शीत जैसी चुभन, आग जैसी जलन।।
जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन।।
इक कशिश पल रही है हृदय में कहीं।
कश्मकश चल रही , साथ मेरे कोई।।
डुबकियां ले रहा ही मेरा आज मन।।
इस कदर है अधर से अधर का मिलन।।
जैसे पुरवा पवन छू रही हो बदन।।..१
जाने क्या कह रहा है .....
गर हूँ तन्हा मेरे साथ तन्हाई है।
भीड़ के साथ हूँ तो ये रूसवाई है।
दौड़कर पास आना लिपटना तेरा।।
मेरे आगोश में यूँ सिमटना तेरा।।
यूँ लगे जैसे मिलतें हो धरती…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 12, 2019 at 10:48am — 2 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 12, 2019 at 9:52am — 5 Comments
भारत के नौजवानों ,माँ भारती पुकारती ,
देश के सपूत तुम ,फर्ज तो निभाइए |
मुश्किल घड़ी है आज,दाव पे लगी है लाज,
सिंग सा दहाड़ कर देश को जगाइए |
वीरता रगों में भर ,शौर्य की कहानी गढ़ ,
प्रचंड चंड रूप तो शत्रु को दिखाइए |
पावन मन गंगा हो ,ले हाथ में तिरंगा हो ,
वन्दे मातरम् गीत ,गाते सब जाइए |
***********
मौलिक और अप्रकाशित रचना
महेश्वरी कनेरी
Added by Maheshwari Kaneri on March 11, 2019 at 5:30pm — 5 Comments
22-22-22-2
मन भी कितना आतुर है।।
ज्यूँ सबकुछ जीवन भर है।।
पशुओं कि यह हालत भी।
इंसानों से बेहतर है।।
लोक समीक्षा इतनी ही।
जितना चिड़िया का पर है।।
मेरा मेरा मुझको ही।
छाया है सब छप्पर है।।
कितना तुम अब भागोगे ।
तीन-कदम* पर ही घर है।।(बचपन जवानी बुढ़ापा)
खूब बड़े बन जाओ क्या…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 11, 2019 at 2:49pm — 3 Comments
बेटा-बेटी में किया, जिसने कोई भेद।
उसने मानो कर लिया, स्वयं नाव में छेद।।
स्वयं नाव में छेद, भेद की खोदी खाई।
बहिना से ही दूर, कर दिया उसका भाई।।
कोई श्रेष्ठ न तुच्छ, लगें दोनों ही प्रेटी।
ईश्वर का वरदान, मानिये बेटा-बेटी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Added by Hariom Shrivastava on March 11, 2019 at 10:30am — 7 Comments
फिर उठीं है जाग देखों शहर में शैतानियाँ
दर्द आहों में बदलने क्यूँ लगी कुर्वानियाँ
जान लेने को खड़े तैयार सारे आदमी
हर जगह बढ़ने लगी है आज कल विरानियाँ
घूमते थे रात दिन हम आपकी ही चाह में
जब समझ आया खुदा तो हो गईं आसानियाँ
जोड़ तिनके है बनाया आशियाँ तुम सोच लो
आबरू इस में छुपी है मत करो नादानियाँ
गंध आने है लगी क्यूँ फिर यहाँ बारूद की
याद कर तू बस खुदा को छोड़ बेईमानियाँ
आदमी मजबूर देखो हो गया इस दौर में
खून में शामिल…
ContinueAdded by munish tanha on March 10, 2019 at 8:00pm — 3 Comments
22-22-22-22
मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।
गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।
वैमनष्यता न सर उठा पाए।
दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।
दरपण भी छू सकता है क्या।
बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।
कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।
मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।
आमोद रखो, बिश्वास रखो।
पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।
