2122 2122 2122 212
कौन चुपके आ रहा है आज मेरे मौन में
गीत कोई गा रहा है आज मेरे मौन में
वाक़िया जिसकी वज़ह से दूरियाँ बढ़ने लगीं
बस वही समझा रहा है ,आज मेरे मौन में
ख़्वाब कोई अब पुराना टूट जाने के…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 21, 2014 at 6:30pm — 20 Comments
मन बौराया
कंगना खनका
मन बौराया
ऐसा लगता फागुन आया ।
रूप चंपयी
पीत बसन
फैली खुशबू
ऐसा लगता
यंही कंही है चन्दन वन ।
पागल मन
उद्वेलित करने
अरे कौन चुपके से आया ?
पनघट पर
छम छम कैसा यह !
कौन वहाँ रह – रह बल खाता ?
मृगनयनी वह परीलोक की
या है वह –
सोलहवां सावन !
मन का संयम
टूटा जाये
देख देख यौवन गदराया ।
कंगना खनका
मन…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 21, 2014 at 6:22pm — 16 Comments
क़दमों में दे बहकी थिरकन
महकी नम सी चंचल सिहरन
बाँहों भर ले, रच कर साजिश
क्या सखि साजन? न सखि बारिश
हर पल उसने साथ निभाया
संग चले बन कर हम साया
रंग रसिक नें उमर लजाई
क्या सखि साजन? न सखि डाई
चाहे मीठे चाहे खारे
राज़ पता हैं उसको सारे
खोल न डाले राज़, हाय री !
क्या सखि साजन? न सखि डायरी
उसने सारे बंध…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 21, 2014 at 6:00pm — 44 Comments
2122 2122 2122 212
एक कतरा रोशनी है एक कतरा जाम है
दिल जलों का दिल जलाने आ गयी फिर शाम है
धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है
उनके क़दमों के नहीं नामों निशा भी अब कहीं
ख्वाब में पर क़दमों की आहट को सुनना आम है
जुगनुओं की रोशनी से हर चमन आबाद था
रोशनी क्या आज तो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2014 at 1:02pm — 9 Comments
1-विवशता
मुश्किल वक्त मैं उसकी मदद नहीं कर पाया
पता है क्यों?
वह डरे व् फसे जानवर की तरह खूँखार हो गया था//
२-लौट आया
मैं वहाँ से लौट तो आया
लेकिन खुद को अधूरा छोड़कर//
३-विवादित विचार
उनका सम्बन्ध इसलिए टूटा
क्यूंकि वे
विवादित विचारों तक ही सिमटे रहे//
४-अकेलापन
बाज़ार के अकेलेपन से इतना ऊब गया हूँ…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 21, 2014 at 1:00pm — 13 Comments
कुछ तो मजबूरी की हद रही होगी ,
या निर्लज्जता की इंतेहा रही होगी ,
वो सम्भावित प्रधान मंत्री के पिता थे,
उनकी पत्नी ने प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति
बनाये और अपनी उंगलियों पर नचाये होंगे ,
कुछ तो हुआ होगा की 11 साल तक
कई असहाय राष्ट्रपतियों के ज़मीर को…
ContinueAdded by Dr Dilip Mittal on February 21, 2014 at 8:17am — 4 Comments
तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
दिल का दर्द हम तो अब किसे दिखायेगे
कभी प्यार से मिला करती मुझसे वो तो
हवा में अपना आंचल लहराती वो तो
बन गये जो सपने वह किसे बतायेगे
दर्द दिल का हम तो अब किसे दिखायेगे
तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
रोज सपने में मेरे वो तो आती थी
बंद ओठो से हमको गीत सुनाती थी
यादो को उसके कैसे हम भुलायेगें
दर्द दिल का हम तो अब किसे दिखायेगें
तड़पता छोड़ हमको जो चले जायेगें
वेवफाई का जो…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on February 20, 2014 at 8:44pm — 4 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
झूठ में कोई दम नहीं होता
सत्य लेकिन हजम नहीं होता
अश्क बहना ही कम नहीं होता
दर्द, माँ की कसम नहीं होता
मैं अदम* से अगर न टकराता
आज खुद भी अदम नहीं होता
दर्द-ए-दिल की दवा जो रखते हैं
उनके दिल में रहम नहीं होता
शे’र में बात अपनी कह देते
आपका सर कलम नहीं होता
*अदम = शून्य, अदम गोंडवी
-------
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 20, 2014 at 8:37pm — 16 Comments
"भई वाह, तुम्हारे हरे भरे केक्टस देख कर तो मज़ा ही आ गया."
