आज मन उदास है ,
तुम कुछ बोल दो !
अर्न्तमन की आँखों से मुस्कुरा,
प्रेम शब्द उकेर दो !
खिलते गुलाब की पंखुड़ी से,
गुलाबी अधर खोल दो !
आज मन उदास है , तुम कुछ बोल दो !
.
तुम्हारे स्वप्निल ख्यालों में ,
मन कहीं खो जाये !
तन स्पर्श ना सही ,
मन स्पर्श हो पायें !
स्वर कोकिला रूप में ,
श्वासों की सुगन्ध धोल दो !
आज मन उदास है तुम कुछ बोल दो !
प्रेम का मधुपान करूं ,
अपना सा अहसास करूं !
मोहपाश में बाँध कर ,…
Added by D P Mathur on July 12, 2013 at 7:30am — 10 Comments
प्रकृति की
नैसर्गिक चित्रकारी पर
मानव ने खींच दी है
विनाशकारी लकीरे
सूखने लगे है
जलप्रताप, नदियाँ
फिर
एक सा जलजला आया
समुद्र की गहराईयों में
और प्रलय का नाग
निगलने लगा
मानवनिर्मित कृतियों को,
धीरे धीरे
चित्त्कार उठी धरती
फटने लगे बादल
बदल गए मौसम
बिगड़ गया संतुलन
हम
किसे दोष दे ?
प्रकृति को ?
या मानव को ?
जिसने अपनी
महत्वकांशाओ…
ContinueAdded by shashi purwar on July 12, 2013 at 12:30am — 18 Comments
संबंध
बेमतलब , बेमानी ...
भाई चारे की तरह
ढोते हैं रिश्तों की लाश को
आफ्नो को
अपने ही देते कंधे
चलते जाते हैं
नाकों मे फैलती
अपनों की सड़ांध
आसान नहीं है चलना
और फिर
जला आते है अपनों की लाश को
अपने ही , मगर
ढ़ोना तो पड़ता है
छाँव की तलाश मे
रिश्तों की आस मे
संबंध
बेमानी , बेमतलब
भाई चारे की तरह ...
"मालिक व अप्रकाशित"
Added by Amod Kumar Srivastava on July 11, 2013 at 10:00pm — 11 Comments
मंद हवा की
लहरों पर बैठ
आकाश ने
हाथों में लिया
सितारों का अक्षत,
अरूणोदय का कुमकुम,
ओस की बूंदें,
बाग से
पुष्प, घास
और तिरोहित कर दी
रात
क्षितिज में।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on July 11, 2013 at 6:30pm — 30 Comments
देश में फल-फूल रहा, सट्टे का बाजार,
कुछ लोगो के बिक रहे,देखो सब घर बार |
सट्टा गर सरकार का, नियमो में वह वैध
जनता गर सट्टा करे, उसको कहे अवैध |
राजनीति व्यवसाय है,दीमक जैसी चाट
घोटाले करते रहे, कुर्सी के है ठाट |
राजनीति में जो सफल,घोटालो में लिप्त,
इस धंधे में देख लो,नेता सब संलिप्त |
बहुत संपदा पास में, कल तक तो थे रिक्त
नित्य संपदा…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 11, 2013 at 6:30pm — 22 Comments
बंजर बादल चूम रहे हैं
फिर से प्रेत शिलाएं
लोकतंत्र की
लाश फूलती
गंध भरे
गलियारों में
यहां-वहां बस
काग मचलते
तुष्ट-पुष्ट
ज्योनारों में
नित्य बिकाउ नारे लेकर
चलती तल्ख हवाएं
गंगा का भी
संयम टूटा
वक्र बही
शत धारों में
क्षुब्ध, कुपित
पर्वत, हिमनद भी
कह गए बहुत
ईशारों में
पछताते चरणों से लौटी
कितनी विकल…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on July 11, 2013 at 4:52pm — 16 Comments
राह के वो हाशिये थे एक पल में हट गये
रास्ते चौड़े हुए तो पेड़ सारे कट गये
एक है चेहरा हमारा और खूं का रंग भी
क्या रही मज़बूरी जो हम मज़हबों में बंट गये
ग़मज़दा हूँ मैं कि मेरे पैर में जूते नहीं
क्या गुज़रती होगी उसपे पांव जिसके कट गये
न रहे दादा न दादी जो रटाये राम- राम
देखकर माहौल घर का, तोते गाली रट गये
रिज्क़ की तंगी कुछ ऐसी हो गई अब गाँव में
औरतें तो रह गईं पर मर्द काफी घट गये
ज़िन्दगी के…
Added by Sushil Thakur on July 11, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
भुन्सारे से संझा तक
घूरे की तरह
उदास
चन्दा घिरा है
काले बादलों में
भरी दोपहर में !!!
