मेरा परिचय क्या है?
क्या एक मानवी का ?
अथवा किसी की दासी का,
क्या मेरा परिचय यही है?
कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है।
मैं बहुत कुछ होकर भी,
स्वयं में कुछ नहीं हूँ।
क्या पुरुष की सहचारिणी
होने के कारण,मैं अस्तित्वहीन हूँ?
क्या एक स्त्री होने के कारण,
मैं केवल अबला,असहाय हूँ?
क्या पत्नी होना कोई अभिशाप है,
जो स्त्री को पुरुष की दासी बना देता है,
अथवा पुरुष सर्वश्रेष्ठ है,
जो स्त्री और प्रकृति सबका
अधिकारी बन जाना चाहता है।
जो…
Added by Savitri Rathore on March 9, 2014 at 12:06am — 9 Comments
सीमाओं मे मत बांधो
सीमाओं मे मत बांधो, मैं बहता गंगा जल हूँ ।
गंगोत्री से गंगा सागर
गजल सुनाती आई
गंगा की लहरों से निकली –
मुक्तक और रुबाई ।
भावों मे डूबा उतराता , माटी का गीत गजल हूँ
सीमाओं मे मत बांधो , मैं बहता गंगा जल हूँ ।
यमुना की लहरों पर –
किसने प्रेम तराने गाये ?
राधा ने कान्हा संग –
जाने कितने रास रचाए ?
होंगे महल दुमहले कितने, मैं…
ContinueAdded by S. C. Brahmachari on March 8, 2014 at 5:14pm — 15 Comments
जज्बा रख यदि ठानले, लगे सफलता हाथ,
काम करे उत्साह से, मिले सभी का साथ
मिले सभी का साथ, सभी उत्साहित रहते
रखकर ऊँची सोच, मदद आपस में करते
करे सोच कर काम, लगे न कभी भी धब्बा
संकट जाता हार, जब हो कर्म का जज्बा |
(२)
यात्रा जैसे आइना, ज़रा गौर से देख
सुन्दरता वर्णन करे, विद्वानों के लेख
विद्वानों के लेख,से बहुत सा ज्ञान मिले
पढ़े जब शिलालेख,संस्कृति संज्ञान मिले
बिन यात्रा के आप, ले न सके ज्ञान वैसे
कही न मिलता…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 8, 2014 at 11:30am — 11 Comments
आठ सगण
(१)
जब से यह देश अजाद भयो, तब से हर ओर जहालत है |
अपना सब देइ दियो जग को, अबहूँ यह नागन पालत है |
घनघोर घटा, चमके बिजली परिधान सुखावन डालत है |
सब ओर भयानक दृश्य दिखे तज हीरक कांच निकालत है |
(२)
धन भाग धरो तन भारत में, तप युक्त मही अति पावन है |
सत मारग हो, शुभ नीति चलो, अरु प्रेम सुपाठ सिखावन है |
रितु आइ रही, रितु जाइ रही, नदियाँ रसवंत लुभावन है |
जग अंध भले निज सारथ में पर से यह प्रीत निभावन है…
ContinueAdded by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 7, 2014 at 10:00am — 4 Comments
संविधान की ले शपथ, उसको तोडनहार |
कछु पापी नेता भये, अनुदिन भ्रष्टाचार ||
जोड़ तोड़ के गणित में, लोकतंत्र भकुआय |
हर चुनाव समरूप है, गया देश कठुआय ||
अथ श्री निर्वाचन चालीसा | जिसने भी जनता को पीसा ||१||
वह नेता है चतुर सुजाना | लोकतंत्र में जाना माना ||२||
धन जन बल युत बाहुबली हो | हवा बहाए बिना चली हो ||३||
झूठी शपथ मातु पितु बेटा | सब को अकवारी भर भेटा ||४||
रसमय चिकनी चुपड़ी बातें | मुख में राम बगल में घातें ||५||
अपना ही घर आप उजाडू | झंडे पर…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 6, 2014 at 10:29pm — 8 Comments
हे हंस वाहिनी प्रमुदित स्वर दो
माँ कल्याणी करुणा कर दो
हे हंस .........
ध्यान करूँ माँ तेरा निस -दिन
मंद बुद्धि को नूतन अक्षर दो
अहंकार का नास करो माँ
वीणा पाणि जाग्रत कर दो
हे हंस ..........
जीवन में छाया अँधियारा
ज्योतिर्मय उर आँगन कर दो
हो जाए मन में उजियारा
वरद हस्त सिर पर माँ रख दो
हे हंस ...........
