" हेलो - क्या हाल है , आसिफ ? " मैं तो ठीक हूँ तलत ,
" लेकिन मौसम बहुत बेकार है दिन भर बादलों की आना जाना जारी है लेकिन बारिश की कोई संभावना नज़र नहीं आती । घनघोर घटाएँ छाती तो हैं लेकिन वैसी बारिश नहीं होती जैसी होनी चाहिए। हलकी फुल्की फौहार थोड़ी देर के लिए माहौल में ठंडक पैदा कर देती। सूरज की तपिश इसी ठंडक को उमस में परिवर्तित कर देती है। बस ये उमस ही बर्दाश्त से बाहर है। बड़ी बेचैनी होती है। एक अजीब सी घुटन है।
काश ! कोई इन घटाओं से कह दे आएं…
Added by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on August 20, 2017 at 6:50am — 6 Comments
देख , रुचि - " अंश बहुत अच्छा लड़का है । घर के लोग भी कुलीन हैं और फिर बैंगलोर में ही है । शादी के बाद तुझे जॉब भी स्विच नहीं करना पड़ेगा । तेरे पिताजी ने तो पंडित जी से कुंडली भी मिलवा ली है।
अब तू ,ना ... मत करना । इन्हें भी तेरी बहुत चिंता है । एक ही साल तो रह गया है रिटायर होने में ।।
नहीं माँ , ... " मैं कितनी बार बोल चुकीं हूँ । अभी मुझे शादी नहीं करनी । जब करनी होगी तो बता दूँगी ।"…
Added by MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI on August 20, 2017 at 1:11am — 5 Comments
Added by Mohammed Arif on August 19, 2017 at 11:30pm — 11 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया , आयी बरखा रानी
बोली बच्चों अंदर बैठो , मेरी बूढ़ी नानी |
छन्न पकैया छन्न पकैया , भूख लगी है नानी
गरमा गरम पकौड़े खाएं , बोली गुड़ियाँ रानी |
छन्न पकैया छन्न पकैया , सबर रखो तुम मुनिया
मंडी से लाना होगा अब , प्याज , मिर्च औ धनियाँ|
छन्न पकैया छन्न पकैया , मिलकर खाओ भैया
आओ फिर हम नाचे गायें, करके ता ता थैया |
छन्न पकैया छन्न पकैया , जब जब भरता पानी
छप छप करते हैं पानी…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 19, 2017 at 11:30pm — 14 Comments
Added by Mamta on August 19, 2017 at 1:08pm — 7 Comments
३ साल की बेटी के नर्सरी क्लास के दाखिले के लिए जाने माने दो स्कूलों में एडमीशन टेस्ट दिलवाए थे | सोचा ढेरों बच्चों में पास भी होगी कि नहीं| नाम पूछने पर कुछ बताया नहीं और कुछ सुनाया भी नहीं| एक चौकलेट दी गई | बिटिया ने खोल कर वहीँ खा ली और हाथ में रेपर दिखाकर वहीँ बैठी नन से पूछा, आपकी डस्ट बिन कहाँ है और बाहर चली गयी |आज जब रिज़ल्ट देखा तो दोनों स्कूल की लिस्ट में नाम था | किसमें दाखिला लें---- इस पर हम माता पिता सहमत ही नहीं हो पा रहे थे |मां का दिल कहता पास के स्कूल में डालें, आने जाने…
ContinueAdded by Manisha Saxena on August 19, 2017 at 11:00am — 8 Comments
Added by Balram Dhakar on August 18, 2017 at 8:30pm — 18 Comments
बहरे रमल मुसद्दस सालिम;
फ़ाएलातुन/ फ़ाएलातुन/फ़ाएलातुन;
2122/2122/2122)
.
झाँक कर वो देख ले अपनी ख़ुदी में
ऐब दिखता है जिसे हर आदमी में
पास आकर दूरियों का अक्स देखा
ग़ैर जब होने लगा तू दोस्ती में
यूँ नहीं मरते हैं हम सादासिफ़त पे
रंग सातों मुन्शइब हैं सादगी में
इक पसेमंज़र-ए-ज़ुल्मत है ज़रूरी
यूँ नहीं दिखती हैं चीज़ें रौशनी में
आ तुझे भी इस्तिआरों से सवारूँ
लफ्ज़ के…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 18, 2017 at 2:30pm — 14 Comments
मुझसे गाड़ी का इंतज़ार नहीं हो रहा था, किसी भी तरह जल्दी गंतव्य स्थान पर पहुँचना था । अभी नया-नया मंत्री पद संभाला था, सो मंत्री पद का शऊर कहाँ से आता ? ऊपर से समाज सेवा का भूत सर चढ़ का नाच रहा था | “पब्लिक की समस्याओं का निवारण करने के लिये, दिन हो या रात ? हमेशा तत्पर रहूंगी |” आज ही तो, ये शपथ ली थी | तभी दिमाग़ में कुछ कौंधा और मैं निकल पड़ी । सामने से जो बस आती दिखी, मैं बैठने को उतावली हो उठी । बिना कुछ देखे सुने ही, बस पर चढ़ गई । इंसानों से ठसाठस भरी बस थी। भीषण गरमी थी । लोग एक…
ContinueAdded by Uma Vishwakarma on August 18, 2017 at 12:30pm — 3 Comments
जो तेरे इश्क़ की खुमारी है,
हमने तो रूह में उतारी है,
दर्द पलकों से टूट बिखरा है,
इन दिनों ग़म से मेरी यारी है,
तू मेरी सांस में उतर आया,
इश्क़ है या कोई बीमारी है ,
तू निगाहों में या कि दिल में रहे,
मेरी मुझसे ही जंग जारी है,
वस्ल के नाम नींद को रख कर,
हमने शब आँख में गुजारी है !!अनुश्री!!