सारी रोशनी
खाए जा रहा है
पलकों का बह चुका
काला कलूटा काजल
काश तुम बोलते
ये मौन चिरैया की चुप्पी तोड़ते
गुस्सा लेते
कम से कम कारण तो पता चलता
आँखों से और इन अदाओं से
पता चलता है
प्यार और तकरार
प्यास और इंतज़ार
ईमानदार और मक्कार का
तमन्ना का नहीं
अब देखो न …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2013 at 4:00pm — 7 Comments
जो नजर है कमाल की साहिब
वो नजर क्यूँ झुकी हुई साहिब
.
आज फिर दिल मेरा बेचैन सा है
आज फिर हमने पी रखी साहिब
.
जुल्फ की छाँव तले गुजरे दो पल
दो घड़ी ज़िंदगी ये जी साहिब
.
मरने में आएगा मज़ा हमको
क़त्ल कर दे हंसी नजर साहिब
.
जाम हाथों में इक बहाना है
हम कहाँ करते मयकशी साहिब
.
मैं नहीं बज्म में कभी आया
बात उसको ये खल गयी साहिब
.
डूब जायेंगे हम समंदर में
हो समंदर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 11, 2013 at 3:30pm — 3 Comments
सुख के झरने देख पराए दुख को लिए निकलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है
मर्यादा में घोर निराशा
बाँध तोड़ती अहम पिपाशा
रस्मों और रिवाजों के पुल
लगते हैं बस एक तमाशा
तीव्र वेग से बहती है कब शिव से कहो सम्हलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है
अंतरमन का दीप बुझाती
प्रतिस्पर्धा को सुलगाती
होड़ लिए आगे बढ़ने की
लक्ष्य रोज ये नये बनाती
सुधा धैर्य की छोड़ विकल चिंता का गरल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2013 at 3:00pm — 13 Comments
दोस्तों अपने इस के साथ आप सबको
रमजान की मुबारक वाद देता हूँ ...................................
खुदा की धरती खुदा का अम्बर ,
खुदा की कुदरत पे किसका हक़ है ।
वो ही बनाये वो ही मिटाए ,
कि उसकी रहमत पे किसको शक है ।
कमाये तुमने यहाँ पे लाखों ,
मगर तमन्ना चुकी नही है ।
ये सुन लो जिस पे है नाज़ तुझको ,
वो जिंदगानी तेरी नही है ।
ज़रा तो सोचो जो तुमने पायी ,
वो तेरी शोहरत पे किसका हक़ है…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on July 11, 2013 at 11:30am — 8 Comments
हम ले दे के चार मन, दिग्गी मम्मी पूत ।
हमले रो के रोक लें, पर कैसे यमदूत ।
पर कैसे यमदूत, नस्ल कुत्ते की इनकी ।
मार काट का पाठ, पढ़े ये कातिल सनकी ।
मन्दिर मस्जिद हाट, पहुँच जाते हैं बम ले ।
पुलिस जोहती बाट, भाग जाते कर हमले ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on July 11, 2013 at 11:01am — 12 Comments
शिखर को छूने की चाहत में
जमीन को भूल गया हूँ
झूठ को जीते जीते
सच को भूल गया हूँ...
खुद्दार हैं वो जो
मर के भी जीते हैं
बेबसी हमारी हम
जी के भी मरते हैं
सच है चराग जलाने से
अंधेरा मिटेगा
मगर वो आचरण कहाँ से आए
जिससे पाप मिटेगा ....
कतरा कतरा जमा करो
समंदर बनेगा
अपना हृदय विशाल करो
जिसमे वो बहेगा ....