पल -पल चिंतन रहे चिरंतर
इतनी उर में शक्ति भर दो
स्वप्नों में…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 6, 2014 at 9:30pm — 5 Comments
तुम गुलगुल गद्दा पर सोवौ, हमका खटिया नसीब नाहीं।
तुम रत्नजड़ित कुर्सिप बैठौ, हमका मचिया नसीब नाहीं।
तुम भारत मैया के सपूत, हम बने रहेन अवधूत सदा।
तुमरी बातेन का करम सोंचि, हम कहेन हमें है इहै बदा।
हर बातन मां तुम्हरी हम तौ, हां मां हां सदा मिलावा है।
तुमका संसद पहुंचावैक हित, तौ मारपीट करवावा है।
तबकी चुनाव मां बूथ कैंप्चरिंग, किहा रहै तौ अब छूटेन।
तुम्हरे उई दुईसौ रुपया मां, जेलेम खालर चुनहीं ठोकेन।
तुम निकरेव…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on March 6, 2014 at 9:00pm — 2 Comments
राजनीति में पार्टियाँ निभा रहीं पहचान
डंडे पत्थर गालियों का आदान-प्रदान
जो बोले तू झूठ वो मैं बोलूँ वो तथ्य
लफ़्फ़ाज़ी के रंग में लिपा-पुता हर कथ्य
झंडे टोपी भीड़ से रोचक दिखे प्रसंग
देख जमूरा नाचता पब्लिक होती दंग …
Added by Saurabh Pandey on March 6, 2014 at 6:30pm — 20 Comments
रंग में भीगी हवा,
चंचल चतुर इक नार सी,
गाने लगी है लोरियाँ।
ऋतु बसंती, पाश फैला कर खड़ी
फागुन प्रिया।
सकल जल-थल, नभचरों को खूब
सम्मोहित किया।
भंग में डूबी फिजा ने, खोल दीं मनुहार की,
भावों भरी बहु बोरियाँ।…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on March 6, 2014 at 12:40pm — 17 Comments
1222 1222 1222 1222
हमारे दुख दिखाई कब दिए हैं देवताओं को
हमेशा आँकते वो कम हमारी आपदाओं को
*
मरें या जी रहे हों हम उन्हें पूजा करें हरदम
न जब भी पूज पाए हम निकल आए सजाओं को
*
नहीं फिर भी हुए खुश वो भले ही सब किया अर्पण
गरल रख पास शिव जैसा सदा सौपा सुधाओं को
*
पुकारा जब गया उनको दुखों से हो परेशा ढब
किया है अनसुना बरबस हमारी सब सदाओं को
*
लगा करता जरूरी नित न जाने क्यों उन्हे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2014 at 11:30am — 17 Comments
नवगीत
जनसंख्या औ
मंहगार्इ बहने,
लम्बी गर्दन में
पहने गहने।।
तंत्र यंत्र सम
चुप्पी साधें,
स्रोत आयकर
रिश्वत मांगें।
शिवा-सिकन्दर
प्याज हुर्इ अब,
साड़ी पर साड़ी है पहने।।1
शासक वर की
पहुंच बड़ी है,
कन्या धन की
होड़ लगी है।
सैलाबों में
त्रस्त हुए शिव,
बेबस जन के टूटे टखने।।2
चोरी-दंगा
व्यभिचारों की,
उत्साहित
बारात सजी…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 8:51pm — 8 Comments
अहसासों को
प्रज्ञ तुला पर कब तक तोलूँ
चुप रह जाऊँ
या अन्तः स्वर मुखरित बोलूँ
जटिल बहुत है
सत्य निरखना-
नयन झरोखा रूढ़ि मढ़ा है,
यद्यपि भावों की भाषा में
स्वर आवृति को खूब पढ़ा है
प्रति-ध्वनियों के
गुंजन पर इतराती डोलूँ
प्राण पगा स्वर
स्वप्न धुरी पर
नित्य जहाँ अनुभाव प्रखर है
क्षणभंगुरता - सत्य टीसता
सम्मोहन की ठाँव, मगर है
भाव भूमि…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on March 5, 2014 at 8:30pm — 32 Comments
गजल- देश सोने की चिरैया----
जब बुजुर्गों की कमी होने लगी।
गर्म खूं में सनसनी होने लगी।।
नेक है दुनियां वजह भी नेक है,
दौर कलियुग का बदी होने लगी।
धर्म में र्इमान में सच्चे सभी,
घूस-चोरी अब बड़ी होने लगी।
प्यार हमदर्दी करें नेता यहां
सारी बातें खोखली होने लगी।
सिक्ख, हिन्दू और मुस्लिम भार्इ हैं,
घर में दीवारें खड़ी होने लगी।
देश सोने की चिरैया थी कभी,
खा गए चिडि़या गमी होने…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2014 at 7:37pm — 8 Comments
