चले आओ .....
जाने कौन
बात कर गया
चुपके से
दे के दस्तक
नैनों के
वातायन पर
दौड़ पड़ा
पागल मन
मिटाने अपने
तृषित नैनों की
दरस अभिलाषा
पवन के ठहाके
मेरे पागलपन का
द्योतक बन
वातायन के पटों को
बजाने लगे
अंतस का एकांत
अभिसार की अनल को
निरंतर
प्रज्वलित करने लगा
कौन था
जिसका छौना सा खयाल
स्पर्शों की आंधी बन
मेरी बेचैनियों को…
Added by Sushil Sarna on August 21, 2019 at 12:56pm — 2 Comments
कभी खूनी, कभी कातिल
कभी गुनाहों का मार्ग कहलाती
जुर्म को होते देख चीखती
खून खराबे से मैं थर्राती
कभी खून की प्यासी तो
कभी डायन हूँ कहलाती
चाह के भी कुछ कर ना पाती
बेबसी पर नीर बहाती ||
हैवानियत की, कभी बलात्कार की,
ना चाह मैं साक्षी बनती
हत्या कभी षडयंत्रो का
अंजान देने पथ भी बनती
तैयार की गई हर साजिश को
हादसो का मैं नाम दिलाती…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 20, 2019 at 4:29pm — 2 Comments
‘दीदी, आप अपनी लहरों में नाचती हैं I कल-कल करती हैं I इतना आनंदित रहती हैं, कैसे ?’ -पोखर ने नदी से पूछा I
‘अपनी आगे बढ़ने की प्रवृत्ति के कारण’- नदी ने उछलकर कहा I
.
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 20, 2019 at 3:00pm — 4 Comments
एक गीत प्रीत का
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क्यों चिंता की लहरें मुख पर आखिर क्या है बात प्रिये ?
पलकों के कोरों पर ठहरी क्यों कर है बरसात प्रिये ?
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शुष्क अधर क्यों बाल बिखर कर अलसाये हैं शानों पर ?
काजल क्रोधित होकर पिघला जा पहुँचा है कानों पर |
मीत कपोलों पर जो रहती वह गायब है अरुणाई |
ऐसा लगता है ज्यों खो दी चंद पलों में तरुणाई…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 20, 2019 at 9:00am — 4 Comments
(13 अगस्त-2018-इटली का मोरांडी पुल हादसा)
अटठावन वर्ष की उम्र भी कोई उम्र होती है
ना तो पूर्ण रुपेण युवा और ना ही पूरे वृद्ध
तुम्हारा यूँ इस तरह अकस्मात ही चले जाना
पूरे शहर को कर गया है अचम्भित और विक्षिप्त…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 19, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
पीछे मायूसी का साया आगे खतरा अनजाना है
हर लम्हा ये सोच रहा हूँ खुद को कैसे समझाना है
तेरी यादों का सूरज भी काम नहीं आता अब मेरे
मुझको इस मुश्किल मौसम में खुद से दूर चले जाना है
हम दिल की बातें लिखते हैं दिल न दुखाने की सीमा तक
ऊंची सोच की इस महफिल से हमको जल्द ही उठ जाना है
तेरे खतों की मधुर कहानी सोच से पीछे छूट गई है
पैथोलॉजी की रिपोर्ट का हाथों में एक अफसाना है
मां की हथेली चूम के निकला फौजी बेटा अपने घर…
ContinueAdded by मनोज अहसास on August 18, 2019 at 10:30pm — 3 Comments
कागज की किस्ती और वर्षा का पानी,
वह बचपन की यादें हैं बहुत याद आती
आज रूठी गई दादी और वर्षा की रानी
न कहती है कहानी न बरसता है पानी॥
बच्चों को पता नहीं कैसे बहती है नाली
छतों से गटर में बहता, बरसा का पानी
गटर जब चोक हो ,सड़क पर बहे पानी
सड़के और गलियाँ नदियाँ बनके बहती ॥
