खोटा सिक्का
चले थे खुद को भुनवाने
दुनिया के इस बाजार में.
पर खोटा सिक्का मान
ठुकरा दिया ज़माने ने
सोचा ! मुझमें ही कमी थी
या, फिर वक्त का साथ न था
समझ न पाये ,और चुप रह गए
पर चैन न आया
और चल पडे दुनिया को
जानने और पहचानने
देखा ! तो जाना ,
दुनिया कितनी अजीब है
झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी
के पलड़े में हर रोज
इंसान तुल रहा
पलड़ा जितना भारी
इंसान उतना ही…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 17, 2014 at 1:00pm — 9 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on January 17, 2014 at 11:00am — 26 Comments
क्षितिज
दूर छोर पर
एकाकार होते
सिन्दूरी आसमान
और हरी धरती
उस रेखा का कोई रंग नहीं
एक स्थिति
खाली बाल्टी
और उसमें
नल से
बूँद-बूँद टपकता पानी
मैं देख रहा हूँ
किंकर्तव्यविमूढ़
संघर्ष
तपते दिनों के बाद
सर्द हवाओं का मौसम
कब से बारिश नहीं हुई
बहुत से सपने सूख…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 7:29am — 22 Comments
हाथों से पता चल जायेगा होठों से खबर लग जायेगी
आँखों से नज़र आ जायेगा ,
सावन का मौसम आया है ऄ
कुछ बातें ऐसी वैसी होंगी , होंगीं जिनकी कुछ वज़ह नहीं
कुछ फूल खिलेंगे ऐसे जिनकी , होगी बागों में जगह नहीं
ख़ुश्बू , सबको बतलायेगी
सावन का मौसम आया है
झूलों पे बैठे हम और तुम , धरती से नभ तक हो आयेंगे
मिलन के बरसेंगे घन घोर , विरह के ताप हवन हो जायेंगे
दुनिया सारी जल जायेगी
सावन का मौसम आया…
Added by ajay sharma on January 16, 2014 at 11:30pm — 8 Comments
(एक)
तुम क्या चुकाओगे
मेरी मेहनत की कीमत
मेरी जवानी
मेरे सपने
मेरी उम्मीदें
सब-कुछ तो दफ्न है
तुम्हारी इमारतों में।
(दो)
जब चलती हैं
झुलसा देने वाली गर्म हवाएँ
कवच बन जातीं है
यही सूरज की किरणें
हमारे लिए ।
मुसलधार बारिश
जब हमारे बदन को छूती है
फिर से खिल उठता है
हमारा तन
ऊर्जावान हो…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on January 16, 2014 at 10:30pm — 16 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 9:54pm — 9 Comments
लोग कहते हैं
ज़माना बदल गया
मै कहता हूँ-
फ़क़त चेहरे बदले हैं,
व्यक्ति परक समाज तब भी था
अब भी है,
रियासतों,
शाही आनो-शान के बीच,
इंसानों के लहू से लिखी गई,
इतिहास की इबारत,
जो आज भी सुर्ख़ है
नाम बदले
मगर हालात न बदले
हुक्मरान बदले
मगर
जनता पहले भी ग़ुलाम थी
अब भी ग़ुलाम है
अंग्रेज़ों के पहले भी
अंग्रेज़ों के बाद भी
बेबसी ने ग़ुलाम…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 16, 2014 at 8:30pm — 12 Comments
जाग रे मन !
कब तक यूं ही सोएगा
जग मे मन को खोएगा
अब तो जाग रे मन !!
1)
सत्कर्मों की माला काहे न बनाई
पाप गठरिया है सीस धराई
जाग रे !!!!
2)
माया औ पद्मा कबहु काम न आवे
नात नेवतिया साथ कबहु न निभावे
जाग रे !!!!
3)
दिवस निशि सब विरथा ही गंवाई
प्रीति की रीति अबहूँ न निभाई
जाग रे !!!!!
4)
सारा जीवन यही जुगत लगाई
मान अभिमान सुत दारा पाई
जाग रे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 5:30pm — 10 Comments
गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते
जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है
बंगला ,कार, ओहदे को पाने के ही चक्कर में
सीधा सच्चा बच्चों का आचरण छूट जाता है
जबानी के नशें में लोग क्या क्या ना किया करते
ढलते ही जबानी के बुढ़ापा टूट जाता है
समय के साथ बहना ही असल तो यार जीबन है
समय को गर नहीं समझे समय फिर रूठ जाता है
जियो ऐसे कि औरों को भी जीने का मजा आये
मदन ,जीबन क्या ,बुलबुला है, आखिर फुट जाता है
मदन मोहन सक्सेना
मौलिक व…
ContinueAdded by Madan Mohan saxena on January 16, 2014 at 1:53pm — 6 Comments
तुम पथिक, आए कहाँ से,
कौनसी मंज़िल पहुँचना?
इस शहर के रास्तों पर,
कुछ सँभलकर पाँव धरना।
बात कल की है, यहाँ पर,
कत्ल जीवित वन हुआ था।
जड़ मशीनें जी उठी थीं,
और जड़ जीवन हुआ था।
देख थी हैरान कुदरत,
सूर्य का बेवक्त ढलना।
जो युगों से थे खड़े
वे पेड़ धरती पर पड़े थे।
उस कुटिल तूफान से, तुम
पूछना कैसे लड़े थे।
याद होगा हर दिशा को,
डालियों का वो…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on January 16, 2014 at 10:30am — 26 Comments
तू बहादुर बेटी है पंजाब की
तू शान आन और बान है हमारे घर की
तू झाँसी की रानी है
तुझे क्या डर अकेले
दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती हो
हाँ
ऐसे ही तो कहते थे ना हमेशा
जब कहती थी
मेरे साथ कहीं चलने को
आज समझा रहे थे मुझे
पगली क्यों रोती है ?
