Added by Vindu Babu on April 26, 2013 at 11:03am — 17 Comments
नियम : ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में .
प्रणय पवन बह, रस मन बरसत
बढ़त लहर जस, तन मन गद गद
चमक दमक बस, चलत नगर घर
पग पग हर पल, रहत मदन मद
मन भ्रमर चलत, उड़त गगन तक
इत उत भटकत, उठत बहत रह
प्रणय ललक वश, बहकत सम्हरत
चरफर महकत, चटक मटक रह
- बृजेश नीरज
Added by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:25am — 10 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on April 26, 2013 at 12:01am — 8 Comments
Added by manoj shukla on April 25, 2013 at 10:52pm — 14 Comments
मुझे लिखना है
Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 10:00pm — 4 Comments
भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?
नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।
नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,
न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।
रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,
अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।
पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,
फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।
पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा
खोद कब्रें, कर…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 25, 2013 at 10:00pm — 67 Comments
परेशां है समंदर तिश्नगी से
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से
अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे
कमाया है जो हमने मुफलिसी से
…
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी
Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य
इस बार चुनाव लड़ने की
हमने भी ठानी है,
हमारे अंदर नेतागिरी का कीड़ा है
यह बात हमने अभी…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:30pm — 22 Comments
|| मै बरगद का पेड ||
मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।
कितने मौसम आते जाते, देखे है मैने जीवन मे ।
सदीया बीती नदिया रीति, वो गाँवो का शहर बन जाना ।
अब मै डरा सहमा सा खडा हुआ हू, इन कंक्रीटो के वन मे
वो बडॆ प्यार से अम्मा बाबा का, मुझे धरा मे रोपना ।
वो खुद के बच्चो जैसा मेरा, लाड प्यार से पाल पोसना ।
वो पकड के मेरी बाहो को, मुन्ना मुनिया का झुला झुलना
वो चढ के मेरे कंधो पर, कटी…
ContinueAdded by बसंत नेमा on April 25, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
वर्तमान समय में हमारे बच्चों को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। इनमे सबसे प्रमुख है टी . वी . जिस पर प्रसारित होने वाले कार्टून बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। पर बच्चे इनसे क्या सीखते हैं यह सोंच का विषय है।
कई कार्टून चरित्र जो बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं जैसे स्पाइडरमैन, बैटमैन, बेन टेन इत्यादि। बच्चे इन चरित्रों से बहुत…
ContinueAdded by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 25, 2013 at 11:30am — 7 Comments
शक करने का काम
वो शक करता है
हर मिलने-जुलने वालों पर
और अपने गुर्गों द्वारा
करता रहता पड़ताल
कहीं कोई भेदिया तो
बदल कर भेस
घुस आया हो
उसके आभा-मंडल में....
वो शक करता है
अपने दरबारी, सिपहसालारों पर
चमचों-चाटुकारों पर
इसीलिये कुछ को देता रहता है सज़ाएँ
कुछ को पुरस्कार
कुछ का तिरस्कार....
वो शक करता…
ContinueAdded by anwar suhail on April 24, 2013 at 10:04pm — 8 Comments
कुंडलिया छंद
पत्नी लागी दाँव पर, गए युधिष्ठिर हार,
महासमर के वार का, धर्म बना आधार |
धर्म बना आधार, द्रोपदी चीर हरण का,
कृष्ण बने मझधार, तन पर बढ़ते चीर का
दुशासन मढ़े…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 24, 2013 at 10:00pm — 16 Comments
कैसा समाज // कुशवाहा//
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जनम लेत बालिका जननी न सुहात है
माम सुन चाहत है मात नही भात है
कृष् काय बदन लिये तन पर नहि गात है
चौराहे अन्न सडत कैसा सुप्रभात है
वैभव विहीन वो जनम काली रात है
कली न खिली अभी भंवरे मडरात हैं
खग गगन उड़न चहे बाजों का राज है
सखि संग खेलन गयी संझा की बात है
मैला आंचल हुआ लुटी सगरी रात है
दोषी भला ये क्यों अपने ही भ्रात हैं
संस्कार विहीन ये अपराध सम्राट…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2013 at 4:25pm — 14 Comments
छोड़ पाप मन का , सत पथ पर चल , लफडा करना , अब छोडो | |
तज काम क्रोध को , छोड़ लोभ मद , हरी भजन में , मन जोड़ो | |
लोग शिक्षा पायें , ज्ञान कमायें , प्रेम बढायें , हर जन में | |
जहाँ लोग देखें , खुश हो जायें , बस ऐसे बन , हर मन… |
Added by Shyam Narain Verma on April 24, 2013 at 3:25pm — 4 Comments
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 24, 2013 at 10:00am — 8 Comments
‘‘गजल‘‘
एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।
वज्न......1222 1222 1222 1222
कुसुम को तोड़कर किसने, हसीनों को रिझाया है।
रूहानी जानकर उसने, मकानों को सजाया है।।1
जहां में और भी किस्से, सुनाया नाम पाया है।
चुराकर रात का काजल, सुनयनों को लगाया है।।2
चला है शाम से नश्तर, सितम भी खूब ढाया है।
वतन को छोड़ आफत में, बेगानों को छिपाया है।।3
यहां कातिल वहां मंजिल, बहानों से बुलाया है।
खुदा को भूल आया वो, सकीनों को रूलाया…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 9:32am — 30 Comments
लगभग आधी सदी से भोजपुरी बोली - भाषा का परचम राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर कामयाबी के साथ फहराने वाले लोक कवि पंडित हरि राम द्विवेदी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए साहित्य अकादमी ने प्रतिष्ठित 'भाषा पुरस्कार' प्रदान करने की घोषणा की है ।…
ContinueAdded by Abhinav Arun on April 24, 2013 at 9:30am — 5 Comments
फिर तुम्हारी याद में
इक पीर की माला बनायी ...
रूठना फिर मनाना
इक रीत है
हाँ हमारे बीच
अपनी प्रीत है
इसी पूजा में रहे
हम मग्न
तो आवाज आयी
फिर तुम्हारी याद में ...
एक अद्भुत
अलौकिक संगीत है
हाँ तुम्हारी याद
मेरी मीत है
ध्यान जो तेरा धरूँ
तो आँसुओं ने
झिर लगायी
फिर तुम्हारी याद में ....
योगेश्वर 'राग'
Added by योगेश्वर 'राग' on April 24, 2013 at 4:44am — 14 Comments
छोटी छोटी बातों पर
अनायास ही अनचाहे
मन मुटाव हो जाता है
दुराव हो जाता है
दूरी बढ़ जाती है
हम तिलमिला जाते हैं
मौन हो जाते हैं
अहम भाग जाता है …
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 24, 2013 at 12:09am — 12 Comments
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