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by Anita Maurya on August 18, 2017 at 9:09am — 8 Comments
मापनी 2122 2122 2122 212
कैद हैं धनहीन तो, जो सेठ है, आजाद है
झुग्गियों की लाश पर बनता यहाँ प्रासाद है
थाम कर दिल मौन कोयल डाल पर बैठी हुई,
तीर लेकर हर जगह बैठा हुआ सय्याद है
भाईचारा प्रेम सब बातें किताबी हो गईं,
हो रही बेघर मनुजता,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 18, 2017 at 9:01am — 10 Comments
Added by नाथ सोनांचली on August 18, 2017 at 5:00am — 9 Comments
ये क्या है जो मुझे चलाती?
कभी मंद कभी तेज भगाती।
क्या पाया क्या पाना चाहा,
हरदम मुझको याद दिलाती।
विधना ने क्रंदन दुःख लिखा,
यह प्रेरित करती हर्षाती।
कभी शिथिल होकर बैठा जो,
उत्प्रेरित कर मुझे जगाती।
जलते जीवन में भी हँसकर,
बढ़ते जाना मुझे सिखाती…
ContinueAdded by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 17, 2017 at 10:00pm — 6 Comments
212 212 212 212
सज सँवर अंजुमन में वो गर जाएँगे I
नूर परियों के चेहरे उतर जाएँगे II
जाँ निसार अपनी है तो उन्हीं पे सदा ,
वो कहेंगे जिधर हम उधर जाएँगे I
ऐ ! हवा मत करो ऐसी अठखेलियाँ ,
उनके चेहरे पे गेसू बिखर जाएँगे I
पासवां कितने बेदार हों हर तरफ ,
उनसे मिलने को हद से गुजर जाएँगे I
है मुहब्बत का तूफां जो दिल में भरा ,
उनकी नफ़रत के शर बे-असर जाएँगे I
बेरुखी उनकी…
ContinueAdded by कंवर करतार on August 17, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
(फाइलातुन -फाइलातुन -फाइलातुन - फाइलुन /फाइलात )
शाम होते ही सितम ढाए सदा तेरा ख़याल |
दिल से बाहर ही न निकले दिलरुबा तेरा ख़याल |
देखता हूँ जब भी मैं नाकाम दीवाना कोई
यक बयक आता है मुझको बे वफ़ा तेरा ख़याल |
उम्र भर कैसे निभेगा साथ मुश्किल है यही
है अलग मेरा तसव्वुर और जुदा तेरा ख़याल |
हो न हो तुझको यकीं लेकिन है सच्चाई यही
किस ने आख़िर है किया मेरे सिवा तेरा ख़याल |
ढोंग तू फिरक़ा परस्ती को…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on August 17, 2017 at 8:30pm — 10 Comments
एक मुट्ठी राख़ ....
न ये सुबह तेरी है न रात तेरी है l
आबगीनों सी बंदे हयात तेरी है l
इतराता है क्यूँ तू मैं की क़बा में -
एक मुट्ठी राख़ औकात तेरी है l
........................................
अंगड़ाइयों से...
उम्र जब अपने शबाब पर होती है l
तो मोहब्बत भी बेहिसाब होती है l
जवां अंगड़ाइयों से मय बरसती है -
हर मुलाक़ात हसीन ख़्वाब होती है l
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 17, 2017 at 4:38pm — 2 Comments
Added by अनहद गुंजन on August 17, 2017 at 4:00pm — 5 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2017 at 11:13am — 11 Comments
(122-122-122-12)
रहे हम तो नादां ये क्या कर चले
कि दौर ए जफ़ा में वफ़ा कर चले।
वो तूफ़ान के जैसे आ कर चले
मेरा आशियाना फ़ना कर चले।
रक़ीबों की तारीफ़ की इस क़दर
कि चहरा मेरा ज़र्द सा कर चले'
कहीं जाग जाएँ न इस ख़ौफ़ से
हम आँखों में सपने सुला कर चले
ज़मीं हमको बुज़दिल का ताना न दे
तो फिर हम ये नज़रें उठा कर चले।
तड़पते रहे अधजले कुछ हरूफ़
वो जब मेरे खत को जला कर…
Added by Gurpreet Singh jammu on August 16, 2017 at 4:30pm — 13 Comments
आभासी इस दुनिया में क्या
आभास भी आभासी होते हैं ?
शक्ल नहीं होती है सामने
इंसान भी आभासी होते हैं ?
समय समय पर बनते बिगड़ते
रिश्ते भी आभासी होते हैं ?
इंसान में इंसानियत नहीं तो
आभासी इंसान भी होते हैं ?
बदलते युग का आगाज़ है
असली और नकली भी होते हैं ?
साहित्य कोष में भी
कहीं आभासी शब्द होते हैं ?
जाने कितने ऐसे सवाल है मन…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 16, 2017 at 4:00pm — 3 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |