ममता का सागर,प्यार का वरदान हैं माँ,
जिसका सब्र और समर्पण होता हैं अनन्त,
सौभाग्य उसका,बेटा-बेटी की जन्मदात्री कहलाना,
माँ बनते ही,सुखद भविष्य का बुनती वो सपना,
इसी 'उधेड़बुन'में,कब बाल पक गये,
लरजते हाथ,झुकी कमर.सहारा तलाशती बूढ़ी…
ContinueAdded by babitagupta on May 13, 2018 at 1:00pm — 5 Comments
उसकी खातिर करो दुआ प्यारे।।
इस तरह से निभा वफ़ा प्यारे।।
जो हो शर्मिंदा अपनी गलती पे।
उसको हर्गिज न दो सजा प्यारे।।
माना पहुँचे हो अब बुलंदी पर।
तुम न खुद को कहो खुदा प्यारे।।
कत्ल करके वो मुस्कुराता है।
कितनी क़ातिल है ये अदा प्यारे।।
जिनको रोटी की बस जरूरत है।
उनपे बेकार सब दवा प्यारे।।
'राम' बुझने को हैं उन्हें छोड़ो।
दें चरागों को क्यूँ हवा प्यारे।।
मौलिक अप्रकाशित
राम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 13, 2018 at 11:15am — 8 Comments
था उन को पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और
उस पर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और.
.
रखता हूँ छुपा कर जिसे, होता है अयाँ और
शोले को बुझाता हूँ तो उठता है धुआँ और
.
ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं
उठकर तेरे दर से मैं भला जाऊँ कहाँ और?
.
इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम
दुनिया थी अलग उन की तो अपना था जहाँ और.
.
आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही
होगी तो अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.
.
करते हैं…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2018 at 9:12am — 13 Comments
घर को घर सा कर रखे, माँ का अनुपम नेह
बिन माँ के भुतहा लगे, चाहे सज्जित गेह।१।
माँ ही जग का मूल है, माँ से ही हर चीज
माता ही धारण करे, सकल विश्व का बीज।२।
सुत के पथ में फूल रख, चुन लेती हर शूल
हर चंदन से बढ़ तभी, उसके पग की धूल।३।
शीतल सुखद बयार बन, माँ हरती सन्ताप
जिसको माँ का ध्यान हो, करे नहीं वो पाप।४।
रखे कसौटी पाँव को, कंटक बो संसार
करे सरल हर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2018 at 7:30am — 8 Comments
विधाता छंद
जताएं मातृ दिन पर हम.....
जगत में मात के जैसा,नहीं दूजा दिखा भाई !
कहो माता कहो मम्मी, कहो चाहे उसे माई !
पुकारे बाल माँ जब भी, तुरत वह दौडकर आई !
बुरा माना नहीं उसने, कभी मन बाल रुसवाई …
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on May 13, 2018 at 3:30am — 4 Comments
Added by मोहन बेगोवाल on May 12, 2018 at 6:18pm — 5 Comments
221 2121 1221 212
आया सँवर के चाँद चमन में उजास है ।
बारिश ख़ुशी की हो गयी भीगा लिबास है ।।1
खुशबू सी आ रही है मेरे इस दयार से।
महबूब मेरा आज कहीं आस पास है ।।2
पीकर तमाम रिन्द मिले तिश्नगी के साथ ।
साकी तेरी शराब में कुछ बात ख़ास है ।।3
उल्फत में हो गए हैं फ़ना मत कहें हुजूर ।
जिन्दा अभी तो आपका होशो हवास है ।14
हुस्नो अदा के ताज पे चर्चा बहुत रही ।
अक्सर तेरे रसूक पे लगता कयास है…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 12, 2018 at 11:13am — 1 Comment
'संस्कृति' अपनी 'ऐतिहासिक पुस्तकों' को सीने से लगाए उन जल्लादों के लगभग समीप ही खड़ी थी। 'संस्कार' संस्कृति से नज़रें चुराकर सिर झुकाए नज़ारों पर शर्मिंदा था, पर यहां आदतन साथ खड़े होने पर विवश था। वैश्वीकरण के तथाकथित दौर में धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, व्यावसायिक और सामाजिक धर्म, कर्म, और राजधर्म फ़ांसी के फ़ंदों को निहारते हुए अपनी अपनी दशा और दिशा पर पुनर्विचार तो कर रहे थे, लेकिन चूंकि उनके कैंसर का आरंभिक स्तर डायग्नोज़ हो चुका था, इसलिए उनके इलाज़ में समय, ऊर्जा और धन बरबाद करने के…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on May 12, 2018 at 9:30am — 3 Comments
मैं
आज से नहीं कहूँगा
तुम्हे साथी, मीत या हमनवां
क्योंकि अब
मैं जान गया हूँ कि
ये शब्द
बौना कर देते है
उन संबंधो
और अहसासों को
जो हमें देते रहे
जाने कब से ?
