2122 2122 2122 212
सच को देखा आँख मूंदे दिन चढ़े सोते हुये
आँसुओं से भीगते , बस झींकते रोते हुये
देख भाई बचपनों से, खो न जाये,सादगी
मैने देखा अनुभवी को धूर्त ही होते हुये
ठीक है अब खूब रोशन आज दिन लगता है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 4, 2014 at 6:00pm — 22 Comments
हे भवानी आदि माता, व्याप्त जग में तू सदा ।
श्वेत वर्णो से सुशोभित, शांत चित सब से जुदा ।।
हस्त वीणा शुभ्र माला, ज्ञान पुस्तक धारणी ।
ब्रह्म वेत्ता बुद्धि युक्ता, शारदे पद्मासनी ।।
हे दया की सिंधु माता, हे अभय वर दायनी ।
विश्व ढूंढे ज्ञान की लौ, देख काली यामनी ।।
ज्ञान दीपक मां जलाकर, अंधियारा अब हरें ।
हम अज्ञानी है पड़े दर, मां दया हम पर करें ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 4, 2014 at 6:00pm — 11 Comments
ऐ आसमान
इन सर्द रातों के
घने कोहरे में
तेरा दीदार नही होता
तेरी गर्म छुअन महसूस होती है
मुझे पता है, तू भी तपड़ता है
तरसता है, व्याकुल है मेरे शुष्क अधरों
को नमी देकर
खुद नमी पाने को
अपने शुष्क अधरों के लिए
गुनगुनी सी धूप में
मैं जल रही हूँ
ठंडी सर-सराती हवाएं
मेरे प्यार के दामन को चीर देती हैं
इतने बड़े दिन की, न जाने कब होगी ?
शीतल शाम
तू आएगा न मेरे…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2014 at 10:45am — 16 Comments
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बल भी उसके सामने निर्बल रहा है।
घोर आँधी में जो दीपक जल रहा है।
डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,
नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है।
हाथ फैलाकर खड़ा दानी कुआँ वो,
शेष बूँदें अब न जिसमें जल रहा है।
सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,
दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।
क्यों तुला मानव उसी को नष्ट करने,
जो हरा भू का सदा आँचल रहा है।
मन को जिसने आज तक शीतल रखा…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on February 4, 2014 at 10:00am — 19 Comments
अनकही बातें धड़कतीं
मुस्कुराती
पल रही हैं.
थाम यादों की उँगलियाँ
स्वप्न जो
गुपचुप सजाये
शब्द आँखों में उफनते
क्या हुआ जो
खुल न पाये
भाव लहरें
तलहटी में
व्यक्त हो अविरल बही हैं.
रच गए जब
स्वप्न पट पर
नेह गाथा चित चितेरे
रंग फागुन से चुरा कर
कल्पनाओं में बिखेरे...
श्वास में
घुल कर बहीं जो
वो हवाएँ निस्पृही…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 4, 2014 at 9:30am — 23 Comments
शुक्ल पंचमी माघ से ,शुरू शरद का अंत
पवन बसंती है चली, आया नवल बसंत /
ले आया मधुमास है, चंचल मस्त फुहार
पीली चादर ओढ़ के, धरा करे शृंगार /
रात सुहानी हो गई उजली है अब भोर
डाली डाली फूल हैं ,हरियाली चहुँ ओर /
निर्मल अम्बर है हुआ, पाया धरा निखार
जर्रे जर्रे में बसा , कुदरत में है प्यार /
रंग बिरंगी तितलियाँ , मन में भरें उमंग
प्यार हिलोरें ले रहा , अब प्रीतम के संग /
पेड़ आम के बौर से, इतरायें हैं आज
मन को है…
Added by Sarita Bhatia on February 3, 2014 at 11:06pm — 12 Comments
हॅसी रूप कलियों का जब मुस्कुराया,
उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया।।
बहारों की रानी,
राजनीति पुरानी।
नर्इ-नर्इ कहानी,
जवानी-दीवानी।
महगार्इ बढ़ाकर,
नववधू घर आती।
दिशाएं भी छलती,
गरीबी की थाती।
अमीरों का राजा, अल्ला-राम आया।। 1
सजाते हैं संसद,
समां बर्रा छत्ता।
परागों को जन से,
चुराती है सत्ता।
अगर रोग-दु:ख में,
पुकारे भी जनता।
शहर को जलाकर,
कमाते हैं भत्ता।
चुनावों…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 3, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
शेर -
"प्रीत की लगन है ये , किसी ने न जानी है ।
सबकी समझ में आती नही ये कहानी है ।"
मीरा छोड़ सब तेरी गली मोहन चली आयी ।
न आया तू तो तेरे द्वार पर जोगन चली आयी ।
कि इकतारे की सरगम पर विरह के गीत गाती है ।
दीवानी बावरी बेसुध तुम्हारी और आती है ।
जर्जर तन निगाहों में लिए सावन चली आयी ।
न आया तू तो तेरे द्वार पर जोगन चली आयी ।
देह भी चूर है थक कर और पैरों में छाले हैं ।
सूखते लब…
Added by Neeraj Nishchal on February 3, 2014 at 10:30pm — 10 Comments
कैसा है यह जीवन मेरा !
