‘‘ अरे, सेठजी ! नमस्कार। अच्छा हुआ आप यहीं सब्जी बाजार में मिल गए, मैं तो आपके ही घर जा रहा था। समाचार यह है कि महाराज जी पधारे हैं, उनका कहना है कि इस एरिया में अहिंसा मंदिर का निर्माण कराना है जिसमें आपका सहयोग... ..।‘‘
‘‘ जी बिलकुल ! मेरी ओर से ग्यारह हजार , शाम को आपके पास पहुॅंचा दूॅंगा।‘‘
यह सुनकर, सब्जी का थैला टाॅंगे सेठजी के शिष्यनुमा नौकर से न रहा गया वह बोला,
‘‘सेठजी ! अभी आपने सब्जी की दूकान पर लौकी लेते समय लम्बी बहस के बाद, पूरे बाजार में बीस रुपये प्रति किलो…
Added by Dr T R Sukul on March 6, 2017 at 10:00pm — 12 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 6, 2017 at 7:06pm — 6 Comments
११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२
भँवरे कलियाँ तरु झूम उठें जब फाग बयार करे बतियाँ|
दिन रैन कहाँ फिर चैन पड़े कतरा- कतरा कटती रतियाँ|
कविता, वनिता, सविता, सरिता ढक के मुखड़ा छुपती फिरती|
जब रंग अबीर लिए कर में निकले किसना धड़के छतियाँ|…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 6, 2017 at 3:19pm — 18 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 6, 2017 at 12:21pm — 9 Comments
Added by Rahila on March 6, 2017 at 12:18pm — 5 Comments
उसके मन में चल रहा अंतर्द्वंद चेहरे पर सहज ही परिलक्षित हो रहा था। वह अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था, “चार साल हो गए इसकी बीमारी को, अब तो दर्द का अहसास मुझे भी होने लगा है, इसकी हर चीख मेरे गले से निकली लगती है।“
और उसने मुट्ठी भींच कर दीवार पर दे मारी, लेकिन अगले ही क्षण हाथ खींच लिया। कुछ मिनटों पहले ही पत्नी की आँख लगी थी, वह उसे जगाना नहीं चाहता था। वह वहीँ ज़मीन पर बैठ गया और फिर सोचने लगा, “सारे इलाज कर लिये, बीमारी बढती जा रही है, क्यों न इसे इस दर्द से हमेशा के लिए…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 6, 2017 at 11:00am — 6 Comments
आँसू बहते आँख से, कौन जुगत हो बंद ?
जहाँ कुशल नलसाज के, असफल सारे फंद।
असफल सारे फंद, काम ना कोई आये।
केवल साँचा मीत, उसे तब कर दिखलाये।।
सत्य जगत में मीत, वही कहलाता धाँसू।
कर देता जो बंद, आँख से बहते आँसू।।
- मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on March 5, 2017 at 8:00pm — 8 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 5, 2017 at 7:34pm — 8 Comments
(मफ़ाईलुन-मफ़ाईलुन-फऊलॅन)
हसीनों में मुहब्बत ढूंढता है |
ज़मीं पर कोई जन्नत ढूंढता है |
दगा फ़ितरत हसीनों की है लेकिन
कोई इन में मुरव्वत ढूंढता है |
समुंदर से भी गहरी हैं वो आँखें
जहाँ तू अपनी चाहत ढूंढता है |
मिलेगा तुझको असली लुत्फ़ गम में
फरह में क्यूँ लताफत ढूंढता है |
हैं काग़ज़ के मगर हैं खूबसूरत
तू जिन फूलों में नकहत ढूंढता है |
सियासी लोग होते हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2017 at 9:00pm — 10 Comments
Added by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 3:30pm — 16 Comments
२१२२,२१२२, २१२२, २१२
.
सोचने लगता हूँ अक्सर मैं कि क्या है ज़िन्दगी,
आग पानी आसमां धरती हवा है ज़िन्दगी.
.
