2122 2122 2122 212
रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक
हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक
आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की
आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तक
उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक
है अज़ब मंज़र वफ़ा की रहगुज़र में आजकल
चाहतें उस शख्स की जिसने रुलाया देर तक
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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 7, 2016 at 9:30pm — 24 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 7, 2016 at 9:16pm — 6 Comments
विद्रोहिणी सी बन गयी थी मैं
मेरी कुंठा और संत्रास
कैसे पनपे
नहीं जान पाई मै
और कितना असत्य था
उनका दुराग्रह
यह तब मैं न जानती थी
सच पूछो तो
नहीं चाह्ती थी जानना भी
कोई समझाता यदि
तो आग लग जाती वपुष में
अरि सा लगता वह
पर कोई देता यदि प्रोत्साहन
मुझे उस गलत दिशा में जाने का
तो वह लगता सगा सा
हितैषी और शुभेच्छु
संसार का सबसे प्रिय जीव
क्योंकि तब थी मैं
उसके प्यार…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 7, 2016 at 8:13pm — 3 Comments
उसकी बेटी से छेड़खानी कर रहे तीन उपद्रवियों से अकेले ही लड़ा था वो, इस मुठभेड़ में उस पर दो बार चाकू के वार हुए, लेकिन घायल होने के बावजूद भी वो पूरी शक्ति से लड़ा और अंततः उन बदमाशों को भगा ही दिया| उसकी बेटी एक नर्स थी, वो उसे तुरंत उसी चिकित्सालय में लेकर गयी, जहाँ वो काम करती थी| रास्ते भर वो मुस्कुराता रहा और बेटी को दिलासा देता रहा| चिकित्सालय में उसके घावों पर मरहम-पट्टी की गयी| चिकित्सक ने दवा और एक इंजेक्शन भी लिख दिया| इंजेक्शन उसी की बेटी ने लगाया, इंजेक्शन लगते ही वो चिल्लाया, "उफ़...…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 7, 2016 at 8:00pm — 6 Comments
"ये मिठाई कहाँ से आई जी ?" अपने खेत के किनारे चारपाई पर चुपचाप लेटे शून्य को निहारते हुए पति से पूछाI
"अरी, वो गुलाबो का लड़का दे गया था दोपहर को।" उसने चारपाई से उठते हुए उत्तर दियाI
"कौन? वही जो शहर में सब्ज़ी का ठेला लगाता है?"
"हाँ वही! बता रहा था कि अब उसने दुकान खोल ली है, उसकी ख़ुशी में मिठाई बाँट रहा थाI" पति ने मिठाई का डिब्बा उसकी तरफ सरकाते हुए कहाI
"चलो अच्छा हुआI" पत्नी ने चेहरे पर कृत्रिम सी मुस्कुराहट आईI
"वो बता रहा था कि उसने बेटे को भी टैम्पो डलवा…
Added by योगराज प्रभाकर on March 7, 2016 at 4:30pm — 12 Comments
Added by रामबली गुप्ता on March 7, 2016 at 3:30pm — 7 Comments
ग़ज़ल (मुहब्बत से किनारा कर रहा है )
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मुहब्बत से किनारा कर रहा है |
हमें वह बे सहारा कर रहा है |
तुम्हारा देखना रह रह के मुझको
वफ़ा को आश्कारा कर रहा है |
न कोई देख ले यह डर मुझे है
वो खिड़की से इशारा कर रहा है |
युं ही क़ायम रहे यह दोस्ताना
कहाँ आलम गवारा कर रहा है |
वो लाके ग़ैर को महफ़िल में…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2016 at 1:08pm — 19 Comments
समूचा क्षेत्र सूखे और अकाल की चपेट में था! चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई थी!लोग एक एक बूंद पानी को तरस रहे थे!ऐसे में गॉव के प्रधान वीर पाल ने आस पास के सभी गॉवों में मुनादी पिटवा दी कि बारिस करवाने के लिये महायज्ञ और भागवत कथा का आयोजन कराया जा रहा है!यह कार्य क्रम पंद्रह दिन चलेगा!मथुरा वृंदावन से साधु संत और भागवत कथा वाचक बुलाये जायेंगे!अनुमानित खर्चा इक्यावन हज़ार के लगभग होगा!सभी लोग अपनी सामर्थ्य और श्रद्धा से इस दान पुन्य के महोत्सव मे बढ चढ कर भाग लें!
