देश में कैसा बदलाव अब हो गया
नंगपन है रईसी ग़ज़ब हो गया
जबसे इंग्लिश मदरसे खुले, बाप और
माँ को आँखें दिखाना अदब हो गया
हाथ जोड़े थे जिसने कभी वोट को
आज कुर्सी पे बैठा तो रब हो गया
अब गधों की फ़तह, मात घोड़ों की हो
दौर दस्तूर कैसा अजब हो गया
हर्फ के कुछ उजाले लुटा प्यार से
"दीप" खुर्शीद सा जाने कब हो गया
संदीप पटेल "दीप"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 4:01pm — 8 Comments
मिली हैं करवटें औ याद सहर से पहले
पिए हैं इश्क़ के प्याले जो जहर से पहले
जो दिल के खंडहर में अब बहें खारे झरने
यहाँ पे इश्क की बस्ती थी कहर से पहले
ग़ज़ब हैं लोग खुश हैं देख यहाँ का पानी
नदी बहती थी जहाँ एक नहर से पहले
कहाँ उलझा हुआ है गाफ़ अलिफ में अब तक
रदीफ़ो काफिया संभाल बहर से पहले
नहीं आसां है उजालों का सफ़र भी इतना
जले है दीप सारी रात सहर से पहले
संदीप पटेल "दीप"…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 2:30pm — 6 Comments
मेरे जीवित होने का अर्थ -
-ये नहीं कि मैं जीवन का समर्थन करता हूँ !
-ये भी नहीं कि यात्रा कहा जाय मृत्यु तक के पलायन को !
ध्रुवीकरण को मानक आचार नही माना जा सकता !
मानवीय कृत्य नहीं है परे हो जाना !
मैं तटस्थ होने को परिभाषित करूँगा किसी दिन !
संभव है-
कि मानवों में बचे रह सके कुछ मानवीय गुण !
मेरा अभीष्ट देवत्व नहीं है !
.
.
.
……………………................………… अरुन श्री…
ContinueAdded by Arun Sri on July 16, 2013 at 1:38pm — 17 Comments
Added by Ravi Prakash on July 16, 2013 at 6:00am — 14 Comments
सूरज की लालिमा और
उसे इस कदर थका हुआ देख ...
पंक्षियों को लौटते देख
दरख्तों के साये लंबे होते देख
ये आभास हुआ कि
सूरज डूबने वाला है
बच्चों का कलरव
गाड़ियों का सड़क पर
अचानक भागते हुये देख
यह एहसास हुआ
कि....
ये दिन डूबने वाला है
फिर आंखे मूंदकर
मैंने डूबते सूरज से कुछ मांगा
इस बात से बेपरवाह
कि डूबती हुयी चीज
किसी को कुछ नहीं दे सकती
जो खुद अँधेरों मे डूब रहा…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on July 15, 2013 at 10:30pm — 6 Comments
कभी यूं ही बैठकर सोचते हुए
कल्पना की असीम गहराइयों में
डूबते उतराते
भाव ध्वनियां बनकर
खुद रूप लेने लगते हैं
शब्द का।
शब्द बोलते हैं
एक भाषा
और फिर
गडमड हो जाते हैं
एक दूसरे में।
रह जाती है
एक ध्वनि
एक स्वर
वह जो
परम भाव है
परम ध्वनि
परम अक्षर!
जहां से उपजे
वहीं समा गए
परम शून्य में।
निर्विकार शान्ति!
भाव…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on July 15, 2013 at 10:00pm — 31 Comments
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 15, 2013 at 9:00pm — 26 Comments
वीणाधारी विद्यावाली , मातु शारदे तुम्हे नमन i
शव्द अर्थ के पुष्पों का ,व्याकरण बना तुमको अर्पण i i
संज्ञाए सेवाये करती ,सर्वनाम तेरे अनुचर i
क्रिया विशेषण की तारों से ,निकले वीणा के स्वर i i
नवरस के घुगरू प्यारे अलंकार की है झांझर i
काव्य गद्य श्रगारित तुमसे ,गीतवना महिमा गाकर i i
अनुपम छटा सवाँरे ,भाषाए है चरणो पर i
आलोडित मन मंदिर मेरा नेह सुधा तेरी पाकर i i
मुझको तेरा वरदान मिले ,चरणों में तेरे स्थान मिले i
शीख रहा माँ कविता करना ,अंतर मन…
Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 15, 2013 at 8:22pm — 5 Comments
अलादीन का चिराग हूँ मैं
एक हसीन ख्वाब हूँ मैं
मचलती सुबह हूँ मैं
खिलखिलाती शाम हूँ मैं
हँसी का अंदाज हूँ मैं
प्रीत हूँ प्यार हूँ मैं
पहचान मेरी मुझसे है
दो कुलों की शान हूँ मैं
दायरों मे बंधी हूँ मैं
शर्म से सजी हूँ मैं
छाया हूँ बाबुल के आंगन की
पिया की परछाई हूँ मैं
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on July 15, 2013 at 8:00pm — 11 Comments
प्रियतम कैसा यह विरह, तन्हाँ मैं निश-प्रात ,
मधुरिम-मधुरिम वेदना, पिया प्रेम सौगात //१//
अथक चला अब सिलसिला, मन ही मन संवाद ,
कसमें वादे नित गुनूँ, उर झूमे आह्लाद //२//
जुल्फों के छल्ले बना, खेले मन बेचैन,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 8:00pm — 36 Comments
121 22 121 22
.
जहाँ जरूरी हुआ अड़े हैं,
इसीलिए हम यहाँ खड़े हैं
जिन्हें जरूरत जहान भर की
वहीँ मशाइल बड़े-बड़े हैं
समय उन्हीं के लिए बना है
जिन्हें कि हर पल लगे बड़े हैं
मिली जरा सी उन्हें जो शुहरत,
लगे जताने बहुत बड़े है
जिन्हें नाकारा है तेरी दुनिया
हम उनके हक़ में सदा लड़े हैं
किसी की कमियों से क्या है लेना
अगर है खूबी, वहीँ अड़े…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on July 15, 2013 at 6:30pm — 7 Comments
आज फिर किसी ने पारस को चाकू मार दिया था, उसकी किस्मत अच्छी थी कि घाव बेहद मामूली था. डाक्टर बाबू देखते ही पारस को पहचान गये, क्योंकि कोई आठ दस महीने पहले की ही तो बात है जब पारस के घर मे डकैती हुई थी और बदमाशों ने पारस के शरीर पर चाकू से अनगिनत वार किये थे, तब इलाज के लिए उसे इसी डाक्टर के पास लाया गया था, गंभीर रूप से ज़ख़्मी होने के बावजूद भी इस बहादुर नौजवान के मुँह से उफ़ तक नहीं निकली थी, लेकिन इस बार अत्यधिक…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 15, 2013 at 5:30pm — 63 Comments
साँसें जब करने लगीं, साँसों से संवाद
जुबाँ समझ पाई तभी, गर्म हवा का स्वाद
हँसी तुम्हारी, क्रीम सी, मलता हूँ दिन रात
अब क्या कर लेंगे भला, धूप, ठंढ, बरसात
आशिक सारे नीर से, कुछ पल देते साथ
पति साबुन जैसा, गले, किंतु न छोड़े हाथ
सिहरें, तपें, पसीजकर, मिल जाएँ जब गात
त्वचा त्वचा से तब कहे, अपने दिल की बात
छिटकी गोरे गाल से, जब गर्मी की धूप
सारा अम्बर जल उठा, सूरज ढूँढे कूप
प्रिंटर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2013 at 2:34pm — 26 Comments
ग़ज़ल लिखने का एक प्रयास और किया है मैने, प्रकृति की सुंदरता का हमेशा से ही कायल रहा हूँ इसलिए मेरी रचना प्रकृति के आस पास ही रहती है.
वज्न -1222 1222 1222
हजज मुसद्दस सालिम
सुहाने ख्वाब से मुझको उठा गुज़री
वो लहराती हुई बादे सबा गुज़री
दिखी थी पैरहन वो धूप की लेकर
कभी शबनम की वो ओढ़े कबा गुज़री
फ़िज़ा सरशार भीगी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2013 at 1:00pm — 7 Comments
अबला नारी को कहें, उनको मूर्ख जान |
नारी से है जग बढ़ा ,नारी नर की खान ||
नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है
पाकर अनुपम स्नेह ,नारी बनेगी सबला |
नर जो ना दे घाव ,तो क्यों रहे वह अबला||
..........................