वे अज्ञात एवं रहस्यमय
अनगिन स्पंदन
जिनमें मैंने पाया
जीवन
और जीवन का अर्थ.
(मौलिक / अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 12, 2018 at 6:00am — 3 Comments
अरकान:-
मफ़ऊल फ़ाईलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
यारों ख़ुदा ये देख के हैरान हो गया,
इंसा जिसे बनाया था हैवान हो गया।।
भेजा था इसको अम्न की ख़ातिर जहान में,
कैसे ख़िलाफ़ अम्न के इंसान हो गया।।
शैतान का भी शर्म से देखो झुका है सर,
इंसान ख़ुद ही आज तो शैतान हो गया।।
चिंता में बेटियों की हर इक बाप है यहाँ,
अब क्या बताऊँ मैं तो परेशान हो गया।।
ढाये यहाँ पे गंदी सियासत ने वो सितम,
लगता है जैसे मौत का सामान हो गया।।…
Added by santosh khirwadkar on May 11, 2018 at 8:30pm — 6 Comments
शहर के बड़े शिवपुरी में उस कि अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, इस शिवपुरी में मैं कई बार अंतिम संस्कारों में शामिल हो चूका था| मगर जिस तरह का हजूम आज राजेंद्र मास्टर के साथ आया था, ऐसा मैंने कभी नहीं देखा था| सभी आंखें नम थी और इधर उधर चारों तरफ चीकें सुनाई दे रही थी किसी को उसके इस तरह जाने पे यकीन नहीं हो रहा था|
कोई ये कह रहा था, “क्या ऐसा भी हो सकता है, मगर दुर्घटना कब, कहाँ हो जाए कहाँ पता चलता है इसके बारे कोई कुछ नहीं कह सकता”|
“मगर बचातो जा सकता है, इसके लिए प्रबंध तो…
Added by मोहन बेगोवाल on May 11, 2018 at 3:30pm — 4 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
न वक्त का कुछ पता ठिकाना
न रात मेरी गुज़र रही है ।
अजीब मंजर है बेखुदी का ,
अजीब मेरी सहर रही है ।।
ग़ज़ल के मिसरों में गुनगुना के ,
जो दर्द लब से बयां हुआ था ।
हवा चली जो खिलाफ मेरे ,
जुबाँ वो खुद से मुकर रही है ।।
है जख़्म अबतक हरा हरा ये ,
तेरी नज़र का सलाम क्या लूँ ।
तेरी अदा हो तुझे मुबारक ,
नज़र से मेरे उतर रही है…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 11, 2018 at 1:08pm — 4 Comments
Added by Kumar Gourav on May 11, 2018 at 11:00am — 4 Comments
22 22 22 22 22 2
जुल्म नहीं मैं उन पर ढाने आया हूँ ।
कहते हैं क्यों लोग सताने आया हूँ ।।1
तिश्ना लब को हक़ मिलता है पीने का ।
मै बस अपनी प्यास बुझाने आया हूँ ।।2
हंगामा क्यों बरपा है मैखाने में ।
मैं तो सारा दाम चुकाने आया. हूँ ।।3
उनसे कह दो वक्त वस्ल का आया है ।
आज हरम में रात बिताने आया हूँ ।।4
है मुझ पर इल्जाम जमाने का यारों ।
मैं तो उसकी नींद चुराने आया हूँ ।।5
फितरत तेरी थी तूने…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 11, 2018 at 1:42am — 7 Comments
कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?
मुझ को भेजा है जहाँ में कि सचाई देखूँ.
.
ये अजब ख़ब्त है मज़हब की दुकानों में यहाँ
चाहती हैं कि मैं ग़ैरों में बुराई देखूँ.