रोटी की खातिर मैं भटकूँ
नदियों नदियों , नाले नाले ।
अधर सूखते सूरत जल गयी
पड़े पाँव मे मेरे छाले ।
लक्ष्य कभी क्या मिल पाएगा , मिल पाएगा रैन बसेरा ?
कैसा है यह जीवन मेरा !
मैंने तो सोचा था यारो
भ्रमण करूंगा उपवन-उपवन
जाने कैसे राह बदल गयी
बैठा सोचे आज व्यथित मन !
मेरा मन बनजारा बनकर , नित दिन अपना बदले डेरा ।
कैसा है…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on February 3, 2014 at 9:30pm — 12 Comments
बाबुल,मेरा मन आज भयो जैसे पाखी
जो मैं होती बाबा तेरे घर गौरैया
नित आंगन तेरे आती
जो मैं होती बाबा तेरी खरक की गैया
नित खरक में दर्शन तेरे पाती
जो मैं होती बाबा तेरे द्वार निमरिया
नित शीतल छाँव बिछाती
जो मैं होती बाबा तेरे सिर का साफा
नित धूप से तुम्हें बचाती
जो मैं बाबा शगुन चिरैया
नित मीठे गीत सुनाती
मेरा मन आज भयो जैसे पाखी
मैं तो भई बाबा बेमन बिटिया
दूर देश जाके ब्याही
मन ही मन…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 3, 2014 at 9:00pm — 11 Comments
[वसंतपंचमी के पावन अवसर पर माँ सरस्वती के श्रीचरणों में श्रद्धा स्वरुप ये कविता-सुमन]
हे माँ सरस्वती!
तुमसे है मेरी विनती।
सदा करूँ तुम्हारी भक्ति,
यही वर दो भगवती।
हे माँ सरस्वती!
मेरे मनमंदिर में सदा
रहो, इसी तरह से माँ।
मुझे कभी छोड़ न देना,
किसी तरह से, हे माँ !
यही आशीष दो भगवती।
हे माँ सरस्वती !
सदा रखना मेरे मस्तक पर,
अपना हाथ,हे आदिशक्ति।
लीन रहूँ तुम्हारी साधना में,
करती रहूँ…
Added by Savitri Rathore on February 3, 2014 at 8:00pm — 19 Comments
मदिरा सेवन जो करे, तन मन करते खाक ।
मान सम्मान बेचकर, बोल रहे बेबाक ।।
धर्म कर्म जाया करे, करते मदिरा पान ।
बीबी बच्चें रो रहे, देखो खोटी शान ।।
सुख दुख का साथी कहे, मदिरा को सम्मान ।
सुख में दुख पैदा करे, उसे कहां है भान ।।
पार्टी सार्टी है करे, जो हैं अप टू डेट ।
बाटली साटली रखे, कुछ करते अपसेट ।।
गरीब अमीर दास है, मदिरा है भगवान ।
वंदन करते शाम को, लगा रहे जी जान…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 8:00pm — 7 Comments
मंगल गीत सुनाओ सखी री…
ContinueAdded by sanju shabdita on February 3, 2014 at 8:00pm — 6 Comments
राष्ट्रपति बनने के लिए अब एकमात्र शर्त है
रोबोट होना
चाबी से चलने वाले खिलौनों को
प्रधानमंत्री पद के लिए प्राथमिकता दी जाती है
प्राणवान और बुद्धिमान बंदूकें बनाई जा रही हैं
गोलियों पर कारखानों में ही लिख दिये जाते हैं मरने वालों के नाम
इंसान विलुप्त हो चुके हैं
धरती पर रह गई है
मानव और यंत्र के समागम से बनी एक प्रजाति
सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में
शिक्षा के नाम पर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 3, 2014 at 7:46pm — 5 Comments