"बहुत बहुत शुक्रिया."
"लेकिन पिछले महीने तक तो ये मुरझाए और बेजान से लग रहे थे"
"बेजान क्या, बस मरने ही वाले थे."
"तो क्या जादू कर दिया इन पर ?"
"घर के पिछवाड़े जो बड़ा सा पेड़ था वो पूरी धूप रोक लेता था, उसे कटवाकर दफा किया, तब कहीं जाकर बेचारे केक्टस हरे हुए."
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by योगराज प्रभाकर on February 20, 2014 at 12:00pm — 40 Comments
झूठ सत्य की ओट रख, दे दूजे को चोट,
कडुवापन आनंद दे, जब हो मन में खोट |
मीठा लगता झूठ है, सनी चासनी बात
पोल खुले से पूर्व ही, दे जाता आघात |
जैसी जिसकी भावना, वैसा बने स्वभाव
मन में जैसी कामना, मुखरित होते भाव |
जितनी सात्विक भावना, तन में वैसी लोच
पारदर्शी भाव बिना, विकसित हो ना सोच |
हिंसा की ही सोच में, प्रतिहिंसा के भाव,
सत्य अहिंसा भाव का, सात्विक पड़े प्रभाव |
(मौलिक व्…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2014 at 9:30am — 8 Comments
प्रथम प्रयास कह मुकरियाँ पर आप सब सुधीजनों के मार्गदर्शन की अभिलाषी हूँ ...
1.
लीला सखिओं संग रचाता
मन का हर कोना महकाता
भागे आगे पीछे दैया
क्यों सखि साजन ? ना कन्हैया
2.
जिसको हमने स्वयं बनाया
मान और सम्मान दिलाया
उसको हमारी ही दरकार
क्यों सखि साजन ? नहीं सरकार
3.
बच्चे बूढ़े सबको भाए
नाच दिखाए खूब हँसाए
सबके दिल का बना विजेता
क्यों सखि साजन ? ना अभिनेता
4.
उसके बिना चैन ना आए
पाकर उसको मन…
Added by Sarita Bhatia on February 20, 2014 at 9:30am — 7 Comments
इस विधा में प्रथम प्रयास है -- ( १- ४ )
सुबह सवेरे रोज जगाये
नयी ताजगी लेकर आये
दिन ढलते, ढलता रंग रूप
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि धूप
साथ तुम्हारा सबसे प्यारा
दिल चाहे फिर मिलू दुबारा
हर पल बूझू , यही पहेली
क्या सखि साजन ?
नहीं सहेली
रोज ,रात -दिन चलती जाती
रुक गयी तो मुझे डराती
झटपट चलती है ,खड़ी - खड़ी
क्या सखि साजन ?
ना काल घडी
धन की गागर छलकी…
ContinueAdded by shashi purwar on February 20, 2014 at 9:00am — 15 Comments
तसव्वुरात
रुँधा हुआ अब अजनबी-सा रिश्ता कि जैसे
फ़कीर की पुरानी मटमैली चादर में
जगह-जगह पर सूराख ...
हमारी कल ही की करी हुई बातें
आज -- चिटके हुए गिलास
के बिखरे हुए टुकड़ों-सी ...
कुछ भी तो नहीं रहा बाकी
ठहराने के लिए
पार्क के बैंच को अब
अपना बनाने के लिए
फिर क्यूँ फ़कत सुनते ही नाम
मैं तुम्हारा ... तुम मेरा ...
कि जैसे सीनों पर हमारे किसी ने
मार…
ContinueAdded by vijay nikore on February 19, 2014 at 11:30am — 20 Comments
(11)
थक जाऊँ तो पास बुलाए।
नर्म छुअन से तन सहलाए।
मिले सुखद, अहसास सलोना।
क्या सखि साजन?
नहीं, बिछौना!
