कल से आगे .....
‘‘बाबा मैं भी गुरुकुल जाऊँगी।’’ आठ साल की मंगला पिता की पीठ पर लदी, उसके गले में हाथ पिरोये लड़िया कर बोली। मंगला का पिता मणिभद्र अवध का एक श्रेष्ठी (सेठ) है। उसकी अनाज की ठीक-ठाक सी आढ़त है। बहुत बढ़िया तो नहीं फिर भी अच्छा खासा चल रहा है उनका धंधा। मंगला उसकी दुलारी पुत्री है। दुलारी हो भी क्यों न, आखिर पाँच पुत्रों के बाद तमाम देवी-देवताओं की मनौती के बाद मंगला प्राप्त हुई है।
सेठ बाजार में अपनी गद्दी पर बैठे हिसाब-किताब में मगन थे। मंगला की बात…
Added by Sulabh Agnihotri on July 14, 2016 at 9:00am — 1 Comment
Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 13, 2016 at 8:58pm — 14 Comments
ग़ज़ल (ज़िंदगी के लिए )
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२१२ ---२१२ --२१२ --२१२
मेरे महबूब तेरी ख़ुशी के लिए ।
ले लिए हम ने गम ज़िंदगी के लिए ।
गौर से अपने कूचे पे डालें नज़र
मुंतज़िर है कोई आप ही के लिए ।
मुस्कराता रहे ज़ुल्म सह के सदा
कब है मुमकिन हर इक आदमी के लिए ।
इक क़लम और कागज़ ही काफी नहीं
लाज़मी है सनम शायरी के लिए ।
ऐसे आशिक़ हुए हैं रहे इश्क़ में
जान दे दी जिन्होंने किसी…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on July 13, 2016 at 8:47pm — 18 Comments
कल से आगे ...
देवर्षि नारद तो पर्यटन के पर्याय ही माने जाते हैं किंतु उनका यह पर्यटन निष्प्रयोजन कभी नहीं होता। प्रत्येक यात्रा के पीछे कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है।
इस बार वे अयोध्या आये थे। उनके आते ही मंथरा को उनके आगमन की सूचना मिल गयी। वे महारानी कैकेयी के कक्ष में ही गये थे, जहाँ महाराज विश्राम कर रहे थे। देवर्षि का स्वभाव मंथरा जानती थी इसलिये उसके जिज्ञासु हृदय में उथल-पुथल मचने लगी। विवशता थी कि महाराज की उपस्थिति में वह बिना बुलाये कक्ष में प्रवेश…
Added by Sulabh Agnihotri on July 13, 2016 at 5:25pm — 1 Comment
Added by Rahila on July 13, 2016 at 4:19pm — 16 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2016 at 4:00pm — 17 Comments
1212 1122 1212 112/22
बह्र –मुजतस मुसम्मन मख्बून मक्सूर
तनाव से ही सदा टूटता समाज कोई
लगाव से ही सदा फूलता रिवाज कोई
पढ़ेगी कल नई पीढ़ी उन्हीं के सफ्हों को
क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई
न ख़्वाब हो सकें पूरे कहीं बिना दौलत
बना सकी न मुहब्बत गरीब ताज कोई
सियासतों में बगावत नई नहीं यारों
कभी चला कहाँ आसान राजकाज कोई
सभी मिलेंगे यहाँ छोड़कर शरीफों को
कोई फरेबी यहाँ और चालबाज…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 13, 2016 at 1:00pm — 40 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 13, 2016 at 8:30am — 6 Comments
प्रतिपल अच्छा देखिए
आंंख चुरा कर घूमते, मिला न पाए आंख.
आखों के तारे मगर, बिखरे जैसे पांख.1
आसमान से बात कर, मत अम्बर पर थूंक.
कण्ठ-हार बन कर चमक, अवसर पर मत चूक.2
प्रतिपल अच्छा देखिए, अच्छे में उत्साह.
बालमीकि - रैदास भी, हुए ब्रह्म के शाह.3
अच्छे दिन की सोच में, बुरी नहीं यदि सोच.
दीन-हीन के दु:ख भी दूर करें बिन खोंच.4
संसारिक उद्देश्य ने, रिश्ते गढ़े…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 13, 2016 at 8:30am — 8 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on July 13, 2016 at 1:09am — 12 Comments
नारी मन .....
एक लंबे
अंतराल के पश्चात
तुम्हारा इस घर मेंं
पदार्पण हुअा है
जरा ठहरो !
मुझे नयन भर के तुम्हें
देख लेने दो
देखूं ! क्या अाज भी
तुम्हारे भुजबंध
मेरी कमी महसूस करते हैं ?
