00pm — 12 Comments
पता नहीं उस मिटटी के बड़े से आले में क्या तलाश रहा था थका मायूस आठ बर्षीय मोहन?कुछ गंदे फटे पुराने कपड़े और नाना की टूटी पनय्यियों के सिवा कुछ भी तो नहीं था उस आले में।अचानक उसके उदास चेहरे पे एक तेज चमक उभरी..कुछ मिला था उसे..लेकिन ये वो चीज नहीं है जिसे वो मासूम तलाश रहा था ।परंतु शायद उससे भी ज्यादा जरुरी था वो धूल मिटटी से सना हुआ रोटी का टुकड़ा।लगता है किसी चूहे ने यहाँ छोड़ा होगा।चोर निगाहों से उसने दांये बांये देखा..नहीं कोई नहीं देख रहा है..अगले ही पल वो रोटी का टुकड़ा उसकी निकर की जेब…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 12, 2018 at 10:30am — 10 Comments
माँ शब्द पर २ क्षणिकाएं :
1.
मैं
जमीं थी
आसमाँ हो गयी
एक पल में
एक
जहाँ हो गयी
अंकुरित हुआ
एक शब्द
और मैं
माँ हो गयी
...........................
२.
ज़िंदा रहते हैं
सदियों
फिर भी
लम्हे
बेज़ुबाँ होते हैं
छोड़ देती हैं
साथ
साँसें
जब ज़िस्म
फ़ना होते हैं
ज़िंदगी
को जीत लेते हैं
मौत से
जो शब्द
वो
माँ होते…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 11, 2018 at 9:30pm — 17 Comments
221 2121 1221 212
इंसानियत के तंग सभी दायरे हुए।
दिखते नहीं हैं लोग जमीं से जुड़े हुए।।
जो सुर्खियों में रहते हमेशा बने हुए।
रहते है लोग वो ही ज़ियादा डरे हुए।।
आहट हुई जरा सी बुरे वक़्त की तभी।
कुछ साँप आस्तीन से निकले छुपे हुए।।
वो इस लिये खड़ा है बुलन्दी पे आज भी।
डरता नहीं है झूठ कोई बोलते हुए।।
ख्वाबों में देखता हूँ जिसे रोज रात में।
कहता हूँ अब ग़ज़ल मैं उसे सोचते…
Added by surender insan on March 11, 2018 at 4:00pm — 28 Comments
अहमियत
“सुनते हो !” रीमा ने सहमते हुए मोबाईल पर गेम खेल रहे प्रकाश को धीरे से छूकर कहा
“क्या यार ! तुम्हारे चक्कर में मेरा खिलाड़ी मारा गया -----बोलों क्या आफ़त आ गई |” प्रकाश ने झल्लाते हुए कहा
“मौसीं का फ़ोन आया था------नानी सीढ़ियों से गिर गईं हैं |” रीमा ने सहमते हुए कहा
“वेरी बैड ----ज़्यादा चोट तो नहीं आई ---“ प्रकाश ने बिना उसकी तरफ़ देखे गेम में लगे हुए ही कहा
“नहीं !” रीमा चुपचाप बगल में बैठ गई
"सबकी बैंड बजा रखी है मैंने ---मुझसे अच्छा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 11, 2018 at 9:18am — 5 Comments
अलमारी में रखे शब्दकोष के पन्ने अचानक फड़फड़ाने लगे । हो सकता है ये उनके अंदर की बेचैनी या घबराहट हो । " सहिष्णुता " शब्द ने "संस्कार " से अपनी व्यथा बताते हुए कहा -" मेरे अर्थ को लोग भूल से गए हैं । मैं उपेक्षित जीवन जी रहा हूँ । मेरे मर्म को कोई जानना नहीं चाहता । बुरा तो तब और लगता है जब मेरे आगे "अ" जोड़कर " असहिष्णुता " बनाकर देश में बवाल मचाया जा रहा है ।"
" सच कहती हो " सहिष्णुता" बहना । मेरी भी हालत अनाथों की तरह हो गई है । कोई मुझे अपनाने को तैयार ही नहीं है ।" "संस्कार…
Added by Mohammed Arif on March 11, 2018 at 9:00am — 27 Comments