मौत जो मंज़िल है उसका रास्ता है ज़िन्दगी,
या कि अपने ही गुनाहों की सज़ा है ज़िन्दगी.
.
बिन तुम्हारे इक मुसलसल हादसा है ज़िन्दगी,
सच कहूँ! ज़िन्दा हूँ लेकिन बेमज़ा है ज़िन्दगी.
.
ज़िन्दगी की हर अलामत यूँ तो आती है नज़र,
शोर है शहरों में फिर भी लापता है ज़िन्दगी.
.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 4, 2017 at 2:37pm — 10 Comments
Added by Rahila on March 4, 2017 at 11:38am — 9 Comments
Added by Dr Ashutosh Mishra on March 4, 2017 at 11:33am — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 3, 2017 at 7:50pm — 9 Comments
दर्द के निशाँ ....
दर
खुला रहा
तमाम शब
किसी के
इंतज़ार में
पलकें
खुली रहीं
तमाम शब्
किसी के
इंतज़ार में
कान
बैचैन रहे
तमाम शब्
तारीकियों में ग़ुम
किसी की
आहटों के
इंतज़ार में
शब्
करती रही
इंतज़ार
तमाम शब्
वस्ले-सहर का
मगर
वाह रे ऊपर वाले
वस्ल से पहले ही
तू
ज़ीस्त को
इंतज़ार का हासिल
बता देता है
मंज़िल से पहले…
Added by Sushil Sarna on March 3, 2017 at 1:39pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
पग सियासी आँच पर मधु भी जहर होने को है।
बच गया ईमान जो कुछ दर-ब-दर होने को है।।
मुफलिसों को छोड़कर गायों गधों पर आ गई।
यह सियासत आप पर हम पर कहर होने को है।।
उड़ रहा है जो हकीकत की धरा को छोड़ कर।
बेखबर वो जल्द ही अब बाखबर होने को है।।
वो जो बल खा के चलें इतरा के घूमें कू-ब-कू।
खत्म उनके हुस्न की भी दोपहर होने को है।।
जुल्म से घबरा के थक के हार के बैठो न तुम।
"हो भयावह रात कितनी भी सहर होने…
ContinueAdded by आशीष यादव on March 3, 2017 at 12:00pm — 18 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 3, 2017 at 9:30am — 8 Comments
1.
आया फागुन
भँवरों की गुंँजार
छाई बहार ।
.
2.
मन मयूर
पलाश हुआ मस्त
भँवरें व्यस्त ।
.
3.
रंगों की छटा
मस्ती भरी उमंग
थिरके अंग ।
4.
आम बौराए
उड़ा गुलाबी रंग
है हुड़दंग ।
5.
दिशा बेहाल
फूलों उड़ी सुगंध
बने संबंध ।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 1, 2017 at 7:00pm — 12 Comments
22. 22. 22. 22. 22. 22. 2
तन्हा शाम बिताते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?
मंज़र में खो जाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?
.
बारिश से पहले बादल पर अपनी आँखों से,
कोई अक्स बनाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?
.
ज़िक्र किसी का आये तो फूलों से खिलते हो,
शर्माते सकुचाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?
.
होटों पर मुस्कान बिना कारण आ जाती है,
बेकारण झुँझलाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?-…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 1, 2017 at 7:00pm — 12 Comments
अनबहा समंदर ....
थी
गीली
तुम्हारी भी
आंखें
थी
गीली
हमारी भी
आंखें
बस
फ़र्क ये रहा
कि तुमने कह दी
अपने दिल की बात
हम पर गिरा के
जज़्बातों से लबरेज़
लावे सा गर्म
एक आंसू
और
हमें
न मिल सका
वक़्ते रुख़सत से
एक लम्हा
अपने जज़्बात
चश्म से
बयाँ करने का
चल दिए
अफ़सुर्दा सी आँखों में समेटे
जज़्बातों का
अनबहा
समंदर
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 1, 2017 at 1:05pm — 8 Comments
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