12)…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on February 19, 2014 at 10:30am — 16 Comments
वो मुझे याद है, उसने भुला दिया मुझको
आज की रात फिर उसने रुला दिया मुझको,
ये बताओ कि आजकल हो किसके साथ सनम
किसी को ना मिले, जैसा सिला दिया मुझको।
रुह तो मर गई लेकिन, शरीर जिंदा है
जहर वो कौन सा तुमने पिला दिया मुझको।
हमने उस शख्स को बरसों से नहीं देखा था
उसी की याद ने उससे मिला दिया मुझको।
वो तो कहती थी, उसके दिल का शहंशाह है अतुल
है करम उसको ये, शायर बना दिया मुझको।।
…
Added by atul kushwah on February 18, 2014 at 10:30pm — 3 Comments
दिलों में रंजिशें ना हों यहाँ ऐसा जहाँ इक हो
जो छत हो आसमां सारा यहाँ ऐसा मकाँ इक हो /
नया हर जो सवेरा हो मिले सुख शांति हर घर में
मिटे ना वक्त के हाथों जो ऐसा आशियाँ इक हो /
बुराई लोभ भ्रष्टाचार धोखा दूर हो कोसों
हो केवल प्यार हर घर में बसेरा अब वहाँ इक हो /
मिले केवल सुकूं अब और हो मुस्कान होठों पर
घुली मिश्री हो बातों में यहाँ ऐसी जुबाँ इक हो /
निशानी अब हसीं यादों की लम्हा लम्हा मुस्काये
हों चर्चे कुल जहां…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on February 18, 2014 at 3:44pm — 19 Comments
यक्ष प्रश्न
सास बहू के बिगड़ते सम्बन्धों पर बहुत ही प्रभावशाली जोशपूर्ण भाषण देने के बाद अब राधा देवी मीडिया वालों के सवालों के उत्तर दे रही थी.
"मैडम ! लोग बेटी और बहू में अंतर क्यों करते हैं?"
"यह लोगों की नादानी ही नहीं बल्कि घोर पाप है। जो लड़की अपना मायका छोड़ कर ससुराल घर आई हो उसको तो सोने मे तौल कर रखना चाहिए।"
"लेकिन मैडम, हम ने सुना है कि आपकी अपनी बहू से नहीं बनती और आपने उसे घर से निकाल दिया है और बेटे को भी नहीं मिलने देती है ।…
Added by annapurna bajpai on February 18, 2014 at 2:00pm — 15 Comments
दोहे
1) नारी है सुता ,दारा धारे रूप अनेक ।
बंधन बांधे नेह का धीरज धर्म विवेक ॥
2) ये नारी है सृजक नहि अबला कमजोर ।
रोम रोम ममता भरी सह पीड़ा घनघोर ॥
3) महल दुमहले बन रहे वसुधा हरी न शेष ।
जीव जन्तु भटके सभी ऐसे महल विशेष ॥
4) माया माया कर रहा बढ़े चौगुना मोह ।
पानी पत्थर पूजि के रहा मुक्ति को टोह॥
5) सन्मार्ग दो प्रभु दिखा, दो ऐसा वरदान ।
सब मिल शुचिता…
ContinueAdded by annapurna bajpai on February 18, 2014 at 1:00pm — 15 Comments
ग़ज़ल –
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
है गांवों में भी विद्यालय जहां अक्सर नहीं आते |
कभी बच्चे नहीं आते कभी टीचर नहीं आते |
…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 18, 2014 at 12:30pm — 14 Comments
इस कविता के पूर्व थोड़ी सी प्रस्तावना मैं आवश्यक समझता हूँ. झारखंड के चाईबासा में सारंडा का जंगल एशिया का सबसे बड़ा साल (सखुआ) का जंगल है , बहुत घना . यहाँ पलाश के वृक्ष से जब पुष्प धरती पर गिरते हैं तो पूरी धरती सुन्दर लाल कालीन सी लगती है . इस सारंडा में लौह अयस्क का बहुत बड़ा भण्डार है , जिसका दोहन येन केन प्राकारेण करने की चेष्टा की जा रही है .. इसी सन्दर्भ में है मेरी यह कविता :
सारंडा के घने जंगलों में
जहाँ सूरज भी आता है
शरमाते हुए,
सखुआ वृक्ष के घने…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 18, 2014 at 9:21am — 13 Comments
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