रंग-बिरंगे मोती एकत्रित हो चुके थे। कुछ पुराने और कुछ नये। कारीगर भी थे और फ़ोटोग्राफ़र भी। शादीशुदा औरतें भी और तलाक़शुदा भी रंग-बिरंगी पोशाकों में। दीग़र ताम-झाम भी इकट्ठे कर लिए गए थे। मंत्री महोदय के पधारते ही सरकार की तारीफ़ में क़सीदे गाये जाने लगे। ख़ास काम निबटा कर मंत्री जी को वापस रवाना होना था।
"कुछ जवान कुंवारी लड़कियों और कुछ जवान तलाक़शुदा औरतों को काम पर बिठा दो!" एक कार्यकर्ता ने दूसरे से कहा।
सिर पर दुपट्टे लपेटे कुछ मुस्लिम लड़कियों और औरतों ने ताने-बाने का सामान…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 10, 2018 at 11:30pm — 14 Comments
१२२२/१२२२/१२२
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ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है
मेरा दावा है ये दुनिया ग़लत है.
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अगर मर कर मिले जन्नत तो फिर सुन
तेरा इक पल यहाँ जीना ग़लत है.
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हमारी बात का मतलब अलग था,
अगरचे आप ने समझा ग़लत है.
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मुझे है तज़्रबा तुम से ज़ियादा
मेरी मानों तो ये रस्ता ग़लत है.
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कहानी में तो मिल जाते हैं दोनों
हक़ीक़त में जुदा होना ग़लत है.
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कहे नंगे को नंगा एक बच्चा
कहे दरबार वह बच्चा ग़लत है.
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ग़लत साबित मुझे…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 10, 2018 at 10:25pm — 16 Comments
2122 1212 22
जिसको कहते थे बेवफा निकला ।
आदमी फिर वही भला निकला ।।
कोशिशें थीं जिसे मिटाने की ।
शख्स वह दूध का जला निकला ।।
दिल जलाने की साजिशें लेकर ।
घर से वो भी था बारहा निकला ।।
रात भर जो हँसा रहा था मुझे ।
सब से ज्यादा वो ग़मज़दा निकला ।।
दफ़्न कैसे हैं ख्वाहिशें सारी…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 10, 2018 at 1:34pm — 10 Comments
जिन्दा इक सवाल है ।
सबका एक ख्याल है ।।
कुछ मंदिर को दो ,
कुछ मस्जिद को दो ..
सब को जरूरत है खुशियों की
ईश्वर भी निढाल है
जिन्दा एक सवाल है
रोटी , कपड़ा , मकान
जरुरत है हर इंसान
वो बंगलों में रख दो
वो झोपड़े में रख दो
कंफ्यूशन , है बवाल है
जिन्दा एक सवाल है।
कमरा बना नहीं पाते
की बच्चे सुरक्षित हों !
मंदिर बनेगा..मस्जिद बनेगी
जमीनें आरक्षित हों ???
कौंधता ,…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2018 at 11:05am — 1 Comment
बह्र -212-221-221
सोंच को इक तीर करती है ।।
कुछ यूँ ये तस्वीर करती है।।
कुछ भी हो की बात कर और।
मन में हलचल पीर करती है।।
दर्द उलफत है ये सायद की।
दिल को रिसता नीर करती है।।
सुन सुनाई दे रहा कुछ यूँ।
ये हवा तपशीर करती हैं।।
बा वफ़ा या बेवफा ना वो।
फैसले तक़दीर करती है।।
जिंदगी भी बाद उलफत के।
पैरों में जंजीर करती है।।
खुद को पत्थर से रगड़ने के।
बाद…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2018 at 10:00am — 2 Comments
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