आंखे बंद करने से अंधेरा
होगा…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on July 11, 2013 at 7:59am — 5 Comments
क्या सुनना है
क्या कहना है
जीना औ मरना है
क्या पाया है
जो खोना है
दिन ही बस गिनना है
सपने सारे
सूखा मारे
घिस घिस कर चलना है
देह को बस गलना है
मन से हारा
पर हूँ जीता
रो रो कर हॅंसना है
किसको रोएं
पीर सुनाएं
सबका ही कहना है
बस जीवन जीना है
खेत को सींचें
अंकुर फूटें
बस इंतजार करना है
रात हुई थी
सुबह भी होगी
सोए, अब…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on July 11, 2013 at 6:30am — 20 Comments
नींद गवांई,सुख चैन गवांया
अगर-मगर तेरी-मेरी में
समय गवांया ,बातों में
धन दौलत ने लोभी बनाया
ईमान गवांया नोटों में
पूत सपूत न बन पाया
बस ध्यान लगाया माया में
दीन दुखियों की सेवा करता
पुण्य कमाता लाखों में
करता अच्छे कर्म अगर तो
तर जाता भाव सागर से
ईमान धर्म की राह…
ContinueAdded by Aarti Sharma on July 11, 2013 at 12:34am — 15 Comments
गुजरती नहीं रात
संघर्ष करता रहा नींद से,
जब भी लेता हूँ करवट
चुभने लगते है कांटे
यादों के.//1
*****************************************
बहुत आभारी हूँ आपका
जिंदा तो छोड़ा पागल बनाकर ही सही//2
*******************************************
दिल बहलाने का सामान
थोडा बहुत इनाम
बस इतने के लिए क्या?
स्वाभिमान बेच दूँ//3
*******************************************
डर की निद्रा में विलीन
रात ही रात …
Added by ram shiromani pathak on July 10, 2013 at 6:30pm — 20 Comments
फट रहा बादल कही
तो कहीं उठ रहा तूफ़ान है,
इतिहास में दर्ज होने को
बढ़ रहा इन्सान है..
था खुदा का घर वहां
बरसा था कहर जहाँ,
लग रहा खुदा भी नया
कोई गढ़ रहा जहान है..
हो रहा हिसाब अब
कुदरत दे रही जवाब अब,
तूने जो किये अब तक
कुदरत से सवाल थे..
जो सोंच खुश "मैं बच गया"
उसे 'पवन बड्डन' का पैगाम है,
करना है तो प्राश्चित कर
तेरे सर भी आसमान…
ContinueAdded by Kavi Pawan "Baddan" on July 10, 2013 at 4:49pm — 3 Comments
कब तक =
===============================
इस जीवन कॆ नख़रॆ, नाँज़ उठाऊँ कब तक ॥
नागफ़नी कॊ सीनॆ, सॆ चिपकाऊँ कब तक ॥१॥
कुछ कठिन सवालॊं कॆ, उत्तर खॊज रहा हूँ,
मन की घायल मैना, कॊ भरमाऊँ कब तक ॥२॥
राम बचा लॊ मुझकॊ, इस झूँठी दुनिया सॆ,
सबकी हाँ मॆं हाँ मैं, और मिलाऊँ कब तक ॥३॥
पागल समझ रही है, दुनिया सच ही हॊगा,
पागल बनकर मैं यॆ, रॊग छुपाऊँ कब तक ॥४॥
पागल बन कर मैनॆं, खूब सुनीं हैं गाली,
राग पुराना बॊलॊ, मैं दुहराऊँ कब तक…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 10, 2013 at 3:30pm — 6 Comments
जब से खबर आयी है माँ का चित्त स्थिर नहीं है तीन दिन तो बड़ी बैचेनी में गुजरे। बार बार दरवाजे तक जाती अकेली खड़ी सूनी सड़क को घंटों तकती रहती फोन की घंटी पर दौड़ पड़ती तो कभी कभी यूँ ही फोन को घूरती रहती कभी बिना घंटी बजे ही फोन उठा कर कान से लगा लेती देखने के लिए की कहीं फोन बंद तो नहीं है .देवघर में दीपक तो पहली खबर के साथ ही लगा दिया था बार बार जा कर उसमे तेल भरती जलती हुई बाती को उँगलियों से ठीक करती और दोनों हाथ जोड़ कर सर तक ले…
ContinueAdded by Kavita Verma on July 10, 2013 at 2:00pm — 5 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 10, 2013 at 2:00pm — 31 Comments
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