Added by ram shiromani pathak on January 6, 2015 at 10:55am — 6 Comments
दो नन्हें फूल,मेरे आँगन के
खिलते महकते,खुशियाँ जीवन के
लड़ते झगड़ते, कभी रुठ भी जाते
पल भर में फिर भूल भी जाते
भोली हँसी कोमल इनका मन है
इनकी बातो में झरते सुमन हैं
दुख का साया, इनके पास न आए
निर्मल धारा ये, बस बहते ही जाए
‘काशवी’ जीवन है तो,’दैविक’ वर है
इनसे ही तो बना ,मेरा घर , घर है
***********
काशवी’-प्रकाशवान
दैविक- ईश्वर का दिया वरदान
…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on January 5, 2015 at 8:30pm — 7 Comments
हम तुम्हारे थे पर तुम क्यूँ समझी नही
बेवजह सबकी बातों में उलझी रही
संदेहात्मक परिस्थिति भी सुलझी नही
तुम से जुड़ना ही मेरा गुनाह हो गया
मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |
तुम से मिलकर फ़कीर दिल भी राजा हुआ
मन का मुरझाया फूल भी ताजा हुआ
मेरे हर दुःख-दर्द का भी जनाजा हुआ
तुम्हारा पास आना भी गुनाह हो गया
मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |
तुमने दिए जो जख्म अब वो भरते नही
मेरी सांसे भी रुकने से अब तो डरते नही
मर चुके जो…
Added by maharshi tripathi on January 5, 2015 at 6:53pm — 8 Comments
''माँ भैया का अंतरजातीय विवाह तो आपने आसानी से स्वीकार कर लिया था फिर मेरे अंतरजातीय विवाह के लिए इंकार क्यों कर रही हो.'' छोटे बेटे ने माँ से बहस करते हुए कहा.
माँ ने कहा, "उसने तो हमसे उच्च वर्ग की लड़की पसंद की थी पर तुम्हारी पसंद तो हम से नीची जाति की है. नीची जाति की लड़की हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं."
-श्रद्धा थवाईत
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Shraddha Thawait on January 5, 2015 at 4:24pm — 8 Comments
Added by Neeraj Nishchal on January 5, 2015 at 4:00pm — 11 Comments
मरुस्थलीय मृगतृष्णा
*****************
तुम कहती हो
प्रतिभाशाली बनो
पर मैं असक्त
प्रतिभाओं का बोझ
उठा नहीं सकता
मरुस्थलीय मृगतृष्णा के
पीछे भाग नहीं सकता
जिस शून्यता की अवस्था में
जी रहा हूँ , क्या उसमे
तुमको पा नहीं सकता ?
मुझ शुन्य को अब
तुम्हारा ही सहारा है
तुमसे जुड़कर ही मेरा
कोई आधार बनेगा
यह गतिहीन जीवन
कुछ आगे बढेगा
मेरे हृदय के पवित्र भावों…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 5, 2015 at 12:30pm — 19 Comments
देखो फिर से हो गया
मुख प्राची का लाल।
रविकर के आते हुआ सुन्दर सुखद प्रभात।
तरुअर देखो झूमते नाच रहें हैं पात।
किरणों ने कुछ यूँ मला इनके गाल गुलाल।
मंद मंद यूँ चल रही शीतल मलय बयार।
प्रकृति सुंदरी कर रही अपना भी शृंगार।।
फ़ैल गया चारो तरफ किरणों का जब जाल।
जन जीवन सुखमय हुआ,समय हुआ अनुकूल।
कोयल भी अब गा रही,खिले खिले हैं फूल।।
ठिठुरे तन को घूप ज्यों शुक को मिले रसाल।
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on January 5, 2015 at 10:30am — 19 Comments
चौराहे पर आकर एक लम्बी कार रुकी तो एक भिखारिन अपने बच्चे को गोद में उठा कर उस के पास जाकर भीख मागने लगी तभी उसकी नजर उस कार की पिछली सीट पर रखी एक फोटो पर गई जिस में एक गरीब औरत पुराने चिथड़ों से अपने शरीर को ढकते हुए अपने बच्चे को अपने आँचल में छुपाते हुए डरी सहमी बैठी थी यह वही फोटो थी जो पिछले दिनों लाखो रुपयों में बिकी थी, इतनी ही देर में कार के अंदर से आवाज आई, "चल चल आगे चलो…
ContinueAdded by harikishan ojha on January 5, 2015 at 10:00am — 9 Comments
मस्कुराते हैं छुट्टियों के दिन