वह कागज की किस्ती तभी याद आती
दादी की कहानी, रिमझिम बरसता पानी
बहुत याद आती वह बचपन की कहानी
माँ बाप को फुरसत कहाँ कहे जो…
ContinueAdded by Ram Ashery on August 18, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
किसी के प्यार की ख़ातिर हमारा दिल तरसे
घटा-ए-इश्क़ तो छाई न जाने कब बरसे
**
न तीर दिल पे चला यार ज़ख़्म गर देना
कि इस पे ज़ख़्म हुआ करते जब गुल-ए-तर से
**
क़दम बढ़ाना भी मुश्किल है जानिब-ए-मंज़िल
मिला फ़रेब हमें इस क़दर है रहबर से
**
करेगा चूर अगर ज़ुल्म की हदें टूटें
उमीद और है क्या आईने को पत्थर से
**
ख़ुदाया देख ज़रा भी किसी को, दर्द नहीं
किसी के दर्द बड़े हो गए समंदर से
**
लकीरें हाथों की जिसने बनाई मेहनत से
उसे…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 18, 2019 at 1:00am — 2 Comments
मेरा बचपन का दोस्त कबीर इस बार तीन साल बाद दुबई से ईद मनाने खास तौर पर अपने देश आया था। मुझे खाने पर बुलाया था। तीन साल पहले वह आया था तो नया मकान बनवाया था। मैं उस समय देश से बाहर था तो नहीं जा पाया था। इस बार तो जाना ही था। दोस्तों से सुना था कि खूब कमाई कर रहा है दुबई में।
शाम को कुछ मिष्ठान, चॉकलेट और गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लेकर खोजते पूछते पहुंचा तो घर का बाहरी आवरण देख कर बड़ी निराशा हाथ लगी।घर की बाहरी दीवार पर सीमेंट भी नहीं था।पानी की निकासी की नाली में बिजली का पोल…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 17, 2019 at 10:00am — 2 Comments
सुनो
वहम है तुमको
कि स्वर मिला स्वर में तुम्हारे.
मैं कृत -कृत हो जाऊंगी…
Added by amita tiwari on August 17, 2019 at 2:00am — No Comments
तिरंगे तुझे सुनानी है ....
सन ४७ की रात में
आज़ादी की बात में
दर्दीले आघात में
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
आज़ादी के शोलों में
रंग बसन्ती चोलों में
जय हिन्द के बोलों में
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
राजगुरु सुखदेव भगत
और मंगल पण्डे लक्ष्मी बाई
गाँधी शेखर और शिवा की
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
आज़ादी के दीवानों की
सरहद के जवानों की…
Added by Sushil Sarna on August 16, 2019 at 6:44pm — 2 Comments
छंद - मत्तगयंद सवैया
******************************
शिल्प= भगण×7+2 गुरु ,
23 वर्ण यति 12,11
सावन मास रही तिथि पूनम,
क्रूर महा शिशुपाल सँहारे।
युध्द मझार उतार दिया रिपु ,
शीश सुदर्शन को कर धारे।
घायल अंगुलिका हरि रक्षति,
द्रौपदि अंबर को निज फारे।
वस्त्र हरे बलवान दुशासन,
चीर बढा हरि कर्ज उतारे।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on August 15, 2019 at 8:07pm — No Comments
Added by Pratibha Pandey on August 15, 2019 at 5:30pm — 2 Comments
ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा
उजड़ने न देंगे चमन ये हमारा
वतन के लिए जो मेरी जान जाए
ख़ुदारा यहीं फिर जनम लें दुबारा
…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on August 15, 2019 at 11:30am — 3 Comments