..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2019 at 11:30am — 5 Comments
बेटा-बेटी में करें, भेदभाव क्यों लोग।
सबका अपना भाग्य हैं, जब हो जिसका योग।।
जब हो जिसका योग, और प्रभु की जो मर्जी।
कौन श्रेष्ठ या हेय, धारणा ही ये फर्जी।।
पुत्री हो या पुत्र, नहीं इसमें कुछ हेटी।
दोनों एक समान, आज हैं बेटा-बेटी।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Added by Hariom Shrivastava on March 10, 2019 at 10:30am — 7 Comments
2122 1212 22
दरमियाँ हुस्न पर्दा दारी है ।
कैसे कह दूँ के बेक़रारी है ।।
ऐ कबूतर जरा सँभल के उड़ ।
देखता अब तुझे शिकारी है ।।
कौन कहता बहुत ख़फ़ा हैं वो ।
आना जाना तो उनका जारी है ।।
सब बताता है नूर चेहरे का ।
रात उसने कहाँ गुजारी है ।।
कैसे कर लूं …
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 10, 2019 at 9:00am — 5 Comments
प्लेन उड़ाती लडकियां
(लघुकथा)
एयरोनॉटिकल शो। किस्म किस्म के हवाई जहाज़ आसमान में करतब दिखाते उड़े जाते हैं। अधिकतर प्लेन लड़कियां उड़ा रही हैं।
"पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी...।" एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है।
लड़कियां आसमान में प्लेन उड़ा रही हैं। लड़कियां आसमान छू रही हैं। लड़कियों का आत्मविश्वास आसमान पर है और एक छोटी बच्ची अपने पिता से ज़िद कर रही है, "पापा, पापा... मैं भी प्लेन उड़ाऊंगी।"
लोग कहते हैं, “लड़कियों को पंख लग गये…
ContinueAdded by Mirza Hafiz Baig on March 9, 2019 at 7:58pm — 8 Comments
याद आती है तुम्हारी क्या करूँ ।।
छाई रहती है खुमारी क्या करूँ।।
अब नहीं चलता , मेरे पे बस मेरा।
बढ़ रही नित बेक़रारी क्या करूँ।।
खुद मुआफ़िक आयत ए कुरआन हो।
इसमें अच्छी अर्श कारी क्या करूँ।।
झूठा' सिक्का अब चलन बाजार का
सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ।।
हर्ज़ कोई बात से…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 9, 2019 at 3:30pm — 4 Comments
1-
धीरे-धीरे आसमान का, रंग हो रहा लाल।
अतिमनभावन दृश्य सुहावन,है अरूणोदय काल।।
पसरा था जो गहन अँधेरा, अब तक चारों ओर।
उसे चीरकर आयी देखो, प्राणदायिनी भोर।।
2-
नवप्रभात ने फूँक दिए ज्यों, सकल सृष्टि में प्राण।
मंगलमय हो गया सबेरा, मिला तिमिर से त्राण।।
जलनिधि की जड़ता का जैसे, किया सूर्य ने अंत।
जीव-जंतु जड़-जंगम जलधर, हुए सभी जीवंत।।
3-
सागर की गहराई में भी, जीवन है संगीन।
घड़ियालों के बीच वहाँ पर, प्राण बचाती मीन।।
सूरज के आ जाने…
Added by Hariom Shrivastava on March 8, 2019 at 1:41pm — 6 Comments
"अंतर्रष्ट्रिय महिला दिवस पर विशेष"
सिर्फ माँ बहन पत्नी बेटी की,
परिभषा में मत उल्झओ ।
सबसे पहले मैं एक स्त्री हूँ,
मुझे मेरा सम्मन दिलवाओ।।
सिर्फ वंश…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 8, 2019 at 11:30am — 2 Comments
Added by Neelam Upadhyaya on March 8, 2019 at 10:30am — 6 Comments
1222 1222 2121
तेरे रुख़्सार हैं या दहके ग़ुलाब
ये तेरी ज़ुल्फ़ है या तेरा हिज़ाब
हटा के ज़ुल्फ़ का पर्दा, उँगलियों से
बिखेरो चाँदनी मुझ पर माहताब
करीब आ तो, निगाहों के पन्ने पलटूँ
मैं पढ़ना चाहूँ तेरे मन की किताब
महज़ चर्चा तुम्हारा, बातें तुम्हारी
इसे ही सब कहें, चाहत बे-हिसाब
ज़माना तुहमतें चाहे जितनी भी दे
ग़ज़ल पंकज की, है तुझको इंतिसाब
===============================
कठिन शब्दों के…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 8, 2019 at 8:24am — 2 Comments
उम्र भर जो भी ग़रीबी के निशाँ देखेगा
कैसे मुमकिन है वो बाँहों में जहाँ देखेगा
**
कितना बारूद भरा होगा बताना मुश्किल
लफ्ज़ से कोई निकलता जो धुआँ देखेगा
**
दिल की रानाई का अंदाज़ा लगाए कैसे
जो फ़क़त हुस्न कि फिर शोला-रुख़ाँ* देखेगा
**
दर्द महसूस भला ग़म का उसे हो क्यों कर
ज़िंदगी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 8, 2019 at 1:00am — 1 Comment
2122 2122 2122 212
आंच आई गर कभी इस देश के अभिमान पर
बच्चा बच्चा मर मिटेगा अपने हिंदुस्तान पर//1
ये तिरंगा झुक नहीं सकता किसी के सामने
सर कटा देंगे हम अपना इसकी ऊंची शान पर//2
चाहे जितनी मुश्किलें आएं हमारी राह में
दाग़ हम लगने न देंगे देश के सम्मान पर//3
जीत लेंगे जंग हम दुश्मन लड़े चाहे जहां
ख़ौफ़ बरपा हम करेंगे शत्रु की मुस्कान पर//4
ज़ुल्म हम करते नहीं पर ज़ुल्म सहते भी नहीं
है भरोसा हमको अपने शांति के…
Added by क़मर जौनपुरी on March 7, 2019 at 10:30pm — 2 Comments
एक बह्र ---दो हमशक़्ल ग़ज़ल
2122--2122--212
रस्म-ए-उल्फ़त है य' ऐसा कीजिए
रात-दिन उसको ही चाहा कीजिए
बदनसीबी का तमाशा कीजिए
आज फिर उसकी तमन्ना कीजिए
यूँ न हरदम मुस्कुराया कीजिए
जब सताए ग़म तो रोया कीजिए
ख़ुद को मसरूफ़ी दिखाया कीजिए
जब कभी बेकार बैठा कीजिए
अच्छा तो 'खुरशीद' जी हैं आप ही
आइए साहब उजाला कीजिए
©खुरशीद खैराड़ी जोधपुर । 9413408422
2122--2122--212
आइने में ख़ुद को देखा कीजिए
फिर…
Added by khursheed khairadi on March 6, 2019 at 8:24pm — 1 Comment
1222-1222-1222-1222
जो नजरें अब तलक बेख़ौफ़ दौड़ी जा रहीं हैं यूँ।।
कई आशाएं तपती रेत को खंघला रहीं हैं यूँ।।
कोई उम्मीद का सूरज , कहीं पर है खड़ा सायद।
पहल की किरने ये पैग़ाम लेकर आ रहीं हैं यूँ।।
ये सन्नाटा जो पसरा चीख़ के कुछ अंश बांकी हैं।
दिशाएँ इंतक़ाम-ए-जंग को दुहरा रहीं हैं यूँ।।
विषमता में खड़ी हो लोकधर्मी जंग लड़कर अब।
रिसाल ए रौशनाई हौसले उमड़ा रहीं हैं यूँ।।
कोई तो लिख रहा बेशक नया भारत किताबों में।…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 6, 2019 at 7:39pm — 1 Comment
2122 1212 22
यह ख़बर इज़्तिराब की सी है ।
बात जब इंकलाब की सी है ।।
वह बगावत पे आज उतरेगा ।
उसकी आदत नवाब की सी है ।।
हम सफ़र ढूढना बहुत मुश्किल ।
सोच जब इंतखाब की सी है ।।
देखकर जिसको बेख़ुदी में हूँ ।
उसकी फ़ितरत शराब की सी है ।।
आ रहे रात में सनम शायद ।
रोशनी आफ़ताब की सी है ।।
रोज पढ़ता हूँ उसको शिद्द्त से ।
वो जो मेरी किताब की सी है…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 6, 2019 at 6:55pm — No Comments
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