क्या अाज भी
तुम्हारी तृषा
मे्रे सानिध्य के लिए
अातुर है ?
जरा रुको
मुझे शयन कक्ष की दीवारों से
उन एकांत पलों के
जाले उतार लेने दो
जहां अपनी नींदों को
दूर सुलाकर …
Added by Sushil Sarna on July 12, 2016 at 4:30pm — 6 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on July 12, 2016 at 2:53pm — 6 Comments
पूर्व से आगे ....
देवर्षि की योजना अंततः इंद्र की समझ में आ गयी।
देवों ने उसके अनुरूप कार्य करना भी आरंभ कर दिया।
योजना यह थी कि देव, लोकपाल, यक्ष, नाग आदि रावण का नाश नहीं कर सकते क्योंकि पितामह ब्रह्मा ने इनके विरुद्ध रावण को अभय दिया हुआ है। उसके नाश का कार्य मानवों द्वारा ही सम्पादित हो सकता है और आर्यावर्त के मानवों में उससे युद्ध के प्रति उत्साह नहीं है। अतः योजना यह थी कि बिना इस बात की प्रतीक्षा किये कि रावण कब स्वर्ग पर आक्रमण किये अभी से दक्षिणावर्त के वनवासियों को…
Added by Sulabh Agnihotri on July 12, 2016 at 10:33am — 1 Comment
पूर्व से आगे ...
ब्रह्मा द्वारा दौहित्रों को आशीर्वाद क्या प्राप्त हुआ, सुमाली मानो मन मांगी मुराद मिल गयी थी। उसकी आँखों के सामने विष्णु के हाथों हुई विकट पराजय से लेकर रावणादि के समक्ष पितामह के आगमन तक की सारी घटनायें जैसे सजीव होकर तैर रही थीं। अब उसका एक ही लक्ष्य था अपना खोया गौरव पुनः प्राप्त करना और इस उद्देश्य की प्राप्ति में पहला सोपान था कुबेर से लंका दुबारा प्राप्त करना।
वह जानता था कि अभी वह शक्ति द्वारा कुबेर को परास्त नहीं कर सकता था किंतु इससे वह निराश नहीं था।…
Added by Sulabh Agnihotri on July 12, 2016 at 10:00am — 3 Comments
22 22 22 22 22 22 ( बहरे मीर )
हम तो रह गये देख के मंज़र, हक्के बक्के
सारे मूछों वाले निकले ब्च्चे बच्चे
अजब न समझें, पूँछ दबी तो कुत्ता रोया
पूछ दबी तो रो देते हैं , अच्छे अच्छे
परिणामों की आशा चर्चा से मत करना
केवल बातों के निकलेंगे लच्छे लच्छे
हर दिमाग में छन्नी ऐसी लगी मिलेगी
सारे बाहर रह जाते हैं , सच्चे सच्चे
इक चावल का दाना देखो, कच्चा है गर
सारे चावल तुम्हें मिलेंगे ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 9:20am — 20 Comments
Added by Janki wahie on July 12, 2016 at 8:05am — 6 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 11, 2016 at 9:53pm — 10 Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 11, 2016 at 10:30am — 10 Comments
मुहावरों में दोहा छंद की छटा...
गाल बजा कर दल गये, जो छाती पर मूंग.
वही अक्ल के अरि यहां, बने खड़े हैं गूंग. १
शीष ओखली में दिया, जब-जब निकले पंख.
उंगली पर न नचा सके, रहे फूंकते शंख. २
डाल आग में घी करे, हवन दमन की चाह.
अंत घड़ों पानी पियें, खुलती कलई आह. ३
फूंक-फूंक कर रख कदम, कांटों की यह राह.
खेल जान पर तोड़ना, चांद-सितारे- वाह. ४
अपने पैरों पर करें, लिये कुल्हाड़ी वार.
दोष…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 11, 2016 at 9:30am — 10 Comments
बरसात के मौसम में आपको ऐसा लगेगा कि बादल ब्रस रहे हैं ल्ेकिन व्े आपको और साथियों के लंुभाते और बुलाते हैं आप आवें और उनके प् ाष में उलझ कर रह जायेे। कभी-कभी ऐसा होता है वे आते हैं और झमक कर बरस जाते हैं। तब रिमझिम फुहारें मन को इतना भिगोती हैं कि मन पर लगता है लदा भार हट जाता है। मौलिक और अप्रकाषित
Added by indravidyavachaspatitiwari on July 11, 2016 at 9:08am — No Comments
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