जख्म फिर से हरा हो गया
दर्द -ए -दिल आइना हो गया
.
याद ऐसा किया देख कर
सोच के बाबरा हो गया
.
काम के नाम ने चोट की
दिल बचा दिल जला हो गया
.
नींद का आँख से रूठना
रोज़ का सिलसिला हो गया
.
फीस में छूट थी जो मिली
लाडला फिर बड़ा हो गया
.
दाद दो तुम जरा इसलिए
गिर के वो खड़ा हो गया
.
खेल की पोल थी जब खुली
फिर मज़ा किरकिरा हो गया
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
मुनीष…
Added by munish tanha on April 21, 2016 at 3:30pm — 3 Comments
Added by Ravi Prakash on April 21, 2016 at 3:23pm — 2 Comments
Added by kumar gaurav mishra on April 21, 2016 at 1:27pm — No Comments
२१२२ १२१२ २२
हुस्न गर बावफ़ा नहीं होता,
दिल कभी आशना नहीं होता
खेलना दिल से तोड़ देना फिर
ये कोई कायदा नहीं होता
दिल्लगी से हुए तमाशे का
हर कहीं तज़करा नहीं होता
जान पाता कभी नहीं उसको
,मैं अगर आइना नहीं होता
मार देती ये तिश्नगी मुझको,
काश ये मयकदा नहीं होता
मुश्किलों से निजात पाने को,
मौत ही रास्ता नहीं होता
छेड़ता वो न बारबार इसको,
जख्म मेरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 21, 2016 at 11:18am — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 21, 2016 at 10:37am — 2 Comments
2122 1212 22
उनकी नज़रों से जो उतर जाए |
आसरा ढूंढ़ने किधर जाए |
कर लिया है यक़ीन उनपे मगर
डर है यह भी न वो मुकर जाए |
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |
भीड़ आए नज़र क़ियामत सी
शोख़ उनकी नज़र जिधर जाए |
मिल गया जब खिताबे दीवाना
उनके कूचे से कौन घर जाए |
जिसके घर का पता नहीं कोई
कैसे उस तक कोई ख़बर जाए |
दिन में तस्दीक़ आए रात…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 20, 2016 at 9:00pm — 14 Comments
क्या कहा जो सुना नहीं
आँखों ने पढ़ लिया होगा
कह न सके वो जो बातें
आँखो ने पढ़ लिया होगा।
दूर दराज से आया कोई
अपनों ने जान लिया होगा
खो गया था जो उस जहाँ में
अपनों ने पा लिया होगा।
स्वप्न सा अँधेरे को वो
चीर कर वहाँ से जब आया
निशाँ अपने छोड़ कर वो
फिर अपनी दुनिया में गया होगा।
यादें है या है आहट उनकी
किसी ने तो यह जाना होगा
दिल से पूछा जब यह उसने
उसका दिल भी क्या वहाँ धड़का होगा।
(मौलिक एवं…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 20, 2016 at 9:00pm — 2 Comments
2212,121,122,1212
पल में हुई मैं खुद से पराई कुछ इस तरह
थामी उन्होंने हाय! कलाई कुछ इस तरह
नस-नस में सिहरने हैं, निगाहों में है सुरूर
साँसों में उनकी याद समाई कुछ इस तरह…
Added by Dr.Prachi Singh on April 20, 2016 at 3:47pm — 5 Comments
अच्छे दिन की यही तो शुरुआत है
सब बिज़ी ही रहें,खुशनुमा बात है
बात तन्हाइयों की चलाना नही
सब अंधेरे हो रुखसत, तो क्या बात है!!
झटका बिजली का अबतक तो खाया नही
रोशनी है मुसलसल,बड़ी बात है
जिन्दगी के सबब, वे सिखाने चले
जो जिये ही नही,क्या अज़ब बात है
मुफलिसी जिन्द़गी की अमानत सही
नूर झांका कमश्कम शुरुआत है
फालतू जिन्दगी यूँ ही ढोते रहे
एक मिशन अब मिला, खुशनुमा बात है
संगदिल बिन हुये सब चलें संग संग
आज सूरज से अपनी मुलाकात है
रोशनी हाथ…
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on April 20, 2016 at 10:39am — No Comments
बह्र : 22 22 22 22 22 22 22 22
वो तो बस पुल पर चलते जो गहराई से घबराते हैं
पुल की रचना वो करते जो खाई के भीतर जाते हैं
जिनसे है उम्मीद समय को वो पूँजी के सम्मोहन में
काम गधों सा करते फिर सुअरों सा खाकर सो जाते हैं
धूप, हवा, जल, मिट्टी इनमें से कुछ भी यदि कम पड़ जाए
नागफनी बढ़ते जंगल में नाज़ुक पौधे मुरझाते हैं
जिनके हाथों की कोमलता पर दुनिया वारी जाती है
नाम वही अपना पत्थर के वक्षस्थल पर खुदवाते…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 19, 2016 at 10:05pm — 4 Comments
ज़िंदगी डूब जाती है ....