कम ही आते हैं छुट्टियों के दिन
कंपकंपाते हैं छुट्टियों के दिन
थरथराते हैं छुट्टियों के दिन
देखो सचमुच में थक गये हैं हम,
ये बताते हैं छुट्टियों के दिन
सैंकडों काम छोड कर बाकी
भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन
सपनों के बोझ में दबे बच्चे
खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन
चार दिन घर में रह नहीं पाये,
अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन
आदतें और थकान,आलस…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on January 4, 2015 at 11:00pm — 16 Comments
उठ सम्भल ओ नौजवान
यही है तेरे नाम पैगाम
लिंग जाती धर्म भेद
आग में जलाए चल
एक थे हम एक हैं
अलख तू लगाए चल
दम तेरे पास है
बस तुम्हीं पे आस है
बाधा कोई रोक ले
चूलें तू उसकी ठोक दे
हर दीबार को गिराए चल
हक पाने के लिए
जन जन को जगाए चल
बस तुम्हीं में श्वास है
बस तुम्हीं पे आस है
पुण्य आज डूब रहा
पाप फल फूल रहा
सत्ता भ्रष्ट हो रही
जनता त्रस्त रो…
ContinueAdded by कंवर करतार on January 4, 2015 at 10:00pm — 10 Comments
2 1 2 2 -2 1 2 2
प्यार दिल का योग है जी !
ये भी* तो इक रोग है जी !!
आज जिसको प्यार कहते !
जिस्म का बस भोग है जी !!
जुर्म माना इश्क को कब !
ये सदा इक जोग है जी !!
कुंडली* को तुम देख लेना !
उसमे* भी धनयोग है जी !!
साथ सच्चा मिल गया हो !
तो बड़ा संयोग है जी !!
दर्द सबका ले लिया तो !
ये सही उपयोग है जी !!
जान का जब साथ हो तो !
तो यही संजोग है जी !!
काम में गर साथ दे हम…
Added by Alok Mittal on January 4, 2015 at 8:00pm — 13 Comments
कमल-नैन या कंज-लोचन है वह
कहते है शोक-विमोचन है वह
पद्म -पांखुरी जैसे है अधर
रक्त-नलिन से कपोल है सुघर
नील-नीरज सा मोहक वदन
वपुष नीलोत्पल सुषमा-सदन
है दीर्घ बाहे अम्बुज की नाल
पाद-पुष्ट मानो है पंकज मृणाल
हाथ की हथेली है राजीव-दल
विकसित है कर में श्याम-शतदल
चरण-सरोज की है महिमा अनूप
सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2015 at 7:30pm — 14 Comments
2122,2122,212
सह सके ना फूल के टकराव को.
हैं मुकाबिल झेलने सैलाव को.
थामना पतवार सीखा है नहीं.
हैं चले खेने बिफरती नाव को.
हौसला उनका झुकाता आसमां.
आजमाते पंख के फैलाव को.
हर सफलता चूमती उनके कदम,
आजमाते वक़्त पर जो दाव को.
भाव उनके भी गिरेंगे एक दिन,
भूल जाते हैं सरे सद्भाव को.
.
हरिवल्लभ शर्मा दि. 04.01.2015
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by harivallabh sharma on January 4, 2015 at 6:30pm — 15 Comments
"बाबू, बाबू" , बाबा के मुंह अस्पष्ट सी आवाजें निकल रही थीं | वो अब धीरे धीरे अपनी ऑंखें खोलने का प्रयास कर रहे थे | खून अभी भी उनकी कलाईयों में चढ़ रहा था और मैं उनके सिरहाने बैठा उनको सहला रहा था |
मुझे सुबह का घटनाक्रम याद आ गया जिसके चलते उनको चोट लगी थी | मैं उनका लाडला पोता था और मुझे वो हमेशा बाबू ही बुलाते थे | मैं कल ही गांव आया था और आज मुझसे मिलने गांव के कई लोग आ गए | उसी बीच एक दलित लड़का आ कर दरवाजे पर पड़ी खाट पर बैठ गया | बाबा ने कभी भी दलितों को बराबर नहीं समझा था , शायद यह…
Added by विनय कुमार on January 4, 2015 at 1:34pm — 8 Comments
"देखिये श्रीमान आपका बेटा फिर से हर विषय में फेल हो गया है, किसी में 5, किसी में 6, किसी में 7 नंबर, इसीलिए आपको बुलाना पड़ा I लीजिये आप खुद ही इसकी सारी कॉपी देख लीजिये I" "
"अरे गुरूजी ये लीजिये, अब लिफाफा पकड भी लीजिये, आपका ही बच्चा है ,बस एक-एक शून्य लगा दीजिये I"
.