तेरे अंग संग हूँ हमेशा
तेरे साथ अपनी दोनों भुजाएं
अपने दो बेटे छोड़ आया हूँ
तुम्हे जरुरत नहीं
किसी का मुँह ताकने की
दोस्त जो नहीं पूछते मत कर चिंता
जो साथ हैं उनका कर…
Added by Sarita Bhatia on January 16, 2014 at 10:01am — 10 Comments
संस्कृति का क्रम अटूट
पांच हज़ार वर्षों से
अनवरत घूमता
सभ्यता का
क्रूर पहिया.
दामन में छद्म ऐतिहासिक
सौन्दर्य बोध के बहाने
छुपाये दमन का खूनी दाग,
आत्माभिमान से अंधी
पांडित्य पूर्ण सांस्कृतिक गौरव का
दंभ भरती
सभ्यता.
मोहनजोदड़ो की कत्लगाह से भागे लोगों से
छिनती रही
अनवरत,
उनके अधिकार,
किया जाता रहा वंचित,
जीने के मूलभूत अधिकार से,
कुचल कर सम्मान
मिटा दी…
ContinueAdded by Neeraj Neer on January 16, 2014 at 9:58am — 11 Comments
दिल पर रख कर हाथ तुम, कर लो कुछ विचार ।
देश धर्म के रक्षण पर, करते निज उपकार ।।
समय अभाव सभी कहे, समय साथ ना कोय ।
साथ समय का जो चले, निर्धनता ना होय ।।
समय बहुमूल्य रत्न है, मिले सदा बेमोल ।
पर्स रखे जो वक्त को, मगन रहे दिल खोल ।।
हल्ला भ्रष्टाचार का, करते हैं सब कोय ।
जो बदलें निज आचरण, हल्ला कैसे होय ।।
घुसखोरी के तेज से, तड़प रहे सब लोग ।
रक्तबीज के रक्त ये, मिटे कहां मन लोभ ।।
मिट रहा अपनापन अब, नही बचा चितचोर…
Added by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 9:04am — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
बहुत गुमसुम सी लगती है
ज़बाँ खामोश रहती है, निगाहें कुछ नही कहतीं
अगर जज़्बा न हो दिल में, तो बाहें कुछ नही कहतीं
यहाँ के हादसों का सच,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 8:30am — 32 Comments
तुम क्या जानो जी तुमको हम
कितना 'मिस' करते हैं...
तुम्हे भुलाना खुद को भूल जाना है
सुन तो लो, ये नही एक बहाना है
ख़ट-पद करके पास तुम्हारे आना है
इसके सिवा कहाँ कोई ठिकाना है...
इक छोटी सी 'लेकिन' है जो बिना बताये
घुस-बैठी, गुपचुप से, जबरन बीच हमारे
बहुत सताया इस 'लेकिन' ने तुम क्या जानो
लगता नही कि इस डायन से पीछा…
Added by anwar suhail on January 15, 2014 at 9:01pm — 5 Comments
आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,
अब उन्हें मुझे पूरा करना है।
माना बहुत दूर है किनारा मेरा,
पर उस तक मुझे पहुँचना है।
कुछ भूल रहा था मेरा हृदय,
कुछ ध्यान भटक गया था।
थी घोर निराशा मुझे घेरे हुए,
जिसमें जीवन अटक गया था।
तुमने मुझे आगे बढ़ाकर कहा,
नहीं,अभी तुम्हें ऐसे रूकना है।
आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,
अब उन्हें मुझे पूरा करना है।
मेरे टूटे हुए विश्वास को जगाया,
तुमने आशा से प्रकाशित किया।
दूर कर मेरे हृदय की निराशा…
Added by Savitri Rathore on January 15, 2014 at 8:47pm — 21 Comments
Added by atul kushwah on January 15, 2014 at 8:30pm — 9 Comments
वंदना
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
विद्द्या का मुझको भी वरदान दे माँ
करूँ मै भी सेवा तेरी उम्र भर
मुझमे भी ऐसा कोई ‘भाव’ दे माँ
हे शारदे माँ , .......
चलूँ मै भी हरदम सत्यपथ पर
कभी भी न मुझसे कोई चूक हो माँ
हे शारदे माँ ,...........
दिखें जो दुखी-दीन आगे मेरे
कुछ सेवा उनकी भी मै कर सकूं माँ
हे शारदे माँ ,...............
जिह्वा जो खोलूँ तू वाँणी मे हो
चले जो कलम तो तू शब्द दे माँ
हे शारदे…
Added by Meena Pathak on January 15, 2014 at 5:00pm — 13 Comments
नित्यानंदम स्तयं निरूपम !
श्यामल गंभीर रात्रि
सुनता हूँ संवेदनमय स्वर
"विचारों में गुँथे, वेदना से बिंधे
अस्वीकृत एकाकी मन
तू उदास न हो"
टूटे संबंधों के
वीरान प्रवहमान प्रसारों में
कल की पुरानी किसी की
प्यार भरी हँसी, स्नेहमयी आँखों में
देखो, शायद सुख-शांति मिल जाए
देखो उन आँखों में, इतना न देखो
कि तुम्हें अनजाने
अज्ञात दर्द कोई और मिल जाए
मानवीय…
ContinueAdded by vijay nikore on January 15, 2014 at 2:30pm — 20 Comments
Added by अजय कुमार सिंह on January 15, 2014 at 2:04pm — 12 Comments
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