.
उन की कोशिश है कि मानूँ मैं सभी को दुश्मन
ये मेरी सोच कि दुश्मन को भी भाई देखूँ.
.
इन किताबों पे भरोसा ही नहीं अब मुझ को,
मुस्कुराहट में फ़क़त उस की लिखाई देखूँ.
.
दर्द ख़ुद के कभी गिनता ही नहीं पीर मेरा
मुझ पे लाज़िम है फ़क़त पीर-पराई देखूँ.
.
अब कि बरसात में…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2018 at 8:43pm — 12 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
तुम अपने दस्त-ए-हुनर से समां बदल डालो
अगर पसंद नहीं है जहाँ बदल डालो
गुबार दिल में दबाने से फ़ायदा क्या है
सुकून गर न मिले आशियाँ बदल डालो
उदास गुल हैं जहाँ तितलियों नहीं जाती
तुम अपने प्यार से वो गुलसितां बदल डालो
जहाँ तलक न पहुँचती ज़िया न बादे सबा
तो फ़िर ये काम करो वो मकां बदल डालो
भरोसा है तुम्हें तीर-ए-नज़र पे तो जानाँ
अगर कमाँ है मुख़ालिफ़ कमाँ बदल डालो
अभी अभी तो हुआ है…
Added by rajesh kumari on May 10, 2018 at 6:28pm — 20 Comments
तुम जो आए
पत्ते हरे हो गए
पतझड़ में ।
सूखे गुलाब
किताब में अब भी
खुशबू भरे ।
माँ तो सहती
एक सा दर्द, पर
बेटी पराई ?
बढ़ती उम्र
घटती हुई सांसें
जिये जा रहे ।
.... मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on May 10, 2018 at 2:04pm — 10 Comments
1222 1222 1222 1222
कफ़स में ख्वाब जब भी आसमाँ का देखता होगा ।
परिंदा रात भर बेशक बहुत रोता रहा होगा ।।1
कई आहों को लेकर तब हजारों दिल जले होंगे ।
तुम्हारा ये दुपट्टा जब हवाओं से उड़ा होगा ।।2
यकीं गर हो न तुमको तो मेरे घर देखना आके ।
तुम्हरी इल्तिजा में घर का दरवाजा खुला होगा ।।3
रकीबों से मिलन की बात मैंने पूछ ली उससे।
कहा उसने तुम्हारी आँख का धोका रहा होगा ।।4
बड़े खामोश लहजे में किया इनकार था जिसने…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on May 10, 2018 at 6:12am — 4 Comments
"अय.. हय .. मेरी ताजमहल... मेरी नाज़महल... !" अपने प्यार की पहली निशानी को नयी पोषाक देकर चूमते हुए डॉक्टर साहिब ने कहा- "अब तो ख़ुश हो जा, तेरी मनपसंद टीवी विज्ञापनों वाली सारी चीज़ें दिला दीं तुझे! मॉडर्न हो गई अब तो मेरी 'महजबीं'!"
"लेकिन पप्पा, चेहरे के इन पिम्पल्ज़ और दागों का क्या होगा? कितने क़िस्म की दवाइयां और क्रीम ट्राइ कर डालीं, चेहरे पर पहले वाली चमक आती ही नहीं!" आइना सोफ़े पर पटकते हुए 'जवानी की दहलीज़ पर खड़ी' बिटिया ने कहा!…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 9, 2018 at 8:30pm — 5 Comments
कभी इसके दर पे कभी उसके दर पे।
सियासत की पगड़ी पहनते ही सर पे।।
वही कुछ किताबें वही बिखरे पन्नें।
मिलेगा यही सब अदीबों के घर पे।।
लगे गुनगुनाने बहुत सारे भौरें।
नया फूल कोई खिला है शज़र पे।।
मुझे प्यार से यूँ ही नफरत नहीं है।।
बहुत ज़ख़्म खाएं है जिस्मों जिगर पे।
बहुत कुछ है अच्छा बहुत कुछ हसीं है।
लगाओ न नफरत का चश्मा नज़र पे।।
जिधर देखो लाशें ही लाशें बिछी है।
मुसीबत है आयी ये कैसी नगर…
Added by ram shiromani pathak on May 9, 2018 at 8:30pm — 4 Comments
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