कितना कहा था कि घरेलू लड़की लाओ...पर मेरी कोई सुने तब ना...सब को पढ़ी-लिखी बी-टेक लड़की ही चाहिए थी...अब ले लो कमाऊ बहू...मुंह पर कालिख मल के चली गई, अरे...उसे किसी और से प्रेम था तो मेरे बेटे की जिंदगी क्यों खराब की ...पहले ही मना कर देती तो ये दिन तो ना देखना पड़ता हमें..अब मै किसी को क्या मुंह दिखाऊँगी...सब तो यही कहेंगे ना कि सास ही खराब होगी ..उसी के अत्याचार से तंग आ कर बहू ने घर छोड़ा होगा..हे राम ! अब मै कहाँ जाऊँ...क्या करूँ...अरे...कोई उसे समझा-बुझा के घर ले आओ...मै उसके पाँव पकड़ लेती…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 3, 2014 at 7:00pm — 6 Comments
ऋतुराज के स्वागत में पांच दोहे
स्वागत तव ऋतुराज
चंप पुष्प कटि मेखला, संग सुभग कचनार।
गेंदा बिछुआ सा फबे, गल जूही का हार।१।
.
बेला बाजूबंद सा, कंगन हरसिंगार।
गुलमोहर भर मांग में, करे सखी श्रृंगार ।२।
.
पहन चमेली मुद्रिका, नथिया सदाबहार।
गुडहल बिंदी भाल दे, मन मोहे गुलनार।३।
.
जूही गजरा केवडा, सजे सखिन के बाल।
तन मन को महका रही, मौलश्री की माल।४।
.
झुमका लटके कान में, अमलतास का आज।
इस अनुपम श्रृंगार…
Added by Satyanarayan Singh on February 3, 2014 at 5:30pm — 23 Comments
1)
मन उदास है
पता नहीं, क्यों..
झूठे !
पता नहींऽऽ, क्योंऽऽऽ..?
2)
कितना अच्छा है न, ये पेपरवेट !
कुर्सी पर कोई आये, बैठे, जाये…
Added by Saurabh Pandey on February 3, 2014 at 5:30pm — 12 Comments
अना की कब्र पर जबसे, गुलों को बो चुके हैं हम,
हमें लगने लगा है, फिर से जिंदा हो चुके हैं हम।
उगेंगे कल नए पौधे, यकीं कुछ यूँ हुआ हमको,
ज़मीं नम हो गयी है, आज इतना रो चुके हैं हम।
उतारे कोई अब तो, इन रिवाजों के सलीबों को,
छिले कंधे लिए, सदियों से इनको ढो चुके हैं हम।
मेरे सपने अभी तक डर रहे हैं, सुर्ख रंगों से,
हथेली से लहू यूँ तो, कभी का धो चुके हैं हम।
बची है अब कहाँ, मुँह में जुबाँ औ ताब आँखों में,
बहुत पाने की चाहत में,…
Added by Arvind Kumar on February 3, 2014 at 12:30pm — 7 Comments
बदला है वातावरण, निकट शरद का अंत ।
शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।
अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।
ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।
धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।
इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।
डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।
आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।
पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।
मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।
गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।…
Added by अरुन 'अनन्त' on February 3, 2014 at 12:00pm — 29 Comments
मनुज रूप इंग्लैंड गये थे, वहाँ पहुँच “ डंकी ” कहलाय।
घुटने टेके, सिर भी झुकाय, गुलाम जैसा खेल दिखाय।
जब उपाधि डंकी की पाये, सब बेशर्मों सा मुस्काय।
वह रे क्रिकेटर हिन्दुस्तानी, अपनी इज़्ज़त खुद ही गवांय।
आस्ट्रेलिया में हाल खराब, सभी मैंच में हमें हराय।
अरबों रुपय कमाने वालों, दो कौड़ी का खेल दिखाय।
अफ्रीका में मैच भी हारे, उस पर हाथ पैर तुड़वाय।
खेल दिखाये बच्चों जैसा , रोते गाते वापस…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 3, 2014 at 12:00pm — 12 Comments
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