ऐ बशर !
इतना ग़रूर अच्छा नहीं
ये दौलत का सुरूर अच्छा नहीं
साया तेरे करमों का
हर कदम तेरे साथ है
कुछ दूर तक दिन है
फिर लम्बी अंधेरी रात है
रातों में साये भी रूठ जाते हैं
दिन के करम
तमाम शब सताते हैं
शब की तारीकियों में
अहम के पैराहन
जिस्म से उतर जाते हैं
ज़न्नत और दोज़ख
सब सामने आ जाते हैं
बशर ख़ाके सुपुर्द हो जाता है
लाख चाहता है
फिर लौट नहीं पाता है
फिर न कोई रहबर होता…
Added by Sushil Sarna on April 19, 2016 at 9:48pm — 4 Comments
चेहरा तेरा चाँद का टुकड़ा
भौहें तनी कमान हैं क्या
इन आँखों में मैं मर जाऊँ
होंठों का तिल शान है क्या..2
तेरे तन की ख़ुशबू लेकर
फूल चमन में खिलते हैं
शायर तेरे हुशनो जवाँ की
दिल में किताबें लिखते हैं
उठी नज़र फिर झुक जाए तो
ढल जाती ये शाम है क्या
इन आँखों पे ...
तेरे लबों की बात करूँ तो
खिले कमल शर्माते हैं
तेरे क़दम जो पड़े जमी पे
शहंशाह झुक जाते हैं
तेरा खनकता स्वर गूंजा या
वीना की कोई तार है…
Added by Amit Tripathi Azaad on April 19, 2016 at 6:14pm — No Comments
घूरे के दिन भी संवरते ....
ज़िंदगी जो आज है
वह कल थी
किसी घूरे पर पड़ी मल
गंध से कराहती.
कोई पूंछने को न आता
सितारे दूर से निकल…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 19, 2016 at 5:30pm — No Comments
मेरे सपनों में अक्सर ही
आकर मुझे जागता है
गाँव मेरा मुझको फिर यारों
वापस मुझे बुलाता है
वो खलिहानों की पगडंडी
सड़क बन गई काली है
दीपक भी अब नहीं रह गए
लाइट चमक निराली है
जिनके ख़ातिर दूर गया तू
वो सब मुझे दिखाता है
गाँव मेरा ....
मिट्टी के घर नहीं रहे अब
ईंटों के माकान बने
निर्मल निश्चल दिल वाले
अब पत्थर के इंसान बने
दिन प्रति दिन उन पत्थर में
इंसान नज़र ना आता है
गाँव...
हरे भरे तालाब सूखकर खेलों के…
Added by Amit Tripathi Azaad on April 19, 2016 at 1:09pm — 3 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on April 19, 2016 at 9:36am — 5 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 17, 2016 at 8:52am — 6 Comments
कन्या दान के बाद से बिदाई तक लगातार रोती रही । रोते रोते सोफे पर बेसुध सी पडी़ रही।सभी बिदाई में व्यस्त जो थे।
दादा जी ने गोदी में उठाया,"उठ बिट्टो खाना खा ले, बुआ तो गई।"
तुनक कर गुस्से से बोली "नहीं कुछ नहीं खाउंगी आपने मेरी कल्लो बुआ और लाली बछिया दोनों को दान में दे दिया।बुआ को दूल्हा अपने साथ ले गया।"
"बुआ की शादी हुई है बिट्टो,बे तुम्हारे फूफा जी है।"
"कोई फूफा जी नहीं, मैं और बुआ दोनों रोते रहे फिर भी बुआ को साथ ले गए।"
"अगले हफ्ते ले आयेगे बुआ को।"
"अब…
Added by Pawan Jain on April 17, 2016 at 7:30am — 5 Comments
Added by ram shiromani pathak on April 16, 2016 at 2:25pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
खोटा सिक्का हो गया है आज अय्यारों का फन
हर तरफ छाया हुआ है आज बाजारों का फन
कर रही है अब समर्थन पप्पुओं की भीड़ भी
क्या गजब ढाने लगा है आज गद्दारों का फन
हौसला देते जरा तो क्या गजब करती सुई
आजमाने में लगे सब किन्तु तलवारों का फन
पुल बने हैं कागजों पर कागजों पर ही नदी
क्या गजब यारो यहा आजाद सरकारों का फन
पास जाती नाव है जब साथ नाविक छोड़ता
आपने देखा न होगा यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 16, 2016 at 11:21am — No Comments
Added by दिनेश कुमार on April 15, 2016 at 6:08pm — 4 Comments
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