मौलवी साहिब के घर गहरी उदासी छाई हुई थी. उनके तीनो बच्चों को डॉकटरी जांच के दौरान पोलियों रोग से ग्रस्त पाया गया था. उम्र अधिक होने के कारण अब उन बच्चों का इलाज भी सम्भव नहीं था. अत: ज़िंदगी भर के लिए बच्चों के अपाहिज होने की कल्पना मात्र से ही हर कोई दुखी था. मोहल्ले के गरीब और निरक्षर परिवारों के दौड़ते भागते तंदरुस्त बच्चों को देखकर पढ़े लिखे मौलवी साहिब बार बार यही सोच रहे थे कि काश उन्होंने भी धार्मिक फतवों से ज्यादा अपने बच्चों की परवाह की होती।
मौलिक /…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
11212 11212 11212 11212
ये न पूछ शाम ढली किधर , तू ये देख चाँद निकल रहा
समाँ सुर्मयी था जो रात का , वो भी चंपई मे बदल रहा
***
ये तो हौसले की ही बात है ,बड़ी तेज धूप है चार सूँ
किसी सायबाँ का पता नही ,बिना आसरा कोई चल रहा
***…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 6:30pm — 16 Comments
221 2122 222 1222
बीरान जिन्दगी में वो आयी बहारों सी
सहरा में तपते जैसे कोई आबशारों सी
लगती है इक ग़ज़ल की ही मानिंद वो मुझको
उसकी तो हर अदा ही हो जैसे अशारों सी
जुल्फों को जब गुलों से है उसने सजाया तो
मुझको लगी अदा ये यारों चाँद तारों सी
जब साथ साथ चलके भी वो दूर रहती है
तब लगती इक नदी के ही वो दो किनारों सी
मौसम हसींन सर्द है गर हो गयी बारिश
होगी हसींन सी कली वो बेकरारों…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 5, 2014 at 3:30pm — 9 Comments
मुझे चिंता में डूबे देख
तुम दुहाई देते
जब तक मेरा हाथ है
तुम्हारे हाथ में
मेरी सांसें
तुम्हारी साँसों में महकती है
विश्वास है महत्वाकांक्षा के घोड़ों पर
जो हर बाधा पार कर लेंगे
जब तक हूँ मैं जीवित
तुम खुद को अकेला मत समझो
मैं हूँ ना हमेशा तुम्हारे साथ
तुम्हारा साया बनकर
वोही साया ढूढ़ती हूँ
चारों ओर
आठों पहर
शायद
साया खो गया है
मुझ में ही कहीं
जैसे दोपहर के सूर्य में
मेरी परिछाई
उसी से तो…
Added by Sarita Bhatia on March 5, 2014 at 10:40am — 20 Comments
(१ )
भारत की हम नार, बढ़ें खुद आज लिए नव छत्र चलो|
जीवन में अब हार, सहें मत ख़ार लिखें इक पत्र चलो|
ले कर में पतवार, करें तट पार रचें नव सत्र चलो|
साथ मिला कर हाथ, सधे हर काज बने शतपत्र चलो||
(2)
जीवन में नित प्यार, रहे दरकार बढ़े नव प्रीत चलो|
वर्ण मिलाकर आज, चलें इक साथ रचें इक गीत चलो||
पाँव बढ़े इक साथ, सभी नर नार बनें सत मीत चलो|
एक नया इतिहास, लिखें हम आज मिले नव जीत चलो||
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by rajesh kumari on March 5, 2014 at 10:00am — 24 Comments
तुम बिन
तन्हा-तन्हा सी साँसें
पल-पल गुजरता रहा
वरष के जैसा
बेचैनी की धीमी-धीमी आग में
बसंत बीत ही गया
न जाने कैसे कटेगा..?
रंगों का महीना
तुम बिन तो है
बे-रंग सा फाल्गुन
दिन तो काटने ही हैं
इस तरह क्यों न थका लूँ तन को
कि शाम तक
चूर हो जाय !
ये तन्हा रातें
बिन करवट ही
बीत जायें ।
इस तन्हाई को मेरे भाग्य ने ही सौंपा है मुझे
क्या तुम्हें…
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on March 5, 2014 at 8:19am — 28 Comments
तेलंगाना पे भिड़े, अपनी मुट्ठी तान।
अपने भारत देश की, लगी दाँव पे आन।।
कोई तोड़े काँच को, पत्र लिया जो छीन।
आगे पीछे भैंस के, बजा रहे हैं बीन।।
मिर्चें लेकर हाथ में, करे आँख में वार।
मानवता इस हाल पे, अश्रु बहाये चार।।
हिस्सा जाता देख कर, हुये क्रोध से लाल।
बरसीं गंदी गालियाँ, ये संसद का हाल।।
चढ़ा करेला नीम पर, अपनी छाती ठोक।
शक्ति संग सत्ता मिली, रोक सके तो रोक।।
(मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 5, 2014 at 8:00am — 20 Comments
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