कल से आगे .................
कैकेयी के प्रासाद में तीनों महारानियाँ उपस्थित थीं। दासियों को बाहर भेज दिया गया था अतः पूर्ण एकान्त था।
‘‘जीजी ! नारद मुनि ने तो पलट कर दर्शन ही नहीं दिये।’’ कैकेयी बोली।
‘‘हाँ बहन ! उत्कंठा तो मुझे भी हो रही है। आगे की क्या योजना है जाने !’’
‘‘अरे आप लोग व्यर्थ चिंतित हैं। कुमारों को बड़ा तो होने दीजिये। अभी चार बरस की वय में ही क्या रावण से युद्ध करने भेज देना चाहती हैं ?’’ यह सुमित्रा थी, सबसे छोटी महारानी।
सुमित्रा को…
Added by Sulabh Agnihotri on July 27, 2016 at 8:40am — No Comments
नव गीत
बहुत दिनों के बाद
मैंने यह डायरी खोली है।
आज नहीं है तू ओ! सजनी
मैं हूं सागर के बिन तरणी
पंछी बन कैदी हूं घर में
खड़ी हुई ज्यों रेल सफर में
बहुत दिनों के बाद
तेरी यह डायरी खोली है।
पढ़ लेता मैं डायरी पहले
कह देता जो चाहे कहले
घुट घुट के न रोने देता
कहा हुआ सब तेरा करता
बहुत दिनों के बाद
मर्म यह डायरी खोली है|
पता चला है आज ही मुझको
कितनी बेचैनी थी तुझको
तभी तो तूने कदम…
Added by Abha saxena Doonwi on July 27, 2016 at 7:30am — 3 Comments
अन्तर कितना हो गया, कौमें नहीं करीब
पहला छोर अमीर तो, अन्तिम छोर गरीब |६|
शुद्ध भाव से सीखते, कपटीपन का पाठ
बिना भ्रष्ट आचार के.नहीं राजसी ठाठ |७|
जनता हित के नाम से, नेता करते काम
पेटी भरते स्वयं की, ले भारत का नाम |८|
काला धन सोने नहीं, देता सुख की नींद
कर भरकर ईमान से, हँसो मनाओ ईद |९|
रख कर 'काली' सम्पदा, किया भ्रष्ट ईमान
सब जनता मानते उन्हें,,कलियुग का भगवान्…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 27, 2016 at 6:00am — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 26, 2016 at 11:29pm — 11 Comments
अधूरे सपने धोती रहीं .....
मैं तो जागी सारी रात
तूने मानी न मेरी बात
कैसी दी है ये सौगात
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं
झूमा सावन में ये मन
हिया में प्यासी रही अग्न
जलता विरह में मधुवन
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं.....
नैना कर बैठे इकरार
कैसे अधर करें इंकार
बैरी कर बैठा तकरार
कि अखियाँ रुक रुक रोती रहीं
अधूरे सपने धोती रहीं
मन के उड़ते रहे विहग…
Added by Sushil Sarna on July 26, 2016 at 9:30pm — 5 Comments
कल से आगे ..............................
रावण उल्लसित भी था और व्यथित भी। उसे शिव जैसे शक्तिशाली व्यक्ति की अनुकंपा प्राप्त हो गयी थी पर वह अपनी मूेर्खता को कैसे भूल सकता था। शिव अगर चाहते तो उसे भुनगे की तरह मसल सकते थे पर उन्होंने उसे छोड़ दिया था। छोड़ ही नहीं दिया था अपना वात्सल्य भी प्रदान किया था। उसकी सारी अवज्ञा को क्षमा कर दिया था। कितना अद्भुत शौर्य है उनमें, शायद त्रिलोक में दूसरा कोई नहीं होगा उनकी समता करने वाला फिर भी कितना शांत व्यक्तित्व है। अपनी शक्ति का कोई दंभ…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on July 26, 2016 at 8:43am — No Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 25, 2016 at 11:00pm — 2 Comments
राष्ट्र का विकास रास्ते में पड़ा नहीं है,
विकास की राह में हर कोई बढ़ा नहीं हैं.
पर बयार बह रही है विकास की.
आम नागरिक ख़ुशी से उछल रहा है,
टैक्स की मार भी चुपचाप सह रहा है,
विकास की धार में बह रहा है.
नीति धर्म स्पष्ट है, समझ जाओगे.
सेवा करो, मेवा पाओगे,
सेवा करवाओगे तो
सेवा कर चुकाओगे.
नौकर मालिक से अड़े नहीं,
आज्ञाकारी माथे पे चढ़े नहीं,
ईमानदार सिर्फ शिकायत करता है.
और चुपचाप अपना काम करता…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on July 25, 2016 at 7:00pm — 3 Comments
नव गीत
सूर्य ने
छाया को ठगा |
काँपता थर.थर अँधेरा
कोहरे का है बसेरा
जागता अल्हड़ सवेरा
किरनों ने
दिया है दग़ा |
रोशनी का दीपकों से
दीपकों का बातियों से
बातियों का ज्योतियोँ से
नेह नाता
क्यों नहीं पगा |
छाँव झीनी काँपती सी
बाँह धूपिज थामती सी
ठाँव कोई ताकती सी
अब कौन है
किसका सगा
......आभा
प्रस्तुत नव गीत अप्रकाशित एवं मौलिक है .....आभा
Added by Abha saxena Doonwi on July 25, 2016 at 6:00pm — 9 Comments
दोहे !