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on January 4, 2015 at 1:30pm — 12 Comments
"मेरी रचना"
देखते-दिखाते
कभी सुनते-सुनाते
चलते –चलाते
कभी पढ़ते-पढ़ाते
कुच्छ करते-कराते
कभी बतियाते
न जाने कब यह मन
पहुँच जाता कहां है
किसी देवता के
खेल चढ़े गुर की तरह
संबेदनाओं की टंकार से
हो कर सम्पदित
द्रबित मन
यादों के ढेर पर से
काल की धूली हटाता
चपल भावों की लहरें
शब्दों के पतवार
वाक्यों की…
ContinueAdded by कंवर करतार on January 4, 2015 at 1:00pm — 7 Comments
नये साल की ये सुबह, सुन कोयल का गान ।
मन में ऊर्जा भर गई, तन में आई जान ।।
सर्द हवा की ले छुअन, मुख से निकले भाप।
भला-भला सा लग रहा, अंगारों का ताप।।
समय वक्र की ऊर्ध्व गति, अधो उम्र की चाल।
जीवन जो है हाथ में, गड्ढे में ना डाल।।
बीत गया जो वर्ष तो, देखें ना लाचार।
अपने सपनों को मिले, एक नया आधार।।
मोहक आँखों को लगे, एक सुहाना दृश्य।
पीछे क्या सौंदर्य के, हो मालूम…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 12:30pm — 18 Comments
होगा सबको हर्ष
जब होगा नव वर्ष
होगा सवेरा नवीन
संध्या होगी नवीन
दिवस भी नया
होगी रजनी नई
गगन भी नया
निर्मल सरिता नई
हिमांशु नवीन
रवि होगा नवीन
मुस्कुराए वरुण
रश्मि होगी अरुण
वे उर्मिल किरण
करें आकांक्षी वरण
कोई हो न संकीर्ण
होवें पूर्ण प्रवीण
आलोकित हो ......
खुशियों की उमंग
रहे बजता मृदंग
बूढ़े बच्चे सब संग
झूमें खेलें नव रंग...
न…
ContinueAdded by anand murthy on January 4, 2015 at 12:30pm — 8 Comments
1222 / 1222 / 1222 / 1222
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ग़ज़ल ने यूँ पुकारा है मेरे अल्फाज़, आ जाओ
कफ़स में चीख सी उठती, मेरी परवाज़ आ जाओ
चमन में फूल खिलने को, शज़र से शाख कहती है
बहारों अब रहो मत इस कदर नाराज़ आ जाओ
किसी दिन ज़िन्दगी के पास बैठे, बात हो जाए
खुदी से यार मिलने का करें आगाज़, आ जाओ
भला ये फ़ासलें क्या है, भला ये कुर्बतें क्या है
बताएँगे छुपे क्या-क्या दिलों में राज़, आ जाओ
हमारे बाद फिर महफिल सजा लेना…
Added by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2015 at 11:51pm — 61 Comments
बीते वर्षों में जो भी मिला है मुझे
नहीं उससे कोई गिला है मुझे
नयन नीर मिले कुछ पीर मिले
दिल के राजा हैं ऐसे फ़कीर मिले
इन्हें राजा बना दें नया साल आया
खुशियाँ बिछा दें नया साल आया|
टुकड़े-टुकड़े किये जिनके सपनों को मैंने
खंडित किया जिनके अपनों को मैंने
व्यतित वर्ष में जिनका भी दिल दुखाया
हँसता हुआ मैंने जो महफ़िल जलाया
हँसी…
Added by maharshi tripathi on January 3, 2015 at 6:51pm — 7 Comments
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