बरसों से जो ख्वाब थे देखे, पूरे हमने कर डाले
मंसूबे हर एक दुश्मन के, बिना सर्फ़ के धो डाले
धाराओं के जाल में, मज़लूमों का जो हक थे मार रहे
हमने ऐसी धाराओं के हर्फ वो सारे धो डाले
सदियों से जो जमी हुई थी, साफ़ नही कर पाया कोई
हमने ऐसी जमी मैल के, बर्फ वो सारे धो डाले
तीन दुकाने चलती रहती थीं, कश्मीर की घाटी में
हमने ऐसे बीन बीन कर, ज़र्फ वो सारे धो डाले
बार बार समझाया सबको, पर वो समझ नही पाए
हमने 'दीप' फ़िर मजबूरी में कम-ज़र्फ़…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 15, 2019 at 9:00am — 3 Comments
221 2121 1221 212
लेती है इम्तिहान ये उल्फ़त कभी. कभी ।
लगती है राहे इश्क़ में तुहमत कभी कभी ।।
आती है उसके दर से हिदायत कभी कभी ।
होती खुदा की हम पे है रहमत कभी कभी ।।
चहरे को देखना है तो नजरें बनाये रख ।
होती है बेनक़ाब सियासत कभी कभी ।।
यूँ ही नहीं हुआ है वो बेशर्म दोस्तों ।
बिकती है अच्छे दाम पे गैरत कभी कभी ।।
मुझ पर सितम से पहले ऐ क़ातिल तू सोच ले ।
देती सजा ए मौत है कुदरत कभी कभी…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 14, 2019 at 6:42pm — 4 Comments
दोहे
***
वो तो बढ़चढ़ बाँटते, नफरत जिसका नाम
जन्नत में सद्भावना, शेष वतन का काम।१।
****
वैसे तो हम सब रहे, विविध रंग के फूल
किन्तु सूख अब हो गये, जैसे तीखे शूल।२।
****
पड़े जंग आतंक की, निसदिन जिन पर मार
उन्हें जिन्दगी फिर लगे, बोलो क्यों ना भार।३।
****
तन से तो अब देश में, बिलय हुआ कश्मीर
मन से भी जब हो बिलय, बदलेगी तस्वीर।४।
****
बिस्थापित थे जो हुये, समझो उनकी पीर
जा पायें निज ठाॅ॑व वो, कश्मीरी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2019 at 6:55am — No Comments
बरकत - लघुकथा -
सासुजी के देहांत के पश्चात सुधा के ससुर जी गाँव से शहर आ गये थे। उनके आने से सुधा की गृहस्थी तितर बितर हो रही थी। बात बात पर ससुर जी का हस्तक्षेप सुधा को अखरता था। उसने एक दो बार सुरेंद्र से भी इस मामले में चर्चा की लेकिन उसका रवैया बिलकुल तटस्थ था। क्योंकि उसे अपने पिता की सीरत का पूरा ज्ञान था। वे अनुशासन और संस्कार के कट्ट्रर पक्षधर थे।
आज तो उन्होंने हद ही कर दी। उधर सुधा भी आर पार की स्थिति में आ गयी। बात थी तो मामूली लेकिन दोनों की ज़िद के कारण…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 10, 2019 at 3:30pm — 10 Comments
दिन ढला तो शाम हुई, शाम ढली तो रात,
रात जो आई तो ख़ुश हुए, चाँद और तारे हज़ार||
तारे बोले ऐ चाँद,
तरसते रहते दिनभर, हम तेरे दीदार को,
पर सूरज भैया को कैसे धमकाएँ,
राज करते धरती और आसमान पर जो||…
Added by Pratibha Pandey on August 9, 2019 at 5:01pm — 8 Comments
‘छी: कितने गंदे, कुत्सित और बदबूदार हो तुम I तुम्हें देखकर घिन आती है I’ नदी ने मुंह बनाते हुए नाले से कहा I
‘बुरा न मानना दीदी आजकल तुम्हारी दशा भी मुझसे अच्छी नहीं है I’ नाले ने मुस्कराते हए जवाब दिया I
(मौलिक ?अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 9, 2019 at 10:30am — 14 Comments
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