डायन महँगाई करे, पिया को परेशान
काट छाँट हर चीज़ में, कम हुआ खान -पान
खमा बहादुर ही करे, कायर का क्या काम
क्रोध घृणा की भावना, खुद को करे तमाम |
रस्सी खोलो मोह की, फिर देखो संसार
भौतिक धन दौलत सभी, दुनियाँ निरा असार |
चिंता छोड़ जहान की, चिन्तन कर भगवान
चिन्ता मन का रोग है, चिन्ता चिता समान
ज्योत जलाकर ज्ञान की, रोशन कर तू राह
राह नहीं चलना सरल, आँधार है अथाह…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 25, 2016 at 5:00pm — 6 Comments
उनकी शाम दे दो ....
आज
सहर में अजीब उजास है
हर शजर पर
समर के मेले हैं
सबा में अजीब सी
मदहोशी है
साँझ के कानों में
तारीक की सरगोशी है
शायद किसी को
मेरी तन्हाई पे
तरस आया है
किसके हैं लम्स
कौन मेरे करीब आया है
मुद्दतों की नमी ने
आज सब्र पाया है
लम्हे रुके से लगते हैं
अब्र झुके झुके लगते हैं
देखो ! तरीक के कन्धों पे
शाम झुकी है
सहर भी कुछ रुकी रुकी है
पसरती सम्तों में
पसरती…
Added by Sushil Sarna on July 25, 2016 at 4:10pm — 4 Comments
कल से आगे .........
गुरुदेव वशिष्ठ और महामात्य जाबालि की आशंका अकारण नहीं थी। दोनों ही चिंतन प्रधान व्यक्तित्व के स्वामी थे और दोनों का ही सामाजिक चरित्र पर विशद चिंदन था।
अगली बार जब वेद घर पहुँचा तो उसने मित्रों के साथ समय व्यतीत नहीं किया था। इस बार उसके पास कुछ विशेष था मंगला को बताने के लिये। अभी दोपहर नहीं हुई थी। वह घर पहुँचते ही सीधा अंदर गया। मंगला घर के आँगन में स्थित कुयें से पानी खींच रही थी। वेद ने सीधे उसकी चोटी में झटका मारते हुये सूचना दी…
Added by Sulabh Agnihotri on July 25, 2016 at 3:49pm — No Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 25, 2016 at 2:00pm — 8 Comments
“ऑफिस के लिए देर नहीं हो रही ?यहीं बैठे है आप अभी तक i
“वो बाहर बाबूजी बैठे हैं ना ,फिर पूछेंगे कि अशोक का फ़ौज से कागज़ आया कि नहीं I”
“आप साफ़ कह क्यों नहीं देते कि नहीं भेजना हमें अपने बेटे को फ़ौज में I कागज़ आ गया और हमने फाड़ कर फेंक भी दिया I”
“साफ़ कहने की हिम्मत ही तो नहीं कर पा रहा हूँ सविता i बहुत प्यार करते हैं अशोक को , फ़ौज में ऑफिसर देखना चाहते हैं उसे”I
“इन्हें क्या मिला फ़ौज से ? टूटी टांग ,बैसाखियाँ और थोड़ी सी पेंशन.. बस i”
“जानता हूँ ,पर बहस…
ContinueAdded by Pradeep kumar pandey on July 25, 2016 at 10:35am — 3 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2016 at 10:00am — 10 Comments
आदरणीय समर कबीर साहब की ज़मीन पर एक ग़ज़ल
22 22 22 22 22 2
उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है
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जिसने तुझको यार सिकंदर लिक्खा है
तय है उसने ख़ुद को कमतर लिक्खा है
समाचार में वो सुन कर आया होगा
एक दिये को जिसने दिनकर लिक्खा है
वो दर्पण जो शक़्ल छिपाना सीख गये
सोच समझ कर उनको पत्थर लिक्खा है
भाव मरे थे , जिस्म नहीं, तो भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 25, 2016 at 9:00am — 18 Comments
नफरत का रिश्ता--
पूरा गाँव पार कर गए पंडित लेकिन दुक्खू नहीं दिखा| जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते वो गाँव से बाहर निकल गए, बहुत जरुरी काम से जा रहे थे और ऐसे में दुक्खू न दिखे, यही मना रहे थे| पंडित को लगा कि लगता है गाँव के बाहर चला गया है आज, राहत की सांस ली उन्होंने| पंडित पूरे नियम कानून वाले थे, बिना नहाए धोए अन्न ग्रहण नहीं करते थे और सारी गणना करके ही घर से निकलते थे| कब किस दिशा में जाना है, कब नहीं, सब देख समझ ही किसी यात्रा की तैयारी करते थे| ख़ुदा न खास्ता अगर किसी ने छींक दिया या…
Added by विनय कुमार on July 25, 2016 at 12:49am — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 25, 2016 at 12:30am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 24, 2016 at 3:11pm — 6 Comments
१२२-१२२-१२२-१२२
यही बात दिल देख मेरा जलाये
तुझे याद भी क्या जरा हम न आए
मुहब्बत किसी से करो तो पता हो
इशारे से महबूब कैसे बुलाये
गुनाहों ने तुमको कहीं का न छोड़ा
शराफत खड़ी मुंह में ये बुदबुदाये
खुदा प्यार बांटे सभी को हमेशा
यही सोच मुझको सदा गुदगुदाये
बफा साथ लेकर परीक्षा है आती
दुआ है खुदा से मुझे आजमाये
नदी गुनगुनाती हुई बह रही है
मिलन साथ सागर तभी खिलखिलाए
.
मुनीश…
ContinueAdded by munish tanha on July 24, 2016 at 11:30am — 2 Comments
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