नियत तिथि पर प्रधान…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 7, 2016 at 11:00am — 12 Comments
Added by Manan Kumar singh on March 7, 2016 at 11:00am — 2 Comments
बम बम भोलेनाथ
बम बम भोलेनाथ शिव, आशुतोष भगवान।
नीलकंठ विरुपाक्ष अज, शंकर कृपानिधान।।
शंकर कृपानिधान, शिवाप्रिय भव त्रिपुरारी।
महादेव सर्वज्ञ, यज्ञमय हवि कामारी।।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on March 7, 2016 at 2:00am — 2 Comments
बेटा ख़ानदान का चराग़ और बुढ़ापे का सहारा होता है , बेटियां पराया धन हैं दूसरे के घर चली जाती हैं | शान्ती की यही सोच ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हो चुकी थी | ..... इकलौते बेटे को प्राइवेट कॉलिज में और बेटियों को सरकारी कालिज में पढ़ाया ,यही नहीं ज़ेवर बेचकर बेटे को एम बी ए कराया और बेटी इस से महरूम रह गयी | घर का खर्चा पति की पेंसन और सिलाई करने से चल रहा था मगर हाय क़िस्मत बेटा भी बहू के बहकावे में आकर माँ और बहनों को बेसहारा छोड़ गया। ...... पति ज़िंदा होते तो यह दिन देखने न पड़ते | शान्ती दुखों…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 6, 2016 at 10:00pm — No Comments
"कल आपका बेटा परीक्षा में नकल करते हुए पकड़ा गया है, यह आखिरी चेतावनी है, अब भी नहीं सुधरा तो स्कूल से निकाल देंगे|" सवेरे-सवेरे विद्यालय में बुलाकर प्राचार्य द्वारा कहे गए शब्द उसके मस्तिष्क में हथौड़े की तरह बज रहे थे| वो क्रोध से लाल हो रहा था, और उसके हाथ स्वतः ही मोटरसाइकिल की गति बढा रहे थे|
"मेरी मेहनत का यह सिला दिया उसने, कितना कहता हूँ कि पढ़ ले, लेकिन वो है कि.... आज तो पराकाष्ठा हो गयी है, रोज़ तो उसे केवल थप्पड़ ही पड़ते हैं, लेकिन आज जूते ही....|" यही सोचते हुए वो घर पहुँच…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 6, 2016 at 10:00pm — 5 Comments
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर समस्त शिव भक्तों को सादर भेंट
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जटाओं से निकल रही है, धार गंग नाथ शिव।
मुस्कुरा रहे गले में, धर भुजंग नाथ शिव।।
डमड्ड डमड्ड निनाद पर, हैं नृत्य कर रहे सभी।
मन लुभाये रूप आपका, मलंग नाथ शिव।।1।।
पाँव में कड़ा है और, त्रिशूल हाथ में धरे।
बाँध कर कमर में छाल, व्याह को चले हरे।।
चन्द्र ये ललाट पर, है विश्व दंग नाथ शिव।
मन लुभाये रूप आपका, मलंग नाथ शिव।।2।।
भंग की खुमार में हैं मस्त आज तो सभी।
सिर विहीन…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 6, 2016 at 9:30pm — 2 Comments
“मिस्टर सिंह, आप और आपकी टीम विगत छः माह से उस खूंखार आतंकवादी को पकड़ने में लगी हुई है, किन्तु अभी तक आपकी प्रगति शून्य है.”
“सर हम लोग पूरी निष्ठा और ईमानदारी से इस अभियान में लगें हैं, मुझे उम्मीद है कि हम शीघ्र सफल होंगे.”
“आई. बी. वालों ने भी सूचना दी थी कि वो पड़ोसी मित्र देश में छुपा हुआ है, फिर प्रॉब्लम क्या है ?”
“सर, यदि वो पड़ोसी देश में छुपा होता तो हम लोग उसे जिन्दा या मुर्दा दो दिन में ही पकड़ लेते,
लेकिन प्रॉब्लम तो यह है कि ....”
“क्या प्रॉब्लम…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 6, 2016 at 5:30pm — 13 Comments
Added by मनोज अहसास on March 6, 2016 at 10:36am — 5 Comments
बह्र : १२१२ ११२२ १२१२ २२
नमक में हींग में हल्दी में आ गई हो तुम
उदर की राह से धमनी में आ गई हो तुम
मेरे दिमाग से दिल में उतर तो आई हो
महल को छोड़ के झुग्गी में आ गई हो तुम
ज़रा सी पी के ही तन मन नशे में झूम उठा
कसम से आज तो पानी में आ गई हो तुम
हरे पहाड़, ढलानें, ये घाटियाँ गहरी
लगा शिफॉन की साड़ी में आ गई हो तुम
बदन पिघल के मेरा बह रहा सनम ऐसे
ज्यूँ अब के बार की गर्मी में आ गई हो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 5, 2016 at 11:30pm — 10 Comments
कुण्डलिया
धुंआ हवा को छेड़ती, पानी करे पुकार.
धरती निशदिन लुट रही, अम्बर है लाचार.
अम्बर है लाचार, प्रेम की वर्षा सूखी.
सरिता नदिया ताल, रेत में उलझी रूखी.
सूरज रखता खार, करें क्या सत्यम-फगुवा.
मानव अति बेशर्म, उड़ाता खुद…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 5, 2016 at 9:55pm — No Comments
Added by shree suneel on March 5, 2016 at 5:51pm — 5 Comments
आघात – ( लघुकथा ) –
वर्मा जी ने जीवन भर की क़माई अपने इकलौते बेटे पवन के भविष्य को बनाने में लगा दी!पहले तो मंहंगी से मंहंगी कोचिंग का खर्चा फ़िर आई आई टी की मंहंगी पढाई!तत्पश्चात बेटे की एम बी ए करने की फ़रमाइश ! बची खुची पूंजी बेटे की शादी में खर्च कर दी !सोचा कि और किसके लिये कमाया है!
बेटा पवन नौकरी करने विदेश चला गया!मॉ बाप अकेले!हारी बीमारी कोई पूछने वाला नहीं!तीन साल से न बेटा आया न बहू!शुरू में तो होली दिवाली फ़ोन आजाता था!अब तो वह भी नहीं आता!वर्मा जी जब भी फ़ोन मिलाते…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 5, 2016 at 3:36pm — 10 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on March 5, 2016 at 2:38pm — 2 Comments
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