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sarita Bhatia on July 15, 2013 at 10:30am — 8 Comments
वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना॥
मगर न बदला मुहब्बत का फलसफ़ा अपना॥
बड़े खुलूस से तुझको है मशवरा अपना।
हर एक शख़्स को देना नहीं पता अपना॥
दिलों के बीच मुहब्बत के गुल खिलाता गया,
जहाँ- जहाँ से भी गुजरा है काफ़िला अपना॥
हम एक दूजे से चुपचाप हो गए है अलग,
ज़रा सी बात पे टूटा है सिलसिला अपना॥
कुछ इस अदा से दिखा के वो चाँद सा चेहरा,
बस एक पल में दिवाना बना गया अपना॥
ये चंद साँसे भी…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 15, 2013 at 1:00am — 8 Comments
जरूरत है प्रयास की
कोशिश की
कंक्रीट का जंगल
और ठसाठस सड़के हैं
नीला अंबर धूल धूसरित है
उहापहो की स्थिति है
इतने विशाल शहर में
हम और तुम निहायत अकेले हैं
जीवन का उद्देश्य
केवल जीवन यापन है
नित्य क्रम की नियति को
समझ लिया खुशी का समागम
खोखली हंसी
छिछला प्यार
दिखावे के लिए मिलना जुलना
केवल सतही संतुष्टि है
झाँक कर देखा अंदर
तो अजीब तरह का खोखलापन है
गाहे…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on July 14, 2013 at 10:30pm — 6 Comments
वो मानते हैं कि हो सकती उनसे कोई खता नहीं
खुद तक तो खुदा के सिवा कोई और पहुंचता नहीं|
वो जुस्तजू करते हैं हमारे क़दमों के निशाँ की भी
उनके हाथों में छुपे खंजर को तो कोई खोजता नहीं|
वो जिन्होंने तय की हैं बुलंदियां लाशों की सीढ़ी पे
कदमों में लगे खून से कब फिसल जाएँ पता नहीं|
वो हो जाते हैं नाराज़ हमारी ज़रा सी लडखडाहट से
जैसे उनके जहां में मदमस्त तो कोई गिरता नहीं|
वो हैं जैसे भी दूर उनसे सोच में भी नहीं…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 14, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
नकारात्मक ग्रोथ से, होवे बेडा गर्क ।
सकल घरेलू मस्तियाँ, इन्हें पड़े नहिं फर्क-
आम जिंदगी नर्क बनाए ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
रोटी थाली की छिने, चाहे रोजी जाय ।
छद्म धर्म निरपेक्षता, मौला-ना मन भाय -
फिर भी फिर सरकार बनाये ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
पाक बांग्लादेश से, दुश्मन की घुसपैठ ।
सीमा में घुस चाइना, रहा रोज ही ऐंठ -
अन्दर वह सीमा सरकाए ।
पर परिवर्तन नहीं सुहाए ॥
चला…
ContinueAdded by रविकर on July 14, 2013 at 8:00pm — 4 Comments
आनंद जीवन है , शब्द मात्र नहीं
संसार के बियाबान सुनसान अधेरी राहों में,
रोशनी की तरह इसकी तलाश है
हम तुम यह जग जबसे है आनंद आस -पास है
ये उजड़ी गलियों में भी था ,थकी हुई सडको में भी है , तुम्हारे पगडण्डी में भी है i
बस इसे पाने का विश्वाश खो गया है ,हमारा अपनापन इससे कितनी दूर हो गया है i
कही हम इसे बदनाम बस्तियों में ढूढ़ते है
कही हम अपने से बड़ी हस्तियों में ढूढ़ते है
अल्पकालीन किन्तु सर्वव्याप्त है
जितना मिला क्या…
Added by दिलीप कुमार तिवारी on July 14, 2013 at 7:30pm — 3 Comments
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